Question : लाइबनिज का चिद्णुवाद (चिढ़णु विज्ञान)।
(2007)
Answer : लाइबनिज के चिद्णुवाद में चेतन और जड़तत्व के भेद को स्वीकार नहीं किया गया है। वह भौतिक परमाणुओं की अवधारणा का खण्डन करता है। यदि परमाणुओं को भौतिक माना जाए जो विस्तार से युक्त होने के कारण वे विश्लेष्य (विभाज्य) होंगे। अतः तार्किक दृष्टि से भौतिक परमाणुओं को अविभाज्य नहीं कहा जा सकता है। इसके फलस्वरूप विभाज्य परमाणु अविनाशी नहीं कहा जा सकता है। इसके फलस्वरूप विभाज्य परमाणु अविनाशी द्रव्य नहीं हो सकता। अतः जड़तत्व ....
Question : स्पीनोजा के सार सिद्धान्त को स्पष्ट करें।
(2006)
Answer : स्पीनोजा के दर्शन की शुरूआत निरपेक्ष द्रव्य से ही होती है। स्पीनोजा के अनुसार ईश्वर एक निरपेक्ष द्रव्य है। स्पीनोजा के अनुसार द्रव्य वह है जो अपने में रहता है और अपने द्वारा ही समझा जाता है अर्थात इसके ज्ञान के लिए किसी अन्य वस्तु के ज्ञान की आवश्यकता नहीं होती है। द्रव्य की इस परिभाषा से स्पष्ट है कि द्रव्य अपने अस्तित्व और ज्ञान के लिये किसी दुसरी वस्तु पर आश्रित नहीं होता है। ....
Question : देकार्त के द्वैतवाद पर चर्चा कीजिए।
(2006)
Answer : देकार्त के दर्शन की सबसे बड़ी समस्या उसका द्वैतवाद है। देकार्त ने स्वतंत्र सत्ता से युक्त होने को द्रव्य की प्रमुख विशेषता माना है। उसके अनुसार- "द्रव्य वह है जो स्वतंत्र अस्तित्व से युक्त हो एवं जिसका चिन्तन और अस्तित्व किसी अन्य वस्तु की अवधारणा एवं चिन्तन पर आश्रित न हो। देकार्त ने द्रव्य का निम्न भेद माना है।"
Question : मन और शरीर दो अन्योन्यकारी पदार्थों के रूप में।
(2005)
Answer : आत्मा और शरीर के सम्बन्ध की व्याख्या आधुनिक यूरोपीय दर्शन की एक जटिल समस्या है। यह समस्या देकार्त के द्वैतवाद से प्रारंभ होती है। उसके अनुसार आत्मा एवं शरीर दोनों एक दूसरे से पृथक और स्वतंत्र हैं। आत्मा चैतन्य से युक्त है। इसके विपरीत शरीर एक भौतिक तत्व है जिसमें केवल विस्तार पाया जाता है। देकार्त आत्मा को चेतन द्रव्य और शरीर को जड़ द्रव्य मानता हैं। जो परस्पर विरोधी गुणों से युक्त है। आत्मा ....
Question : स्पीनोजा का परम पदार्थ का संप्रत्यय।
(2005)
Answer : स्पीनोजा अपने दर्शन का प्रारम्भ निरपेक्ष द्रव्य से करता है। उसके अनुसार ईश्वर एक निरपेक्ष द्रव्य है। स्पीनोजा के अनुसार फ्द्रव्य वह है जो अपने में रहता है और अपने द्वारा समझा जा सकता है।"अर्थात् इसके ज्ञान के लिए किसी अन्य वस्तु के ज्ञान की आवश्यकता नहीं होती है। द्रव्य की इस परिभाषा से स्पष्ट है कि द्रव्य अपने अस्तित्व और ज्ञान के लिए किसी दूसरी वस्तु पर आश्रित नहीं होता है। उल्लेखनीय है कि ....
Question : स्पीनोजा के अनुसार द्रव्य की प्रकृति और विशेषणों से उसके संबंध की व्याख्या करें।
(2002)
Answer : स्पीनोजा के दर्शन की शुरूआत निरपेक्ष द्रव्य से ही होती है। स्पीनोजा के अनुसार ईश्वर एक निरपेक्ष द्रव्य है। स्पीनोजा के अनुसार द्रव्य वह है जो अपने में रहता है और अपने द्वारा ही समझा जाता है अर्थात इसके ज्ञान के लिए किसी अन्य वस्तु के ज्ञान की आवश्यकता नहीं होती है।
द्रव्य की इस परिभाषा से स्पष्ट है कि द्रव्य अपने अस्तित्व और ज्ञान के लिये किसी दुसरी वस्तु पर आश्रित नहीं होता है। उल्लेखनीय ....
Question : स्पीनोजा के सत्य ईश्वर, प्रकृति के अभिज्ञान के सिद्धान्त का कथन करे।
(2002)
Answer : स्पीनोजा के दर्शन का निरपेक्ष द्रव्य ही ईश्वर है। स्पीनोजा के अनुसार द्रव्य वह है जो अपने में रहता है और अपने द्वारा ही समझा जाता है। स्पीनोजा का द्रव्य स्वतंत्र, निरपेक्ष, असीम, पूर्ण, एक, आप्तकाय तथा अन्तर्यामी है। इससे स्पष्ट है कि निरपेक्ष द्रव्य ही ईश्वर है।
स्पीनोजा के अनुसार ईश्वर और सृष्टि में अभेद (तादारम्य) सम्बन्ध है। जगत द्रव्य से अनन्य है। ईश्वर या द्रव्य सभी भेदों से रहित है। उल्लेखनीय है कि कुछ ....
Question : देकार्त की दार्शनिक (दर्शन) प्रणाली।
(2001)
Answer : देकार्त की दार्शनिक पद्धति गणित की ज्यामितीय विधि से प्रभावित है। इसकी पुष्टि इस कथन से होती है, "मेरी यह इच्छा है कि कोई भी व्यक्ति किसी सिद्धान्त पर तब तक विश्वास न करे जब तक वह उसको किसी अकाट्य और स्पष्ट तर्क के आधार पर स्वयं सत्य न समझता हो", उसकी इस पद्धति का प्रयोग ज्ञान के किसी भी क्षेत्र में किया जा सकता है। देकार्त की दार्शनिक पद्धति के चार प्रमुख नियम हैं, ....
Question : अंतःक्रियावाद।
(1998)
Answer : आत्मा और शरीर में सम्बन्ध स्थापित करने के लिए देकार्त ने अन्तःक्रियावाद या क्रिया-प्रतिक्रियावाद का प्रतिपादन क्रिया है। अन्तक्रियावाद के अनुसार आत्मा और शरीर एक-दूसरे से प्रतिक्रिया करते हैं। एक तत्व की क्रिया से दूसरे तत्व में प्रतिक्रिया होती है। इस प्रकार वे एक-दूसरे को प्रभावित करते हैं। यहां यह प्रश्न उठता है कि चेतन और अचेतन तत्व एक-दूसरे को क्यों और कैसे प्रभावित करते हैं? यदि वे परस्पर क्रिया-प्रतिक्रिया करते हैं तो उन्हे एक-दूसरे ....
Question : एक सर्व सम्पूर्ण, सर्वव्याप्त सत्ता के प्रत्यय का अर्थ यह भी है कि उसका अस्तित्व है।
(1997)
Answer : एक सर्व सम्पूर्ण सर्वव्याप्त सत्ता के प्रत्यय का अर्थ यह भी है कि उसका अस्तित्व है। यह ईश्वर की सत्ता सिद्ध करने के लिये देकार्त द्वारा दी गई प्रत्यय सत्तामूलक युक्ति है। इस युक्ति का प्रतिपादन सर्वप्रथम ईसाई सन्त एन्सेल्म ने किया था। देकार्त ने इस युक्ति को विकसित और परिमार्जित रूप दिया। देकार्त ने ईश्वर की अवधारणा एक निरपेक्ष द्रव्य के रूप में की है। देकार्त की प्रत्यय सत्ता मूलक युक्ति के अनुसार हमारे ....
Question : शरीर एवं मन के संबंध में परम्परागत यूरोपीय दर्शनशास्त्र के विभिन्न सिद्धान्तों का उल्लेख करें और स्पष्ट करते हुए उनकी व्याख्या करें।
(1997)
Answer : आत्मा और शरीर के सम्बन्ध की समस्या देकार्त के द्वैतवाद से प्रारम्भ होती है। देकार्त के अनुसार आत्मा (मन) और शरीर दोनों एक दूसरे से पृथक और स्वतंत्र हैं। आत्मा चैतन्ययुक्त है। इसके विपरीत शरीर एक भौतिक तत्व है। जिसमें केवल विस्तार पाया जाता है। देकार्त आत्मा को चेतन द्रव्य और शरीर को जड़ द्रव्य मानता है- जो परस्पर विरोधी गुणों से युक्त है। आत्मा केवल चिन्तनशील है। इसके विपरीत शरीर केवल विस्तारण है और ....
Question : मैं सोचता हूं, इसलिए मैं हूं।
(1997)
Answer : देकार्त का बहुआयामी और व्यापक सन्देह उसकी दार्शनिक पद्धति की मौलिक विशेषता है, किन्तु समस्त संशयों ओैर अनिश्चितताओं के बीच एक बात पूर्ण रूप से संशय-रहित और निश्चित है- "मैं सोचता हूं।" ‘सोचना’ का अर्थ है विचार करना। किन्तु बिना किसी विचारक के विचार करना संभव नहीं है। इससे सिद्ध होता है कि संशय करना अथवा सोचना एक विचारक के अस्तित्व की मांग करता है। देकार्त के अनुसार शरीर पर तो संशय किया जा सकता ....