Question : धार्मिक एवं धर्मनिरपेक्ष नैतिकता में भेद कीजिए। इस संदर्भ में उस मत का विवेचन कीजिए जिसके अनुसार धर्मनिरपेक्ष नैतिकता धार्मिक नैतिकता से श्रेष्ठ है क्योंकि धार्मिक नैतिकता सारतः नियम आधारित होती है जिसके अंतर्गत फल की कोई निर्णायक भूमिका नहीं होती। इसके विपरीत धर्मनिरपेक्ष नैतिकता अपने उत्कृष्ट रूप में सर्वश्रेष्ठ फल प्राप्ति का उद्देश्य रखती है।
(2006)
Answer : नैतिकता के संबंध में दो प्रचलित धारणाएं हैं- धार्मिक नैतिकता और धर्मनिरपेक्ष नैतिकता। अधिकांश ईश्वरवादी दार्शनिकों का विचार है कि नैतिकता एक मात्र मूल आधार धर्म है, जिसके अभाव में हम उसके अस्तित्व और उसकी सार्थकता की कल्पना भी नहीं कर सकते। दूसरे शब्दों, में धर्म के कारण यदि कोई नैतिक मूल्यों, आदर्शों तथा नियमों को स्वीकार करता है तो इसे धर्म निरपेक्ष नैतिकता कहते हैं। दूसरी तरफ जब कोई व्यक्ति अपने व्यावहारिक जीवन में ....
Question : ईश्वर वस्तुओं का आदि कारण है।
(2005)
Answer : कई धर्म दार्शनिकों ने ईश्वर के अस्तित्व की सिद्धि के लिए यह तर्क प्रस्तुत किया है कि ईश्वर इस संपूर्ण जगत का आदि कारण है। यह तर्क मुख्यतः संत थामस एक्वाइनस और डेकार्ट ने तथा भारतीय दर्शन में नैयायिकों ने दिया है। इस तर्क के अनुसार विश्व की प्रत्येक वस्तु कारण कार्य नियम के अंतर्गत बंधी है, जिसमें पहली घटना दूसरी को, दूसरी घटना तीसरी को और तीसरी चौथी को जन्म देती है। उदाहरण के ....
Question : धर्म निरपेक्ष नैतिकता इस प्रश्न का संतोषजनक उत्तर नहीं दे सकती है कि मैं सदैव नैतिक क्यूं रहूं?
(2004)
Answer : ईश्वरवादी धर्मों के समर्थक नैतिकता को धर्म पर पूर्णतः आश्रित मानते हैं। अधिकतर ईश्वरवादी दार्शनिकों का विचार है कि नैतिकता का एकमात्र मूलाधार धर्म है, जिसके अभाव में नैतिकता के अस्तित्व की कल्पना भी नहीं की जा सकती। धर्म के कारण ही समस्त नैतिक मूल्यों, आदर्शों तथा नियमों को स्वीकार किया जाता है। यदि कोई व्यक्ति धर्मनिरपेक्ष है तो उसके लिए नैतिक मूल्यों, आदर्शों एवं नियमों का कोई महत्व नहीं हो सकता। धर्म निरपेक्ष व्यक्ति ....
Question : क्या ईश्वर ओर धर्म नैतिकता की आवश्यकत पूर्वमान्यताएं हैं? आप कांट के अनुसार अपने उत्तर को सोदाहरण स्पष्ट कीजिए। इसी संदर्भ में निरीश्वरवादी के लिए नैतिकता के संभव कारणों पर समालोचनात्मक विचार कीजिए।
(2003)
Answer : धर्म एवं नैतिकता के संबंध का विश्लेषण पाश्चात्य दार्शनिकों द्वारा की गई है। भारतीय दर्शन में इस संदर्भ में विस्तृत विवेचन प्राप्त नहीं होता। भारतीय धर्मशास्त्रें में धर्म शब्द का प्रयोग इसके प्रचलित सामान्य अर्थ से भिन्न और बहुत व्यापक अर्थ में किया गया है। वेदों में धर्म को विश्व की व्यवस्था अथवा उसके मूल नियम के अर्थ में ग्रहण किया गया है। उपनिषदों में धर्म को सत्य और कर्तव्यों जोड़कर उसे अनिवार्यतः नैतिकता के ....
Question : धर्म से आप क्या समझते हैं? क्या आपके अनुसार ईश्वर के अस्तित्व में विश्वास धर्म का आवश्यक अंग है? विवेचना करें।
(2001)
Answer : साधारण व्यक्ति धर्म शब्द को कुछ विशेष बाह्य वस्तुओं, भवनों, वस्त्रें, पुस्तकों, व्यक्तियों तथा प्रार्थना या पूजा पाठ संबंधी कर्मकांड से ही जोड़ता है। परंतु धर्म को पारिभाषित करना कठिन है। धर्म की वही परिभाषा दार्शनिक दृष्टि से संतोषजनक तथा युक्तिसंगत मानी जा सकती है, जिसमें विश्व के सभी धर्मों की सामान्य विशेषताएं या उनके मूल तत्व सम्मिलित हों, ताकि धर्म को साहित्य, कला, विज्ञान, दर्शन आदि से पृथक किया जा सके। धर्म को इस ....
Question : धर्म और नैतिकता।
(1999)
Answer : धर्म और स्वकर्तव्य पालन के अर्थ में ग्रहण किया जाए तो धर्म और नैतिकता के संबंध के विषय में यह दृष्टिकोण उचित ही होगा, परंतु यह भारतीय संदर्भ में ही समीचीन है। परंतु सामान्य प्रचलित अर्थ में धर्म का अर्थ स्वकर्तव्य पालन से भिन्न है। धर्म के प्रचलित अर्थ के अनुसार ईश्वरवादी धर्मों के समर्थक व्यक्तित्व संपन्न ईश्वर के अस्तित्व में विश्वास करते हैं। यही विश्वास पाश्चात्य दार्शनिकों द्वारा किए गए धर्म और नैतिकता के ....
Question : धर्म, धर्मशास्त्र एवं धर्म दर्शन।
(1999)
Answer : धर्म हम सबके लिए एक ऐसा प्रचलित शब्द है, जिसका हम अपने दैनिक जीवन में प्रायः प्रयेाग करते हैं। धर्म शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा के Religari नामक शब्द से हुई है जिसका अर्थ है बांधना। इस दृष्टि से धर्म वह है जो मनुष्य तथा ईश्वर में संबंध स्थापित करता है और मनुष्य को परस्पर बांधना या संगठित करता हैं। धर्म की कोई सर्वसम्मत परिभाषा देना कठिन है। इसके तीन पक्ष है-सैद्धांतिक पक्ष, भावात्मक पक्ष ....
Question : धर्म में प्रार्थना का स्थान।
(1998)
Answer : विश्व के सभी धर्मों में चाहे वे अविकसित हो या विकसित, ईश्वरवादी हो या निरीश्वरवादी पूजा, उपासना अथवा प्रार्थना किसी न किसी रूप में अवश्य पाई जाती है। वैदिक धर्म के समान ही यहूदी धर्म, ईसाई धर्म, इस्लाम आदि ईश्वरवादी धर्मों में भी मुख्यतः इसी प्रकार की प्रार्थनाएं पाई जाती हैं। परंतु यहां स्पष्ट कर देना आवश्यक है कि प्रार्थना केवल ईश्वरवादी धर्मों तक ही सीमित नहीं है। जैन धर्म, बौद्ध धर्म, आदि निरीश्वरवादी धर्मों ....