Question : जीवन का बदलता ढांचा।
(2007)
Answer : जीवन का बदलता ढांचा एक प्रक्रिया है, जिसमें एक निश्चित समयावधि में घटनाओं की एक श्रृंखला होती है। इसमें निरंतरता की भावना विद्यमान होती है। घटनाओं के विशिष्ट क्रम के कारण सामाजिक संस्थाओं की भूमिका में परिवर्तन होता है, जो परिवर्तित परिस्थितियों में अधिक प्रभावशाली होता है। जीवन के बदलते ढांचे के संदर्भ में औद्योगीकरण, पश्चिमीकरण और आधुनिकीकरण मुख्य तत्व हैं। औद्योगीकरण से लोगों की जीवन शैली में परिवर्तन हुआ है। महिलाओं की आर्थिक भूमिका ....
Question : पूर्व औद्योगिक व्यवस्था के लक्षण।
(2007)
Answer : पूर्व औद्योगिक आर्थिक प्रणाली मुख्यतः कृषक समाज की विशेषताओं को अभिव्यक्त करती है। राबर्ट रेडफील्ड ने कृषक समाज की अवधारणा के माध्यम से ग्रामीण समाज अथवा औद्योगिक पूर्व समाज की आंतरिक एवं बाह्य संरचना को समझाने का प्रयत्न किया है। रॉबर्ट रेडफील्ड ने कृषक समाज की पांच विशेषताओं का उल्लेख किया हैः
Question : आर्थिक विकास के सामाजिक नियामक दर्शाइये। विकासशील समाजों के पिछड़ेपन एवं गरीबी का विश्लेषण करते हुए किसी एक समाजशास्त्रीय परिप्रेक्ष्य की चर्चा भी कीजिए।
(2007)
Answer : आर्थिक विकास के बिना सामाजिक व्यवस्था में परिवर्तन सम्भव नहीं है, जब कि दूसरा दृष्टिकोण यह है कि समाज के भीतर संस्थाओं में होने वाले परिवर्तन आर्थिक विकास को सम्भव बनाते हैं। फ्रैन्किल के अनुसार, आर्थिक विकास एवं सामाजिक परिवर्तन एक दूसरे पर निर्भर हैं, अर्थात् प्रत्येक एक का कारण है तो दूसरा उसका परिणाम। उदाहरण के लिए जब कृषि से उद्योग में परिवर्तन होता है (सीमेन्ट उद्योग, चीनी उद्योग, कागज उद्योग या स्टील उद्योग) ....
Question : आर्थिक विकास के सामाजिक निर्धारक।
(2005)
Answer : आर्थिक विकास में सामाजिक कारकों का अभूतपूर्व योगदान होता है। इसके अतिरिक्त प्राकृतिक साधन, मानवीय साधन, पूंजी, तकनीक ज्ञान, संगठन, राज्य की नीति, विकास की इच्छा, सामाजिक संस्थाएं, परम्पराएं एवं व्यवहार, अंतरराष्ट्रीय परिस्थितियां आदि सभी आर्थिक व्यवहार को निर्धारित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। आर्थिक विकास को प्रभावित करने वाले सामाजिक निर्धारक निम्नांकित हैं-
Question : नव पूंजीवादी अर्थव्यवस्था में अधिकारी तंत्र।
(2004)
Answer : नव पूंजीवादी अर्थव्यवस्था में अधिकारी तंत्र का महत्व निश्चित रूप से है। यह अर्थव्यवस्था मूल रूप से विभिन्न नियमों एवं कानूनों के तहत संचालित होती है। आज के अधिकांश देश, चाहे वह विकसित देश हो, अविकसित हो व विकासशील, अधिकारी तंत्र की महत्ता को स्वीकार करते है। दूसरे शब्दों में, ‘वेबर ने अधिकारी तंत्र की उपयोगिता एवं महत्ता को आधुनिक समाज की प्रमुख विशेषता के रूप में वर्णन किया है। वेबर ने अधिकारी तंत्र को ....
Question : आर्थिक विकास के सामाजिक निर्धारक।
(2003)
Answer : किसी भी देश में आर्थिक विकास को निर्धारित करने में अनेक कारकों की भूमिका निहित होती है जिसमें प्राकृतिक साधन, मानवीय साधन, पूंजी, तकनीकी ज्ञान, संगठन, राज्य की नीति, विकास की इच्छा, सामाजिक संस्थाएं परम्पराएं एवं व्यवहार, अंतर्राष्ट्रीय परिस्थितियां इत्यादि। आर्थिक विकास के सामाजिक निर्धारक निम्नलिखित है:
Question : औद्योगीकरण और सामाजिक परिवर्तन
(2002)
Answer : आधुनिक समाज में औद्योगीकरण के फलस्वरूप सामाजिक प्रक्रिया में काफी परिवर्तन हुआ है। वर्तमान समय में औद्योगीकरण और सामाजिक परिवर्तन एक दूसरे से काफी अंतःसंबंधित हैं। मार्क्स ने सामाजिक परिवर्तन का सिद्धान्त औद्योगीकरण के फलस्वरूप दिया था। वास्तव में, मार्क्स के पूंजीवादी समाज की अवधारणा औद्योगीकरण की आस-पास घूमती है। परंतु मार्क्स ने पूंजीवादी समाज को अतार्किक माना है। डाइरेन्डार्फ ने भी सामाजिक परिवर्तन का मुख्य आधार औद्योगीकरण माना है। यहां पर इन बातों से ....
Question : विनिमय के प्रकार।
(2001)
Answer : विनिमय मुख्यतः दो प्रकार के अर्थों में लिया जाता है। पहला वस्तु विनिमय एवं दूसरा उत्सवी विनिमय। उपहारों का उद्देश्य उत्पादन के वितरण द्वारा व्यक्तिगत एवं सामूहिक संबंधों को स्थायित्व देना होता है। अण्डमानियों से लेकर विकसित समाजों तक हमें उपहार देने की प्रथा देखने को मिलती है। उपहार आर्थिक व सामाजिक दोनों दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है। उपहार में आर्थिक दृष्टि से कीमती एवं उपयोगी वस्तुएं, प्रतिष्ठा की दृष्टि से उपयोगी वस्तुएं लेकिन व्यावहारिक और ....
Question : आर्थिक विकास के सामाजिक निर्धारक।
(2000)
Answer : किसी समाज की आर्थिक विकास में योगदान देने वाले कारक मुख्यतः प्राकृतिक संसाधन, पूंजी संग्रह, प्रौद्योगिकी ऊर्जा के साधन, मानव शक्ति, श्रम शक्ति, जनसंख्या की विशेषताएं और इसके आर्थिक संगठन, और सामाजिक वातावरण। जहां तक आर्थिक विकास के सामाजिक निर्धारक की बात है तो इसके अंतर्गत (i) मूल्य या विचारधारा, (ii) संस्थाएं अथवा नियामक ग्रंथियां, (iii) संगठन (नीतियां), (iv) धर्म।
मैक्स वेबर ने आधुनिक पूंजीवाद के विकास का कारण धार्मिक संस्थाओं को माना है। इसके अनुसार ....
Question : श्रम विभाजन और सामाजिक संरचना का विभेदन
(1999)
Answer : श्रम-विभाजन से तात्पर्य किसी भी स्थाई संगठन मे मिलजुल कर काम करने वाले व्यक्तियों, या समूहों द्वारा भिन्न, किंतु समन्वयात्मक क्रियाओं के सम्पादन से हैं श्रम-विभाजन के अंतर्गत विभाजित काम के प्रत्येक भाग को किसी पृथक व्यक्ति अथवा व्यक्तियों के समूह द्वारा सम्पादित किया जाता है। अतः समाज में किसी कार्य को सम्पादित करने वाले व्यक्तियों के बीच सम्पन्न की जाने वाली क्रियाओं एवं सेवाओं के वितरण एवं वैभिन्नकरण की प्रक्रिया श्रम-विभाजन कहलाती हैं इस ....
Question : पूर्व औद्योगिक आर्थिक व्यवस्था के अभिलक्षण
(1998)
Answer : पूर्व औद्योगिक आर्थिक प्रणाली मुख्यतः कृषक समाज की विशेषताओं को अभिव्यक्त करती है। राबर्ट रेडफील्ड ने कृषक समाज की अवधारणा के माध्यम से ग्रामीण समाज अथवा औद्योगिक पूर्व समाज की आंतरिक एवं बा“य संरचना को समझाने का प्रयत्न किया है। रॉबर्ट रेडफील्ड ने कृषक समाज की पांच विशेषताओं का उल्लेख किया है-