प्राचीन समाज में दासत्व, अस्पृश्यता और व्यवसायगत स्तरीकरण

दासत्व, अस्पृश्यता और व्यवसायगत स्तरीकरण प्राचीन भारतीय समाज की परिभाषित विशेषताएँ थीं।

  • ये प्रारम्भिक वर्गीय विभाजनों से विकसित होकर एक कठोर, धार्मिक रूप से अनुमोदित वर्ण–जाति व्यवस्था में परिणत हुए।
  • इनका अध्ययन यह दर्शाता है कि किस प्रकार आर्थिक आवश्यकता, धार्मिक शुद्धता और सामाजिक पदानुक्रम को संस्थागत रूप देकर उत्पीड़न और असमानता को स्थायी बनाया गया।

सामाजिक पदानुक्रम और बहिष्करण का विकास

सामाजिक संस्था

वैदिक काल (1500–600 ई.पू.)

उत्तरवैदिक/शास्त्रीय काल (600 ई.पू.–500 ई.)

दार्शनिक/विधिक संहिताकरण

दासत्व (दास)

आर्थिक/युद्ध-आधारित: दासत्व विद्यमान था परन्तु सामान्यतः वंशानुगत नहीं। युद्ध में पराजित या ऋण न चुका पाने वाले व्यक्ति दास बनाए जाते थे। मुख्यतः घरेलू कार्य और कृषि में ....

क्या आप और अधिक पढ़ना चाहते हैं?
तो सदस्यता ग्रहण करें
इस अंक की सभी सामग्रियों को विस्तार से पढ़ने के लिए खरीदें |

पूर्व सदस्य? लॉग इन करें


वार्षिक सदस्यता लें
सिविल सर्विसेज़ क्रॉनिकल के वार्षिक सदस्य पत्रिका की मासिक सामग्री के साथ-साथ क्रॉनिकल पत्रिका आर्काइव्स पढ़ सकते हैं |
पाठक क्रॉनिकल पत्रिका आर्काइव्स के रूप में सिविल सर्विसेज़ क्रॉनिकल मासिक अंक के विगत 6 माह से पूर्व की सभी सामग्रियों का विषयवार अध्ययन कर सकते हैं |

संबंधित सामग्री

प्रारंभिक विशेष