​गुप्त काल में भूमि-अनुदान और राजस्व-संग्रह प्रणाली

गुप्त काल में भूमि-अनुदान और राजस्व-संग्रह की व्यवस्था में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन हुए। यह काल मौर्यकालीन अत्यधिक केंद्रीकृत प्रणाली से हटकर अपेक्षाकृत विकेन्द्रीकृत ढाँचे की ओर अग्रसर हुआ, जिसमें भूमि-अनुदानों का बढ़ता महत्व और मध्यस्थों की भूमिका स्पष्ट दिखाई देती है।

भूमि-अनुदानों के प्रकार

  • ब्राह्मदेय: ब्राह्मणों के समूह को प्रदत्त भूमि, प्रायः कर-मुक्त।
  • अग्रहार: ब्राह्मणों को प्रदत्त कर-मुक्त भूमि अथवा गाँव। कभी धार्मिक और शैक्षिक प्रयोजनों हेतु, तो कभी व्यक्तिगत उपयोग के लिए।
  • देवदान: ब्राह्मणवादी और गैर-ब्राह्मणवादी दोनों धार्मिक संस्थाओं, जैसे मंदिर और मठों को दान की गई भूमि।
  • अप्रद धर्म: ऐसे अनुदान जिनमें प्राप्तकर्ता भूमि से आय का उपयोग कर सकता था, परंतु भूमि को ....
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