Question : स्ट्रॉसन के व्यक्ति-सिद्धान्त का कथन कीजिए और उस पर चर्चा कीजिए।
(2007)
Answer : साधारण भाषा दार्शनिक स्ट्रासन Individuals में यह मानते हैं कि वर्णनात्मक तत्वमीमांसा सम्भव है। वर्णनात्मक तत्वमीमांसा जगत के सम्बन्ध में हमारे विचारों की संरचना का वर्णन करता है। इस वर्णनात्मक तत्वमीमांसा के विवेचन के क्रम में ही पुरुष सिद्धान्त (व्यक्ति सिद्धान्त)की अवधारणा उभरकर सामने आती हैै। इस सिद्धान्त का सम्बन्ध पुरुष के अभिज्ञान से है। इसकी चर्चा Individuals के तीसरे अध्याय में करते हैं। यहां स्ट्रॉसन व्यक्ति के सम्बन्ध ....
Question : क्वाइन का विश्लेषी-संश्लेषी विभेद पर प्रहार।
(2002)
Answer : क्वाइन अनुभववादी हैं, क्योंकि वे ज्ञान के स्रोत के रूप में अनुभव को स्वीकार करते हैं, साथ ही वे भाषा और अर्थ की व्याख्या भी अनुभव के आधार पर करते हैं। परंतु क्वाइन का अनुभववाद पुराने अनुभववादियों (लॉक, बर्कले, "यूम आदि मनोवैज्ञानिक अनुभववादी) तथा तार्किक अनुभववादियों से कई बातों में मौलिक रूप से भिन्न है। क्वाइन के अनुसार अनुभववाद के दो मताग्रह हैः
(i)संश्लेषणात्मक एवं विश्लेषणात्मक कथनों में अंतर
(ii)वस्तु संबंधी कथनों को इंद्रिय-संवेदनाओं के कथनों ....
Question : प्राग्नुभविक प्रतिज्ञप्ति के भाषाई सिद्धांत की क्वाइन की मीमांसा का विवेचन कीजिए।
(2001)
Answer : क्वाइन भी एक अनुभववादी है, परंतु क्वाइन का अनुभववाद का तार्किक भाववाद (जो एक प्रकार का अनुभववाद ही है) से विरोध है। तार्किक भाववाद के अनुसार हमारे संपूर्ण ज्ञान का एकमात्र स्रोत इंद्रियानुभव है। अनुभवाश्रित ज्ञान सापेक्षिक एवं संभाव्य होता है, किंतु अनिवार्य नहीं होता। तार्किक भाववादी विश्लेषणात्मक एवं संश्लेषणात्मक कथनों में अंतर करते हैं। विश्लेषणात्मक वाक्य पुनरूक्ति होती है, जबकि संश्लेषणात्मक कथन तथ्यात्मक, अर्थात् विश्लेषणात्मक कथन अनिवार्य रूप से सत्य होते हैं, परंतु संश्लेषणात्मक ....
Question : व्यक्ति का सिद्धांत।
(1998)
Answer : स्ट्रॉसन के अनुसार व्यक्ति का संप्रत्यय एक मौलिक संप्रत्यय है। यहां मौलिक संप्रत्यय कहने का आशय है कि-
(i)किसी अन्य संप्रत्ययों के आधार पर इनकी संरचना, निर्माण या व्याख्या नहीं की जा सकती।
(ii)इसे मूल इकाई के रूप में स्वीकार कर ही हम मानवीय आचरण और गतिविधियों की सार्वजनिक व्याख्या कर सकते हैं।
स्ट्रॉसन के अनुसार व्यक्ति का संप्रत्यय ऐसा संप्रत्यय है, जिसपर दो स्थितियों-
(iii)चेतन स्थितियों (P-PREDICATE) और
(ii)अचेतन स्थितियों (M-PREDICATE) दो का आरोपण एक साथ किया जाता है। ....
Question : "अमरता चेतन शरीर के अतिरिक्त और कुछ नहीं है।"
(1998)
Answer : आत्मा के सम्बन्ध में चार्वाक दर्शन का विचार अन्यान्य भारतीय दार्शनिक सम्प्रदायों से भिन्न है। वस्तुतः चार्वाक दर्शन की तत्त्वमीमांसा उसकी ज्ञान मीमांसा की उपसिद्धि है। उल्लेखनीय है कि चार्वाक दर्शन में यथार्थ ज्ञान के साधन के रूप में एकमात्र प्रत्यक्ष प्रमाण की वैधता स्वीकार की गयी है। इस प्रत्यक्षवादी ज्ञान सिद्वांत के आधार पर चार्वाक दार्शनिक केवल उन्हीं तत्वों की सत्ता स्वीकार करते हैं, जिनका प्रत्यक्ष होता है। जिन तत्वों का किसी रूप में ....