Question : रीतिबद्ध काव्य के स्वरूप को स्पष्ट करते हुए उसकी प्रमुख प्रवृत्तियों पर प्रकाश डालिए।
(2008)
Answer : रीतिकाल में अधिकांशतः ऐसे ग्रंथों की रचना की गई जिसमें काव्य के विभिन्न अंगों की विवेचना की गयी है तथा उन अंगों से संबंधित नियमों के अनुरूप काव्यों की रचना की गई है। ऐसे ग्रंथों को रीति काव्य की संज्ञा दी गई है।
इस प्रकार के काव्य में कवि ने अलंकार जैसे विशिष्ट काव्यांगों का विवेचन किया है तथा उससे संबद्ध उदाहरणों में कवि ने अपने कवित्व का प्रदर्शन किया है। लक्षण-उदाहरण के इस समूह में ....
Question : विद्यापति भक्त कवि हैं या शृंगारी कवि? सप्रमाण विवेचन कीजिए।
(2008)
Answer : विद्यापति भक्तिपरक पदों में विशुद्ध भक्त के रूप में अवतरित होते हैं अथवाशृंगारी कवि के रूप में यह विद्वानों में वाद विवाद का मुद्दा आज भी बना हुआ है। सर्वश्री आचार्य शुक्ल, बाबूराम सक्सेना, हरप्रसाद शास्त्री तथा रामकुमार वर्मा आदि विद्वानों के अनुसार विद्यापति भक्त न होकर विशुद्ध रूप सेशृंगारी कवि हैं।
उनके पदों में राधा-कृष्ण का उल्लेख रीतिकालीन कवियों के पदों में हुए उल्लेख ‘‘राधा कन्हाई सुमिरन को बहानो हैं’’-का ही रूप है।
शुक्ल जी ....
Question : छायावाद और कामायनी
(2008)
Answer : कामायनी छायावाद की सर्वोकृष्ट रचना है। इसका निर्माण छायावाद की पौढ़ वेला में हुआ है और यह छायावाद के प्रवर्तक महाकवि जयशंकर प्रसाद की गहन अनुभूति एवं उन्नत अभिव्यक्ति की साकार प्रतिमा है। इसी कारण इसमें छायावाद की संपूर्ण उन्नत और श्रेष्ठ प्रवृत्तियों का मिलना नितांत स्वाभाविक है। जयशंकर प्रसाद ने जीवन के जिन संदर्भों को लेकर कामायनी का प्रणय किया है, वे अत्यंत व्यापक और मोहक हैं। हिंदी साहित्य जगत में तुलसी के रामचरितमानस ....
Question : केशव का आचार्यत्व
(2008)
Answer : कवि केशवदास का जन्म 1612 ई- में हुआ। ओरछा नरेश के भाई इंद्रजीत सिंह की सभा में ये रहते थे। इनके आविर्भाव काल से कुछ पूर्व ही रस, अलंकार आदि काव्यांगों के निरूपण की ओर कुछ कवियों का ध्यान जा चुका था। किंतु अब तक किसी कवि ने संस्कृत साहित्यशास्त्र में निरूपित काव्यांगों का पूरा परिचय नहीं कराया था। यह काम सर्वप्रथम केशवदासजी ने किया। ये काव्य में अलंकार का स्थान प्रधान समझने वाले चमत्कारवादी ....
Question : मध्ययुगीन कृष्ण-भक्तिकाव्य
(2008)
Answer : विष्णु के अवतारी रूप कृष्ण की उपासना कितने दिनों से चली आ रही है, यह तो स्पष्ट नहीं है किंतु कृष्ण के माधुर्य रूप का उद्घाटन भागवत पुराण से माना जाता है। कृष्ण के इसी माधुर्य रूपों का वर्णन मध्ययुगीन कृष्ण, भक्ति काव्य में मिलता है। कृष्ण -भक्ति से संबंधित सभी कवियों के आराध्य श्री कृष्ण हैं। अतः उनकी रचनाओं में भगवान कृष्ण के लीलाओं का गान मिलता है। कवियों द्वारा लीला का वर्णन, अखंड ....
Question : आदिकाल की प्रवृत्तियां
(2008)
Answer : आदिकालीन साहित्य को विषय की दृष्टि से तीन वर्गों में विभक्त किया जा सकता है-धर्म संबंधी काव्य, चारण कवियों द्वारा रचित रासो काव्य तथा लौकिक साहित्य। इन रचनाओं को देखने पर इस काल की मुख्यतः तीन प्रकार की प्रवृत्तियां मिलती हैं। (1) धार्मिक (2) वीरगाथात्मक (3) शृंगारिक। शुक्ल जी ने आदिकालीन धार्मिक रचनाओं को साहित्य की कोटि में नहीं रखते हैं क्योंकि इसमें उन्हें अनिद्रिष्ट लोक प्रवृत्ति के दर्शन हुए। परंतु उन्होंने यह भूल की ....
Question : संत काव्य-परंपरा का उल्लेख करते हुए उसकी प्रमुख प्रवृत्तियों की विवेचना कीजिए।
(2007)
Answer : निर्गुण भक्ति काव्य की ज्ञानाश्रयी शाखा को संत काव्य के नाम से जाना जाता है। निर्गुणपंथी कवियों को लंबे काल से संत कहने के कारण ही यह नाम पड़ा। आचार्य परशुराम चतुर्वेदी के अनुसार- ‘‘संत शब्द उस व्यक्ति की ओर संकेत करता है जिसने सत रूप परम तत्व का अनुभव कर लिया हो और जो इस प्रकार अपने व्यक्तित्व से ऊपर उठकर उसके साथ तद्रूप हो, जो सत् स्वरूप, नित्य, सिद्ध वस्तु का साक्षात्कार कर ....
Question : पृथ्वीराज रासो
(2007)
Answer : रासो काव्य परम्परा का प्रतिनिधि एवं सर्वश्रेष्ठ ग्रंथ ‘पृथ्वीराज रासो’ है। आचार्य शुक्ल ने इसे हिन्दी का प्रथम महाकाव्य स्वीकार किया है। इसके कुछ अंशों का अनुवाद कर्नल लाड तथा डा- हार्नले ने किया है। इस महाकाव्य के रचयिता चंदबरदाई हैं, जो दिल्ली के शासक पृथ्वीराज चौहान के सामंत तथा राजकवि थे। कहा जाता है कि चंदबरदाई एक मित्र की भांति सदैव पृथ्वीराज के साथ रहते थे। अतएव उन्होंने इस कृति में जो भी वर्णन ....
Question : नाथ-साहित्य
(2007)
Answer : सिद्धों की वाममार्गी भोग प्रधान योग-साधना की प्रतिक्रिया के रूप में आदिकाल में नाथपंथियों का हठ-योग आरंभ हुआ। नाथ साहित्य का प्रवर्तक गोरखनाथ को माना जाता है। इस संप्रदाय के रचनाकारों ने सिद्ध साहित्य को ही पल्लवित किया है। इनकी साधना सिद्ध साधना से अलग है। इन्होंने सिद्धों द्वारा अपनाए गए योग प्रधान योगमार्ग के स्थान पर हठ-योग-साधना का मार्ग अपनाया।
इस संप्रदाय ने शैवमत के सिद्धांत को स्वीकार किया तथा शिव को आदिनाथ माना। इनके ....
Question : रासो काव्य परंपरा का परिचय देते हुए पृथ्वीराजरासो की प्रमाणिकता पर प्रकाश डालिए।
(2006)
Answer : आदिकालीन काव्य की विशेष प्रवृत्ति वीरगाथात्मक काव्य लेखन थी। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने तो इसे प्रधान प्रवृत्ति मान कर इस काल का नामकरण ही वीरगाथा काल कर दिया था। हिन्दी साहित्य के आदिकाल में रचित वीरगाथात्मक काव्य को ही रासो काव्य के नाम से जाना जाता है। यह जैन रास काव्य से भिन्न है। इसके रचयिता चारण अथवा भाट थे, जो किसी राजा विशेष के आश्रित कवि होते थे। अतः उनकी काव्य रचना का उद्देश्य ....
Question : अष्टछाप और सूरदास
(2006)
Answer : श्री वल्लभाचार्य ने जिस पुष्टिमार्गीय भक्ति सम्प्रदाय की स्थापना की थी, उसका जिन हिन्दी भक्त कवियों द्वारा पल्लवन किया गया, उन्हें अष्टछाप के कवि कहा जाता है। यों तो पुष्टिमार्ग को स्वीकार करने वाले अनेक भक्त उस समय विद्यमान थे। वे अष्टसखा या अष्टछाप के नाम से प्रसिद्ध थे।
इन आठ भक्त कवियों में चार वल्लभाचार्य के शिष्य थे- कुम्भनदास, सूरदास, परमानन्ददास और कृष्णदास। अन्य चार गोस्वामी विट्टòलनाथ के शिष्य थे-गोविन्दस्वामी, नन्ददास, छीतस्वामी और चतुर्भुजदास। ये ....
Question : कबीर की भक्ति
(2006)
Answer : कबीर की भक्ति कुछ ऐसी थी कि उसे किसी प्रचलित पारिभाषिक शब्दावली में पूर्ण रूप से व्यक्त नहीं किया जा सकता। कबीरदास के समय सिद्धनाथ और जैन सम्प्रदाय के भक्त और साधकों की बाणियां और उपासना की पद्धतियां अनीश्वरवादी कहे जा सकते हैं। कम-से-कम उनमें ईश्वर का स्पष्ट उल्लेख नहीं मिलता, किन्तु सूक्ष्म और परोक्ष रूप से देवत्व का आरोप किया जाने लगा था और साधना के द्वारा जिस महासुख की कल्पना की गई थी, ....
Question : बिहारी का अर्थगर्भत्व
(2005)
Answer : सतसैया के दोहरे, अरू नावक के तीर।
देखन में छोटन लगत, घाव करत गंभीर।।
हिन्दी साहित्य के मध्यकाल (रीतिकाल) के इस अन्यतम महाकवि के संबंध में यह किसी प्रशंसक की उक्ति है, जो उनके महत्व को इंगित करता है। बिहारी रीतिकाल क्या, किसी भी काल के उन दुर्लभ कवियों में हैं, जिसने इतना कम लिखकर इतना अधिक यश अर्जित किया है। 24 मात्र के छोटे दोहा छंद में लगभग 700 दोहे की रचना बिहारी ने की। ये ....
Question : सूर की राधा
(2005)
Answer : सूरदास ने अपने सूरसागर की रचना श्रीमद्भागवत् पुराण के आधार पर की है। भागवत के प्रसंगों से प्रभाव ग्रहण करके सूर ने उनको मौलिक रूप में प्रस्तुत किया है। अपने सूरसागर के कथ्य को रसमय बनाने के लिए भागवत से इतर वर्णन भी किये हैं। राधा का वर्णन उनमें से एक है। भागवत पुराण में राधा का वर्णन नहीं है। सूरदास ने जो राधा का वर्णन किया है, वह विद्यापति की, राधा की छवि है। ....
Question : हिन्दी के आदिकालीन साहित्य के प्रमुख हस्ताक्षरों का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
(2005)
Answer : आदिकालीन साहित्य के प्रमुख हस्ताक्षरों को विषय की दृष्टि से तीन वर्गों में विभक्त किया है- धर्म संबंधी रचनाओं के रचनाकार, चारण कवि तथा लौकिक साहित्य के रचनाकार। फ्धर्म संबंधी रचनाकारों" के अन्तर्गत् नाथ, सिद्ध तथा जैन रचनाकारों का उल्लेख किया जा सकता है। वस्तुतः इन तीनों संप्रदाय के रचनाकारों का मुख्य उद्देश्य अपनी रचना के माध्यम से धर्म तथा साधना पक्ष का प्रचार-प्रसार काव्य के माध्यम से करना है। यद्यपि जैन कवियों ने केवल ....
Question : भक्तिकाल को लोक-जागरण की अभिव्यक्ति क्यों कहते हैं? सतर्क उत्तर दीजिए।
(2005)
Answer : मध्ययुगीन हिन्दी साहित्य का पूर्व-मध्ययुग भक्तिकाल के नाम से जाना जाता है। ‘भक्तिकाल’ शब्द ही अपने प्रतिपाद्य को स्पष्ट करने वाला है अर्थात् इस काल में भक्तिपरक रचनाओं की प्रधानता रही है। भक्तिकाल का प्रारम्भ निर्गुण संत काव्य से होता है। इस धारा के कवियों में उन संत कवियों का स्थान है, जिन्होंने एकेश्वरवाद में आस्था व्यक्त करते हुए निर्गुण-निराकार ईश्वर की भक्ति का संदेश दिया। सामाजिक स्तर पर इन संतों ने पाखण्ड और अन्धविश्वासों ....
Question : "नवजागरण और छायावाद" विषय पर एक निबंध लिखिए।
(2005)
Answer : नवजागरण का प्रथम चरण भारतेन्दु युगीन हिन्दी को माना जाता है। इस समय साहित्य में नवजागरण परक चेतना की अभिव्यक्ति मिली है। इस काल के नवजागरण को डा. रामविलास शर्मा ने भक्तिकालीन लोक जागरण का ही विस्तार माना है, जिसमें सामंतविरोधी चेतना के साथ-साथ साम्राज्यवाद विरोधी चेतना का भी समावेश हो गया। नवजागरण का आरंभ बांग्ला साहित्य से हुआ लेकिन हिन्दी साहित्य तक आते-आते इसका स्वरूप बिल्कुल भिन्न हो चुका था। हालांकि नवजागरण की मूल ....
Question : कबीर का दर्शनः
(2004)
Answer : कबीर का लक्ष्य जिस प्रकार कविता करना नहीं था, उसी भांति दर्शन की गुत्थी को सुलझाना भी उन्हें अभीष्ट नहीं था। किंतु भक्ति में प्रेम की विविध भाव-व्यंजनाओं के साथ-साथ कबीर की ब्रह्म, जीव, जगत्, माया आदि से संबंधित विचारधारा भी सम्मुख आयी है। इन विचारों के आधार पर ही हम उनकी विभिन्न धारणाओं को जान सकते हैं। कबीर अपने ब्रह्म को त्रिगुणातीत बताते हैं, वह सत्-रज-तम से परे है। ये जो तीन गुण हैं ....
Question : सूर-सूर तुलसी और केशवदासः
(2004)
Answer : सूर, तुलसी और केशवदास की काव्य प्रतिभा की तुलना करते हुए किसी रीतिकालीन सूक्तिकार ने लिखा है- "सूर-सूर तुलसी ससी, उड्गन केशवदास"
इसके बाद अपने समय के कवियों पर कटाक्ष करता हैः
"अब के कवि खद्योत सम
जहं तहं करता प्रकास।।"
सूरदास की महत्वपूर्ण रचना ‘सूरसागर’ है, जो एक उन्मुक्त प्रबंध है। सूर के काव्य का मुख्य विषय कृष्णभक्ति है। इन्होंने भागवत पुराण को उपजीव्य बनाकर राधाकृष्ण की लीलाओं का वर्णन सूरसागर में किया है। लीला-वर्णन में सूर ....
Question : ‘पृथ्वीराज रासो में श्रृंगार और वीर रस युगीन जीवन-गौरव का प्रतिबिम्ब है।’ समीक्षा कीजिए।
(2004)
Answer : किसी भी साहित्यिक कालखंड में रचित साहित्य में जो प्रवृत्तियां उभरकर सामने आती हैं, उसका संबंध तदयुगीन परिवेश से होता है। पृथ्वीराज रासो की रचना हिन्दी साहित्य के आदिकाल में हुई। इसके रचनाकार चन्दवरदायी दिल्ली और अजमेर के शासक पृथ्वीराज चौहान का सामन्त और राजकवि थे। इस काव्य में दो प्रमुख प्रवृत्तियां सामने आती हैं- श्रृंगार और वीर। ये दोनों प्रवृत्तियां उस समय (आदिकाल) के परिवेश से घनिष्टता के साथ जुड़ा हुआ है। चन्दवरदायी ने ....
Question : विद्यापति के कृष्ण
(2003)
Answer : विद्यापति प्रेम और सौन्दर्य के कवि हैं। सौंदर्य कवि का दर्शन है और यही उनकी जीवन-दृष्टि है। इनकी तीन रचनाएं प्रसिद्ध हैं- कीर्तिलता, कीर्तिपताका एवं पदावली। पदावली विद्यापति के यश का आधार है। इसमें राधा-कृष्ण संबंधित पद भी है। इन पदों में राधा-कृष्ण अपना अलौकिकत्व छोड़कर लौकिक व्यक्तियों के समान प्रेम-भावना में विह्वल होते हैं। लोक में जिस प्रकार किशोरी दुर्निवार प्रिय मिलन और लोक लाज के कारण तीव्र अंन्तर्द्वन्द्व झेलती है, उसी प्रकार राधा ....
Question : जायसी कृत कन्हावतः सांस्कृतिक संगम
(2003)
Answer : मलिक मुहम्मद जायसी एक सूफी कवि हैं और इनकी प्रसिद्धि का आधार कन्हावत या पद्मावत है। इस ग्रंथ में चितौड़ के राजा रतनसेन तथा सिंहल द्वीप के राजकुमारी पद्मावती के बीच होने वाला प्रेम व्यापार का मार्मिक चित्रण है। पर जायसी अपने इस ग्रंथ में प्रेम का चित्रण करके ही नहीं रह जाते। वे बीच-बीच में हिन्दू और मुस्लिम संस्कृतियों के बीच चलने वाले संघर्ष को समाप्त कर समन्वय की भावना लाने का भी संदेश ....
Question : केशवदास की रामचन्द्रिका में संवाद योजना
(2003)
Answer : नाटक, उपन्यास, कहानी, प्रबंध काव्य आदि में पात्रों के बीच जो वार्ताएं होती हैं, उसे ही संवाद कहा जाता है। प्रबंधकाव्य में संवाद या कथोपकथन के माध्यम से ही कवि को कुछ न कुछ अथवा सब कुछ कहने का अवसर मिलता है। इससे काव्य की कथा का विस्तार तो होता ही है पात्रों के चरित्र-चित्रण में सहयोग मिलता है। इसके अलावा कथावस्तु में रोचकता एवं मनोहारिता आती है। लेकिन संवादों में शिथिलता के कारण कथानक ....
Question : ‘भक्ति साहित्य सचमुच सामाजिक-सांस्कृतिक नवजागरण की उपज है’- इस कथन की समीक्षा कीजिए।
(2003)
Answer : भक्ति काव्य महज सर्जनात्मक साहित्य नहीं है, बल्कि वह धर्म, संस्कृति और सामाजिक मान्यताओं का पुनर्मूल्यांकन भी है। वह गहरे मानवीय सरोकारों से उपजा है। इस मानवीय सरोकार के कारण ही इसमें एक ओर सामंतवाद विरोधी चेतना मौजूद है, तो दूसरी ओर ब्राह्मणवादी पुरोहित वर्चस्व वाली व्यवस्था के विरूद्ध उग्र विद्रोही स्वर, जाति संप्रदाय और क्षेत्र विशेष की सीमाओं को अतिक्रमित करता हुआ, भक्ति आंदोलन भारत की करोड़ों, जनता के बीच अपनी पहचान बनाती है। ....
Question : ‘नागार्जुन जनता, धरती और मानव प्रेम के पुजारी है’ अपने विचार प्रस्तुत कीजिए।
(2003)
Answer : प्रगतिवादी कवियों में नागार्जुन का केन्द्रीय स्थान है। उनकी कविताओं का कथ्य एवं शिल्प मानवीय संवेदना के अनुरूप प्रभावोत्पादक है। समकालीनता, यथार्थनिष्ठा, प्रगतिशीलता, मानवीय सहानुभूति व वर्गीय चेतना नागार्जुन की कविताओं का वैचारिक पक्ष है। वे विपन्न मानवता के सच्चे साथी हैं। सत्ता व संस्कृति के प्रचलित द्वन्द्व में नागार्जुन जनसंस्कृति के पक्ष में दृढ़ता से खड़े होते हैं। डॉ. रामविलास शर्मा के अनुसार- ‘वे (नागार्जुन) मजदूरों’ किसानों और गरीब जनता के समर्थ पक्षधर है। ....
Question : ‘बिहारी सतसई’ की काव्यगत विशेषताएं:
(2002)
Answer : संस्कृत के ‘सप्तशती’ और ‘सप्तशतिका’ शब्दों का रूपांतरण ही ‘सतसई’ और सतसैया है। हिंदी की सतसई परंपरा शैली एवं विषय की दृष्टि से संस्कृत प्राकृत की परंपरा से संबद्ध होते हुए भी थोड़ा भिन्न रूप लिए हुए है। संस्कृत-प्राकृत की सप्तशतियों में कहीं एक कवि के और कहीं विभिन्न कवियों के मुक्तक संग्रहित रहते थे। परंतु हिन्दी सतसई में एक ही कवि विशेष के मुक्तक संग्रहित रहते हैं। संस्कृत-प्राकृत की सप्तशतियों में मुक्तक संग्रहों के ....
Question : मलिक मुहम्मद जायसीः
(2002)
Answer : जायसी प्रसिद्ध सूफी फकीर शेख मोहीउद्दीन के शिष्य थे और जायस में रहते थे। वे सूफी संत के साथ-साथ कवि भी थे। उनकी प्रमुख रचनाओं में पदमावत्, अखरावट, आखिरी कलाम, चित्रवट आदि प्रमुख हैं। जायसी की अक्षय कीर्ति का आधार है ‘पद्मावत’ जिसको पढ़ने से यह प्रकट हो जाता है कि उनका हृदय कैसा कोमल और ‘प्रेम की पीर’ से भरा हुआ था। वे मननशील और मानवीय संवेदना के कवि थे। उन्हें जीवन का व्यापक ....
Question : नयी कविताः
(2002)
Answer : ‘नयी कविता’ भारतीय स्वतंत्रता के बाद लिखी गई उन कविताओं को कहा गया, जिनमें परंपरागत कविता, कविता से आगे नये भाव बोधों की अभिव्यक्ति के साथ ही नये मूल्यों और नये शिल्प-विधानों का अन्वेषण किया गया है। ये कविता अपनी वस्तु-छवि और रूप-छवि दोनों में पूर्ववर्ती प्रगतिवाद और प्रयोगवाद का विकास होकर भी विशिष्ट है। नई कविता पर द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद की अंतर्राष्ट्रीय परिस्थितियों का प्रभाव था। इस दौर में पश्चिम में अस्तित्ववाद जैसे ....
Question : आदिकालीन रासो-साहित्य की प्रमुख विशेषताओं के बारे में एक निबंध लिखिए।
(2002)
Answer : आदिकाल में वीरगाथात्मक, धार्मिक तथा श्रृंगारिक तन प्रकार के ‘रासो’ या ‘रास’ के नाम से काव्य लिखे गए। इसमें वीरगाथात्मक रासो काव्य उन चारण कवियों द्वारा रचित हैं, जो किसी राजा के आश्रित तथा दरबारी कवि थे। उन्होंने आश्रयदाता की प्रशस्ति हेतु काव्य रचना की। इनका काव्य अत्युक्ति पूर्ण वर्णनों एवं काल्पनिक घटनाओं से भरा हुआ है। अतः इनमें ऐतिहासिक तथ्यों का अभाव है। वस्तुतः ये ऐतिहासिक रचनाएं न होकर काव्य कृतियां हैं। धार्मिक रासो ....
Question : विद्यापति भक्त कवि या श्रृंगारी कवि हैं? विवेचन कीजिए।
(2002)
Answer : विद्यापति भक्तिपरक पदों में विशुद्ध भक्त के रूप में अवतरित होते हैं अथवा लौकिक श्रृंगारी कवि के रूप में- यह प्रश्न हिन्दी के विद्वानों में वाद विवाद का मुद्दा आज भी बना हुआ है। सर्वश्री आचार्य शुक्ल, बाबूराम सक्सेना, हरप्रसाद शास्त्री तथा रामकुमार वर्मा आदि विद्वानों के अनुसार विद्यापति भक्त न होकर विशुद्ध रूप से श्रृंगारी कवि हैं। उनके पदों में राधा-कृष्ण का उल्लेख रीतिकालीन कवियों के पदों में हुए उल्लेख ‘राधा कन्हाई सुमिरन को ....
Question : "तुलसीदास का ‘रामचरितमानस’ हिन्दी काव्य परंपरा में अत्यंत महत्वपूर्ण महाकाव्य माना जाता है"- विचार कीजिए।
(2002)
Answer : अवधी बोली और मुख्य रूप से दोहा चौपाई छंदों में निबद्ध तथा सात काण्डों में विभक्त ‘रामचरितमानस’ गोस्वामी जी की ही नहीं बल्कि हिन्दी साहित्य का सर्वोत्कृष्ट महाकाव्य है। इसमें साहित्य, समाज और जीवन को तत्कालीन देशकाल के परिप्रेक्ष्य में नये सिरे से निर्मित किया गया है। तुलसी ने रामचरित मानस में भारतीय जनता की कलात्मक अनुभूतियों का एक मनोरम चित्र खींचा है। इस महाकाव्य में विकसित धार्मिकता, दार्शनिकता एवं नैतिक समन्वय का असाधारण उदाहरण ....
Question : नागार्जुन अथवा मुक्तिबोध की काव्यगत विशेषताएं रेखांकित कीजिए।
(2001)
Answer : नागार्जुन की काव्यगत विशेषताएं: नवीन युग और उसकी चेतना की अन्तहीन इकाइयों के मध्य, अपने ‘स्व’ को सम्पूर्णता के साथ संपृक्त कर, जीवन को खुली आखों से देख कर, स्वंय से स्वंय को संयोग स्थापित कर, यथार्थ की सपाटता में अपने-आपको सम्मिलित कर, उसके मधुर-कटुतिक्त का आवरणहीन आलेखन नागार्जुन के काव्य का मेरू-दंड है। व्यक्ति में समष्टि का समावेश और समष्टि में व्यक्ति का अशेष योगदान नागार्जुन के काव्य का चिन्तन है। वे जीवन की ....
Question : जायसी का रहस्यवाद
(2001)
Answer : मध्यकाल में रहस्यवाद से आशय एक ऐसे संबंध से है, जो भक्त और निर्गुण ईश्वर के बीच पाया जाता है तथा जिसकी प्रकृति भावनात्मक होती है। प्रायः विद्वानों ने इस बात की विस्तृत चर्चा की है कि यदि सांस्कृतिक व्यवस्था ईश्वर के प्रति स्वतंत्र चिंतन और प्रेम के विकल्प पैदा नहीं करती है, तो भक्त श्रेणी के व्यक्तियों को रहस्यात्मक तरीकों से ऐसे संबंध विकसित करने पड़ते हैं। सूफियों का रहस्यवाद, इसी मूल सिद्धांत पर ....
Question : जनवादी कविता की प्रवृत्तियां
(2001)
Answer : नयी कविता के दौर में शमशेर बहादुर सिंह, गजानन माधव मुक्तिबोध, रघुवीर सहाय आदि कवियों के काव्य में नयी कविता की आधुनिकतावादी दृष्टिकोण का प्रभाव नहीं है। इन कवियों ने काव्य में जीवन के प्रति साकारात्मक दृष्टिकोण व्यक्त किया है। 1967 के बाद बदली परिस्थतियों ने एक बार फिर कविता में वामपंथी रुझान को उभारने में मदद की। इसी दौर में जनवादी कविता ने हिन्दी काव्य को दूर तक प्रभावित किया। जनवादी कविता में जो ....
Question : दरबारी वातावरण में विकसित रीतिकाव्य की उपलब्धियां क्या है?
(2001)
Answer : रीतिकालीन कविता जनता के बीच से उठकर राजदरबारों की कैद में आ गयी थी। उसने भक्तों की कुटिया को त्यागकर सामन्तों के महलों में अपनी जगह तलाशी। इसी कारण आलोचकों को इस कालखंड की रचनाओं में दोष पहले दिखाई देते हैं और गुण बाद में। लेकिन इस कालखंड की रचनाओं को निष्पक्षता से देखा जाए तो बहुत सारी उपलब्धियां सामने आती हैं। इसमें संदेह नहीं कि रीतिकाल के कवि व आचार्य भी थे। उनके काव्यशास्त्रीय ....
Question : क्या रीतिकालीन काव्य दरबारी- काव्य होते हुए भी लोकजीवन से जुड़ा हुआ है? सोदाहरण उत्तर दीजिए।
(2000)
Answer : साहित्य के निर्माण में युगीन परिस्थितियों की महत्व पूर्ण भूमिका होती है। इस दृष्टि से यदि रीतिकालीन युगीन परिस्थितियों का आकलन करें, तो हम पाते हैं कि यह घोर अव्यवस्था का युग था। सारा देश युद्ध और विप्लव का क्षेत्र बना था। सामन्त लोग वैभव और विलास में डूबे हुए थे तथा उनकी दृष्टि है देहिक सुखों तक ही सीमित रह गयी थी। इन्हीं परिस्थितियों में रीतिकालीन - काव्य की रचना हुई। चूंकि रीतिकालीन कविता ....
Question : सूफी काव्य धारा
(2000)
Answer : हिन्दी साहित्य के मध्यकाल के आरंभ से पूर्व ही एक ऐसी काव्य- परंपरा का प्रवर्तन हो चुका था जिसे- ‘प्रेममार्गी’ (सूफी) शाखा, प्रेम काव्य, प्रेमाख्यान काव्य, सूफी काव्य आदि नामों से पुकारा जाता है। इस परंपरा के काव्य ग्रंथों में प्रेम तत्व की प्रमुखता है, किंतु इसका प्रेम तत्व परंपरागत भारतीय श्रृंगार भावना से थोड़ा भिन्न है। सूफी प्रेम तत्व में संयोग को कम वियोग श्रृंगार या विरह पक्ष को विशेष महत्व दिया गया है। ....
Question : घनानन्द की काव्यगत विशेषताएं
(2000)
Answer : घनानन्द का नाम रीतिमुक्त या रीति स्वच्छंद कवियों में सर्वोपरि है। रीति की प्रवाहमान धारा के विरुद्ध खड़े रहकर एक नव्यतम काव्यधारा का प्रर्वतन करने का श्रेय घनानन्द को है। ब्रजभाषा कविता को परंपराओं के बंधन से मुक्त कराकर एक नयी दिशा देने में महत्वपूर्ण पहल घनानन्द ने की। अतः रीति स्वच्छंदता इनके काव्य की केंद्रीय विशेषता है। उन्होंने रीतिबद्ध कवियों के समान काव्यशास्त्र द्वारा निर्धारित परिपाटी या रूढि़यों में बंधकर काव्य सृजन न करेक ....
Question : नयी कहानी
(2000)
Answer : स्वतंत्रता प्राप्ति तक हिन्दी में कोई कहानी आंदोलन नहीं चला। स्वतंत्रता के बाद नयी कहानी के रूप में एक ऐसा कहानी आंदोलन चला, जिसने कहानी के पारंपरिक प्रतिमानों को नकार दिया और अपने मूल्यांकन के लिए नयी कसौटी का निर्धारण किया। जिस कालखंड की कहानी को नयी कहानी कहा जाता है, उसे मोटे तौर पर 1954 से सन् 1963 की सीमाओं में बांधा जा सकता है। इस अन्य कहानियों से अलग पहचान के लिए ‘नयी ....
Question : कबीर के राम
(1999)
Answer : कबीर जब हरि, गोविन्द, राम, केशव, माधव आदि पौराणिक नामों का प्रयोग करते हैं, तो इसका सगुण अवतारों से उनका कोई मतलब नहीं होगा। वे अपने परम उपास्य निर्गुण ब्रह्म को ही इन नामों से संबोधित करते हैं। उनका राम निरंजन है, उसका रूप नहीं, रेखा नहीं, वह समुद्र भी नहीं, पानी भी नहीं, पवन भी नहीं, धरती भी नहीं, आकाश भी नहीं, सूर्य भी नहीं, चन्द्र भी नहीं, पानी भी नहीं, पवन भी नहीं ....
Question : हिन्दी रासक-काव्य
(1999)
Answer : ‘रासक’ या ‘रासो’ शब्द का प्रयोग मूलतः राजस्थानी और ब्रजभाषा में हुआ है। राजस्थानी में युद्ध या कलह के रूप में, इसका व्यवहार हुआ, जबकि ब्रजभाषा में रासो को काव्य का विशिष्ट रूप माना गया है। इस संबंध में आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी का मत अधिक समीचीन प्रतीत होता है- उन्होंने ‘रास’ या ‘रासक’ से ही रासो की व्युत्पत्ति स्वीकार की है। उनके अनुसार प्राचीन राजस्थानी तथा अपभ्रंश में रासो का ही अगला रूप रासो ....
Question : फ्छायावाद के बाद कविता बहुमुखी रूप धारण करने लगती है।" इस कथन के आधार पर छायावादोत्तर हिन्दी कविता की प्रवृत्तियों पर प्रकाश डालिए।
(1999)
Answer : छायावादोत्तर काल की रचनाओं की परीक्षा करने पर यह प्रतीत होता है कि प्रस्तुत कालावधि के काव्य-साहित्य की अनेक प्रवृत्तियां हैं। इस बीच का इतिहास कई वादों और धाराओं से होकर गुजरा है। कई.कई जीवन-दृष्टियां तथा काव्य की वस्तु और शिल्प संबंधी मान्यताएं उभरी हैं। किसी धारा में व्यक्तिगत अनुभूति का घनत्व अधिक है, तो किसी में सामाजिक अनुभूति की स्फूर्ति। किसी में रोमानी दृष्टि की प्रधानता है, तो किसी में बौद्धिक यथार्थवादी दृष्टि की। ....
Question : "भक्ति के आंदोलन की जो लहर दक्षिण से आई, उसी ने उत्तर भारत की परिस्थिति के अनुरूप हिन्दू-मुसलमान दोनों के लिए एक सामान्य भक्तिमार्ग की भावना जगाई।" कथन की समीक्षा कीजिए।
(1999)
Answer : भक्ति आंदोलन वर्तमान के सापेक्ष अतीत का पुनर्मूल्यांकन है। यह महज धार्मिक आंदोलन नहीं है, वरन् यह उस सांस्कृतिक जागरण की सशक्त अभिव्यक्ति है, जो गहरे मानवीय सरोकार से उपजी है। इस मानवीय सरोकार के कारण ही इसमें एक ओर सामंतवाद विरोधी चेतना मौजूद है, तो दूसरी ओर ब्राह्मणवादी, पुरोहित वर्चस्व वाली व्यवस्था के विरुद्ध, उग्र विद्रोही स्वर। जाति, संप्रदाय और क्षेत्र विशेष की सीमाओं को अतिक्रमित करता हुआ भक्ति आंदोलन भारत की करोड़ों जनता ....