Question : प्लेटो के प्रत्यय ज्ञान सिद्धांत।
(2007)
Answer : प्लेटो को बुद्धिवादी ज्ञान मीमांसा का प्रवर्तक माना जा सकता है। उसकी ज्ञान मीमांसा में ज्ञान के स्वरूप पर दो दृष्टियों से विचार किया गया है। निषेधात्मक दृष्टि से प्लेटो ने यह स्पष्ट करने का प्रयास किया है कि ज्ञान क्या नहीं है? ज्ञान के स्वरूप एवं विषय को तबतक नहीं जाना जा सकता है, जबतक कि अज्ञान अर्थात् जो ज्ञान नहीं है, का ज्ञान हो जाए। अतः ज्ञान को जानने से पहले, जो ज्ञान ....
Question : अरस्तु का पदार्थ सिद्धांत।
(2006)
Answer : अरस्तु का पदार्थ सिद्धांत प्लेटो के दर्शन का ही एक विकसित रूप है। अरस्तु के अनुसार सामान्य से विशेषों के उद्भव और विकास का प्रतिपादन करना दर्शन का प्रमुख व्यापार है। उसके दर्शन का प्रारंभ ही प्लेटो के प्रत्ययवाद की आलोचना से होता है। अरस्तु ने भी सामान्य को एक निरपेक्ष सत्ता माना है। किंतु उसका सामान्य विशेषे से परे नहीं, बल्कि उसमें निहित है। किसी वस्तु का सार तत्व वस्तु के बाहर नहीं होता ....
Question : ज्ञान एवं मत में भेद।
(2005)
Answer : प्लेटो के अनुसार जिस प्रकार प्रत्यक्ष को ज्ञान नहीं कहा जा सकता है, उसी प्रकार मत को भी ज्ञान नहीं कहा जा सकता है। उल्लखेनीय है कि सत्य पर अथवा विश्वास अटकलबाजी से भिन्न होता है। यह निराधार अंधविश्वासपूर्ण तथा सांयोगिक होता है। जैसे कोई व्यक्ति रविवार को इस आधार पर लाटरी खरीदता है कि यह उसके लिए सौभाग्यशाली है। संयोगवश उसकी लाटरी निकल आती है। यद्यपि यह अटकलबाजी सत्य सिद्ध हो सकती है, तथापि ....
Question : ‘सामान्य विशेषों में अनुगत होता है’, इस वक्तव्य के आलोक में अरस्तु के प्रत्यय सिद्धांत का वर्णन करें।
(2003)
Answer : अरस्तु अपने दर्शन को पूववर्ती दार्शनिकों के विचारों का पूर्ण समन्वय मानते हैं। उनके अनुसार दर्शन का लक्ष्य पूर्ण सत्ता का ज्ञान है। अरस्तु के अनुसार दर्शन का सत् परम तत्व या परम द्रव्य है। यह नित्य और कुटस्थ है। स्वयं अपरिणामी होते हुए भी यह सामान्य परिणाम या परिवर्तन का कारण है। इसी को आधार बनाकर अरस्तु अपने प्रत्यय सिद्धांत का प्रतिपादन करते हैं। प्रत्यय के संबंध में अपने विचार प्रकट करने के पहले ....
Question : प्लेटो और अरस्तु के सत् के सिद्धांत के मध्य अंतर स्पष्ट करें।
(2002)
Answer : यद्यपि अरस्तु का दर्शन पलेटो के दर्शन का एक विकसित रूप है, तथापि इन दोनों महान दार्शनिकों में कुछ मौलिक अंतर है। अरस्तु की रूचि प्राकृतिक तथ्यों के निरीक्षण में थी। अतः उनका दर्शन आनुभविक पक्ष की उपेक्षा नहीं करता है। अरस्तु ने प्लेटो के दर्शन में निहित दोषों को दूर करके एक परिष्कृत और असंदिग्ध दार्शनिक चिंतन प्रस्तुत करने का प्रयास किया है। किंतु अरस्तु की दार्शनिक मान्यताओं का भी आधार प्लेटो का दर्शन ....
Question : प्लेटो का प्रत्यय/विज्ञान सिद्धांत।
(2000)
Answer : प्रत्यय सिद्धांत प्लेटो के दर्शन का केंद्रीय एवं महत्वपूर्ण सिद्धांत है। इसका संबंध ज्ञान-मीमांसा एवं तत्व-मीमांसा दोनों से है। प्लेटो के अनुसार हमारा सारा ज्ञान प्रत्ययों से ही होता है। प्रत्यय ही हमारे ज्ञान के वास्तविक विषय है। इन प्रत्ययों की वास्तविक सत्ता है। प्लेटो के अनुसार वास्तविक ज्ञान वस्तुनिष्ठ, निश्चित, सार्वभौम एवं अपरिवर्तनशील होता है। ऐसी स्थिति में परिवर्तनशील प्रत्यक्ष जगत (इंद्रिय जगत) की वस्तुयें ऐसे ज्ञान का विषय नहीं हो सकतीं। ये मात्र ....
Question : अरस्तु का पदार्थ सिद्धांत के लिए तर्क।
(1999)
Answer : अरस्तु का पदार्थ सिद्धांत प्लेटो के दर्शन का ही एक विकसित रूप है। अरस्तु के अनुसार सामान्य से विशेषों के उद्भव और विकास का प्रतिपादन करना दर्शन का प्रमुख व्यापार है। उसके दर्शन का प्रारंभ ही प्लेटो के प्रत्ययवाद की आलोचना से होता है। अरस्तु ने भी सामान्य को एक निरपेक्ष सत्ता माना है। किंतु उसका सामान्य विशेषे से परे नहीं, बल्कि उसमें निहित है। किसी वस्तु का सार तत्व वस्तु के बाहर नहीं होता ....
Question : प्लेटो के प्रत्यय सिद्धांत का आलोचनात्मक विश्लेषण करें।
(1998)
Answer : प्रत्यय सिद्धांत प्लेटो के दर्शन का केंद्रीय एवं महत्वपूर्ण सिद्धांत है। इसका संबंध ज्ञान मीमांसा एवं तत्व मीमांसा दोनों से है। प्लेटो के अनुसार हमारा सारा ज्ञान प्रत्ययों से ही होता है। प्रत्यय ही हमारे ज्ञान के वास्तविक विषय हैं। इन प्रत्ययों की वास्तविक सत्ता है। प्लेटो के अनुसार वास्तविक ज्ञान वस्तुनिष्ठ, निश्चित, सार्वभौम एवं अपरिवर्तनशील होता है। ऐसी स्थिति में परिवर्तनशील प्रत्यक्ष जगत (इंद्रिय जगत) की वस्तुयें ऐसे ज्ञान का विषय नहीं हो सकतीं। ....