Question : प्रजातंत्र जो कि प्रत्येक व्यक्ति की धारणा को एक समान मानता है, यह निर्धारित करने में अक्षम है कि क्या करना उचित है।
(2007)
Answer : समानता प्रजातंत्र की एक आधारशिला है। प्रजातांत्रिक मूल्यों की प्राप्ति के लिए यह मानव समानता के सिद्धांत में विश्वास करता है। परंतु मानव समानता के सिद्धांत के विरोधियों की धारणा यह है कि राजनीतिक बातों में समस्त मनुष्यों को समान समझने का कोई औचित्य नहीं है। उनका कहना है कि राजनीति में प्रत्येक को समान शक्ति मिलनी चाहिए, इतना ही प्रभावपूर्ण है कि यह कहना कि कानून में प्रत्येक को समान दक्षता होनी चाहिए। इनका ....
Question : आर्थिक क्षेत्र में शक्ति के साथ बिना राजनीतिक लोकतंत्र खोखला होता है।
(2005)
Answer : राजनीतिक लोकतंत्र की आधारशिलाओं में राजनीतिक समानता एक महत्वपूर्ण अवयव है। राजनीतिक समानता के बिना लोकतंत्र की स्थापना नहीं की जा सकती, परंतु राजनीतिक समानता आर्थिक समानता के बिना संभव नहीं है। सामाजिक-आर्थिक समानता में समानता के सामाजिक और आर्थिक पक्ष एक दूसरे के साथ गुंथे हुए हैं। राजनीतिक समानता का अर्थ यह है कि समस्त वयस्क नागरिकों को समान नागरिक तथा राजनीतिक अधिकार प्राप्त होने चाहिए। जैसे कि मत देने का अधिकार तथा कोई ....
Question : प्रजातंत्र की अवधारणा सारतः विवादित अवधारणा है।
(2004)
Answer : प्रजातंत्र की अवधारणा अपने ऐतिहासिक विकास क्रम में जिस घटना से जुड़ी हुई है, उसने (फ्रांसीसी क्रांति) प्रजातंत्र के बुनियादी मूल्यों के रूप में स्वतंत्रता, समानता तथा बंधुत्व का आदर्श स्थापित किया था। इसलिए यदि इन मूल्यों को प्रजातंत्र का आधार कहा जाए तो अतिश्योक्ति न होगी। स्वतंत्रता, समानता तथा बंधुत्व जो कि प्रजातंत्र के आधार हैं, परस्पर पूरक तथा परस्पर आश्रित हैं। एक दूसरे के विरोधी होते हुए भी ये मूल्य एक दूसरे के ....
Question : लोकतांत्रिक राज्य में सरकारी कर्मचारियों द्वारा हड़ताल का कोई औचित्य नहीं है।
(2003)
Answer : लोकतांत्रिक राज्य वह है जो जनता के द्वारा निर्वाचिक प्रतिनिधियों के द्वारा शासित होता है। प्रत्यक्ष रूप से जनप्रतिनिधि लोकतांत्रिक राज्य के लिए विधान का निर्माण करते हैं, किंतु इसका क्रियान्वयन सरकारी कर्मचारियों के द्वारा होता है। इसलिए सरकारी कर्मचारी अप्रत्यक्ष रूप से राज्य के स्तंभ हैं। सरकारी कर्मचारियों का यह दायित्व सदैव उनके स्मरण में होना आवश्यक है, क्योंकि उसी अवस्था में वह लोकतंत्र का पोषण कर उसको मजबूत करेंगे। ऐसी स्थिति में यदि ....
Question : क्या आप सोचते हैं कि लोकतंत्र शासन का सर्वोत्तम रूप है? क्या लोकतंत्र से परे की कोई गुंजाइश है? इस संदर्भ में योग्यता तंत्र की अवधारणा का विश्लेषण कीजिए।
(2002)
Answer : लोकतंत्र समाज का वह संगठन है, जिसका कि उद्देश्य बंधुत्व की भावना द्वारा स्वतंत्रता और समानता को प्राप्त करना है और इस रूप में इसे शासन को सर्वोत्तम पद्धति के रूप में स्वीकार किया गया है। वस्तुतः एक सामाजिक-राजनीतिक व्यवस्था के रूप में लोकतंत्र की कितनी भी आलोचना क्यों न की जाए, यह सर्वोत्तम व्यवस्था है। इसके पक्ष में निम्नलिखित तर्क दिए जा सकते हैंः
(i)व्यक्तित्व का विकासः एक सामाजिक संगठन के रूप में जिसमें कि ....
Question : उदारवादी प्रजातंत्र के आधारभूत सिद्धांतों का व्याख्यात्मक उल्लेख कीजिए। इस संदर्भ में इस विषय पर विचार कीजिए कि न्याय जो कि उदारवादी प्रजातंत्र का एक मूलभूत आदर्श है, को किस हद तक इसके अंतर्गत साकार किया जा सकता है।
(2001)
Answer : उदारवाद राजनीति का वह सिद्धांत है, जो सामंतवाद के पतन के बाद राजनीति को बाजार अर्थव्यवस्था के अनुरूप मोड़ देने के लिए असि्तत्व में आया। शुरू-शुरू में इसने व्यक्ति को राजनीति का केंद्र बिंदु मानते हुए व्यक्तिवाद को अपनाया, परंतु बाद में इसने राजनीति में समूहों को महत्वपूर्ण भूमिका को स्वीकार करते हुए बहुलवाद को अपना लिया। शुरू-शुरू में इसने मुक्त बाजार व्यवस्था को सर्वहित का उपयुक्त साधन मानते हुए राज्य के लिए अहस्तक्षेप नीति ....
Question : उदार लोकतंत्र।
(1999)
Answer : ऐतिहासिक दृष्टि से उदारवाद और लोकतंत्र की उत्पत्ति भिन्न परंपराओं से हुई है। परंतु आधुनिक युग में लोकतंत्र की सामान्य धारा उदारवाद के साथ इतनी निकट से जुड़ गयी है कि सामान्य भाषा में, जब तक लोकतंत्र शब्द के साथ कोई विशेषण न लगाया जाए, तब तक उसका अभिप्राय उदार लोकतंत्र का उदारवादी लोकतंत्र ही माना जाता है। उदारवाद और लोकतंत्र के इस संयोग में ऐतिहासिक परिस्थितियों का हाथ रहा है। पुराने उदारवाद ने समाज ....
Question : लोकतंत्र सरकार का एक प्रकार ही नहीं बल्कि एक जीवन पद्धति भी है। चर्चा करें।
(1997)
Answer : मानव सभ्यता के आज तक के इतिहास में जिन राजनीतिक व्यवस्थाओं और संरचनाओं का विकास मानव ने किया, उनमें लोकतंत्र की व्यवस्था न केवल सर्वाधिक विकसित है, बल्कि अपने दार्शनिक एवं मूल्यात्मक पक्षों के कारण राजनीतिक क्षेत्र का अतिक्रमण भी करती है। इसका मूल यह है कि शेष राजनीतिक व्यवस्था से मूलतः राजनीतिक माध्यम से समाज और व्यक्ति के जीवन को प्रभावित करती है तथा जीवन के सीमित पक्षों को ही छू पाती है, जबकि ....