ब्रिटिश शासनकाल में शिक्षा का विकास

ब्रिटिश शासनकाल में शिक्षा का विकास प्रशासनिक आवश्यकता, उदारवादी आदर्शों और आर्थिक स्वार्थ के जटिल मिश्रण से प्रेरित था।

  • मैकाले मिनट (1835), वुड्स डिस्पैच (1854) और हंटर आयोग (1882) जैसी नीतियाँ इस परिवर्तन की प्रमुख कड़ियाँ थीं।
  • इन नीतियों ने भारतीय शिक्षा को स्वदेशी और प्राच्यवादी (Orientalist) परम्पराओं से हटाकर एक मानकीकृत, धर्मनिरपेक्ष और मुख्यतः पाश्चात्य ज्ञान-आधारित प्रणाली की ओर मोड़ा, जिसका उद्देश्य एक वफादार प्रशासनिक वर्ग तैयार करना था।

ब्रिटिश शैक्षिक नीति का विकास

चरण

मूल उद्देश्य और सिद्धांत

सामाजिक–राजनीतिक एवं आर्थिक प्रभाव

प्रारम्भिक चरण (1835 से पूर्व)

प्राच्यवाद बनाम अँग्रेज़ीवाद की बहस: राज्य ने संस्कृत/मदरसे जैसे प्राच्य अध्ययन और सीमित पाश्चात्य विज्ञान (जैसे ....

क्या आप और अधिक पढ़ना चाहते हैं?
तो सदस्यता ग्रहण करें
इस अंक की सभी सामग्रियों को विस्तार से पढ़ने के लिए खरीदें |

पूर्व सदस्य? लॉग इन करें


वार्षिक सदस्यता लें
सिविल सर्विसेज़ क्रॉनिकल के वार्षिक सदस्य पत्रिका की मासिक सामग्री के साथ-साथ क्रॉनिकल पत्रिका आर्काइव्स पढ़ सकते हैं |
पाठक क्रॉनिकल पत्रिका आर्काइव्स के रूप में सिविल सर्विसेज़ क्रॉनिकल मासिक अंक के विगत 6 माह से पूर्व की सभी सामग्रियों का विषयवार अध्ययन कर सकते हैं |

संबंधित सामग्री

प्रारंभिक विशेष