न्याय तक पहुँच: संस्थागत एवं सामाजिक खाइयों को पाटना

न्याय तक पहुँच किसी भी लोकतांत्रिक समाज का मूलभूत सिद्धांत है। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि कोई भी नागरिक सामाजिक अथवा आर्थिक बाधाओं के कारण अपने कानूनी विवादों का निष्पक्ष एवं प्रभावी समाधान पाने से वंचित न रह जाए। भारत में, यद्यपि सांविधानिक ढाँचा सुदृढ़ है, फिर भी न्याय के वादे और उसके वास्तविक उपलब्धता के बीच एक उल्लेखनीय अंतर मौजूद है।

यह अंतर दो स्तरों पर विद्यमान है—

  • संस्थागत अंतराल, जो अपर्याप्त बुनियादी ढाँचे से उत्पन्न होता है।
  • सामाजिक अंतराल, जो गरीबी, निरक्षरता और भेदभाव की जड़ों में निहित है।

हालिया प्रगति

  • राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (NALSA) (JAGRITI) ....

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