भारत में आर्थिक राष्ट्रवाद का उदय (1858–1947)

19वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में भारत में आर्थिक राष्ट्रवाद का उदय औपनिवेशिक आर्थिक शोषण के विरुद्ध एक व्यापक राष्ट्रीय प्रतिक्रिया के रूप में हुआ। यह आंदोलन भारतीय नेताओं और चिंतकों के बीच एक सचेत बौद्धिक और राजनीतिक जागरण था, जिसने ब्रिटिश साम्राज्यवाद की आर्थिक नींव को उजागर किया और भारतीय आर्थिक आत्मनिर्भरता की आवश्यकता पर बल दिया। इसी आर्थिक विचारधारा ने राजनीतिक राष्ट्रवाद की वैचारिक नींव रखी, जिसने स्वराज (स्वशासन) की लड़ाई को स्वदेशी, औद्योगीकरण और राजकोषीय सुधारों से जोड़ा।

पृष्ठभूमि

आयाम

विवरण

धन का निकास

भारत की आर्थिक अधिशेष संपदा का निरंतर ब्रिटेन को स्थानांतरण, जिसके बदले में कुछ नहीं मिला।

विऔद्योगीकरण

ब्रिटिश ....


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