संसदीय उत्पादकता में गिरावट: कारण एवं उपाय

भारतीय संसद, जो लोकतंत्र की आधारशिला है, इस समय गंभीर उत्पादकता संकट से जूझ रही है। आँकड़े बताते हैं कि जहाँ प्रथम लोकसभा (1952-57) औसतन 135 दिन प्रतिवर्ष बैठती थी, वहीं 17वीं लोकसभा (2019-24) में यह घटकर मात्र 55 दिन प्रतिवर्ष रह गया। इसी प्रकार, 15वीं लोकसभा (2009-14) के लगभग 30% समय बाधाओं और अवरोधों में नष्ट हुआ। विधेयकों को समितियों को भेजने की परंपरा भी कमजोर पड़ी है, 14वीं लोकसभा में लगभग 60% विधेयक समितियों को भेजे गए, जबकि 17वीं लोकसभा में यह आँकड़ा घटकर केवल 10% रह गया।

  • बैठक के दिनों में गिरावट, बढ़ता राजनीतिक टकराव, कार्यपालिका का वर्चस्व ....
क्या आप और अधिक पढ़ना चाहते हैं?
तो सदस्यता ग्रहण करें
इस अंक की सभी सामग्रियों को विस्तार से पढ़ने के लिए खरीदें |

पूर्व सदस्य? लॉग इन करें


वार्षिक सदस्यता लें
सिविल सर्विसेज़ क्रॉनिकल के वार्षिक सदस्य पत्रिका की मासिक सामग्री के साथ-साथ क्रॉनिकल पत्रिका आर्काइव्स पढ़ सकते हैं |
पाठक क्रॉनिकल पत्रिका आर्काइव्स के रूप में सिविल सर्विसेज़ क्रॉनिकल मासिक अंक के विगत 6 माह से पूर्व की सभी सामग्रियों का विषयवार अध्ययन कर सकते हैं |

संबंधित सामग्री

प्रारंभिक विशेष