न्यायिक सुधार: गति, पहुँच एवं जवाबदेही

भारतीय लोकतांत्रिक गणराज्य का तीसरा स्तंभ (न्यायपालिका) वर्तमान में तिहरी चुनौती (गति, पहुँच और जवाबदेही) का सामना कर रही है। वर्ष 2025 के मध्य तक विभिन्न न्यायालयों में 5.3 करोड़ से अधिक मामले लंबित हैं। ऐसे में न्याय की प्रक्रिया न केवल धीमी और महंगी हो गयी है, बल्कि समाज के हाशिये पर खड़े लोगों की पहुँच से भी दूर होती जा रही है। सार्थक न्यायिक सुधार आवश्यक हैं, ताकि न्याय केवल उपलब्ध ही न हो, बल्कि समयबद्ध, किफायती और पारदर्शी भी हो। आज के दौर में न्याय में देरी, न्याय से वंचना हैकी उक्ति पहले से कहीं अधिक प्रासंगिक ....

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