Question : हिन्दी रंगमंच का विकास
(2007)
Answer : हिन्दी रंगमंच की जड़ें संस्कृत रंगमंच और लोक मंच की परंपरा में मानी जाती है। भरतमुनि ने नाट्यशास्त्र में नाट्यकला के विभिन्न अंशों पर विचार करने के साथ-साथ रंगमंच और उसकी कला का भी विस्तृत विवेचन किया है। संस्कृत नाटकों की रचना अधिकतर रंगमंच पर अभिनीत किये जाने की दृष्टि से होती थी। मध्यकाल में रासलीला, रामलीला, नौटंकी आदि का उदय होने से जन - रंगमंच का प्रचलन बढ़ने लगा, लेकिन तत्काल परिस्थितियों में इसका ....
Question : हिन्दी नाटक के उद्गम और विकास पर प्रकाश डालिए।
(2004)
Answer : हिन्दी नाटक के आधुनिक मौलिक स्वरूप का विकास भारतेन्दु युग में हुआ। हालांकि मध्ययुग के उत्तरार्द्ध में ब्रजभाषा हिन्दी में भी कुछ ऐसे नाटक प्रणीत हुए, जिनकी मूल प्रकृति तो काव्यपरक ही है, किन्तु संवाद-शैली में रचे होने के कारण इन्हें नाटक की संज्ञा दे दी गयी। इस प्रकार के काव्य परक नाटकों में-रामायण नाटक (प्राणचन्द चौहान) 1610 ई., करूणाभरण (लछिराम) 1657 ई, शकुन्तला (नेवाज) 1680 ई., रामकरुणाकर एवं हनुमन्नाटक (उदय) 184 ई. इत्यादि प्रमुख ....