प्लेटो एवं अरस्तु
Question : प्लेटो के प्रत्यय ज्ञान सिद्धांत।
(2007)
Question : अरस्तु का पदार्थ सिद्धांत।
(2006)
Question : ज्ञान एवं मत में भेद।
(2005)
Question : ‘सामान्य विशेषों में अनुगत होता है’, इस वक्तव्य के आलोक में अरस्तु के प्रत्यय सिद्धांत का वर्णन करें।
(2003)
Question : प्लेटो और अरस्तु के सत् के सिद्धांत के मध्य अंतर स्पष्ट करें।
(2002)
Question : प्लेटो का प्रत्यय/विज्ञान सिद्धांत।
(2000)
Question : अरस्तु का पदार्थ सिद्धांत के लिए तर्क।
(1999)
Question : प्लेटो के प्रत्यय सिद्धांत का आलोचनात्मक विश्लेषण करें।
(1998)
तर्कबुद्धिवाद (देकार्त, स्पिनोजा, लाइबनिज)
Question : लाइबनिज का चिद्णुवाद (चिढ़णु विज्ञान)।
Question : स्पीनोजा के सार सिद्धान्त को स्पष्ट करें।
Question : देकार्त के द्वैतवाद पर चर्चा कीजिए।
Question : मन और शरीर दो अन्योन्यकारी पदार्थों के रूप में।
Question : स्पीनोजा का परम पदार्थ का संप्रत्यय।
Question : स्पीनोजा के अनुसार द्रव्य की प्रकृति और विशेषणों से उसके संबंध की व्याख्या करें।
Question : स्पीनोजा के सत्य ईश्वर, प्रकृति के अभिज्ञान के सिद्धान्त का कथन करे।
Question : देकार्त की दार्शनिक (दर्शन) प्रणाली।
(2001)
Question : अंतःक्रियावाद।
Question : एक सर्व सम्पूर्ण, सर्वव्याप्त सत्ता के प्रत्यय का अर्थ यह भी है कि उसका अस्तित्व है।
(1997)
Question : शरीर एवं मन के संबंध में परम्परागत यूरोपीय दर्शनशास्त्र के विभिन्न सिद्धान्तों का उल्लेख करें और स्पष्ट करते हुए उनकी व्याख्या करें।
Question : मैं सोचता हूं, इसलिए मैं हूं।
इंद्रियानुभव वाद (लॉक, बर्कले, ह्यूम)
Question : द्रव्य विषयक लॉक के विचारों का कथन कीजिए और उस पर चर्चा कीजिए।
Question : लॉक के अनुसार ज्ञानमीमांसा।
Question : ह्यूम के संशयवाद पर चर्चा कीजिए।
Question : कांट ह्यूम के संशयवाद के प्रति किस प्रकार अनुक्रिया करता है।
Question : फिनोमेना और न्यूमिना के बीच कांट के विभेद की सार्थकता।
(2004)
Question : उक्ति और प्रदर्शन के बीच भेद।
Question : सत्ता दृश्यता है।
Question : संश्लिष्ट प्राग्नुभविक निर्णय किस प्रकार संभव है?
Question : रसेल का तार्किक परमाणुवाद क्या है? इस सम्बन्ध में शामिल तत्वमीमांसा की संकल्पना को सुस्पष्ट कीजिए।
Question : आगमन पर ह्यूम का विचार।
Question : कांट का फ्समीक्षात्मक दर्शन"तर्क बुद्धिवाद और इन्द्रियानुभवाद के बीच एक समाधान है। इस टिप्पणी को पूरी तरह स्पष्ट कीजिए और पारम्परिक तत्व मीमांसा की संभावना के लिए ऐसे समाधान के परिणाम पर प्रकाश डालिए।
Question : मूर की सामान्य बुद्धि की प्रतिरक्षा।
Question : सत्यापन सिद्धान्त को स्पष्ट कीजिए और दर्शाइए कि क्या यह सिद्धान्त तत्वमीमांसा को निराश पर पहुंचा देता है?
Question : वैयक्तिक अनन्यता विषयक ह्यूम के मत का मूल्यांकन कीजिए।
Question : कांट की दिक्काल की संकल्पना।
Question : रसेल का तार्किक रचना का सिद्धान्त।
Question : तार्किक प्रत्यक्षवादियों की तत्वमीमांसा की निरसन संबंधी युक्तियों का मूल्यांकन कीजिए।
Question : ह्यूम का दृश्य प्रपंचवाद।
Question : ईश्वर के अस्तित्व के लिए साक्ष्यों की कांट की आलोचना बताइए और उसका परीक्षण कीजिए।
Question : बुद्धिगत धारणाओें विषयक कांट के मत।
Question : निषेधात्मक तत्वों संबंधित रसेल की संकल्पना।
Question : सामान्य बुद्धि विषयक मूर की धारणा स्पष्ट कीजिए तथा उसके समर्थन के लिए उनके तर्कों की परीक्षा कीजिए।
Question : मूर प्रत्ययवाद का खण्डन कैसे करते हैं? आलोचनात्मक मूल्यांकन करे।
Question : तत्वमीमांसा के सम्बन्ध में एयर के मत का आलोचनात्मक विवेचन कीजिए।
Question : तर्क बुद्धिवाद एवं अनुभववाद का अधिक्रमण करके कांट इन दोनों के बीच सामंजस्य बैठाता है।
Question : द्वन्द्वात्मक प्रणाली की मुख्य बात यह है कि प्रत्येक विशिष्ट अभिवृत्रि या विश्वास के पक्षपाती दावे का तार्किक आधार पर हास्यास्पद बनाकर चुनौती देता है।
Question : रसेल के वर्णन-सिद्धान्त की व्याख्या कीजिए और पी.एफ. स्ट्रॉसन की आलोचना के विशेष संदर्भ में उसकी परीक्षा करें।
संवृतिशास्त्र (हुस्सर्ल)
Question : कठोर विज्ञान के रूप में दर्शन की हुस्सर्ल की संकल्पना पर चर्चा करें।
Question : सामान्य का न्याय वैशेषिक विचार।
Question : हुस्सर्ल की कोष्ठक प्रणाली की दार्शनिक महत्व को स्पष्ट कीजिए।
Question : एडमंड हुस्सर्ल की घटना-क्रिया-विज्ञान विषयक मूलभूत संकल्पनाओं की व्याख्या कीजिए। यह केवल एक दार्शनिक रीति है या इसे तत्वमीमांसा माना जा सकता है?
अस्तित्वपरकतावाद (कीर्कगार्ड, सार्त्र, हाइडेगर)
Question : सार्त्रे के स्वतंत्रता के संप्रत्यय पर चर्चा कीजिए।
Question : ‘अस्तित्व सार से पहले आता है’।
Question : सार्त्रे की सांवृतिक सत्ता मीमांसा।
क्वाइन एवं स्ट्रॉसन
Question : स्ट्रॉसन के व्यक्ति-सिद्धान्त का कथन कीजिए और उस पर चर्चा कीजिए।
Question : क्वाइन का विश्लेषी-संश्लेषी विभेद पर प्रहार।
Question : प्राग्नुभविक प्रतिज्ञप्ति के भाषाई सिद्धांत की क्वाइन की मीमांसा का विवेचन कीजिए।
Question : व्यक्ति का सिद्धांत।
Question : "अमरता चेतन शरीर के अतिरिक्त और कुछ नहीं है।"
वेदांत संप्रदाय
Question : सगुण तथा निर्गुण ब्रह्म में भेद का विवरण दीजिए और चर्चा कीजिए।
Question : शंकर के मायावाद का परीक्षण कीजिए।
Question : आचार्य रामानुज की तत्वमीमांसा पर चर्चा कीजिए।
Question : माध्व के अनुसार ‘ब्रह्म’ जीव और जगत की प्रकृति।
Question : शंकर की ‘अध्यास’ की संकल्पना को सुष्पष्ट कीजिए।
Question : माधव की ‘मोक्ष’ की संकल्पना।
Question : रामानुज के दर्शन को विशिष्टाद्वैत क्यों कहा जाता है, पूरी तरह से चर्चा कीजिए।
Question : शंकर द्वारा जीव के स्पष्टीकरण का वर्णन कीजिए। क्या पेश किया गया औचित्य प्रतिपादन तर्कसंगत है? स्पष्ट कीजिए।
Question : माया के अद्वैत कल्पना की रामानुज की आलोचना।
Question : ‘जबकि नास्तिक दर्शन ईश्वर के अस्तित्व को पूर्णंतया अस्वीकार कर देते हैं, आस्तिक दर्शन ईश्वर के अस्तित्व को केंद्रीय स्थिति प्रदान करते हुए प्रतीत नहीं होते’ इस टिप्पणी को स्पष्ट कीजिए और इसका मूल्यांकन कीजिए।
Question : रामानुज की युक्तियों के आधार पर शंकर के मोक्ष के विश्लेषण का मूल्यांकन कीजिए।
Question : व्यक्तिगत जीवात्माओं (जीवस) की प्रकृत्ति और वास्तविकता पर शंकर का मत।
Question : शंकर की माया की संकल्पना के विरूद्ध रामानुज द्वारा उठाई गई आपत्तियों की समीक्षा कीजिए।
Question : वेदांत के द्वैततंत्र में पंचभेद सिद्धान्त बताए और उसका परीक्षण कीजिए।
Question : भारतीय विचारधारा के विभिन्न संप्रदायों में पाई जाने वाली कार्यकारणभाव संकल्पना का तुलनात्मक विवरण प्रस्तुत कीजिए।
Question : मोक्ष के स्वरूप विषयक शंकर के मत की व्याख्या कीजिए। उनके मतानुसार कर्म और ज्ञान का मोक्ष से क्या सम्बन्ध है? अपने उत्तर के समर्थन में तर्क दीजिए।
Question : ‘ब्रह्म को जानने वाला ब्रह्म हो जाता है।’ (ब्रह्मविद ब्रह्मैव भवत्ति)।
Question : रामानुज के अनुसार ब्रह्म के स्वरूप की व्याख्या कीजिए तथा जीव एवं ब्रह्म के सम्बन्ध का विवेचन कीजिए।
Question : माध्व वेदान्त का आलोचनात्मक विवरण प्रस्तुत कीजिए।
Question : उपनिषदों के महावाक्य।
Question : भारतीय दर्शन के रूढि़वादी और विपंथितावादी दोनों ही प्रकार के विभिन्न संप्रदायों के आत्मा और उसके मोक्ष विषयक विभिन्न मतों के साम्य और वैषम्य को प्रस्तुत कीजिए।
चार्वाक
Question : चार्वाक के अनुसार आत्मा का स्वरूप।
Question : चार्वाक के अनुसार ज्ञानमीमांसा की चर्चा कीजिए।
Question : द्रव्य की जैन परिभाषा।
Question : शून्यता के बौद्ध अभिप्राय का कथन कीजिए और उस पर चर्चा कीजिए।
Question : न्याय के अनुसार प्रत्यक्ष की प्रकृति और प्रकार।
Question : वैशेषिकों के अनुसार द्रव्यों की प्रकृति एवं प्रकारों का कथन कीजिए और उन पर चर्चा कीजिए।
Question : सांख्य की पुरुष की संकल्पना।
Question : जीव के जैन सिद्धान्त का कथन कीजिए और उस पर चर्चा कीजिए।
Question : निर्वाण की प्रकृति एवं प्रकार।
Question : क्षणिकता के बौद्ध प्रत्यय का कथन कीजिए और उस पर चर्चा कीजिए।
Question : न्याय के अनुसार अनुमानों की प्रकृति एवं प्रकार।
Question : चार्वाक के द्वारा अनुमान का खण्डन स्वयं में अनुमान का एक प्रक्रम है। चर्चा कीजिए।
Question : जैन दर्शन के अनेकांतवाद का प्रतिपादन कीजिए। क्या वास्तविकता की यह सुसंगत थियोरी है? कारण प्रस्तुत कीजिए।
Question : बौद्ध धर्म का क्षणिकवाद।
Question : विमुक्ति का सांख्य सिद्धांत।
Question : चार्वाक के मत का प्रत्यक्ष ज्ञान ही ज्ञान का एकमात्र वैध स्रोत होता है, का कथन कीजिए और मूल्यांकन कीजिए।
Question : अनेकांतवाद एवं सप्रभंगी नय के बीच का सम्बन्ध।
Question : आत्मा की न्याय दृष्टि।
Question : प्रकृति के विकास का सांख्य सिद्धान्त।
Question : नागार्जुन का शून्यवाद का बचाव।
Question : व्याप्ति की प्रकृति के न्याय वैशेषिक सिद्धान्त का मूल्याकंन करें।
Question : अपने पुरूष सिद्धान्त के विषय में सांख्य के ओचित्य स्थापन का मूल्यांकन कीजिए।
Question : प्रत्यक्षपरक त्रुटि का कुमारिल भट्ट का स्पष्टीकरण।
Question : चार्वाक सम्प्रदाय का नीतिशास्त्र।
Question : सप्तभंगीनय।
Question : अनेकांतवाद के पक्ष में जैन तर्क।
Question : कारणता सम्बन्धी न्याय मत।
Question : प्रकृति की सत्ता के लिए सांख्य तर्क।
Question : ख्याति सम्बन्धी पूर्व मीमांसा मत।
Question : एकान्तवाद और अनेकान्तवाद।
Question : न्याय दर्शन के अनुसार अनुमान के स्वरूप एवं संरचना की विवेचना कीजिए तथा परार्थानुमान के विभिन्न सोपानों के महत्व की व्याख्या कीजिए।
Question : पुरूष बहुत्व का सिद्धान्त।
Question : बोधिसत्व।
Question : सांख्य मत के अनुसार प्रकृति के स्वरूप और उसके विकास की व्याख्या कीजिए।
Question : स्वतः प्रामाण्य और परतः प्रामाण्य।
कांटः संश्लेषात्मक प्रागनुभविक
Question : ईश्वर के अस्तित्व के प्रमाणों की कांट की आलोचना को स्पष्ट करे।
हीगेल
Question : हीगल की द्वन्द्वात्मक पद्धति।
मूर, रसेल एवं पूर्ववर्ती विट्गेन्सटीन
तार्किक प्रत्यक्षवाद
जैन दर्शन
Question : जैन दर्शन के पुद्गल का स्वरूप।
बौद्ध दर्शन संप्रदाय
Question : बौद्धा के अनुसार चार आर्य सत्य।
Question : बौद्ध के प्रतीत्यमुत्पाद पर चर्चा करें।
न्याय-वैशेषिक
Question : शब्द प्रमाण की प्रकृति।
Question : न्याय प्रणित असत् कार्यवाद को विस्तार से स्पष्ट कीजिए।
Question : प्रमाणों की न्याय थ्योरी को स्पष्ट कीजिए।
सांख्य
Question : सांख्य का त्रिगुण सिद्धांत स्पष्ट कीजिए।
Question : सांख्य की कार्य-कारण थियोरी पर समालोचनात्मक रूप से चर्चा कीजिए।
सामाजिक एवं राजनैतिक आदर्श
Question : सामाजिक न्याय प्राप्ति का एकमात्र साधन मुक्त बाजार अर्थव्यवस्था है।
Question : कदाचित निषेधात्मक स्वतंत्रता चुनने की स्वतंत्रता को तो सुनिश्चित कर सकती है, परंतु बिना किसी विश्वसनीय भरोसे के कि ऐसी स्वतंत्रता का वास्तविक संपादन होगा।
Question : कुछ उदारवादी राजनीतिक विचारों के अनुसार सामाजिक एवं आर्थिक असमानता केवल इस शर्त पर न्यायोचित है कि उनका लाभ समाज के निम्नतर स्तर के सदस्यों को मिलता है। क्या है विचार उदारवाद के व्यक्ति स्वतंत्रय की सैद्धांतिक हिमायत के साथ संगत है? विवेचन करें।
Question : समता के आदर्श का तब तक कोई निश्चित कलेवर या अंतर्वस्तु निर्धारित नहीं किया जा सकता, जब तक इसे राजनीतिक एवं समाज के किसी व्यापक सिद्धांत के अंतर्गत समाहित न किया जाए।
Question : वैयक्तिक स्वतंत्रता के आदर्श के प्रति समाजवाद एवं उदारवाद दोनों की स्वघोषित प्रतिबद्धता के बावजूद इन विचारधाराओं के बीच यह घोर विवाद का विषय है क्यों? विवेचन कीजिए।
Question : ‘से स्वतंत्रता’ और ‘की स्वतंत्रता’ परस्पर अनन्य हैं।
Question : स्वतंत्रता संसार से मुक्ति के रूप में।
Question : राजनीतिक आदर्श के रूप में समता की संकल्पना।
Question : न्याय से क्या तात्पर्य है? इसकी प्राप्यता की क्या आवश्यक एवं पर्याप्त दशाएं होती हैं? विवेचन करें।
Question : न्याय का अर्थ योग्यातानुसार प्रतिफल प्राप्त करना है, जो व्यक्ति समाज को जितना देता है उसी के अनुरूप प्रतिफल का वह सहभागी है। समाज को अधिक देने वाला व्यक्ति उस व्यक्ति से अधिक प्रतिफल का भागी है जो समाज को उससे कम देता है। किसने समाज को कितना दिया, उसका निर्धारण करने का एकमात्र निष्पक्ष तरीका है कि लोग सामूहिक रूप से युक्त बाजार के माध्यम से इसे निश्चित करें। अतएव मुक्त बाजार न्याय प्राप्ति का एकमात्र तरीका है। क्या आप उपर्युक्त मत से सहमत हैं? अपने उत्तर को प्रतिपादित करें।
Question : कुछ विचारक स्वतंत्रता को दो परस्पर अपरिवर्तनीय अर्थों निषेधात्मक एवं सकारात्मक में विभेदन करते हैं। इनकी व्याख्या एवं मूल्यांकन करें।
Question : स्वतंत्रता पर जे.एस.मिल।
Question : न्याय की अवधारणा को प्रायः वितरणात्मक एवं प्रतिकारी न्याय में विभाजित किया जाता है। इस भेद की व्याख्या कीजिए एवं जिस आधार पर यह भेद किया जाता है उसका आलोचनात्मक विवेचन कीजिए।
Question : स्वतंत्रता।
प्रभुसत्ता
Question : संप्रभुता की अवधारणा की व्याख्या करें। इस संदर्भ में इस कथन की आलोचनात्मक समीक्षा करें की संप्रभुता असीमित एवं तर्कतः अविभाज्य है।
Question : शक्ति ही संप्रभुता का निर्धारक तत्व है-आस्टिन के इस मत का आलोचनात्मक विवेचन प्रस्तुत कीजिए।
Question : बोदिन के निरपेक्ष प्रभुसत्ता के सिद्धांत की व्याख्या कीजिए। प्रजातांत्रिक प्रभुसत्ता की तुलना में राजतंत्रीय को वरीयता देने के लिए उनका क्या तर्क था? इस संदर्भ में विचार कीजिए कि क्या उनकी अविभाज्य प्रभुसत्ता की वकालत संविधानवाद पर उनके विश्वास के साथ संगतिपूर्ण थी।
Question : ‘प्रभुसत्ता’ पर कौटिल्य।
व्यक्ति एवं राज्य
Question : व्यक्ति न केवल एक घटक है, बल्कि वह राज्य के विकास में अंशदान करने वाला एक महत्वपूर्ण घटक है। स्पष्ट कीजिए और परीक्षा कीजिए।
(1994)
Question : राज्य सत्ता के आधिपत्य को स्वीकार करना उस कर्त्तव्य से असंगत है जिसके अनुसार स्वतंत्रता का अनुकरण करना मनुष्य जाति का परम कर्त्तव्य है।
Question : राज्य मूर्त स्वतंत्रता की वास्तविकता है।
Question : राज्य और व्यक्ति की मांगें क्या वास्तव में टकराती हैं? विवेचन करें।
शासन के प्रकार
Question : प्रजातंत्र जो कि प्रत्येक व्यक्ति की धारणा को एक समान मानता है, यह निर्धारित करने में अक्षम है कि क्या करना उचित है।
Question : आर्थिक क्षेत्र में शक्ति के साथ बिना राजनीतिक लोकतंत्र खोखला होता है।
Question : प्रजातंत्र की अवधारणा सारतः विवादित अवधारणा है।
Question : लोकतांत्रिक राज्य में सरकारी कर्मचारियों द्वारा हड़ताल का कोई औचित्य नहीं है।
Question : क्या आप सोचते हैं कि लोकतंत्र शासन का सर्वोत्तम रूप है? क्या लोकतंत्र से परे की कोई गुंजाइश है? इस संदर्भ में योग्यता तंत्र की अवधारणा का विश्लेषण कीजिए।
Question : उदारवादी प्रजातंत्र के आधारभूत सिद्धांतों का व्याख्यात्मक उल्लेख कीजिए। इस संदर्भ में इस विषय पर विचार कीजिए कि न्याय जो कि उदारवादी प्रजातंत्र का एक मूलभूत आदर्श है, को किस हद तक इसके अंतर्गत साकार किया जा सकता है।
Question : उदार लोकतंत्र।
Question : लोकतंत्र सरकार का एक प्रकार ही नहीं बल्कि एक जीवन पद्धति भी है। चर्चा करें।
राजनैतिक विचारधाराएं
Question : समाजवाद से आप क्या समझते हैं, इसका उल्लेख कीजिए। क्या यह आवश्यक है कि समाजवाद को उन मूल्यों एवं आदर्शों के मानकीय पदों से पारिभाषित किया जाए, जिनकी प्राप्ति के लिए समाजवादी प्रयासरत हैं या कि उन वर्णनात्मक पदों से जो समाजवादी व्यवस्था के आर्थिक एवं राजनीतिक संस्थाओं के चारित्रिक लक्षणों का उल्लेख करते हैं? क्या इन दोनों के बीच तनाव का समुचित समाधान किया जा सकता है?
Question : समाजवाद साम्यवाद की सर्वाधिकारी विवक्षाओं से बचता है और उदार लोकतांत्रिक संविधानों के दायरे में कार्य करता है।
Question : समाजवाद एवं मार्क्सवाद के सैद्धांतिक भेदों का उल्लेख कीजिए।
Question : मार्क्सवाद और सर्वोदय के आदर्श के बीच समानताएं और विभिन्नताएं बताइए।
मानववाद
Question : मानवतावाद क्या है? उसके विभिन्न प्रकार क्या हैं? एमएन राय का उग्र मानवतावाद मार्क्सवाद से किस प्रकार भिन्न है, चर्चा करें।
Question : सर्वधर्म समभाव पर महात्मा गांधी के विचार।
Question : धर्मविहीन राजनीति नितांत निंदनीय है जिससे हमेशा बचना चाहिए-महात्मा गांधी।
Question : भारत के संदर्भ में धर्मनिरपेक्षता।
Question : मानववाद की व्याख्या कीजिए तथा उत्कट (उग्र) मानववाद के मूलभूत लक्षणों का विवेचन कीजिए।
Question : समाजवादी मानवतावाद।
अपराध एवं दंड
Question : दंड के फलात्मक एवं प्रतिरोधात्मक सिद्धांतों के बीच परस्पर तनाव का वर्णन कीजिए। इस संदर्भ में उस मत का आलोचनात्मक विवेचन कीजिए, जिसका तर्क है कि चूंकि किसी भी प्रचलित अपराध निरोधक कानूनी व्यवस्था का समुचित औचित्य सिद्ध नहीं किया जा सकता, अतः राज्य सभा द्वारा संचालित दंड व्यवस्था को पूर्णतः समाप्त कर देना चाहिए।
Question : दंड की अवधारणा का विवेचन कीजिए। इस संदर्भ में दंड की आनुपातिकता के सिद्धांत के महत्व एवं निहितार्थ पर विचार कीजिए, जिसके अनुसार दंड की तीव्रता अपराध की गंभीरता के अनुपात में होनी चाहिए।
Question : दंड की प्रतीकारात्मक और निवारणात्मक थियोरियां परस्पर पूरक हैं।
Question : दंड के निवारणात्मक सिद्धांत का कोई औचित्य नहीं है।
Question : दंड का प्रतीकारात्मक सिद्धांत।
Question : दंड का सुधारात्मक सिद्धांत।
ईश्वर की धारणा
Question : ईश्वर की निर्वैयक्तिक अवधारणा एवं प्रकृतिवादी अवधारणा के बीच भेद।
Question : परम्परागत रूप में ईश्वर का एक गुण उसका सर्वशक्तिमान होना माना जाता है। परंतु कुछ आलोचकों के अनुसार सर्वशक्तिमान ईश्वर की अवधारणा विरोधाभासी है। प्रत्युत्तर में कुछ ईश्वरवादियों ने कथित विरोधाभास के समाधान का प्रयास किया है। विरोधाभास को वर्णित कीजिए एवं इसके समाधान के लिए किए गए प्रयासों का विवेचन कीजिए।
Question : यदि ईश्वर सर्वज्ञ है तो मनुष्य स्वतंत्र नहीं है।
Question : ईश्वर की निर्वैयक्तिक अवधारणा।
Question : ईश्वर की अंतरवर्तिता और अनुभवातीतता के क्या अर्थ होते है? क्या ईश्वर वस्तुतः अंतर्वर्ती है या अनुभवातीत हैं?
Question : ईश्वर का प्रकृतिवादी विचार।
Question : ईश्वर की व्यक्तिवादी अवधारणा।
ईश्वर के अस्तित्व के प्रमाण और उसकी मीमांसा
Question : ईश्वर की स्थापना हेतु जगत कारण युक्ति का उल्लेख एवं मूल्यांकन कीजिए। इस युक्ति के दो रूप क्या हैं? आश्रयजनित सत्ता एवं स्वजनित सत्ता में क्या भेद है? स्वजनित सत्ता ईशकेंद्रीय क्यों है? क्या प्रकृति को ही स्वजनित सत्ता के रूप में नहीं माना जा सकता? विचार कीजिए।
Question : ईश्वर तर्क विधान के अधीन नहीं है।
Question : यदि ईश्वर का अस्तित्व केवल किसी के मन के भीतर है तो ऐसे में महत्तम कल्पनीय सत्ता आखिरकार महत्तम कल्पनीय सत्ता नहीं है।
Question : ईश्वर के अस्तित्व के रूप में सत्ता मीमांसीय तर्क किस प्रकार अमान्य है?
Question : क्या ईश्वर के अस्तित्व के लिए प्राप्त हुए साक्ष्यों में से कोई ईश्वर के अस्तित्व को सिद्ध करने में सफल होता है? चर्चा कीजिए। इस संदर्भ में विशेषकर सृष्टिकारण युक्ति पर समालोचनात्मक रूप में विचार कीजिए।
Question : यदि ईश्वर की सत्ता नहीं है तो सब कुछ अनुमत है। दांस्तोवस्की।
Question : ईश्वर की सत्ता स्थापना हेतु प्रयोजन सापेक्ष युक्ति का उल्लेख एवं मूल्यांकन कीजिए। जगत उत्पत्ति के संबंध में इससे क्या निर्दिष्ट है? क्या जगत के रचनाकार की प्राक्कल्पना युक्तियुक्त है?
Question : ईश्वर के अस्तित्व के लिए दिए गए परंपरागत प्रमाणों का विवेचन कीजिए और प्रत्येक पर अपनी आलोचना लिखिए।
Question : ईश्वर के अस्तित्व हेतु प्रत्यय सत्तामूलक युक्ति की व्याख्या कीजिए तथा इस युक्ति में निहित तर्कदोषों की परीक्षा कीजिए।
Question : ईश्वर के होने के लिए सर्व सहमत तर्क।
Question : मान लें कि ईश्वर होने को प्रमाणित करने हेतु जो भी परम्परागत तर्क दिए जाते हैं वे सभी दोषपूर्ण हैं। क्या इससे ईश्वर का न होना सिद्ध होता है? यदि आपका उत्तर नकारात्मक है तो विचार कीजिए कि क्या ईश्वर के न होने का कोई प्रमाण हो सकता है।
Question : ईश्वर के अस्तित्व की सृष्टि कारण युक्ति बताइए और उसकी समीक्षा कीजिए।
अशुभ की समस्या
Question : ईश्वर अधिक शुभ को लाने के लिए अशुभ को जन्मने देता है, आदम का गिरना एक मंगलमय पाप था।
Question : बुराई की समस्या अपूर्ण संसार के ईश्वर की अच्छाई के साथ समाधान करने की समस्या है।
Question : अशुभ की समस्या का वर्णन कीजिए। कुछ ईश्वरवादी इस समस्या के समाधान के लिए संकल्प स्वातंत्र्य तर्क का उपयोग करते हैं, कैसे? विवेचन करें।
Question : क्या हम अशुभ के साथ ईश्वर की हितकारिता एवं सर्वशक्तिमतता का सामंजस्य स्थापित कर सकते हैं? चर्चा कीजिए।
आत्मा
Question : कर्म विधान के सिद्धांत की व्याख्या कीजिए। क्या यह सिद्धांत संकल्प स्वातंत्रय की अवधारणा के साथ संगतपूर्ण है? विचार कीजिए।
Question : आत्मा की अमरता की अवधारणा के अभाव में धर्म निरर्थक हैं।
Question : क्या आत्मा के अमरत्व का ईसाई सिद्धांत गीता के आत्मन के सिद्धांत के साथ संगत है। चर्चा कीजिए।
Question : धर्म एवं मुक्ति में संबंध।
Question : क्या किसी व्यक्ति के परिमित कार्य (कर्म) के परिणाम अमर आत्मन् की प्रकृति का निर्धारण करते हैं?
Question : अद्वैत वेदांत का जीवन मुक्त का सिद्धांत।
Question : आत्मा की अमरता से क्या तात्पर्य है? इस संबंध में भगवद् गीता के तर्कों का विश्लेषण कीजिए।
Question : अद्वैत वेदांत के अनुसार मोक्ष के स्वरूप का विवेचन कीजिए।
Question : जीवन मुक्ति।
Question : भारतीय धार्मिक मतों में पुनर्जन्म के सिद्धांत की महत्ता को समझाइए। इस सिद्धांत के पक्ष में दिए गए मुख्य तर्कों का परीक्षण कीजिए।
Question : अनासक्त कर्म की राह।
धार्मिक अनुभव
Question : कुछ ईश्वरवादी ईश्वरपरक विश्वास के संदर्भ में प्रमाण एवं तर्क की सार्थकता पर प्रश्नचिन्ह लगाते हैं। उनके विचार में ईश्वर पर विश्वास करने वाला अपने विश्वास के लिए प्रमाण के अभाव में अविवेकी नहीं हो जाता क्योंकि धार्मिक जीवन के लिए प्रमाण न तो आवश्यक है और न ही पर्याप्त। क्या आप इस प्रकार के मत से सहमत होंगे? विवेचन करें।
Question : धार्मिक होने का अर्थ है- किसी संस्थापित धर्म का सदस्य होना।
Question : चमत्कार (धार्मिक) असम्भव है।
ईश्वर रहित धर्म
Question : क्या निरीश्वरवाद भी एक धर्म हो सकता है? चर्चा कीजिए।
Question : ईश्वरविहीन धर्म।
Question : धर्म को प्रायः अलौकिक सत्ता में विश्वास पर आधारित माना जाता है। परंतु कुछ विचारक (उदाहरणतः अगस्ट काम्ट, जान ड्यूवी, हक्सले, एरिक फ्राम) अलौकिक को नकारते हैं एवं धर्म के प्रकृतिवादी पुनर्निर्माण का प्रयास करते हैं। उनके प्रयासों का आलोचनात्मक विवेचन कीजिए।
धर्म एवं नैतिकता
Question : धार्मिक एवं धर्मनिरपेक्ष नैतिकता में भेद कीजिए। इस संदर्भ में उस मत का विवेचन कीजिए जिसके अनुसार धर्मनिरपेक्ष नैतिकता धार्मिक नैतिकता से श्रेष्ठ है क्योंकि धार्मिक नैतिकता सारतः नियम आधारित होती है जिसके अंतर्गत फल की कोई निर्णायक भूमिका नहीं होती। इसके विपरीत धर्मनिरपेक्ष नैतिकता अपने उत्कृष्ट रूप में सर्वश्रेष्ठ फल प्राप्ति का उद्देश्य रखती है।
Question : ईश्वर वस्तुओं का आदि कारण है।
Question : धर्म निरपेक्ष नैतिकता इस प्रश्न का संतोषजनक उत्तर नहीं दे सकती है कि मैं सदैव नैतिक क्यूं रहूं?
Question : क्या ईश्वर ओर धर्म नैतिकता की आवश्यकत पूर्वमान्यताएं हैं? आप कांट के अनुसार अपने उत्तर को सोदाहरण स्पष्ट कीजिए। इसी संदर्भ में निरीश्वरवादी के लिए नैतिकता के संभव कारणों पर समालोचनात्मक विचार कीजिए।
Question : धर्म से आप क्या समझते हैं? क्या आपके अनुसार ईश्वर के अस्तित्व में विश्वास धर्म का आवश्यक अंग है? विवेचना करें।
Question : धर्म और नैतिकता।
Question : धर्म, धर्मशास्त्र एवं धर्म दर्शन।
Question : धर्म में प्रार्थना का स्थान।
तर्कबुद्धि श्रुति एवं आस्था
Question : दैवी अनुभूति एवं रहस्यात्मक अनुभूति में भेद।
Question : ईश्वरीय उद्घाटन की अवधारणा की व्याख्या कीजिए। क्या ईश्वरीय उद्घाटन को संपुष्टि की आवश्यकता है? विचार कीजिए एवं साथ ही ईश्वरीय उद्घाटन एवं श्रुति के बीच भेद-अभेद की व्याख्या कीजिए।
Question : धार्मिक विश्वास तत्वतः अमिथ्यीकृत अभिग्रहों का संघटन है जो व्यक्ति की अन्य सभी मान्यताओं का संचालन करता है आरएम हेयर।
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