ब्रिटिश कालीन सामाजिक सुधार

ब्रिटिश शासन के दौर में भारत में हुए सामाजिक सुधार ऐसे कानूनी प्रयास थे, जिनका उद्देश्य समाज में व्याप्त अमानवीय प्रथाओं, जैसे सती, बाल विवाह और विधवाओं पर सामाजिक बंधन को समाप्त करना था। इन सुधारों की प्रेरणा भारतीय समाज-सुधारकों (जैसे राजा राममोहन राय, ईश्वरचंद्र विद्यासागर) और ब्रिटिश शासन की प्रशासनिक नीतियों दोनों से मिली। यह वह दौर था, जब पश्चिमी उदारवादी विचार, भारतीय पुनर्जागरण की चेतना और औपनिवेशिक शासन की सीमाएँ तीनों एक-दूसरे से टकरा और मिलकर भारत के सामाजिक आधुनिकीकरण की नींव रख रहे थे।

प्रारंभिक ब्रिटिश काल

  • सती प्रथा का उन्मूलन (विनियम XVII, 1829): गवर्नर जनरल लॉर्ड ....

क्या आप और अधिक पढ़ना चाहते हैं?
तो सदस्यता ग्रहण करें
इस अंक की सभी सामग्रियों को विस्तार से पढ़ने के लिए खरीदें |

पूर्व सदस्य? लॉग इन करें


वार्षिक सदस्यता लें
सिविल सर्विसेज़ क्रॉनिकल के वार्षिक सदस्य पत्रिका की मासिक सामग्री के साथ-साथ क्रॉनिकल पत्रिका आर्काइव्स पढ़ सकते हैं |
पाठक क्रॉनिकल पत्रिका आर्काइव्स के रूप में सिविल सर्विसेज़ क्रॉनिकल मासिक अंक के विगत 6 माह से पूर्व की सभी सामग्रियों का विषयवार अध्ययन कर सकते हैं |

संबंधित सामग्री

प्रारंभिक विशेष