Question : अपभ्रंश की व्याकरणिक विशेषताएं बताइए।
(2008)
Answer : अपभ्रंशः मूलतः सामान्य जन-समुदाय में प्रयुक्त होने वाली आम बोलचाल की लोक-भाषाओं अथवा विभिन्न देशी बोलियों के लिए प्रयुक्त विशेषण है। संस्कृत की तुलना में जो लोकभाषा संस्कार-हीन, व्याकरण-विहीन, अनगढ़, टूटी-फूटी या विकृत शब्दावली से युक्त, अशिष्ट अपरिमार्जित मानी गई, उसे संस्कृत के आचार्यों ने अपभ्रंश नाम दिया।
चूंकि अपभ्रंश, संस्कृत के क्रमिक विकास से (संस्कृत > पालि > प्राकृत > अपभ्रंश) निष्पन्न भाषा है, इस कारण उसकी व्याकरणिक एवं शब्दकोशगत विशेषताओं को प्राकृत, पालि एवं ....
Question : हिंदी भाषा के विकास में अपभ्रंश के योगदान का विवेचन कीजिए।
(2008)
Answer : एक भाषा के विकास में दूसरी भाषा की भूमिका निर्धारित करने के लिए निकटता और समानता का सिद्धांत अपेक्षित है। हम जानते हैं कि हिंदी का मूल स्रोत भारत की प्राचीन आर्य भाषा संस्कृत है। हिंदी की अधिकांश भाषिक प्रवृत्तियों-ध्वनि-व्यवस्था, पद-संरचना, वाक्य-विन्यास आदि। संस्कृत के ही अनुसार हैं। हिंदी के अनंत शब्द भंडार का अधिकांश संस्कृत से विरासत के रूप में मिला है। किंतु सारी चीजें हिंदी को संस्कृत से सीधे-सीधे नहीं प्राप्त हुआ। यह ....
Question : अपभ्रंश की व्याकरणिक विशेषताएं
(2007)
Answer : अपभ्रंश संस्कृत के क्रमिक विकास (संस्कृत + पालि + प्राकृत + अपभ्रंश) से निष्पन्न भाषा है। अतः उसकी व्याकरणिक विशेषताओं का आकलन प्राकृत, पालि एवं संस्कृत की तुलना में ही किया जा सकता है। इस आधार पर अपभ्रंश की विशेषताओं को निम्न बिन्दुओं के अन्तर्गत समझा जा सकता है-
Question : पूर्वी हिन्दी और पश्चिमी हिन्दी की भेदक रेखाएं निर्धारित कीजिए।
(2005)
Answer : पूर्वी हिन्दी और पश्चिमी हिंदी, हिंदी की दो उपभाषाएं हैं। हालांकि इसका अर्थ यह नहीं है कि ये क्षेत्र विशेष में बोली जाती है या इन नामों से भाषाओं का अस्तित्व है। सच तो यह है कि ये क्षेत्रीय निकटता एवं भाषिक समानता के आधार पर कुछ बोलियों के समूह के लिए प्रयुक्त नाम है। अतः दोनों के बीच अन्तर को रेखांकित करने के पूर्व यह बात ध्यान रखना होगा कि ‘ब्रज’ पश्चिमी हिन्दी के ....
Question : ब्रजभाषा की व्याकरणिक विशेषताएं
(2005)
Answer : हिन्दी परिवार की जिस भाषा को हम ‘ब्रजभाषा नाम से जानते हैं, वह भाषा वैज्ञानिकों के अनुसार उत्तर प्रदेश के मथुरा, अलीगढ़, आगरा, बुलन्दशहर, एटा, मैनपुरी, बदायूं तथा बरेली आदि जिलों, हरियाणा के गुड़गांव की पूर्वी पट्टी, राजस्थान के भरतपुर, करौली तथा जयपुर के पूर्वी भाग और मध्यप्रदेश में ग्वालियर के पश्चिमी भाग में बोली जाती है। ऐतिहासिक विकास की दृष्टि से ‘ब्रज’ का संबंध ‘शौरसेनी’ अपभ्रंश से माना जाता है। इस भाषा का ‘ब्रजभाषा’ ....
Question : दक्खिनी हिन्दी के प्रमुख हस्ताक्षर
(2005)
Answer : ‘दक्खिनी हिन्दी’ मूलतः ‘हिन्दी’ का ही एक रूप है। इसके कई अन्य नाम भी हैं, यथा- ‘हिन्दवी’, ‘दकनी’, ‘दखनी’, हिन्दुस्तानी आदि। इसका मूल आधार दिल्ली के आस-पास प्रचलित 14वीं-15वीं सदी की ‘खड़ी बोली’ है। मुसलमानों ने भारत में आने पर इस बोली को अपनाया था। मसऊद, इब्नसाद, खुसरो तथा फरीदुद्दीन शकरगंजी आदि ने अपनी हिंदी कविताएं इसी में लिखी थी। 15वीं-16वीं सदी में फौज, फकीरों तथा दरवेशों के साथ यह भाषा दक्षिण भारत में पहुंची ....
Question : सिद्धनाथ-साहित्य में प्रारंभिक खड़ी बोली
(2005)
Answer : हिंदी साहित्य के अंतर्गत ‘सिद्ध’ शब्द (विशेषण) उन बौद्ध सिद्धाचार्यों के लिए प्रयुक्त होता है जो बौद्ध मत की वज्रयानी परंपरा से संबंधित थे। इसी प्रकार नाथ पंथी योगियों की परंपरा भी इसी अवधी में संपुष्ट होती दिखाई देती है और उनके सिद्धांत बौद्धमत के वज्रयानी सिद्धों से मिलते जुलते हैं, परंतु जनभाषा में रचित उनके उपदेश समकालीन विभिन्न उपासना एवं साधना पद्धतियों में एक सहज समन्वय का संदेश लिए हुए है। उनकी साहित्यिक कृतियां ....
Question : वाक्य रचना के विभिन्न तत्व
(2004)
Answer : वाक्य सार्थक शब्दों का ऐसा व्यवस्थित और क्रमबद्ध समूह होता है, जो किसी अभिप्राय को स्पष्ट करने में पूर्णतः समर्थ हो। वाक्य के संबंध में कुछ बातें ध्यान देने योग्य हैं (1) वाक्य में एक से अधिक पद होते हैं। (2) वास्तविक प्रयोग में कभी-कभी गौण शब्दों को छोड़कर, केवल उस एक शब्द या उन कुछ शब्दों के वाक्य भी मिलते हैं, जो प्रश्न या विषय से सीधे संबद्ध होते हैं और जिनके आधार पर ....
Question : दक्खिनी हिन्दी के विकास में आदिलशाही शासकों का योगदान।
(2004)
Answer : दक्खिनी हिन्दी मूलतः हिन्दी का ही रूप है। यह भाषा भी बीजरूप में दिल्ली के आस-पास की खड़ी बोली तथा हरियाणवी की थी, जिसका विकास दक्खिनी राज्यों में हुआ था। तेरहवीं-चौदहवीं शताब्दी में विभिन्न राजनैतिक और सामाजिक-सांस्कृतिक परिस्थितियों के कारण दिल्ली में प्रयुक्त हिन्दुई अथवा हिन्दीव (साथ में हरियाणवी का भी) का प्रवेश दक्षिण भारत में हो गया। तेरहवीं शताब्दी के अंतिम दशक में दिल्ली के सुल्तान अलाउद्दीन के दक्षिण-अभियान के परिणामस्वरूप उत्तर भारत के ....
Question : ‘हिन्दी भाषा के ऐतिहासिक विकास’ विषय पर निबंध लिखिए।
(2004)
Answer : हिन्दी भाषा का इतिहास बहुत पुराना है। इसके प्रारंभिक रूप को आदिकालीन अपभ्रंश तथा अवहट्ठ रचनाओं में देखा जा सकता है। अनेक विद्वान प्राचीन ‘डिंगल’ और ‘पिंगल’ रचनाओं को हिन्दी का ही रूप मानते हैं। आदिकाल में रचित सिद्ध और जैन साहित्य की भाषा हिन्दी के आदिकालीन स्वरूप का परिचय देती है। हालांकि इनकी भाषा अपभ्रंश से प्रभावित है। जैन कवि सोमप्रभा सूरि की एक कविता उदाहरण के तौर पर देखा जा सकता हैः
‘रावण ....
Question : ब्रज अवधी और खड़ी बोली में साम्य और वैषम्य पर प्रकाश डालिए।
(2004)
Answer : आधुनिक खड़ी बोली (मानक हिन्दी) के निर्माण में न केवल दिल्ली और उसके आस-पास की भाषाओं का बल्कि ब्रजभाषा और अवधी का भी महत्वपूर्ण योगदान रहा है, अतः मानक हिन्दी (खड़ी बोली), अवधी और ब्रजभाषा में अनेक समानताएं हैं जो हिन्दी परिवार में ‘सवांग’ के रूप में प्रतिष्ठित करती हैं, तो अनेक विभिन्नताएं भी हैं, जिसके कारण इन तीनों की अलग पहचान स्थापित होती है।
Question : मध्यकाल में ब्रजभाषा और अवधी का साहित्यिक भाषा के रूप में विकास पर प्रकाश डालिए।
(2003)
Answer : हिन्दी परिवार के जिस भाषा को ब्रजभाषा के नाम से जाना जाता है, वह उत्तर प्रदेश के मथुरा, अलीगढ़, आगरा, एटा, मैनपुरी, बदायूं तथा बरेली आदि जिलों तथा हरियाणा, राजस्थान एवं ग्वालियर के कुछ क्षेत्रों में बोली जाती है। इस भाषा का ‘ब्रजभाषा’ नामकरण 18वीं शताब्दी में हुआ। ऐतिहासिक विकास की दृष्टि से ‘ब्रजभाषा’ का संबंध ‘शौरसेनी’ अपभ्रंश से माना जाता है। साहित्यिक भाषा के रूप में ब्रज के विकास को तीन कालों में बांटा ....
Question : अमीर खुसरो की हिन्दी
(2003)
Answer : हिन्दी भाषा के विकास के आरंभिक युग में ही प्रतिभा के धनी अमीर खुसरो का उद्भव हुआ। उन्नीसवीं शताब्दी से पूर्व हिन्दी भाषा एवं साहित्य की विकास-यात्र में अमीर खुसरो की हिन्दी रचनाएं एक महत्वपूर्ण प्रस्थान-बिन्दु हैं। उनकी ये हिन्दी रचनाएं काफी लोकप्रिय रही हैं। उनकी पहेलियां मुकटियां, दो सखुने अभी तक लोगों की जबान पर हैं। उनके नाम से निम्नलिखित दोहा प्रसिद्ध है, जिसके संबंध में कहा जाता है कि यह दोहा खुसरो ने ....
Question : हिन्दी भाषा के विकास में व्याकरणिक और शाब्दिक दृष्टि से अपभ्रंश और अवहट्ठ भाषाओं के योगदान पर प्रकाश डालिए।
(2002)
Answer : एक भाषा के विकास में दूसरी भाषा की भूमिका निर्धारित करने के लिए निकटता और समानता का सिद्धांत अपेक्षित है। यहां हम जानते हैं कि हिन्दी का मूल स्रोत भारत की प्राचीन आर्यभाषा संस्कृत है। हिन्दी की अधिकांश भाषिक प्रवृत्तियों-ध्वनि-व्यवस्था, पद संरचना, वाक्य-विन्यास आदि संस्कृत के ही अनुसार हैं। हिन्दी के अनंत शब्द-भंडार का अधिकांश संस्कृत से विरासत के रूप में मिली हैं। किंतु ये सारी चीजें हिन्दी को संस्कृत से सीधे-सीधे नहीं प्राप्त हुआ। ....
Question : दक्खिनी हिन्दीः क्षेत्र और भाषा स्वरूप
(2001)
Answer : दक्षिण में प्रयुक्त होने वाले हिन्दी को दक्खिनी नाम से अभिहित किया गया है। इसका मूल आधार दिल्ली के आस-पास की 14वीं-15वीं सदी की खड़ी बोली है। मुसलमानों (फौज, फकीर, दरवेश) के साथ हिन्दी भाषा दक्षिण में पहुंची तथा उत्तर भारत से जाने वाले मुसलमानों और हिन्दुओं द्वारा प्रयुक्त होने लगी। इसमें कुछ तत्व पंजाबी, हरियाणवी, ब्रज तथा अवधी के भी हैं, क्योंकि इन क्षेत्रों से भी लोग दक्षिण में गए, जिनके माध्यम से यह ....
Question : आदिकालीन हिन्दी भाषा का स्वरूप
(2001)
Answer : आदिकालीन हिन्दी भाषा के तेरह रूप मिलते हैं, जो प्रारंभिक या पुरानी हिन्दी के आधार हैं। वैसे 8वीं व 9वीं शताब्दी के सिद्धों की भाषा में हमें उपभ्रंश से निकलती हुई हिन्दी के आदि रूप दिखाई देती है। आचार्य शुक्ल ने अपने इतिहास ग्रंथ में सिद्धों की वाणियों से हिन्दी की शुरूआत माना है। ये बौद्ध सिद्धाचार्यों ने अधिकांशतः सहज-सुबोध दोहों तथा गेयात्मक चर्यापदों के माध्यम से जन-सामान्य को साधना-मार्ग का संदेश दिया। इनके दोहों ....
Question : ब्रजभाषा और अवधी में अंतर
(2000)
Answer : आर्य भाषाओं के विकास-क्रम में अवधी और ब्रज दोनों का उदय लगभग एक-साथ (चौदहवीं शताब्दी) में हुआ। उद्भव- स्रोत और आरंभिक भाषिक स्वरूप की दृष्टि से दोनों में पर्याप्त समानता है। इन समानता के होते हुए दोनों भाषाएं मूलतः और प्रकृत्या पर्याप्त भिन्न हैं। दोनों के बीच भिन्नता को रेखांकित किया जा सकता हैः
Question : मध्यकाल में काव्यभाषा के रूप में अवधी की शक्ति और सीमा का विवेचन कीजिए।
(2000)
Answer : अवधी अवध क्षेत्र की बोली है। यह पुराने अवध प्रांत के हरदोई, खीरी आदि को छोड़कर अन्य सभी क्षेत्रों में बोली जाती है। भाषा के अर्थ में अवधी का प्रथम स्पष्ट उल्लेख अमीर खुसरो की ‘खालिक बारी’ में मिलता है। उन्होंने अपने समय की भाषाओं का उल्लेख करते हुए अवधी को शामिल किया है। परन्तु निश्चय ही अवधी का अस्तित्व खुसरो से बहुत पहले रहा होगा, भले उसे यह नाम न मिला हो। डॉ. भोलानाथ ....
Question : आधुनिक काल में खड़ी बोली के विकास की एक रूपरेखा प्रस्तुत कीजिए।
(2000)
Answer : 19वीं शताब्दी में ही हिन्दी के आधुनिक काल का आरंभ होता है। इस काल में खड़ी बोली के विकास को दो खंडों में बांटा जा सकता है- पूर्व हरिश्चन्द काल और हरिश्चन्द काल पूर्व हरिशचन्द काल में खड़ी बोली के विकास की दृष्टि से सबसे महत्वपूर्ण घटना 1800 ई. में कलकत्ता में फोर्ट विलियम कॉलेज की स्थापना है। इस कॉलेज में साहित्य और विज्ञान दोनों की शिक्षा का आयोजन किया गया। जान गिलक्राइस्ट को हिन्दुस्तानी ....
Question : अवहट्ठ की विशेषताएं
(2000)
Answer : मध्यकालीन आर्यभाषा के विकास-क्रम में पालि प्राकृत और अपभ्रंश के बाद की कुछ अनगढ़ ग्राम्य अथवा औचलिक रूप वाली भाषा को विद्वानों ने अवहट्ठ की संज्ञा दी है। अवहट्ठ का काल 14वीं शताब्दी तक माना जाता है क्योंकि संदेश रासक, ‘कीर्तिलता’ एवं ‘वर्णरत्नाकर’ की रचना काल 14वीं शताब्दी के आस-पास ही है। चूंकि अवहट्ठ हर रूप में अपभ्रंश की उत्तराधिकारिणी है। अतः इसमें अपभ्रंश की प्रायः सभी भाषिक विशेषताएं, यथा-डकार बहुलता, अयोगात्मकता, अनुस्वार-प्रधानता सरलीकरण, देशी ....
Question : लोकमंगल की अवधारणा को प्रसारित करने में अवधी के योगदान पर प्रकाश डालिए।
(1999)
Answer : अवधी, अवध क्षेत्र की बोली है। यह पुराने अवध प्रांत के हरदोई, खीरी आदि को छोड़कर अन्य सभी क्षेत्रों में बोली जाती है। यह लखनऊ, उन्नाव, रायबरेली, सीतापुर, फैजाबाद, गोंडा, बहराइच, सुल्तानपुर, प्रतापगढ़, बाराबंकी, कानपुर जिले के कुछ भाग, जौनपुर-मिर्जापुर के कुछ भाग, गंगा के दाहिने किनारे फतेहपुर एवं इलाहाबाद की भाषा है। बिहार के मुसलमानों तथा नेपाल की तराई के कुछ हिस्सों में भी प्रचलित है। अवधी पूर्वी हिन्दी की सबसे महत्वपूर्ण बोली है। ....