Question : समाज में एक विज्ञान के रूप में समाजशास्त्र।
(2007)
Answer : इस संदर्भ में यह जानना आवश्यक है कि विज्ञान क्या है? वस्तुतः विज्ञान एक दृष्टिकोण है। किसी समस्या, परिस्थिति या तथ्य को सुव्यवस्थित ढंग से समझने के प्रयास को हम वैज्ञानिक दृष्टिकोण कह सकते हैं। इससे यह स्पष्ट होता है कि विज्ञान अपने आप में एक विषय-वस्तु नहीं है, बल्कि विश्लेषण की एक विधि का नाम है। समाजशास्त्र कितना वैज्ञानिक विषय है, इसे हम जॉनसन द्वारा दिये गये चार बिन्दुओं के आधार पर देख सकते ....
Question : सामाजिक तथ्य
(2007)
Answer : यह एक अत्यंत जटिल विचार है, जिसमें बाह्यता, बाध्यता और अपरिहार्यता के गुण विद्यमान होते हैं। दुर्खाइम के शब्दों में, एक सामाजिक तथ्य व्यवहार (सोचने-समझने, अनुभव करने या क्रिया सम्पादित करने) का एक भाग है, जो प्रेक्षक की दृष्टि में वस्तुपरक है तथा जिसकी प्रकृति बाध्यता मूलक होती है। सामाजिक संबंध तथा इन्हें नियंत्रित करने वाली प्रथाओं, परम्पराओं, कानून, धार्मिक, विश्वास, व्यावसायिक मान्यताओं की व्याख्या दुर्खाइम ने सामाजिक तथ्य के रूप में की है। दुर्खाइम ....
Question : धार्मिक जीवन के प्रारंभिक स्वरूप एवं समाज में धर्म की भूमिका के बारे में के विश्लेषण का विवरण दीजिए। आधुनिक औद्योगिक समाजों में वे धर्म के अस्तित्व को कैसे समझाते हैं?
(2007)
Answer : इमाइल दुर्खीम का विचार है कि समाज में पायी जाने वाली प्रत्येक संस्था सामूहिक जीवन द्वारा स्वीकार किये गये व्यवहारों और प्रतिमानों का प्रतीक है। धर्म एक सामाजिक तथ्य है और इसमें जो धार्मिक विचार और क्रियाएं पाई जाती हैं, वे समूह की मान्यताओं को अभिव्यक्ति करती हैं। धर्म नैतिक रूप से मानव समाज की सामूहिक चेतना का प्रतीक है।
दुर्खीम ने अपनी पुस्तक में धर्म के स्वरूप और प्रकृति पर प्रकाश डालने का प्रयास किया ....
Question : धर्म और विज्ञान।
(2006)
Answer : धर्म, मानव का संबंध आलौकिक शक्तियों के साथ जोड़ता है। धर्म न केवल मानव की आंतरिक जीवन को प्रभावित करता है, बल्कि सामाजिक-आर्थिक एवं राजनीतिक जीवन को भी प्रभावित करता है। धर्म आदिम एवं आधुनिक दोनों समाजों में पाया जाता है। धर्म को पारिभाषित करते हुए यह कहा जा सकता है कि धर्म किसी न किसी अति मानवीय, अलौकिक या समाजोपरि शक्ति पर विश्वास है। जिसका आधार भय, श्रद्धा, भक्ति एवं पवित्रता की धारणा है।
इसके ....
Question : विज्ञान के रूप में समाजशास्त्र।
(2002)
Answer : समाजशास्त्र की परिभाषा समाज के विज्ञान के रूप में हमेशा से दी जाती रही है। जहां तक समाज और विज्ञान का सवाल है तो इसका तात्पर्य यह है कि समाज का अध्ययन व्यवस्थित वैज्ञानिक, विधियों के द्वारा किया जाये। आगस्त कॉम्ट एवं इमाईल दुर्खीम ने समाजशास्त्र की प्रकृति को विज्ञान के रूप में समझने की कोशिश की है। इन्होंने समाजशास्त्र का अध्ययन वैज्ञानिक ढंग से करने की बात की है, जो प्राकृतिक विज्ञानों की विधि ....
Question : सिद्धांत और तथ्य
(2002)
Answer : किसी भी सामाजिक विज्ञान के लिए दोनों के परस्पर संबंधों को अस्वीकार नहीं किया जा सकता है। सिद्धान्त किसी भी विज्ञान/सामाजिक विज्ञान का एक सामान्यीकृत कथन होता है, जो लगभग सभी परिस्थितियों पर लागू किया जा सकता है। दूसरी ओर, तथ्य शाब्दिक रूप से समाज में पाये जाने वाले किसी भी परिस्थिति का सही अवलोकन एवं प्राप्त आंकड़े का सही मूल्यांकन होता है।
परंतु यहां पर सिद्धान्त एवं तथ्य का मतलब समाजशास्त्र में दो प्रकार के ....