शहरी नियोजन और अधिवास के प्रतिरूप

शहरी नियोजन और अधिवास के प्रतिरूप यह दर्शाते हैं कि मानव समाजों ने अपनी आर्थिक, प्रशासनिक और सामाजिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए स्थान का किस प्रकार संगठन किया।

  • भारतीय परिप्रेक्ष्य में ये प्रतिरूप नवपाषाण कालीन ग्रामीण अधिवासों से लेकर सिंधु घाटी के योजनाबद्ध नगरों, मध्यकालीन दुर्ग-नगरीय केन्द्रों और अंततः औपनिवेशिक तथा आधुनिक शहरी केन्द्रों तक विकसित हुए।
  • प्रत्येक चरण उस समय की तकनीकी क्षमता, सामाजिक पदानुक्रम और सांस्कृतिक प्राथमिकताओं का प्रतिबिंब है।
  • पुरातात्त्विक, साहित्यिक और स्थापत्य साक्ष्य यह दिखाते हैं कि भारत का शहरीकरण रैखिक (linear) नहीं था, बल्कि चक्रीय (cyclical) था—विस्तार और पतन के वैकल्पिक चरणों से गुजरता रहा।

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