Question : हिन्दी आलोचना और डा. रामविलास शर्मा
(2005)
Answer : डा. रामविलास शर्मा ने हिन्दी-भाषा और साहित्य की गौरवशाली परंपराओं का अनुसंधान करते हुए नवीन-आलोचना दृष्टि का विकास किया। वे मार्क्सवाद की समझ का उपयोग अपने ढंग से करते हैं- मार्क्सवाद के प्रगतिशील तत्वों का उपयोग उन्होंने आलोचना में आचार्य रामचन्द्र शुक्ल की आलोचना- दृष्टि के समर्थन और ग्रहण के साथ किया। डा. शर्मा की आलोचना में भारतीय लोक-परम्पराओं, क्लासिकल भारतीय साहित्य की उदात्त-भावभूमि के साथ लोक-चित्तवृत्ति की पकड़ रहती है। कवियों में निराला, कथाकारों ....
Question : आलोचक रामचंद्र शुक्लः
(2004)
Answer : आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने अपने गंभीर अध्ययन, काव्य गुणों को पहचानने की अद्भुत क्षमता और विश्लेषण बुद्धि के द्वारा हिदी आलोचना को अभूतपूर्व उत्कर्ष प्रदान किया। वे हिन्दी आलोचना के प्रशस्त-पथ पर, एक ऐसे आलोक-स्तंभ के रूप में प्रतिष्ठित हैं, जिसके प्रकाश में हम आगे और पीछे दोनों ओर हम बहुत दूर तक देख सकते हैं। शुक्ल जी ने द्विवेदी-युग की सैद्धांतिक एवं व्यावहारिक समीक्षा को काफी विकसित और समृद्ध किया। आचार्य शुक्ल लिखते हैं ....
Question : आलोचक नागेंद्रः
(2002)
Answer : डा. नागेन्द्र ने हिन्दी आलोचना को व्यावहारिक और सैद्धांतिक दोनों ही दृष्टियों से समृद्ध किया। वे एक रसवादी आलोचक हैं तथा रसवाद पर इनका आग्रह अन्य सभी आलोचकों से बढ़-चढ़कर है। आलोचक नागेन्द्र ने ‘रस सिद्धांत में रस की सांगोपांग विवेचना करते हुए इसे पुनः प्रतिष्ठित करने का प्रयास किया है। आचार्य द्विवेदी की मानवतावादी समीक्षा में जहां साहित्येत्तर तत्वों की बहुलता है, वहां नागेन्द्रजी एकान्ततः साहित्यिक समीक्षा-सिद्धांतों के पक्षपाती हैं। इधर समीक्षा में वाजपेयी ....
Question : प्रगतिवादी आलोचना का स्वरूप
(2001)
Answer : आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के बाद हिन्दी आलोचकों का जब एक वर्ग छायावाद की प्रतिष्ठा में संलग्न था, उसी समय पंत जैसे छायावादी कवि युगान्त की घोषणा करके नए युग का आह्नान करने लगे थे और आकाश में उड़ते हुए छायावाद के कल्पना-विहग को दाने के लिए धरती पर आने की आवश्यकता का अनुभव होने लगा था। इसी समय (1936 ई.) ‘प्रगतिशील लेखक संघ’ का प्रथम अधिवेशन हुआ, जिसमें प्रेमचन्द ने अपने अध्यक्षीय भाषण में साहित्य ....
Question : सैद्धांतिक आलोचना
(2000)
Answer : सैद्धांतिक आलोचना की विशेषता है काव्य-शास्त्र के अनुसार चलना। द्विवेदी युग में अनेक विद्वानों ने रीतिकालीन लक्षण ग्रंथों की परंपरा का पालन करते हुए काव्यशास्त्रीय ग्रंथों की रचना कर, सैद्धांतिक आलोचना का मार्ग प्रशस्त किया। वैसे सैद्धांतिक आलोचना की नींव भारतेन्दु ने ही डाल दी थी, लेकिन इसका स्पष्ट विकास द्विवेदी युग में ही हुआ। द्विवेदी युग में हिन्दी के सैद्धांतिक या शास्त्रीय समीक्षा का विकास दो रूपों में हुआ। कुछ आलोचकों ने रीतिकालीन लक्षण-ग्रंथों ....
Question : क्या आचार्य रामचन्द्र शुक्ल रसवादी दृष्टि और लोकमंगल की अवधारणा में समन्वय करने में सफल हुए हैं? युक्ति युक्त उत्तर दीजिए।
(2000)
Answer : आचार्य शुक्ल हिन्दी आलोचना और साहित्य के आधार स्तंभ हैं। उन्होंने हिन्दी आलोचना को आधुनिक बनाने में काफी महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह किया। शास्त्र और द्विवेदी युगीन कोरे रचनाकार से संदर्भ से हटकर उन्होंने रचना को अपने विवेचन का केंन्द्र बिन्दु बनाया, जिसके लिए इतिवृत्त-कथन से आगे संश्लिष्ट छायावादी विधान ने अपने को प्रस्तुत किया। रामचन्द्र शुक्ल संस्कृत के न पंडित थे और न उनके पास अंग्रेजी की डिग्री थी। अपनी मानसिकता बनाने में उन ....
Question : आलोचना के क्षेत्र में डा. रामविलास शर्मा के योगदान पर एक विवेचनात्मक निबन्ध लिखिए।
(1999)
Answer : मार्क्सवादी आलोचकों में डा. रामविलास शर्मा का केंद्रीय स्थान है। वे हिन्दी के आलोचना-कर्म में प्रगतिवादी विचारधारा के एक मुख्य प्रवक्ता के रूप में आते हैं। लेकिन उनके लेखन में वाद का आग्रह हल्का होता जाता है तथा विवेचन की प्रधानता होती जाती है। इस प्रकार उनका संस्कार कुछ ऐसा बन गया कि वे किसी लेखक के विचार की जितनी अच्छी व्याख्या कर सकते हैं, उतनी उसकी रचनात्मकता की नहीं। और इसी प्रवृत्ति का एक ....
Question : प्रगतिवादी चेतना
(1999)
Answer : प्रगतिवाद का संबंध जीवन और जगत के प्रति नये दृष्टिकोण से है। इस भौतिक जगत् को संपूर्ण सत्य मानकर, उसमें रहने वाले मानव समुदाय के मंगल की कामना से प्रेरित होकर प्रगतिवादी साहित्य की रचना की गई है। जीवन के प्रति लौकिक दृष्टि इस साहित्य का आधार है और सामाजिक यर्थाथ से उत्पन्न होता है, लेकिन उसे बदलने और बेहतर बनाने की कामना के साथ। प्रगतिवादी कवि न तो इतिहास की उपेक्षा करता है, न ....