Question : कुछ ईश्वरवादी ईश्वरपरक विश्वास के संदर्भ में प्रमाण एवं तर्क की सार्थकता पर प्रश्नचिन्ह लगाते हैं। उनके विचार में ईश्वर पर विश्वास करने वाला अपने विश्वास के लिए प्रमाण के अभाव में अविवेकी नहीं हो जाता क्योंकि धार्मिक जीवन के लिए प्रमाण न तो आवश्यक है और न ही पर्याप्त। क्या आप इस प्रकार के मत से सहमत होंगे? विवेचन करें।
(2004)
Answer : ईश्वरमीमांसा के अंतर्गत ईश्वर के संप्रत्यय को एक वास्तविक सत्ता के रूप में सिद्ध करने का प्रयास किया जाता है। ईश्वर का संप्रत्यय प्रज्ञा का आदर्श है। ईश्वर की अवधारणा आत्मा और सृष्टि के बीच में समन्वय स्थापित करने के लिए भी अपेक्षित है। कांट के अनुसार प्रज्ञा आत्मा एवं सृष्टि के संप्रत्ययों में समन्वय स्थापित करके उनके नियन्ता एवं आदर्श के रूप में ईश्वर की संकल्पना कर लेती है। ईश्वरमीमांसा एक काल्पनिक संप्रत्यय को ....
Question : धार्मिक होने का अर्थ है- किसी संस्थापित धर्म का सदस्य होना।
(2001)
Answer : धार्मिक होने का अर्थ है- धार्मिक अनुभव का होना। अतिप्राकृतिक या दैवी सत्ता से संबंधित अलौकिकता इस अनुभव का आधारभूत तत्व है, जो इसे अन्य सभी प्रकार के अनुभवों से पृथक करता है। धार्मिक अनुभव के अलावे और किसी अनुभव में इस अलौकिकता का तत्व विद्यमान नहीं रहता। इस प्रकार अधिकतर दार्शनिकों के अनुसार भक्तों या धर्मपरायण व्यक्तियों को किसी अलौकिक अथवा दैवी सत्ता का जो विशेष प्रकार का अनुभव प्राप्त होता है, उसे धार्मिक ....
Question : चमत्कार (धार्मिक) असम्भव है।
(2001)
Answer : बहुत से धर्मपरायण व्यक्ति तथा दार्शनिक दैवी सत्ताओं से संबंधित धार्मिक ज्ञान की संभावना के विरूद्ध प्रस्तुत सभी तर्कों की उपेक्षा करते हुए इस ज्ञान की वास्तविकता में दृढ़तापूर्वक विश्वास करते हैं। उनका मत है कि धार्मिक ज्ञान हमें अनुभव या तर्कबुद्धि द्वारा नहीं, अपितु अन्य उपायों के माध्यम से प्राप्त होता है। उन उपायों में दैवी प्रकाशना या श्रुति का विशेष महत्व है। दैवी प्रकाशना के एक महत्वपूर्ण साधन के रूप में चमत्कार की ....