Question : समाजवाद से आप क्या समझते हैं, इसका उल्लेख कीजिए। क्या यह आवश्यक है कि समाजवाद को उन मूल्यों एवं आदर्शों के मानकीय पदों से पारिभाषित किया जाए, जिनकी प्राप्ति के लिए समाजवादी प्रयासरत हैं या कि उन वर्णनात्मक पदों से जो समाजवादी व्यवस्था के आर्थिक एवं राजनीतिक संस्थाओं के चारित्रिक लक्षणों का उल्लेख करते हैं? क्या इन दोनों के बीच तनाव का समुचित समाधान किया जा सकता है?
(2007)
Answer : समाजवाद की इतनी परिभाषाएं हैं और शाखाएं हैं कि उसकी कोई सही-सही या सर्वसम्मत परिभाषा देना कठिन है। समाजवाद के समर्थक इतने गुटों में बंटे हुए हैं और उनके उद्देश्यों और विधियों में कहीं-कहीं इतना स्पष्ट अंतर है कि समाजवाद के किसी सर्वमान्य सिद्धांत का निरूपण करना संभव नहीं। वैसे कई सारे समाजवादी सिद्धांत अपनी-अपनी जगह स्पष्ट हैं, परंतु यहां आकर वे समाजवादी नहीं रहते, बल्कि किसी को श्रमाधिपत्यवादी कहा जाता है, किसी को श्रेणी ....
Question : समाजवाद साम्यवाद की सर्वाधिकारी विवक्षाओं से बचता है और उदार लोकतांत्रिक संविधानों के दायरे में कार्य करता है।
(2005)
Answer : व्यवहार के स्तर पर समाजवाद किस तरीके से लाया जाए, इस प्रश्न को लेकर समाजवाद की दो मुख्य धाराएं पहचानी जा सकती हैं। काल मार्क्स और उसके अनुयायियों ने समाजवाद की स्थापना के लिए क्रांति के तरीके का समर्थन किया, अतः मार्क्सवादी समाजवादी को हम क्रांतिकारी समाजवाद या मार्क्सवाद के रूप में पहचानते हैं। जब मार्क्स ने उन्नीसवीं शताब्दी के मध्य में अपने विचार प्रस्तुत किए थे, तब यूरोप में लोकतंत्र के सिद्धांत को व्यापक ....
Question : समाजवाद एवं मार्क्सवाद के सैद्धांतिक भेदों का उल्लेख कीजिए।
(2000)
Answer : समाजवाद की कोई निश्चित परिभाषा देना थोड़ा कठिन है। देश काल में परिवर्तन से उसका स्वरूप भी परिवर्तित होता रहता है। सामान्यतः इन स्वरूपों के मान के रूप में कहा जा सकता है कि समाजवाद वह व्यवस्था है जिसमें समानता को सर्वोच्च मूल्य के रूप में माना गया है, जिनके अंतर्गत निर्धन वर्ग के लिए न्याय की प्राप्ति की जा सके। यह व्यक्तिवाद की विरोधी अवधारणा है। इतिहास देखने से यह स्पष्ट है कि यह ....
Question : मार्क्सवाद और सर्वोदय के आदर्श के बीच समानताएं और विभिन्नताएं बताइए।
(1997)
Answer : मार्क्सवाद राजनीति का वह सिद्धांत है, जिसमें मानव समाज की समस्याओं को इतिहास के माध्यम से समझने का प्रयत्न किया जाता है और इतिहास को परस्पर विरोधी शक्तियों और वर्गों के संघर्ष की प्रक्रिया के रूप में देखा जाता है। यह संघर्ष उत्पादन प्रणाली की त्रुटियों के कारण पैदा होता है, जिसमें समाज प्रभुत्वशाली और पराधीन वर्गों में बंट जाता है। इन वर्गों का संघर्ष तब तक चलता रहता है, जब पूर्ण उत्पादन प्रणाली विकसित ....