भारत में अधिकरण: कार्यकुशलता बनाम न्यायिक स्वतंत्रता

अधिकरण अर्ध-न्यायिक निकाय हैं, जिन्हें नियमित न्यायालयों का बोझ घटाने और विशिष्ट क्षेत्रों में विशेषज्ञ, त्वरित और किफायती न्याय उपलब्ध कराने के लिए स्थापित किया गया था। इन्हें मूलतः लंबी-चौड़ी अदालती प्रक्रिया का विकल्प माना गया था, किंतु समय के साथ इनकी कार्यप्रणाली गहन बहस का विषय बन गयी। मुख्य विवाद इनके कथित कार्यक्षमता और न्यायपालिका की स्वतंत्रता के मौलिक सिद्धांत के बीच टकराव का है। यही तनाव भारत की न्याय-प्रणाली सुधार की बहस का केंद्रीय बिंदु है।

हालिया प्रगति

  • अधिकरण सुधार अधिनियम, 2021: इसने बौद्धिक संपदा अपीलीय अधिकरण (IPAB), फिल्म प्रमाणन अपीलीय अधिकरण जैसे कई अधिकरण समाप्त कर दिए ....
क्या आप और अधिक पढ़ना चाहते हैं?
तो सदस्यता ग्रहण करें
इस अंक की सभी सामग्रियों को विस्तार से पढ़ने के लिए खरीदें |

पूर्व सदस्य? लॉग इन करें


वार्षिक सदस्यता लें
सिविल सर्विसेज़ क्रॉनिकल के वार्षिक सदस्य पत्रिका की मासिक सामग्री के साथ-साथ क्रॉनिकल पत्रिका आर्काइव्स पढ़ सकते हैं |
पाठक क्रॉनिकल पत्रिका आर्काइव्स के रूप में सिविल सर्विसेज़ क्रॉनिकल मासिक अंक के विगत 6 माह से पूर्व की सभी सामग्रियों का विषयवार अध्ययन कर सकते हैं |

संबंधित सामग्री

प्रारंभिक विशेष