Question : संप्रभुता की अवधारणा की व्याख्या करें। इस संदर्भ में इस कथन की आलोचनात्मक समीक्षा करें की संप्रभुता असीमित एवं तर्कतः अविभाज्य है।
(2006)
Answer : जनसंख्या, निश्चित भू-क्षेत्र, सरकार व संप्रभुता राज्य के इन चार तत्वों में से संप्रभुता ही वह तत्व है जो राज्य को अन्य सभी संगठनों से अलग करता है, साथ ही राज्य के आदेशों को सभी संगठनों पर बाध्यकारी बनाता है। इसी संप्रभुता से राज्य विधिक संस्था का रूप पाता है और समाज से राज्य के रूप में प्रतिष्ठित होता है।
संप्रभुता के संबंध में मुख्यतः दो सिद्धांत प्रतिपादित किये जाते हैं:
प्रथम का मानना है ....
Question : शक्ति ही संप्रभुता का निर्धारक तत्व है-आस्टिन के इस मत का आलोचनात्मक विवेचन प्रस्तुत कीजिए।
(1999)
Answer : प्रभुसत्ता के कानूनी सिद्धांत का पूर्ण विकास जान आस्टिन के चिंतन में देखने को मिलता है। आस्टिन के चिंतन में तत्कालीन इंगलैंड की परिस्थितियों की छाप स्पष्ट दिखाई देती है। शुरू-शुरू के उपयोगितावादी विचारक यह चाहते थे कि इंगलैंड की सार्वजनिक विधि में जहां-जहां अन्याय और असंगतियां पाई जाती हैं, उनके निराकरण के लिए नए कानून बनने चाहिए। परंतु रूढि़वादियों के तीव्र विरोध के कारण उपयोगितावादियों के प्रयत्न सफल नहीं हो पाए। उनकी मान्यता यह ....
Question : बोदिन के निरपेक्ष प्रभुसत्ता के सिद्धांत की व्याख्या कीजिए। प्रजातांत्रिक प्रभुसत्ता की तुलना में राजतंत्रीय को वरीयता देने के लिए उनका क्या तर्क था? इस संदर्भ में विचार कीजिए कि क्या उनकी अविभाज्य प्रभुसत्ता की वकालत संविधानवाद पर उनके विश्वास के साथ संगतिपूर्ण थी।
(1998)
Answer : संप्रभुता का संबंध राज्य से है। राज्य के चार आवश्यक तत्व माने जाते हैं, जैसे प्रदेश, जनसंख्या, शासन और संप्रभुता। इनमें से संप्रभुता का स्थान सर्वोच्च है। इसके बिना राज्य की कल्पना नहीं हो सकती। संप्रभुता के कारण ही राज्य आंतरिक दृष्टि से सर्वोच्च माना जाता है एवं बाहरी दृष्टि से स्वतंत्र होता है। इतना ही नहीं, इसके द्वारा ही राज्य को कानून बनाने तथा उसके पालन कराने की शक्ति प्राप्त होती है। इसी से ....
Question : ‘प्रभुसत्ता’ पर कौटिल्य।
(1997)
Answer : कौटिल्य का संप्रभुता का सिद्धांत विधि के स्वरूप के साथ जुड़ा हुआ है। उन्होंने तर्कसंगत विधि को स्वीकार किया है। कौटिल्य ने धर्मनिरपेक्ष विधि को मान्यता देकर संप्रभुता के सिद्धांत को ऐसा आधार दिया, जो उस समय के लिए असाधारण कार्य कहा जा सकता है। कौटिल्य ने स्वामी (राजा) को गुण संपन्न, कर्तव्यनिष्ठ तथा अच्छे प्रशासन के लिए दर्शन, दया, वार्ता और दंड नीति का अध्ययन और ज्ञान आवश्यक माना। उनमें से विशेष रूप से ....