जाति जनगणना तथा समानता का संवैधानिक दायित्व

जाति जनगणना एक व्यवस्थित प्रक्रिया है जिसके तहत सभी जातियों के सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक स्थिति का आकलन किया जाता है। 1951 से भारत की जनगणना में केवल अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों की गणना की जाती है, जबकि अंतिम पूर्ण जाति-आधारित गणना 1931 में हुई थी। इसके समर्थक इसे न्यायसंगत संसाधन वितरण और समानता के संवैधानिक दायित्व की पूर्ति के लिए आवश्यक मानते हैं।

हालिया विकास

  • अप्रैल 2025 में, केंद्रीय मंत्रिमंडल ने आगामी राष्ट्रीय जनगणना में विस्तृत जाति गणना (OBCs सहित) को शामिल करने को मंजूरी दी। यह 1931 के बाद पहली पूर्ण जाति गणना होगी।
  • यह जनगणना पहली बार ....

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