जलवायु परिवर्तन से बच्चे संक्रामक रोगों की चपेट में: अध्ययन

हाल ही में एक प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय पत्रिका ‘साइंस ऑफ द टोटल एनवायरनमेंट’ (Science of the Total Environment) में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, जलवायु परिवर्तन के विभिन्न कारक कुल संक्रामक रोगों के 9-18% मामलों के लिये जिम्मेदार है।

महत्वपूर्ण तथ्यः शोधकर्ताओं के अनुसार तापमान, आर्द्रता, वर्षा, सौर विकिरण और हवा की गति जैसे जलवायु परिवर्तन के विभिन्न कारक बच्चों में संक्रामक रोगों जैसे- पेट व आंत संबंधित रोग, श्वसन रोग, वेक्टर-जनित रोग, और त्वचा रोग से महत्वपूर्ण रूप से जुड़े थे।

  • ऊपरी श्वसन पथ के संक्रमण (ज्यादातर सर्दी और फ्लू) और जठरांत्र संबंधी संक्रमण (मुख्य रूप से दस्त) का संक्रामक रोग के बोझ में 78% का योगदान है।
  • अधिकतम तापमान और आर्द्रता महत्वपूर्ण जलवायु परिवर्तन चालक हैं।

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यूवी इंडेक्स

  • यूवी इंडेक्स से यह पता चलता है कि एक दिन में जमीनी स्तर पर कितना पराबैंगनी विकिरण (यूवी विकिरण) है, और आपकी त्वचा को नुकसान पहुंचाने की इसकी कितनी क्षमता है।
  • यूवी विकिरण सूर्य के प्रकाश का एक घटक है, जो अल्पावधि में त्वचा के कालेपन और सनबर्न (tanning and sunburn) का कारण बन सकता है। लंबी अवधि में, यूवी के अत्यधिक संपर्क से मोतियाबिंद और त्वचा कैंसर हो सकता है। 2002 में, विश्व स्वास्थ्य संगठन ने दुनिया भर के लोगों को जोखिमों के बारे में अधिक जागरूक करने के प्रयास में ‘यूवी इंडेक्स’ तैयार किया। सूचकांक कई कारकों को एक ही संख्या में प्रदर्शित करता है जिससे अंदाजा लगाया जाता है कि आपको धूप में कितनी सावधानी बरतने की जरूरत है। 1 से 2 का स्कोर कम, 3 से 5 मध्यम, 6 से 7 उच्च, 8 से 10 बहुत अधिक, और 11 और उससे अधिक चरमसीमा है। यूवी विकिरण के दो महत्वपूर्ण प्रकार हैं- यूवी-ए (400 से 315 नैनोमीटर तक तरंग दैर्ध्य के साथ) और यूवी-बी (315 से 280 नैनोमीटर तक तरंग दैर्ध्य के साथ)। छोटी तरंग दैर्ध्य को यूवी-सी कहा जाता है, जिसे मुख्य रूप से वायुमंडल द्वारा अवरुद्ध कर दिया जाता है। यूवी-ए और यूवी-बी दोनों त्वचा की क्षति, बुढ़ापे और त्वचा कैंसर में योगदान करते हैं। लेकिन यूवी-बी अधिक खतरनाक है- यह सनबर्न, मोतियाबिंद और त्वचा कैंसर का प्रमुख कारण है।

नर्डल्स

  • नर्डल्स (Nurdles) छोटे प्लास्टिक के छर्रे या गोलियां (plastic pellets) हैं, जो आज के अधिकांश प्लास्टिक उत्पादों के कच्चे माल का निर्माण करते हैं और पॉलीएथीलीन, पॉलीप्रोपाइलीन, पॉलीस्टाइनिन, पॉलीविनाइल क्लोराइड और अन्य प्लास्टिक से बने होते हैं।
  • विभिन्न प्लास्टिक उत्पादों को बनाने के लिए उन्हें पिघलाया जाता है और सांचों में डाला जाता है। इन्हें प्लास्टिक संयंत्रों द्वारा या जब इनका दुनिया भर में कारखानों में कच्चे माल के रूप में परिवहन किया जाता है, पर्यावरण में छोड़ दिया जाता है। यदि वे मीठे पानी या खारे पानी में हैं तो ये गोलियां घनत्व के आधार पर पानी में डूबेंगी या तैरेंगी। उन्हें अक्सर समुद्री पक्षी, मछली और अन्य वन्यजीवों द्वारा गलती से भोज्य पदार्थ मान लिया जाता है। पर्यावरण में, वे नैनोकणों में विखंडित हो जाते हैं जिनके खतरे अधिक जटिल होते हैं। वे टायर की धूल के बाद वजन के हिसाब से समुद्र में सूक्ष्म प्रदूषकों का दूसरा सबसे बड़ा स्रोत हैं। हर साल आश्चर्यजनक रूप से 230, 000 टन नर्डल्स महासागरों में मिल जाता है। आज, नर्डल्स तेजी से हमारे महासागरों का क्षरण कर रहे हैं।

जीके फ़ैक्ट

  • सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियों और बाल मानवमिति (child anthropometry) ने जलवायु-रोग के संबंध को संशोधित किया, जिसमें बच्चे उच्च अनुपात में नाटेपन, वेस्टिंग (कद के अनुपात में कम वजन) और कम वजन की स्थिति से पीड़ित पाए गए।

इस माह के चर्चित संस्थान एवं संगठन

केंद्रीय चमड़ा अनुसंधान संस्थान

  • उद्योग संवर्धन और आंतरिक व्यापार विभाग (DPIIT) ने केंद्रीय चमड़ा अनुसंधान संस्थान (Central Leather Research Institute: CLRI) के परामर्श से अब तक के पहले ‘इंडियन फुटवियर साइजिंग सिस्टम’ के विकास की पहल की है।
  • CLRI शोध पत्रों और पेटेंट के मामले में दुनिया का सबसे बड़ा चमड़ा अनुसंधान संस्थान है। चेन्नई, तमिलनाडु में स्थित CLRI की स्थापना 24 अप्रैल, 1948 को वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद के तहत एक घटक प्रयोगशाला के रूप में की गई थी। यह संस्थान अनुसंधान, विकास, शिक्षा और भारतीय चमड़ा उद्योग में प्रशिक्षण के लिए समर्पित है। संस्थान में रसायन और भौतिक विज्ञान, जैव विज्ञान, इंजीनियरिंग विज्ञान और सूचना विज्ञान जैसे विभाग हैं। इसके अलावा, संस्थान के अहमदाबाद, जालंधर, कानपुर और कोलकाता में चार क्षेत्रीय विस्तार केंद्र हैं।

पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी