कृषि संक्रमण – फसल विविधीकरण, कृषि-जलवायु क्षेत्रीयकरण, प्राकृतिक कृषि
भारतीय कृषि एक महत्वपूर्ण रूपांतरण के दौर से गुजर रही है—एकल फसल पद्धति और रासायनिक निर्भरता से आगे बढ़ते हुए अब वह जल-संरक्षण, जलवायु-अनुकूलन और किसान आय-वृद्धि पर आधारित विविधतापूर्ण तथा टिकाऊ कृषि प्रणाली की ओर अग्रसर है। यह परिवर्तन दीर्घकालिक खाद्य सुरक्षा और भू-जल जीवन्तता के लिए अनिवार्य है।
विविधीकरण और क्षेत्रीयकरण
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संकल्पना |
व्याख्या एवं तंत्र |
भौगोलिक आँकड़े/संबंध |
नीति एवं व्यवहार |
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फसल विविधीकरण |
जल-गहन फसलों (जैसे धान, गन्ना) से कम जल-उपयोग और उच्च मूल्य वाली फसलों (जैसे दलहन, तिलहन) की ओर बदलाव |
उत्तर-पश्चिमी राज्यों (पंजाब, हरियाणा) में प्रोत्साहित, जहाँ भूजल का गंभीर क्षय |
न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) का ध्यान दलहन/तिलहन पर; बाजरा प्रोत्साहन |
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कृषि-जलवायु क्षेत्रीयकरण (Agri-Climatic Zoning) |
जलवायु, .... |
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- 21 औद्योगिक कॉरीडोर – DMIC, ईस्ट कोस्ट कॉरीडोर और गति शक्ति
- 22 लॉजिस्टिक्स और मल्टी-मोडल अवसंरचना
- 23 तटीय और ब्लू इकोनॉमी
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- 25 पर्यटन और तीर्थ सर्किट
- 26 पारिस्थितिकीय संवेदनशील क्षेत्र एवं भूदृश्य-स्तरीय संरक्षण
- 27 मरुस्थलीकरण एवं भूमि निम्नीकरण
- 28 आर्द्रभूमि, रामसर स्थल एवं अंतर्देशीय जलीय रूपांतरण
- 29 शहरी ऊष्मा द्वीप और नगरीय सूक्ष्म जलवायु: जलवायु अनुकूलन योजना
- 30 वायु प्रदूषण का भूगोल: सिंधु-गंगा का मैदान, NCAP, GRAP और वाहन उत्सर्जन हॉटस्पॉट
- 31 मानसून परिवर्तनशीलता एवं ENSO-IOD प्रतिरूप
- 32 जेट स्ट्रीम और पश्चिमी विक्षोभ: बदलती प्रकृति और जलवायु प्रभाव
- 33 जलवायु परिवर्तन के कारण मानसून व्यवहार में परिवर्तन
- 34 हिमनद निवर्तन, नदी प्रवाह में परिवर्तन तथा इसके प्रभाव
- 35 समुद्र स्तर वृद्धि, तटीय अपरदन एवं तटरेखा मानचित्रण

