Question : संश्लिष्ट प्राग्नुभविक निर्णय किस प्रकार संभव है?
(2007)
Answer : कांट के Critique of pure Reasonका मुख्य उद्देश्य संश्लेषणात्मक प्राग्नुभविक निर्णयों की व्याख्या करना है। कांट यथार्थ ज्ञान की कसौटी के रूप में अनिवार्यता और सार्वभौमता के साथ-साथ नवीनता को भी स्वीकार करते हैं। ज्ञान के सम्बन्ध में कांट अपने पूर्ववर्ती विचारधाराओं, अनुभववाद और बुद्धिवाद की मान्यताओं का खण्डन करते हैं। वे उन्हें एकांगी मानते हैं। बुद्धिवादी ज्ञान में अनिवार्यता एव सार्वभौमता को स्वीकार करते हैं। परन्तु वहां नवीनता नहीं होती, क्योंकि ....
Question : ईश्वर के अस्तित्व के प्रमाणों की कांट की आलोचना को स्पष्ट करे।
(2006)
Answer : ईश्वर मीमांसा के अन्तर्गत ईश्वर के संप्रत्यय को एक वास्तविक सत्ता के रूप में सिद्ध करने का प्रयास किया जाता है। इसके अन्तर्गत प्रत्यय सत्ता मूलक तर्क, सृष्टि वैज्ञानिक तर्क एवं भौतिक धार्मिक तर्क महत्वपूर्ण हैं। कांट ने इन सभी तर्कों का अपनी ईश्वर मीमांसा के अन्तर्गत खण्डन किया है। कांट के अनुसार हम केवल उन्हीं विषयों को जान सकते हैं, जिसकी संवेदना हमें मिलती हैं। हमें केवल प्राकृतिक जगत की संवेदना मिलती है, जो ....