Question : कर्म विधान के सिद्धांत की व्याख्या कीजिए। क्या यह सिद्धांत संकल्प स्वातंत्रय की अवधारणा के साथ संगतपूर्ण है? विचार कीजिए।
(2007)
Answer : कर्म सिद्धांत अथवा कर्मवाद के समर्थकों के अनुसार मनुष्य अपने शुभ या अशुभ कर्मों के कारण ही इस संसार में सुख अथवा दुख भोगता है। और वह स्वयं ही अपने कर्मो द्वारा अपने भाग्य का भी निर्माण करता है। इस कर्म सिद्धांत की कुछ आधारभूत मान्यताएं हैं, जो इस प्रकार हैं:
Question : आत्मा की अमरता की अवधारणा के अभाव में धर्म निरर्थक हैं।
(2007)
Answer : आत्मा की अमरता में विश्वास के लिए शरीर और मन से भिन्न एक स्वतंत्र द्रव्य के रूप में आत्मा के अस्तित्व को स्वीकार करना अनिवार्य है। विश्व के अनेक धर्मों में आत्मा के अस्तित्व और उसकी अमरता से संबंधित विश्वास को किसी न किसी रूप में स्वीकार किया गया है। हिंदु धर्म, जैन धर्म, इस्लाम, ईसाई धर्म, यहूदी धर्म, सभी शरीर से भिन्न आत्मा को सत्ता में विश्वास करते हैं और उसे अनश्वर मानते हैं। ....
Question : क्या आत्मा के अमरत्व का ईसाई सिद्धांत गीता के आत्मन के सिद्धांत के साथ संगत है। चर्चा कीजिए।
(2005)
Answer : ईश्वर विषयक विश्वास के अतिरिक्त आत्मा की सत्ता और अमरता से संबंधित विश्वास भी बहुत महत्पूर्ण धार्मिक विश्वास है। विश्व के अनेक धर्मों में आत्मा के अस्तित्व और अमरता से संबंधित इस धार्मिक विश्वास को किसी न किसी रूप में स्वीकार किया गया है। उदाहरणार्थ- हिंदु धर्म, जैन धर्म, इस्लाम, ईसाई धर्म, यहूदी धर्म आदि शरीर तथा मन से भिन्न आत्मा की अमरता में विश्वास करते हैं और उसे अनश्वर भी मानते हैं। इन धर्मों ....
Question : धर्म एवं मुक्ति में संबंध।
(2004)
Answer : धर्म मानव जीवन के सभी पक्षों को प्रभावित करने वाली वह व्यापक अभिवृत्ति है, जो सर्वाधिक मूल्यवान, पवित्र, सर्वज्ञ तथा शक्तिशाली समझे जाने वाले आदर्श और अलौकिक उपास्य विषय के प्रति अखंड आस्था एवं प्रतिबद्धता के फलस्वरूप उत्पन्न होती है। दूसरी तरफ मोक्ष अथवा मुक्ति मानव का अंतिम लक्ष्य या परम उद्देश्य है, जिसे प्रत्येक धार्मिक व्यक्ति पाना चाहता है। लगभग सभी धर्मों में मुक्ति का आदर्श स्वीकार किया गया है। चाहे वह धर्म ईश्वरवादी ....
Question : क्या किसी व्यक्ति के परिमित कार्य (कर्म) के परिणाम अमर आत्मन् की प्रकृति का निर्धारण करते हैं?
(2003)
Answer : आत्मा की अमरता को इसके प्रचलित अर्थों के अलावे अन्य दूसरे तरीके से भी परिभाषित किया गया है। कुछ विचारकों का मत है कि मनुष्य अपनी मृत्यु के उपरांत भी अपने क्रांतिकारी विचारों, महान सिद्धांतों तथा कर्मों के कारण समाज में सदा अमर रहता है। वह अपनी पुस्तकों अथवा कलाकृतियों के माध्यम से समाज को जो नवीन एवं अमूल्य विचार देता है, उनके कारण समाज उसे सदा याद रखता है। इस प्रकार कर्मों के द्वारा ....
Question : अद्वैत वेदांत का जीवन मुक्त का सिद्धांत।
(2002)
Answer : मुक्ति अर्थात् मोक्ष के स्वरूप के विषय में अद्वैत वेदांत का मत भारतीय दर्शन के अन्य सभी संप्रदायों से कुछ भिन्न है। इस दर्शन के प्रणेता शंकर भी मोक्ष अथवा मुक्ति को ही मानव जीवन का अंतिम ध्येय मानते हैं। उनकी मोक्ष की अवधारणा कुछ भिन्न प्रकार की है, जो उनके अद्वैतवाद पर आधारित है। वे समस्त भेदों से रहित निर्गुण तथा निराकार ब्रह्म को ही एकमात्र अंतिम सत्ता के रूप में स्वीकार करते हैं। ....
Question : आत्मा की अमरता से क्या तात्पर्य है? इस संबंध में भगवद् गीता के तर्कों का विश्लेषण कीजिए।
(2002)
Answer : ईश्वर विषयक विश्वास की तरह आत्मा की सत्ता और अमरता से संबंधित विश्वास भी बहुत महत्वपूर्ण धार्मिक विश्वास है। विश्व के अनेक धर्मों में आत्मा के अस्तित्व और उसकी अमरता से संबंधित धार्मिक विश्वास को किसी न किसी रूप में स्वीकार किया गया है। उदाहरणार्थ, हिंदु धर्म, जैन धर्म, इस्लाम धर्म, ईसाई धर्म, यहूदी धर्म आदि शरीर तथा मन से भिन्न अत्मा की सत्ता में विश्वास करते हैं और उसे अनश्वर मानते हैं। इन धर्मों ....
Question : अद्वैत वेदांत के अनुसार मोक्ष के स्वरूप का विवेचन कीजिए।
(2002)
Answer : अन्य भारतीय दार्शनिक सम्प्रदायों की भांति शंकराचार्य भी मोक्ष अथवा मुक्ति को ही मानव जीवन का अंतिम ध्येय मानते हैं, किंतु उन्होंने मोक्ष की व्याख्या कुछ भिन्न प्रकार से की है, जो मूलतः उनके अद्वैतवाद पर आधारित है। वे समस्त भेदों से रहित निर्गुण तथा निराकार ब्रह्म को ही एकमात्र अंतिम सत्ता के रूप में स्वीकार करते हैं। आत्मा या जीव वस्तुतः ब्रह्म ही है। अविद्या के कारण जीव देह, इन्द्रिय और अंतःकरण से तादात्म्य ....
Question : जीवन मुक्ति।
(1999)
Answer : हिंदु धर्म तथा संस्कृति में मोक्ष की या मुक्ति की अवधारणा का अत्यधिक महत्व है। भारतीय विचारकों ने मानव जीवन के लिए जिन चार पुरूषार्थों को अनिवार्य माना है, उनमें मोक्ष को ही सर्वोच्च स्थान दिया गया है। भौतिकवादी दर्शन को छोड़कर अन्य सभी भारतीय दर्शन मुक्ति (मोक्ष) को ही मनुष्य के जीवन का अंतिम लक्ष्य मानते हैं, परंतु मोक्ष के स्वरूप को लेकर इन विभिन्न दार्शनिक सम्प्रदायों में एकमत नहीं है। परंतु कुछ मान्यताओं ....
Question : भारतीय धार्मिक मतों में पुनर्जन्म के सिद्धांत की महत्ता को समझाइए। इस सिद्धांत के पक्ष में दिए गए मुख्य तर्कों का परीक्षण कीजिए।
(1998)
Answer : शाब्दिक दृष्टि से पुनर्जन्म का अर्थ है- फिर से जन्म लेना। परंतु भारतीय विचारक जब पुनर्जन्म की बात करते हैं तो इससे उनका तात्पर्य होता है किसी व्यक्ति का इस संसार में बार-बार जन्म ग्रहण करना। इस प्रकार पुनर्जन्म के सिद्धांत के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति इस जगत में बार-बार जन्म लेता है और उसके लिए जन्म-मरण का यह चक्र तब तक निरंतर चलता रहता है जब तक उसे मोक्ष प्राप्त हो नहीं जाता। भारतीय दार्शनिकों ....
Question : अनासक्त कर्म की राह।
(1997)
Answer : कर्म मनुष्य की वह शारीरिक अथवा मानसिक क्रिया है, जो बाह्य या आंतरिक जगत में कोई परिवर्तन उत्पन्न करती है और जिसके फलस्वरूप स्वयं उसके लिए अथवा दूसरों के लिए कुछ दृश्य या अदृश्य परिणाम अनिवार्यतः उत्पन्न होते हैं। मनुष्य की यह क्रिया ऐच्छिक भी हो सकती है और अनैच्छिक भी। अतः मानवीय कर्मों को भी सामान्यतः अनैच्छिक कर्म तथा ऐच्छिक कर्म इन दो मुख्य वर्गों में विभाजित किया जाता है। अनैच्छिक कर्म वे हैं ....