उत्तर-मौर्य काल की कलात्मक परंपराएँ

उत्तर-मौर्य काल (लगभग 200 ईसा पूर्व – 300 ईस्वी) भारत के इतिहास का वह दौर था, जब राजनीतिक सत्ता बिखरी हुई थी, परंतु कलात्मक अभिव्यक्ति ने अभूतपूर्व समृद्धि और विविधता प्राप्त की। इस युग में कला का केंद्रीकरण साम्राज्य से हटकर जनसाधारण के हाथों में आ गया, अब कला केवल राजाओं की नहीं रही, बल्कि व्यापारी वर्ग, भिक्षुओं और आम लोगों की अभिव्यक्ति बन गई। नतीजतन, इस समय भारत के विभिन्न क्षेत्रों में अलग-अलग सशक्त कला-शैलियाँ उभर कर आईं, जैसे शुंग, सातवाहन और गांधार की इंडो-ग्रीक शैली, जिन्होंने भारतीय कला को नई ऊँचाइयाँ दीं।

विकास और क्षेत्रीय शैलियाँ

क्षेत्र/आश्रयदाता

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