Question : सामाजिक संरचना के एक सिद्धांत के रूप में जाति- व्यवस्था।
(2006)
Answer : परम्परागत भारतीय सामाजिक संरचना जाति-व्यवस्था पर आधारित है। जाति-व्यवस्था ने भारतीय समाज को एक संस्तरण में विभाजित कर दिया है। जाति-व्यवस्था भारतीय समाज की एकमात्र विशेषता है। जाति एक ऐसा सामाजिक समूह है जिसकी सदस्यता जन्मजात होती है। प्रत्येक जाति का एक नाम और एक व्यवसाय होता है। दत्ता, धैर्य आदि ने जाति की निम्नलिखित विशेषताएं बतायीं:
Question : उर्ध्वाधर सामाजिक गतिशीलता।
(2006)
Answer : सामाजिक गतिशीलता से तात्पर्य किसी व्यक्ति या समूह का सामाजिक स्तरण में स्थान परिवर्तन से है। यह स्थान परिवर्तन पद-प्रतिष्ठा, मान-सम्मान, धन, आदि की प्राप्ति या उसके ह्रास के कारण होता है। सर्वप्रथम सोरोकिन ने दो प्रकार की सामाजिक गतिशीलता की चर्चा की हैः
क्षैतिज गतिशीलता में व्यक्ति के व्यवसाय, स्थान आदि में परिवर्तन होता है, परंतु सामाजिक स्तरण में उसकी स्थिति अपरिवर्तित रहती है। जबकि उर्ध्वाधर गतिशीलता में व्यक्ति के मान-सम्मान, पद-प्रतिष्ठा आदि ....
Question : समाज में शक्ति के अभिजात्य और शक्ति संरचना में नव आभिजात्य का उदय
(2005)
Answer : अमेरिका के शासक अभिजनों के संदर्भ में सी.डब्ल्यु.मिल्स ने इस अवधारण का विकास किया और इसी नाम से सन् 1956 में उन्होंने एक पुस्तक लिखी। मिल्स के विश्लेषण के अनुसार, ये ऐसे अभिजन होते हैं जिनमें व्यापार, सरकार और सेना के अगुवा लोग सम्मिलित होते हैं। ये लोग समान सामाजिक पृष्ठभूमि के कारण आपस में बंधे होते हैं। यही नहीं, इन तीनों वर्गों में आपस में अदला-बदली भी होती रहती है। मिल्स की इस पुस्तक ....
Question : समाज में ऊर्ध्वाधर और क्षैतिज सामाजिक गतिशीलता किस प्रकार से समस्याजनक होती है? हल सुझाइए।
(2005)
Answer : समाज में ऊर्ध्वाधर और क्षैतिज सामाजिक गतिशीलता के समस्यात्मक पहलु से पूर्व यह आवश्यक है कि दोनों शब्दों का अर्थ स्पष्ट किया जाए।
क्षैतिज सामाजिक गतिशीलताः जब किसी संस्तरित व्यवस्था में संक्रमण के कारण परिस्थिति एवं भूमिका दोनों में परिवर्तन आ जाता है, तब इसे समस्तरी या क्षैतिज सामाजिक गतिशीलता कहते हैं। इस प्रकार की गतिशीलता के कारण सामाजिक वर्ग की प्रस्थिति में कोई बदलाव नहीं आता है। यह व्यक्ति की सामाजिक प्रस्थिति में होने वाला ....
Question : सामाजिक स्तरण पर द्वंद्व परिप्रेक्ष्य पर संक्षेप में चर्चा कीजिए और इस विचार का परीक्षण कीजिए कि भारत में सामाजिक असमता, दृढ़ सामाजिक स्तरण प्रणाली का फलन है।
(2004)
Answer : कार्ल मार्क्स ने अपने वर्ग संघर्ष की विचारधारा के आधार पर सामाजिक स्तरण को स्पष्ट करने का प्रयास किया है। उन्होंने अपनी पुस्तक साम्यवादी घोषणापत्र में लिखा है। आज तक अस्तित्व में रहे समाजों का इतिहास वर्ग संघर्षों का इतिहास है। अर्थात् प्रत्येक काल में वर्ग रहे हैं और उनके बीच निरंतर संघर्ष रहा है। स्वतंत्र लोग व दास, कुलीन व अकुलीन, सामन्त और अर्ध दास, अत्याचारी व पीडि़त, ये सभी वर्ग विभिन्न कालों में ....
Question : ‘सामाजिक व्यवस्था बनाए रखने में समाजीकरण और सामाजिक नियंत्रण एक-दूसरे के पूरक होते हैं।’ उपयुक्त उदाहरणों के साथ अपने उत्तर को सुस्पष्ट कीजिए।
(2004)
Answer : टॉलकॉट पारसंस, आर.के. मर्टन, डेविस, स्मेलसर इत्यादि प्रकार्यवादियों ने सामाजिक व्यवस्था को दो स्तरों पर देखने का प्रयास किया है- एक संरचना के स्तर पर और दूसरा प्रकार्य के स्तर पर। इस आधार पर यह कहा जा सकता है समाजीकरण एक गत्यात्मक प्रक्रिया से संबेंधित है जबकि सामाजिक नियंत्रण प्रकार्यात्मक संरचनात्मक आधार से संबंधित है। परंतु इस तथ्य से अस्वीकार नहीं किया जा सकता है कि समाजीकरण और सामाजिक नियंत्रण दोनों मिलकर सामाजिक व्यवस्था के ....
Question : सामाजिक असमानता और सामाजिक स्तरण के बीच संकल्पनात्मक विभेद का परीक्षण कीजिए। सामाजिक स्तरण तंत्र की प्रकृति और रूप किस प्रकार सामाजिक गतिशीलता के प्रारूपों का निर्धारण करते हैं?
(2003)
Answer : सामाजिक स्तरण समाज मे मौजूद असमानता का एक पहलू है। सभी समाजों में सामाजिक व्यवस्थाओं में उत्पन्न असमानताएं मौजूद रहती हैं। प्रत्येक समाज में किसी न किसी रूप में सुविधा, शक्ति और प्रतिष्ठा के आधार पर निर्मित श्रेणियों तथा स्तरों का अस्तित्व पाया जाता है। सुविधा तथा शक्ति के उपयोग के दृष्टिकोण से इन विभिन्न स्तरों का सामाजिक संरचना में स्थानक्रम निर्धारित होता है। जिनके पास अधिक सुविधा और शक्ति होती है, उनका सामाजिक स्तर ....
Question : सामाजिक गतिशीलता और सामाजिक परिवर्तन।
(2002)
Answer : सामाजिक गतिशीलता एवं सामाजिक परिवर्तन एक-दूसरे के साथ काफी अंतःसम्बंधित हैं। सामाजिक गतिशीलता के फलस्वरूप ही किसी समाज में सामाजिक परिवर्तन आता है। बिना सामाजिक गतिशीलता के सामाजिक परिवर्तन की कल्पना करना भी व्यर्थ है।
सामाजिक गतिशीलता में समाज में किसी समूह, परिवार एवं व्यक्ति के द्वारा जब एक सामाजिक स्थिति से दूसरी सामाजिक स्थिति में परिभ्रमण हो जाता है। यह गतिशीलता मुख्यतः क्षैतिज एवं उर्ध्वाधर (Horizontal & Vertical) होती है।
क्षैतिज गतिशीलता में कोई व्यक्ति अपनी ....
Question : सैक्स एवं जेंडर में विभेद कीजिए। जेंडर मुद्दों की उपयुक्त उदाहरणकें सहित विवेचना कीजिए।
(2002)
Answer : वास्तव में सैक्स एवं जेंडर दोनों एक ही विषयवस्तु की ओर इंगित करते हैं जिससे यह विरोधाभास पैदा हो जाता है कि दोनों समान हैं परंतु ऐसा नहीं है। दोनों का उपागम एवं क्षेत्र, सामाजिक धरातल पर काफी भिन्न हैं। मुख्यतः सैक्स को जीवशास्त्रीय माना जाता है एवं जेंडर को सांस्कृतिक माना जाता है। अतः सैक्स की विषय-वस्तु को हम जीव विज्ञान/विज्ञान से संबंधित कर सकते हैं परंतु जेंडर पूर्णरूपेण सांस्कृतिक है, जो संस्कृति के ....
Question : सामाजिक स्तरीकरण सिद्धान्त से संबंधित मेलविन टयुमिन की समीक्षा कीजिए।
(2002)
Answer : मेलविन टयुनिम मुख्यतः डेविस एवं मूरे की सामाजिक स्तरीकरण सिद्धान्त की आलोचना के लिए प्रसिद्ध हैं। ट्युमिन ने मूरे के प्रकार्यात्मक सिद्धान्त को स्थिति पर आधारित प्रकार्यात्मक महत्व के मापन पर प्रश्न किया है। डेविस एवं मूरे ने अपने सिद्धान्त में यह तथ्य निरूपित किया है कि उच्चतर श्रेणी की पुरस्कृत स्थिति निश्चित रूप से अधिक महत्वपूर्ण है। परंतु, इस तथ्य से भी इनकार नहीं किया जा सकता है कि बहुत से व्यवसाय निम्न प्रकार ....
Question : आधुनिक समाज में लैंगिक भूमिकाओं का उभरता प्रारूप
(2001)
Answer : आधुनिक समाज में स्त्री-पुरुष के बीच असमानता की प्रवृत्ति घटती जा रही है। वर्तमान समय में चेतना, शिक्षा का बढ़ता स्तर एवं आधुनिकता का स्तर का प्रभाव लैंगिक भूमिकाओं में काफी परिवर्तन लाया है। परंतु दूसरी ओर इस बात से भी इन्कार नहीं किया जा सकता है कि जहां पर सामाजिक संरचना ग्रामीण पृष्ठभूमि पर आधारित है वहां इसका प्रभाव कम ही देखने को मिलता है। नगरों में आधुनिकता के प्रभाव के फलस्वरूप बहुत ही ....
Question : अंतःपीढ़ी गतिशीलता।
(2000)
Answer : अंतःपीढ़ीय संघर्ष मुख्यतः परिवार में बच्चों और माता-पिता के बीच संघर्ष, शिक्षा संस्थाओं में छात्रों और शिक्षकों के बीच संघर्ष, कार्यालयों में पुराने और नये कर्मचारियों के बीच संघर्ष के रूप में देखा जाता है। युवा वर्ग को पुरानी पीढ़ी के साथ संघर्ष और उनके विरुद्ध खड़े होने के प्रेरक तत्वों में प्रमुख हैं- पश्चिमी संस्कृति का प्रभाव, मनोरंजन के वाणिज्यिक साधनों के लिए मूल्य, बढ़ता खाली समय तथा माता-पिता की अधिक समृद्धि और शक्ति। ....
Question : आप स्तरित और अस्तरित सामाजिक स्थितियों के बीच किस प्रकार विभेदन करेंगे? मानव समाज में सामाजिक स्तरण के सर्वव्यापी अस्तित्व के लिए आप क्या स्पष्टीकरण प्रस्तुत करेंगे?
(1999)
Answer : सामाजिक स्थिति से हमारा अभिप्राय हमेशा एक व्यक्ति या कुछ व्यक्तियों के समूह के सामाजिक पद से है। दूसरी तरफ स्तरण से हमारा तात्पर्य समस्त समाज के स्तर पर विभिन्न प्रकार की स्थितियों का श्रेणीबद्ध विभाजन या व्यवस्था से है। स्तरण पूरे समाज को उसकी समग्रता में देखने का प्रयास करता है। स्थिति एवं संस्तरण के निर्धारकों के बीच स्पष्ट फर्क है। वह यह है कि स्तरण के कारक समस्त समाज के विभाजन के कारक ....
Question : सामाजिक गतिशीलता की प्रकृति और अभिलक्षणों पर चर्चा कीजिए। क्या सामाजिक गतिशीलता की प्रकृति और दर को आर्थिक विकास का एक सूचक माना जा सकता है? टिप्पणी कीजिए।
(1999)
Answer : किसी समाज की सामाजिक स्तरीकरण की व्यवस्था में, सामान्यत व्यक्तियों और कभी-कभी किसी सम्पूर्ण समूह की भिन्न पद-प्रस्थियों के बीच होने वाले संक्रमण/परिवर्तन को सामाजिक गतिशीलता कहते हैं। साधारण अर्थों में आय के बढ़ने या घटने के कारण किसी व्यक्ति का एक वर्ग से दूसरे वर्ग में प्रवेश की स्थिति सामाजिक गतिशीलता को इंगित करती है। सामाजिक गतिशीलता सामाजिक आकाश में पद-प्रस्थिति के परिवर्तन का संकेत देती है।
सामाजिक गतिशीलता को कुछ विद्वानों ने सामाजिक स्थिति ....
Question : वर्ग के रूप में जाति।
(1998)
Answer : पश्चिमी विद्वानों और विशेषकर ब्रिटिश प्रशासकों और नृजाति-विशेषज्ञों के अनुसार जाति और वर्ग एक-दूसरे के बिल्कुल विपरीत हैं। उनकी मान्यता है कि जाति और वर्ग भिन्न प्रकार के सामाजिक स्तरीकरण हैं। वर्ग व्यवस्था में व्यक्ति श्रेणीकृत इकाइयां होती हैं और जाति में समूह श्रेणीकृत होते हैं।
परंतु दूसरी ओर भारतीय समाजशास्त्री यह मानते हैं कि जाति एवं वर्ग एक-दूसरे से संबंधित हैं। जाति और वर्ग दोनों वास्तविक और आनुभाविक हैं। दोनों में अंतःक्रियात्मक और सोपानुगत है ....
Question : सामाजिक स्तरीकरण के कार्यपरक सिद्धांत का आलोचनात्मक विश्लेषण कीजिए।
(1998)
Answer : सामाजिक स्तरीकरण के कार्यपरक सिद्धांत के प्रमुख प्रवर्त्तक किंग्सले डेविस एवं विलबर्ट मूर हैं। इस सिद्धांत के समर्थकों का कहना है कि सामाजिक स्तरण समाज की जरूरतों की उपज है, न की व्यक्तियों की जरूरतों की। साथ ही यह सिद्धांत इस धारणा पर आधारित है कि सामाजिक स्तरीकरण, सामाजिक संगठन के लिए उपयोगी होती है। इस सिद्धांत से संबंधित प्रमुख विचारों को निम्नांकित क्रम में समझा जा सकता हैः
Question : ‘समाजीकरण वह प्रक्रम है जिसके द्वारा हममें से प्रत्येक उस संस्कृति का अर्जन करता है जिसको हम अगली पीढ़ी को संचारित कर देते हैं।’ इस कथन को सविस्तार प्रतिपादित कीजिए और इसकी विभिन्न अवस्थाओं पर चर्चा कीजिए।
(1998)
Answer : समाजीकरण एक सामाजिक मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया है जिसके द्वारा हम समाज के सक्रिय सदस्य बनते हैं। इस प्रक्रिया में समाज के मानदंडों और मूल्यों के आन्तरीकरण के साथ-साथ अपनी सामाजिक भूमिकाओं को सम्पादन करना सीखना दोनों बातें सम्मिलित होती है। इसी प्रक्रिया के द्वारा ‘स्व’ का विकास होता है, अतः कुछ समाजशास्त्रियों ने इसे ‘स्व’ के विकास की प्रक्रिया भी कहा है। इस प्रक्रिया में परिवार, समुदाय और विद्यालय की विशेष भूमिका होती है। यह अविरल ....
Question : उर्ध्वाधर और क्षैतिज गतिशीलता।
(1998)
Answer : सोरोकिन ने सामाजिक गतिशीलता के प्रमुख प्रकारों का उल्लेख किया है- (1) क्षैतिज या समरैखिक सामाजिक गतिशीलता, (2) उदग्र या उर्ध्वाधर या रैखिक सामाजिक गतिशीलता।
क्षैतिज या समरैखिक गतिशीलता में एक व्यक्ति उसी स्तर के एक समूह से दूसरे समूह में गमन करता है। इसे परिभाषित करते हुए गोल्ड एवं कॉब लिखते हैं, ‘बिना सामाजिक वर्ग पद में परिवर्तन किए प्रस्थिति एवं भूमिकाओं के विशेष रूप से व्यावसायिक क्षेत्र में परिवर्तन को क्षैतिज गतिशीलता कहते हैं।’ ....