Question : सामाजिक न्याय प्राप्ति का एकमात्र साधन मुक्त बाजार अर्थव्यवस्था है।
(2007)
Answer : न्याय की मुख्य समस्या यह है कि सामाजिक जीवन के अंतर्गत विभिन्न व्यक्तियों या समूहों के प्रति वस्तुओं, सेवाओं, अवसरों, कामों, शक्ति और सम्मान के आवंटन का उचित आधार क्या होना चाहिए? जब हम तात्विक न्याय की बात करते हैं, तब हम समाज की संपूर्ण व्यवस्था को इस दृष्टि से परखने लगते हैं कि वह न्याय के अनुरूप है या नहीं? चूंकि हम सुविधा की दृष्टि से सामाजिक जीवन के तीन क्षेत्रों- सामाजिक, आर्थिक और ....
Question : कदाचित निषेधात्मक स्वतंत्रता चुनने की स्वतंत्रता को तो सुनिश्चित कर सकती है, परंतु बिना किसी विश्वसनीय भरोसे के कि ऐसी स्वतंत्रता का वास्तविक संपादन होगा।
(2007)
Answer : जब हम स्वतंत्रता की परिभाषा केवल प्रतिबंधों के अभाव के रूप में करते हैं तब हमारा ध्यान उसके नकारात्मक पक्ष पर केंद्रित होता है। दूसरे शब्दों में हमारा अभिप्राय यह होता है कि यदि कोई व्यक्ति कुछ करना चाहता है और कर भी सकता हो, तो उसे वैसा करने से रोका न जाए। इस तरह की स्वतंत्रता को औपचारिक स्वतंत्रता या नकारात्मक स्वतंत्रता कहते हैं। यह केवल अनुमति की सूचक है और इससे कतई कोई ....
Question : कुछ उदारवादी राजनीतिक विचारों के अनुसार सामाजिक एवं आर्थिक असमानता केवल इस शर्त पर न्यायोचित है कि उनका लाभ समाज के निम्नतर स्तर के सदस्यों को मिलता है। क्या है विचार उदारवाद के व्यक्ति स्वतंत्रय की सैद्धांतिक हिमायत के साथ संगत है? विवेचन करें।
(2007)
Answer : स्वतंत्रता एवं समानता के आदर्श की प्राप्ति के साथ ही न्याय की अवधारणा साकार हो पाती है। उदारवाद भी स्वतंत्रता एवं समानता के द्वारा न्याय की समस्या पर विचार करती है। न्याय की समस्या मुख्यतः यह निर्णय करने की समस्या है कि समाज के विभिन्न व्यक्तियों और समूहों के बीच विभिन्न वस्तुओं, सेवाओं, अवसरों और लाभों इत्यादि के आवंटन का नैतिक आधार क्या होना चाहिए। अतः व्यवहार के धरातल पर यह स्वतंत्रता और समानता के ....
Question : समता के आदर्श का तब तक कोई निश्चित कलेवर या अंतर्वस्तु निर्धारित नहीं किया जा सकता, जब तक इसे राजनीतिक एवं समाज के किसी व्यापक सिद्धांत के अंतर्गत समाहित न किया जाए।
(2004)
Answer : समानता के आदर्श का लक्ष्य है- असमानताओं में समानता ढूंढ़ना। इसी को इस रूप में कहा जा सकता है कि समानतावादी के रूप में सांचना मनुष्यों के सभी असमानताओं की मात्र के बारे में सोंचना है और उन्हें हराने या कम से कम न्यून करने के लिए तरीके ढूंढ़ना है या समानतावाद के अर्थ को इस प्रकार भी प्रकट किया जा सकता है- समान व्यक्तियों के साथ समानता पूर्वक और असमानों के साथ असमानता पूर्वक ....
Question : वैयक्तिक स्वतंत्रता के आदर्श के प्रति समाजवाद एवं उदारवाद दोनों की स्वघोषित प्रतिबद्धता के बावजूद इन विचारधाराओं के बीच यह घोर विवाद का विषय है क्यों? विवेचन कीजिए।
(2004)
Answer : उदारवाद राजनीति का वह सिद्धांत है जो सामंतवाद के पतन के बाद राजनीति को बाजार अर्थव्यवस्था के अनुरूप मोड़ देनेके लिए अस्तित्व में आया। शुरू-शुरू में इसने व्यक्ति को राजनीति का केंद्र बिंदु मानते हुए व्यक्तिवाद को अपनाया, परंतु बाद में इसने राजनीति में समूहों की महत्पूर्ण भूमिका को स्वीकार करते हुए बहुलवाद को अपना लिया। शुरू-शुरू में इसने मुक्त बाजार व्यवस्था को सर्वहित का उपयुक्त साधन मानते हुए राज्य के लिए अहस्तक्षेप का समर्थन ....
Question : ‘से स्वतंत्रता’ और ‘की स्वतंत्रता’ परस्पर अनन्य हैं।
(2003)
Answer : यहां ‘से स्वतंत्रता’ स्वतंत्रता की नकारात्मक अवधारणा को एवं ‘की स्वतंत्रता’ स्वतंत्रता की सकारात्मक अवधारणा को इंगित करता है। सकारात्मक रूप में समानता का यही अर्थ स्पष्ट किया जा सकता है कि समानता पर्याप्त अवसरों की उपलब्धता है। अर्थात् सबके लिए पर्याप्त अवसरों की व्यवस्था सुनिश्चित की जाए। यहां ध्यान देने योग्य बात यह है कि पर्याप्त अवसर की बात की जा रही है, न कि समान अवसर की। इसका कारण यह है कि हर ....
Question : स्वतंत्रता संसार से मुक्ति के रूप में।
(2003)
Answer : संसार से मुक्ति के रूप में स्वतंत्रता, स्वतंत्रता को एक विशेष अर्थ प्रदान करता है। यह भारतीय समाज में मोक्ष की अवधारणा को इंगित करता है। भारतीय दर्शन में मोक्ष को मुक्ति के अर्थ में लिया गया है। यहां मुक्ति को कुछ दार्शनिक संप्रदायों में दो चरणों में स्वीकार किया गया है। प्रथम तो यह कि संदेह मुक्ति या मोक्ष अर्थात् जीवित रहते हुए रागद्वेष एवं सांसारिक बंधनों से छुटकारा, जो गीता के स्थितप्रज्ञ, शंकर ....
Question : राजनीतिक आदर्श के रूप में समता की संकल्पना।
(2002)
Answer : समानता का शब्दकोश के अनुसार अर्थ बताया जाता है-
(i)दूसरों के साथ समान गौरव, पद या विशेषाधिकार की एक अवस्था
(ii)शक्ति, योग्यता, उपलब्धि या उत्तमता की एक अवस्था
(iii)न्यायप्रियता, निष्पक्षता, उचित मान, समानुपातिकता। वैसे सामान्य रूप से समानता की परिभाषा अवसर की समानता के रूप में की जाती है। इस प्रकार समानता विषयक चिंतन से मानव और मानवता के विषय में जिस धारण का विकास हुआ है, वह एक आदर्श और मूल्य की स्थापना करता है। वस्तुतः ....
Question : न्याय से क्या तात्पर्य है? इसकी प्राप्यता की क्या आवश्यक एवं पर्याप्त दशाएं होती हैं? विवेचन करें।
(2002)
Answer : न्याय वह व्यवस्था है जिसके आधार पर प्रत्येक मनुष्य को वे सभी अधिकार दिये जाते हैं, जिनको समाज उचित ठहराता है। किंतु अधिकारों के निर्वहन हेतु यह जरूरी है कि हम कर्तव्यों का निर्वहन करे और ये कर्तव्य कानून के अनुपालन है। अतः स्पष्ट है कि न्याय हमारे लिए कानून के औचित्य को सिद्ध करता है।
परंपरागत अर्थों में न्याय का आशय न्याय परायण व्यक्ति से लिया जाता था। जिसमें सच्चरित व्यक्ति के गुणों पर विचार ....
Question : न्याय का अर्थ योग्यातानुसार प्रतिफल प्राप्त करना है, जो व्यक्ति समाज को जितना देता है उसी के अनुरूप प्रतिफल का वह सहभागी है। समाज को अधिक देने वाला व्यक्ति उस व्यक्ति से अधिक प्रतिफल का भागी है जो समाज को उससे कम देता है। किसने समाज को कितना दिया, उसका निर्धारण करने का एकमात्र निष्पक्ष तरीका है कि लोग सामूहिक रूप से युक्त बाजार के माध्यम से इसे निश्चित करें। अतएव मुक्त बाजार न्याय प्राप्ति का एकमात्र तरीका है। क्या आप उपर्युक्त मत से सहमत हैं? अपने उत्तर को प्रतिपादित करें।
(2001)
Answer : जब हम तात्विक न्याय की बात करते हैं, तब हम समाज की संपूर्ण व्यवस्था को इस दृष्टि से परखने लगते हैं कि वह न्याय के अनुरूप है या नहीं? सामाजिक न्याय के अंतर्गत तीन ऐसी कसौटियों का उल्लेख किया गया है जिनके आधार पर विभिन्न विचारक न्याय की समस्या का समाधान ढूंढते हैं। इनमें एक है योग्यता के अनुरूप वितरण। यह खुले बाजार व्यवस्था का पोषक है। यदि योग्यता के अनुरूप वितरण को ही न्याय ....
Question : कुछ विचारक स्वतंत्रता को दो परस्पर अपरिवर्तनीय अर्थों निषेधात्मक एवं सकारात्मक में विभेदन करते हैं। इनकी व्याख्या एवं मूल्यांकन करें।
(2001)
Answer : स्वतंत्र शब्द दो शब्दों स्व तथा तंत्र के योग से बना है। स्व का अर्थ है स्वयं तथा तंत्र का अर्थ व्यवस्था से है, अतः स्वयं के लिए व्यवस्था बनाना ही स्वतंत्रता है।
स्वतंत्रता के आदर्श की संकल्पना का विकास विभिन्न कालों में विशिष्ट सामाजिक तथा सांस्कृतिक परिस्थितियों से उठी समस्याओं के प्रत्युत्तर में विभिन्न विचारकों ने अपने अपने ढंग से किया है। स्वतंत्रता की अवधारणा वैसे तो आधुनिक काल में ही स्पष्ट हुई, लेकिन प्राचीन ....
Question : स्वतंत्रता पर जे.एस.मिल।
(2000)
Answer : जेएस मिल व्यक्तिगत स्वतंत्रता के प्रबल समर्थक थे। मिल के अनुसार स्वतंत्रता कम से कम मानव गतिविधियों के आत्म संबंधी क्षेत्र में प्रतिबंधों से उन्मुक्तता का नाम है, अर्थात् मानव जीवन में प्रतिबंधों का अभाव ही स्वतंत्रता है। इन्होंने तो यहां तक कहा कि यदि सभी मनुष्य एक को छोड़कर एक राय तो और एक मनुष्य उनकी राय का विरोधी हो तो अन्य सभी मनुष्य उस अकेले मनुष्य को चुप कर देने के लिए न्यायतः ....
Question : न्याय की अवधारणा को प्रायः वितरणात्मक एवं प्रतिकारी न्याय में विभाजित किया जाता है। इस भेद की व्याख्या कीजिए एवं जिस आधार पर यह भेद किया जाता है उसका आलोचनात्मक विवेचन कीजिए।
(1998)
Answer : सामाजिक न्याय की मांग आधुनिक युग की विशेषता है। राजनीतिक न्याय स्वतंत्रता के आदर्श को प्रमुखता देता है, आर्थिक न्याय समानता के आदर्श को महत्व देता है और सामाजिक न्याय बंधुता के आदर्श को साकार करना चाहता है। इन तीनों को मिलाकर ही सामाजिक जीवन में न्याय के व्यापक आदर्श की सिद्धि की जा सकती है। सभ्यता लंबे इतिहास में धन संपदा, पद-प्रतिष्ठा और शक्ति की विषमताएं प्रायः ऐसी स्थिति के रूप में स्वीकार की ....
Question : स्वतंत्रता।
(1997)
Answer : स्वतंत्रता शब्द लिबर्टी के अर्थ में लिया गया है और लिबर्टी लैटिन के लिबर शब्द से व्युत्पन्न माना गया है। इसके विभिन्न अर्थों केा देखकर यही पता चलता है कि उसकी परिभाषा इस रूप में देना कठिन है कि सभी संतुष्ट हो जाएं। राजनीतिक दर्शन में स्वतंत्रता शब्द ही नहीं, ऐसे अनेक शब्द हैं, जैसे समानता, संप्रभुता, राष्ट्रीयता आदि जिनकी एक निश्चित परिभाषा देना सरल नहीं है। फिर भी यदि हम राजनीतिक क्षेत्र में स्वतंत्रता ....