‘टू फि़ंगर टेस्ट’ उपयोग पर प्रतिबंध

31 अक्टूबर, 2022 को सुप्रीम कोर्ट ने ‘टू-फिंगर टेस्ट’ के उपयोग पर प्रतिबंध लगाते हुए कहा, ऐसा कराने वालों को कदाचार का दोषी माना जाएगा।

महत्वपूर्ण तथ्य

  • अदालत ने कहा कि यह परीक्षण ‘प्रतिगामी और आक्रामक’ है।
  • इसका ‘कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है, क्योंकि यह बलात्कार के आरोपों को न तो साबित करता है और न ही अस्वीकार करता है’। इसके अलावा, ऐसी ‘सूचना’ का बलात्कार के आरोप से कोई लेना-देना नहीं है।
  • न्यायमूर्ति डी. वाई. चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति हेमा कोहली की पीठ ने नवंबर 2004 में झारखंड में एक नाबालिग लड़की के बलात्कार और हत्या के मामले में एक व्यक्ति की दोषसिद्धि और सजा बहाल करने के अपने आदेश में यह टिप्पणी की थी।
  • इस लड़की के यौन उत्पीड़न के प्रयास को विफल करने की कोशिश की। बाद में अस्पताल में उसका ‘टू-फिंगर टेस्ट’ किया गया।
  • मई 2013 में शीर्ष अदालत ने माना था कि दो उंगलियों का परीक्षण एक महिला के निजता के अधिकार का उल्लंघन करता है।
  • वर्ष 2004 में सर्वोच्च न्यायालय की एकल बेंच ने महिलाओं के एक्टिव और पैसिव इंटरकोर्स को आईपीसी की धारा 375 (बलात्कार) के तत्वों को लागू करने के आलोक में अप्रासंगिक माना है।

‘टू-फिंगर टेस्ट’ क्या है?

  • एक महिला जिसका यौन उत्पीड़न किया गया है, उसके स्वास्थ्य और चिकित्सीय जरूरतों का पता लगाने, साक्ष्य एकत्र करने आदि के लिए एक चिकित्सा परीक्षण से गुजरना पड़ता है। एक चिकित्सक द्वारा किए जाने वाले टू-फिंगर टेस्ट में उसकी योनि की जांच की जाती है, जिससे यह पता किया जा सके कि उसने संभोग किया है या नहीं।
  • विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) द्वारा यौन उत्पीड़न पीड़ितों के जारी एक पुस्तिका कहती है, कौमार्य (या ‘टू-फिंगर’) परीक्षण के लिए कोई जगह नहीं है; इसकी कोई वैज्ञानिक वैधता नहीं है।’

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