समुद्र स्तर वृद्धि, तटीय अपरदन एवं तटरेखा मानचित्रण
समुद्री पारितंत्र मानव सभ्यता के विकास, व्यापार, जलवायु नियमन और खाद्य सुरक्षा का आधार रहे हैं। परंतु 21वीं सदी में इन तटीय इलाकों के सामने एक अभूतपूर्व चुनौती उभरकर आई है; समुद्र स्तर में तीव्र वृद्धि, तटीय अपरदन में तेजी, और इनके कारण तटरेखा (Coastline) के स्वरूप में गहन परिवर्तन। जलवायु परिवर्तन के कारण ये प्रक्रियाएँ अब पृथक घटनाएँ नहीं रहीं, बल्कि परस्पर जुड़ी हुई भौगोलिक–जलवायवीय गतिशीलताएँ बन चुकी हैं जो मानव-जीवन, अर्थव्यवस्था, पारिस्थितिकी और अवसंरचना को गहराई से प्रभावित कर रही हैं।
- भारत की 11,098 किमी लंबी तटरेखा (पहले 7,516 किमी मानी जाती थी) पर 240 मिलियन जनसंख्या निवास करती ....
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- 12 नदी बेसिन विवाद: कावेरी, कृष्णा, महादयी और नीतिगत मध्यस्थता तंत्र
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- 17 मृदा का क्षरण, अपरदन एवं संरक्षण तकनीकें
- 18 जैव विविधता हॉटस्पॉट एवं बायोस्फीयर रिज़र्व
- 19 सतत वन प्रबंधन
- 20 खनिज संसाधन: वितरण एवं प्रमुख उत्पादक क्षेत्र
- 21 औद्योगिक कॉरीडोर – DMIC, ईस्ट कोस्ट कॉरीडोर और गति शक्ति
- 22 लॉजिस्टिक्स और मल्टी-मोडल अवसंरचना
- 23 तटीय और ब्लू इकोनॉमी
- 24 बंदरगाह-आधारित विकास
- 25 कृषि संक्रमण – फसल विविधीकरण, कृषि-जलवायु क्षेत्रीयकरण, प्राकृतिक कृषि
- 26 पर्यटन और तीर्थ सर्किट
- 27 पारिस्थितिकीय संवेदनशील क्षेत्र एवं भूदृश्य-स्तरीय संरक्षण
- 28 मरुस्थलीकरण एवं भूमि निम्नीकरण
- 29 आर्द्रभूमि, रामसर स्थल एवं अंतर्देशीय जलीय रूपांतरण
- 30 शहरी ऊष्मा द्वीप और नगरीय सूक्ष्म जलवायु: जलवायु अनुकूलन योजना
- 31 वायु प्रदूषण का भूगोल: सिंधु-गंगा का मैदान, NCAP, GRAP और वाहन उत्सर्जन हॉटस्पॉट
- 32 मानसून परिवर्तनशीलता एवं ENSO-IOD प्रतिरूप
- 33 जेट स्ट्रीम और पश्चिमी विक्षोभ: बदलती प्रकृति और जलवायु प्रभाव
- 34 जलवायु परिवर्तन के कारण मानसून व्यवहार में परिवर्तन
- 35 हिमनद निवर्तन, नदी प्रवाह में परिवर्तन तथा इसके प्रभाव

