Question : सार्त्रे के स्वतंत्रता के संप्रत्यय पर चर्चा कीजिए।
(2004)
Answer : सार्त्र के अस्तित्ववादी विचारधारा में स्वतंत्रता की बड़ी मार्मिक एवं स्पष्ट व्याख्या हुई है। सार्त्रे के अनुसार मानव अस्तित्व की अनुभूति का अर्थ है- मानव की मौलिक स्वतंत्रता की अनुभूति। मानव को अस्तित्व की प्रथम अनुभूति में ही अपने एकाकीपन की अनुभूति होती है, वह अपने को एक स्थिति में वस्तुओं तथा अन्य से घिरा पाता है तथा साथ-साथ यह भी मान लेता है कि ईश्वर के समान कोई सहारा नहीं है, जिस पर वह ....
Question : ‘अस्तित्व सार से पहले आता है’।
(2003)
Answer : सार्त्र की मूल अस्तित्ववादी उक्ति है कि अस्तित्व भाव से पहले है। इसे अस्तित्ववादी विचार की मूलोक्ति के रूप में प्रस्तुत किया जाता है। सार्त्रे ने इसकी व्याख्या अपने ढंग से की है। उनकी अस्त्विवादी विचारधारा इसी व्याख्या में स्पष्ट होता है। सार्त्रे के अनुसार हमारी प्रचलित धारणा यही है कि भाव का स्थान अस्तित्व से पहले आता है। उदाहरणतः हम यह जानकर चलते हैं कि यह घर या मेज का भाव उनके होने के ....
Question : सार्त्रे की सांवृतिक सत्ता मीमांसा।
(2000)
Answer : सार्त्रे के अनुसार अस्तित्ववान व्यक्ति वस्तुतः चेतन मनुष्य है। चेतना एक विशेष प्रकार के निषेधों से संरचित होती है। इस निषेध भाव से तीन प्रकार के विचार स्पष्ट होते हैं- कमी या अभाव की चेतना, निषेधता तथा शून्यता की अनुभूति। फेनोमेनोलाजी के प्रभाव में सार्जे की चेतना के विषेयापेक्षी रूप को स्वीकारते हैं। चेतना का यह स्वरूप ही है कि वह विषयोन्मुखी होती है, उसका विषय की ओर अनिवार्य संकेत रहता है। इसका अर्थ है ....