Question : “प्रेमचन्द्र की कहानियां व्यापक सामाजिक आधार पर विकसित हुई है” कथन की समीक्षा कीजिए।
(2007)
Answer : सिर्फ सतह पर दिखने वाली सच्चाई का ही नाम यथार्थ नहीं है। यथार्थ केवल चित्रण की भंगिमा को ही नहीं कहते, यथार्थ तो व्यक्ति और समाज, जीवन और संदर्भ के द्वंद्वात्मक संबंध का आकलन है। यह अनावश्यक और आवश्यक का प्रतिनिधिक चित्रण है। प्रेमचंद्र की कहानियां यथार्थवाद के क्रमिक विकास को रेखांकित करती हैं। उसमें हमारी तत्कालीन जीवन परंपरा की तमाम विशेषताएं समाहित हैं।
प्रेमचंद्र की कहानियों में कथावस्तु, विचार और संरचना का एक सचेत विकास ....
Question : हिन्दी के आंचलिक उपन्यासकार
(2006)
Answer : स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद हिन्दी में आंचलिक उपन्यासों की रचना की विशेष प्रवृत्ति का उदय हुआ। इसके शुभारंभ का श्रेय फणीश्वरनाथ रेणु को है। बिहार के अंचल विशेष के जीवन यथार्थ, रहन-सहन, आचार-विचार को पर्याप्त निजता एवं रागात्मकता के साथ विचित्र करते हुए रेणु ने ‘मैला आंचल और ‘परती परिकथा’ जैसे उपन्यासों की रचना की।
वह स्वातंत्र्योत्तर भारत में एक अंचल की आत्मपहचान से जुड़ी हुई सृजनात्मकता की एक सहज-स्वाभाविक आकांक्षा का प्रतिफल है। प्रेमचन्द्र के ....
Question : ‘वास्तव में हिन्दी उपन्यास का प्रारंभ प्रेमचन्द्र से होता है।’ इस कथन की समीक्षा कीजिए।
(2006)
Answer : हिन्दी उपन्यास का जन्म 1877 ई॰ से माना जाता है। इसी वर्ष श्रद्धाराम फुल्लौरी ने भाग्यवती नामक सामाजिक उपन्यास लिखा था। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने इस उपन्यास की काफी प्रशंसा की है। यह भले ही अंग्रेजी ढंग का मौलिक उपन्यास न हो, किन्तु विषय-वस्तु की नवीनता के आधार पर इसे हिन्दी का प्रथम आधुनिक उपन्यास कहा जाता है। इसमें तत्कालीन हिन्दू समाज की अनेक कुरीतियों का आलोचनात्मक एवं यथार्थवादी रीति से चित्रण हुआ है और ....
Question : हिन्दी के मनोवैज्ञानिक उपन्यासकारः
(2004)
Answer : मनोविज्ञान का चित्रण प्रेमचंद के उपन्यासों से ही आरंभ हो गया था, किंतु आलोचकों ने प्रेमचंद के मनोविज्ञान को उतना महत्व नहीं दिया है, जितना उनके सामाजिक यथार्थ को। प्रेमचंद के बाद हिन्दी उपन्यास में मनोवैज्ञानिक उपन्यासकारों की एक ऐसी पंक्ति तैयार हुई, जिसने हिन्दी को अनेक श्रेष्ठ उपन्यास की रचना कर समृद्ध किया है। जैनेंद्र, इलाचंद्र जोशी और अज्ञेय इस परंपरा के अग्रणी रचनाकार हैं। फ्रायड, एडलर और युग की मनोविश्लेषण-संबंधी मान्यताओं का इन ....
Question : ‘अज्ञेय की कविताओं का केन्द्रीय भाव मानव व्यक्तित्व की समस्या है।’ सतर्क उत्तर दीजिए।
(2004)
Answer : ‘भग्नदूत’ और ‘चिन्ता’ की छायावादी कविताओं से अपनी काव्य-यात्र आरम्भ करने वाले अज्ञेय प्रयोगवाद और नयी कविता के विशिष्ट कवि हैं। इस धारा के कवियों में उनका स्वर सबसे अधिक वैविध्यपूर्ण है। उनका स्वर अहं से लेकर समाज तक, प्रेम से लेकर दर्शन तक, आदिम गन्ध से लेकर विज्ञान की चेतना तक, यत्र-सभ्यता ले लेकर मानव सौंदर्य तक फैला हुआ। लेकिन अज्ञेय ने अपने कविताओं के केन्द्र में व्यक्ति को ही रखा है। अज्ञेय व्यक्ति ....
Question : स्वातंत्र्योत्तर हिन्दी कहानी की गति और स्वरूप पर प्रकाश डालिए।
(2003)
Answer : आजादी के बाद (1947 ई.) भारत में जो कहानीकारों की नई पीढ़ी आई उसने हिन्दी कहानी के वस्तु, शिल्प और संचेतना में काफी परिवर्तन उपस्थित किया। इस समय हिन्दी कहानी का त्वरित एवं बहुयामी विकास हुआ। हिन्दी कहानी कई छोटे-बड़े कहानी-आंदोलनों से गुजरती हुई, स्वयं को नये-रूप-रंग में ढालती हुई एक नये मुकाम पर पहुंची। समय-समय पर उठने वाले कहानी आंदोलनों ने एक ओर तो हिन्दी कहानी को नई समृद्धि, दृष्टि और कलात्मक ऊंचाई दी ....
Question : महिला कथा-साहित्यकार कृष्णा सोबती।
(2001)
Answer : महिला कथाकार कृष्णा सोबती अकेली कहानीकार हैं जिन्होंने इतनी कम कहानियां लिखकर अपनी विशेष पहचान बनाई हैं। इन्होंने आधुनिक नारी की मनःस्थिति, पारिवारिक जीवन में पति-पत्नी के संबंध आदि विषयों को लेकर अनुभव के सीमित दायरे के अन्तर्गत कहानी रचना की है। इनकी प्रतिनिधि कहानियों का संग्रह ‘बादलों के घेरे’ सन् 1980 में प्रकाशित हुआ। लेकिन इसकी अनेक कहानियां नई कहानी आंदोलन में चर्चित हो चुकी थीं। इसके पूर्व उनकी अन्य चर्चित और विवादास्पद मानी ....
Question : उतर शती की हिन्दी कहानी पर एक समीक्षात्मक अनुशीलन प्रस्तुत कीजिए।
(1999)
Answer : सामान्यतः सभी इतिहासकार यह स्वीकार करते हैं कि ‘सरस्वती’ पत्रिका (सन् 1900) के प्रकाशन के साथ ही हिन्दी कहानी का भी उदय हुआ। आरंभ में ‘सरस्वती’ में जो कहानियां प्रकाशित हुई, उनमें किशोरीलाल गोस्वामी की ‘इन्दुमती’ जैसी वर्णनात्मक, केशवप्रसाद सिंह की ‘आपत्तियों का पहाड़’ जैसी स्वप्न-कल्पनाओं से भरपूर रोमांचक, कार्तिक प्रसाद खत्री की ‘दामोदर राव की आत्म-कहानी’ जैसी आत्मकथात्मक और पार्वतीनंदन की ‘प्रेम की फुआर’ जैसी घटना-प्रधान कहानियां उल्लेखनीय है। शिल्पविधि की दृष्टि से हिन्दी ....