पारिस्थितिकीय संवेदनशील क्षेत्र एवं भूदृश्य-स्तरीय संरक्षण
पारिस्थितिकीय संवेदनशील क्षेत्र (ESZ) संरक्षित क्षेत्रों के चारों ओर 'आघात अवशोषक' के रूप में कार्य करते हैं। दूसरी ओर, भूदृश्य-स्तरीय संरक्षण, संरक्षण को प्रशासनिक सीमाओं से परे ले जाने वाला एक समग्र दृष्टिकोण है।
- ये दोनों अवधारणाएँ भारत में विकास और पर्यावरण के बीच संतुलन साधने तथा मानव-वन्यजीव संघर्ष को कम करने के लिए महत्त्वपूर्ण हैं। यह दृष्टिकोण पारिस्थितिक अखंडता, जलवायु लचीलापन और सतत आजीविका सुनिश्चित करने के लिए अनिवार्य है।
पारिस्थितिकीय संवेदनशील क्षेत्र क्या है?
- पारिस्थितिकीय संवेदनशील क्षेत्र या इको-सेंसिटिव जोन (ESZs) संरक्षित क्षेत्रों जैसे राष्ट्रीय उद्यान, बाघ अभयारण्य, वन्यजीव अभयारण्य या जीवमंडल आरक्षित क्षेत्रों के चारों ओर स्थित बफ़र ....
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- 16 भारत में प्रमुख मृदाएं
- 17 मृदा का क्षरण, अपरदन एवं संरक्षण तकनीकें
- 18 जैव विविधता हॉटस्पॉट एवं बायोस्फीयर रिज़र्व
- 19 सतत वन प्रबंधन
- 20 खनिज संसाधन: वितरण एवं प्रमुख उत्पादक क्षेत्र
- 21 औद्योगिक कॉरीडोर – DMIC, ईस्ट कोस्ट कॉरीडोर और गति शक्ति
- 22 लॉजिस्टिक्स और मल्टी-मोडल अवसंरचना
- 23 तटीय और ब्लू इकोनॉमी
- 24 बंदरगाह-आधारित विकास
- 25 कृषि संक्रमण – फसल विविधीकरण, कृषि-जलवायु क्षेत्रीयकरण, प्राकृतिक कृषि
- 26 पर्यटन और तीर्थ सर्किट
- 27 मरुस्थलीकरण एवं भूमि निम्नीकरण
- 28 आर्द्रभूमि, रामसर स्थल एवं अंतर्देशीय जलीय रूपांतरण
- 29 शहरी ऊष्मा द्वीप और नगरीय सूक्ष्म जलवायु: जलवायु अनुकूलन योजना
- 30 वायु प्रदूषण का भूगोल: सिंधु-गंगा का मैदान, NCAP, GRAP और वाहन उत्सर्जन हॉटस्पॉट
- 31 मानसून परिवर्तनशीलता एवं ENSO-IOD प्रतिरूप
- 32 जेट स्ट्रीम और पश्चिमी विक्षोभ: बदलती प्रकृति और जलवायु प्रभाव
- 33 जलवायु परिवर्तन के कारण मानसून व्यवहार में परिवर्तन
- 34 हिमनद निवर्तन, नदी प्रवाह में परिवर्तन तथा इसके प्रभाव
- 35 समुद्र स्तर वृद्धि, तटीय अपरदन एवं तटरेखा मानचित्रण

