Question : ईश्वर की स्थापना हेतु जगत कारण युक्ति का उल्लेख एवं मूल्यांकन कीजिए। इस युक्ति के दो रूप क्या हैं? आश्रयजनित सत्ता एवं स्वजनित सत्ता में क्या भेद है? स्वजनित सत्ता ईशकेंद्रीय क्यों है? क्या प्रकृति को ही स्वजनित सत्ता के रूप में नहीं माना जा सकता? विचार कीजिए।
(2007)
Answer : ईश्वर की स्थापना हेतु जगत कारण युक्ति के अंतर्गत जगत के अस्तित्व के आधार पर ईश्वर की सत्ता को प्रमाणित करने का प्रयास किया जाता है। इस युक्ति के अनुसार किसी कारण के अभाव में हम किसी वस्तु की उत्पत्ति की कल्पना भी नहीं कर सकते। ऐसी स्थिति में अपने इसी सामान्य अनुभव के आधार पर हम यह निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि इस विश्व का कोई कारण अवश्य है। उस कारण को ही ईश्वर ....
Question : ईश्वर तर्क विधान के अधीन नहीं है।
(2007)
Answer : कांट का प्रसिद्ध रचना है कि ईश्वर के अस्तित्व को तार्किक युक्तियों के आधार पर प्रमाणित नहीं किया जा सकता। आत्मा सृष्टि और ईश्वर प्रज्ञा का काल्पनिक सम्प्रत्यय मात्र है। उन्हें वास्तविक सत्ता अथवा ज्ञान के विषय नहीं कहा जा सकता है। हमें प्रामाणिक (वैध), यथार्थ, सार्वभौमिक अथवा ज्ञान का विषय नहीं कहा जा सकता। प्रज्ञा के सम्प्रत्यय (आत्मा, ईश्वर) आस्था के विषय हैं। यद्यपि वे ज्ञान के विषय नहीं हैं, तथापि उनकी उपयोगिता है ....
Question : यदि ईश्वर का अस्तित्व केवल किसी के मन के भीतर है तो ऐसे में महत्तम कल्पनीय सत्ता आखिरकार महत्तम कल्पनीय सत्ता नहीं है।
(2006)
Answer : वस्तुतः कई ईश्वरवादी दार्शनिक ईश्वर विचार (प्रत्यय) के विश्लेषण मात्र से ईश्वर के अस्तित्व को सिद्ध करने का प्रयास करते हैं। इन दार्शनिकों में ऐन्सेल्म एवं देकार्त प्रमुख हैं। ऐन्सेल्म का कथन है कि ईश्वर पूर्ण एवं महानतम सत्ता है। उसकी अपेक्षा किसी अन्य महान सत्ता की कल्पना नहीं की जा सकती। ऐसे सत्ता या तो मानसिक होगी या वास्तविक एवं मानसिक दोनों होगी। अर्थात् अगर ऐसी महानतम सत्ता सिर्फ मन में है अर्थात् मन ....
Question : ईश्वर के अस्तित्व के रूप में सत्ता मीमांसीय तर्क किस प्रकार अमान्य है?
(2003)
Answer : ईश्वर के अस्तित्व संबंधी यह एक प्राग् अनुभविक प्रमाण है क्योंकि इसमें सत् के विचार के विचार के विश्लेषण मात्र से ईश्वर के अस्तित्व को निगमित किया जाता है।
दूसरे शब्दों में, यहां ईश्वर विचार के आधार पर उसके सार के रूप में ईश्वर के अस्तित्व को सिद्ध करने का प्रयास किया जाता है। इसके समर्थकों में प्लेटो, आगस्टिन, एन्सेल्म, देकार्त, लार्डवनिज, हीगल आदि हैं। भारतीय दर्शन में इस अवधारणा का स्पष्ट साक्ष्य अवलोकित नहीं होता ....
Question : क्या ईश्वर के अस्तित्व के लिए प्राप्त हुए साक्ष्यों में से कोई ईश्वर के अस्तित्व को सिद्ध करने में सफल होता है? चर्चा कीजिए। इस संदर्भ में विशेषकर सृष्टिकारण युक्ति पर समालोचनात्मक रूप में विचार कीजिए।
(2003)
Answer : ईश्वर के अस्तित्व के संबंध में दो प्रकार के तर्क दिए गए हैं-परंपरागत तर्क एवं गैर-परम्परागत तर्क। परम्परागत तर्क के अंतर्गत सत्तामूलक प्रमाण, विश्वमूलक प्रमाण एवं प्रयोजन मूलक प्रमाण आते हैं। गैर-परम्परागत तर्क के अंतर्गत नैतिक प्रमाण को शामिल किया जाता है। इसके अलावे अन्य प्रमाणों मेें रहस्यात्मक एवं सर्वसहमति मूलक प्रमाण भी आते हैं। इन प्रमाणों के सत्तामूलक प्रमाण के अलावे बाकी सभी प्रमाण अनुभवमूलक हैं। सत्तामूलक प्रमाण अनुभव निरपेक्ष प्रमाण हैं।
प्रयोजन मूलक प्रमाण ....
Question : यदि ईश्वर की सत्ता नहीं है तो सब कुछ अनुमत है। दांस्तोवस्की।
(2001)
Answer : अधिकतर ईश्वरवादी दार्शनिक ईश्वर को सर्वशक्तिमान मानने के साथ-साथ सर्वज्ञ मानते हैं। इसका अर्थ यह है कि ईश्वर को इस जगत में होने वाली सभी घटनाओं का पूर्ण ज्ञान है। ऐसी घटना नहीं है जिसका ज्ञान ईश्वर को प्राप्त न हो। मनुष्य का ज्ञान सीमित है क्योंकि वह देश और काल से परे नहीं है। परंतु ईश्वर का ज्ञान मनुष्य से इस अर्थ में भिन्न है कि वह इस जगत का निर्माता है। अतः इस ....
Question : ईश्वर की सत्ता स्थापना हेतु प्रयोजन सापेक्ष युक्ति का उल्लेख एवं मूल्यांकन कीजिए। जगत उत्पत्ति के संबंध में इससे क्या निर्दिष्ट है? क्या जगत के रचनाकार की प्राक्कल्पना युक्तियुक्त है?
(2001)
Answer : प्रयोजनमूलक प्रमाण मूलतः अनुभवाश्रित प्रमाण है क्योंकि इसका आधार भी विश्व के संबंध में मनुष्य का अपना अनुभव ही है। अनेक भारतीय तथा पाश्चात्य दार्शनिकों ने ईश्वर के अस्तित्व के लिए प्रयोजनमूलक प्रमाण प्रस्तुत किया है। न्याय, वैशेषिक, योग और वेदांत में इस प्रमाण का उल्लेख मिलता है। पाश्चात्य दर्शन में सर्वप्रथम प्लेटो ने ईश्वर की सत्ता के लिए यह प्रयोजनमूलक प्रमाण पस्तुत किया था। इसके पश्चात मध्ययुग में ऐक्वार्डनस ने सृष्टिमूलक प्रमाण के साथ-साथ ....
Question : ईश्वर के अस्तित्व के लिए दिए गए परंपरागत प्रमाणों का विवेचन कीजिए और प्रत्येक पर अपनी आलोचना लिखिए।
(2000)
Answer : ईश्वर के अस्तित्व के लिए दिए गए परंपरागत प्रमाणों के अंतर्गत सत्तामूलक, विश्वमूलक एवं प्रयोजनमूलक प्रमाण आते हैं।
(i) विश्वमूलक प्रमाणः यह अनुभवमूलक प्रमाण हैं, जिसमें विश्व की व्याख्या करने के निमित्त ईश्वर की सत्ता को अनुमानित करने का प्रयास किया जाता है। इसके तीन रूप महत्वपूर्ण हैं। इसका प्रथम रूप है गतिमूलक प्रमाण। इस प्रमाण में विश्व में विद्यमान गति के मूल आधार या आदि गति प्रदानकर्ता को रूप में ईश्वर के अस्तित्व को अनुमानित ....
Question : ईश्वर के अस्तित्व हेतु प्रत्यय सत्तामूलक युक्ति की व्याख्या कीजिए तथा इस युक्ति में निहित तर्कदोषों की परीक्षा कीजिए।
(1999)
Answer : ईश्वर के अस्तित्व के लिए दिया गया प्रत्यय सत्तामूलक युक्ति अनुभव निरपेक्ष प्रमाण है, जिसमें ईश्वर विचार के विश्लेषण से ईश्वर की सत्ता को सिद्ध करने का प्रयास किया जाता है। दूसरे शब्दों में यहां ईश्वर विचार के आधार पर उसके सार के रूप में ईश्वर के अस्तित्व को सिद्ध करने का प्रयास किया जाता है। इसके समर्थकों में प्लेटो, आगस्टिन, एन्सेल्म, देकार्त, लार्डवनिज, हीगल आदि हैं। भारतीय दर्शन में इस अवधारणा का स्पष्ट साक्ष्य ....
Question : ईश्वर के होने के लिए सर्व सहमत तर्क।
(1998)
Answer : कई दार्शनिकों एवं ईश्वरवादियों ने ईश्वर के अस्तित्व की सिद्धि के लिए सर्वसहमति तर्क प्रस्तुत किया है। इनमें रिचर्ड हुकर, सिसरो, सेनेका आदि उल्लेखनीय हैं। सर्वसहमति तर्क को दो रूपों में प्रस्तुत किया गया है। इसमें प्रथम है जैविक तर्क और संदेहवादी चिंतन से मुक्ति। जैविक तर्क के अंतर्गत सेनेका ने ईश्वर के अस्तित्व के संबंध में मानव में पायी जाने वाली सहजवृत्ति का उल्लेख किया है। इस तर्क के अनुसार मानवीय संवेदना में ईश्वर ....
Question : मान लें कि ईश्वर होने को प्रमाणित करने हेतु जो भी परम्परागत तर्क दिए जाते हैं वे सभी दोषपूर्ण हैं। क्या इससे ईश्वर का न होना सिद्ध होता है? यदि आपका उत्तर नकारात्मक है तो विचार कीजिए कि क्या ईश्वर के न होने का कोई प्रमाण हो सकता है।
(1998)
Answer : ईश्वरवादी दार्शनिक अपने ईश्वर के अस्तित्व संबंधी विश्वास को सत्य प्रमाणित करने के लिए कई तर्क प्रस्तुत करते हैं तथा यह सिद्ध करना चाहते हैं कि असीम शक्ति, ज्ञान, प्रेम, दया, नित्यता आदि गुणों से परिपूर्ण ईश्वर का वास्तविक वस्तुपरक अस्तित्व है। परंतु ईश्वर के अस्तित्व के संबंध में दिए गए सभी प्रमाण तार्किक दृष्टि से दोषपूर्ण होने के कारण विश्वसनीय नहीं है। प्रत्यय सत्ता युक्ति को छोड़कर अन्य सभी प्रमाण किसी न किसी रूप ....
Question : ईश्वर के अस्तित्व की सृष्टि कारण युक्ति बताइए और उसकी समीक्षा कीजिए।
(1997)
Answer : सृष्टि कारण युक्ति या विश्वमूलक प्रमाण एक अनुभवमूलक प्रमाण है, जिसमें विश्व की व्याख्या करने के निमित्त ईश्वर की सत्ता को अनुमानित करने का प्रश्यास किया जाता है। इसके समर्थकों में प्लेटो, अरस्तु, एक्विनास, देकार्त आदि हैं। भारतीय दर्शन में न्याय एवं वैशेषिक आदि विश्वमूलक प्रमाण की चर्चा करते हैं। ग्रीक दार्शनिक एक्विनास ने अपनी पुस्तक में इस प्रमाण के विविध रूपों की विस्तार से विवेचना की है, जिसमें तीन रूप महत्वपूर्ण हैं:
(i)गतिमूलक प्रमाण इस ....