गुप्त एवं गुप्तोत्तर काल में कृषि समृद्धि और भूमि अनुदान

गुप्त और गुप्तोत्तर काल (चौथी से आठवीं शताब्दी ई.) भारत के कृषि इतिहास का एक निर्णायक मोड़ था। यह वह काल था जब भारत में कृषि उत्पादन में अत्यधिक वृद्धि, लौह–तकनीक और सिंचाई के प्रसार तथा भूमि–अनुदान प्रणाली के उदय के कारण ग्रामीण जीवन और भूमि–संबंधों में गहरे परिवर्तन आए। इस काल ने राज्य–नियंत्रित भूमि व्यवस्था से विकेंद्रित जमींदारी सत्ता की ओर संक्रमण की नींव रखी, जो आगे चलकर भारतीय सामंतवाद का प्रारूप बना।

गुप्त काल में कृषि समृद्धि

कृषि विस्तार

  • गंगा के मैदानों और मध्य भारत में वनों की बड़े पैमाने पर कटाई करके नई कृषि योग्य भूमि ....


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