सामयिक

भारत को प्रभावित करने वाले द्विपक्षीय, क्षेत्रीय और वैश्विक समूह:

यूएस-तालिबान संधि

  • शनिवार, 29 फरवरी 2020 को अमेरिका और तालिबान ने "अफगानिस्तान में शांति लाने" के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर किए, जो अमेरिका और नाटो को अगले 14 महीनों में सेना वापस लेने और 10 मार्च-2020 से ओस्लो (नॉर्वे) में शुरू होने वाले अंतर-अफगान संवाद को सुविधाजनक बनाने में समर्थ करेगा।
  • भारत ने कतर के दोहा में संपन्न हुए हस्ताक्षर समारोह में भाग लिया।

संधि के प्रमुख तत्व

  • सैन्य वापसी: अमेरिका 135 दिनों में 8,600 सैनिकों को वापस बुलाएगा और नाटो अथवा गठबंधन सेना की संख्या को भीआनुपातिक रूप से और एक साथ वापस हटाया जाएगा।
  • आतंकवाद विरोधी आश्वासन: तालिबान द्वारा मुख्य आतंकवाद विरोधी प्रतिबद्धता यह है कि वह अपने किसी भी सदस्य, अन्य व्यक्तियों या समूहों कोअल-कायदा सहित, अफगानिस्तान की मिट्टी का उपयोग करने की अनुमति नहीं देगा, ताकि संयुक्त राज्य अमेरिका और उसके सहयोगियों की सुरक्षा को खतरा पैदा न हो सके।
  • प्रतिबंध हटाना:तालिबान नेताओं पर अगले तीन महीने (29 मई, 2020 तक) में संयुक्त राष्ट्र के प्रतिबंधों को और 27 अगस्त-2020 तक अमेरिकी प्रतिबंध को हटाया जाना चाहिए।
  • कैदियों की रिहाई: यूएस-तालिबान समझौते में कहा गया है कि 10 मार्च-2020 तक 5,000 तालिबानी कैदी और“दूसरी तरफ” सेतालिबान द्वारा 1,000 कैदी “रिहा किये जायेंगे।“
  • युद्ध विराम: समझौते में कहा गया है कि युद्ध विराम "एजेंडा का एक अंश" होगा। जब अंतर-अफगान वार्ता शुरू होती है तोदर्शाता है किवास्तविक युद्धविराम एक अफगान राजनीतिक समझौते के "पूरा होने" के साथ होगा।

चुनौतियां

  • अंतर-अफगान वार्ता के दौरान अभी भी कई मुद्दों पर काम किया जाना बाकी है, जिसमें सत्ता को साझा करना, समाज में तालिबान लड़ाकों को निरस्त्रीकरण और पुन: संगठित करना,देश के लोकतांत्रिक संस्थानों और संविधान के भविष्य का निर्धारण करना शामिल है।
  • जातीय,संप्रदायवादी और जनजातीय मतभेदों से पीड़ित एक कमजोर केंद्र सरकार इस प्रक्रिया को जटिल बना सकती है, जो खुलेआम संघर्ष में उतर सकते है और शांति समझौते में बाधा उत्पन्न करते हुए अगले गृहयुद्ध की शुरुआत कर सकते हैं।
  • एक ही समय मेंविशेषज्ञों का कहना है कि पिछले अठारह वर्षों में तालिबान किसी भी क्षेत्र में अत्यधिक मजबूत है। ये अफीम पोस्ता की खेती और अवैध दवा व्यापार से लाखों डॉलर कमाते हैं। कुछ विश्लेषक इस बात से भी चिंतित हैं कि तालिबानी लड़ाके का सामान्य सदस्य शांति समझौते का पालन नहीं कर सकते हैं।

अफगानिस्तान पर प्रभाव

  • अमेरिका की वापसी काबुल सरकार को हमेशा के लिए कमजोर कर देगी,युद्ध के मैदान और बातचीत दोनों में शक्ति के संतुलन को बदलकर।
  • तालिबान को वही मिला है जो वे चाहते थे जैसे सैनिकों को वापस लेना, प्रतिबंधों को हटाना और कैदियों की रिहाई। इसने पाकिस्तान, तालिबान के लाभार्थियों को भी मजबूत किया है और इससे पाकिस्तान सेना और आईएसआई का प्रभाव बढ़ रहा है।
  • इससे अफगानिस्तान में अमेरिका की मौजूदगी के दो दशकों के बाद सामाजिक परिवर्तन आया - मानव अधिकार, महिला मुक्ति, मनोरंजन - संकट में पड़ सकता है।
  • अफगानिस्तान के लोगों के लिए भविष्य अनिश्चित है, और यह इस बात पर निर्भर करेगा कि तालिबान अपनी प्रतिबद्धताओं का सम्मान कैसे करता है और क्या यह 1996-2001 के शासन के मध्यकालीन प्रथाओं में वापस आता है।

भारत पर प्रभाव

  • तालिबान ने भारत को शत्रुतापूर्ण देश माना, क्योंकि भारत ने 1990 के दशक में तालिबान विरोधी उत्तरी गठबंधन का समर्थन किया था।
  • 1996-2001 के दौरान सत्ता में रहने के बावजूद भारत ने कभी भी तालिबान को राजनयिक और आधिकारिक मान्यता नहीं दी।
  • शांति सौदा देश के लिए रणनीतिक और भू-राजनीतिक निहितार्थ रखता है, जिसने अफगानिस्तान में अरबों डॉलर का निवेश किया है।
  • अफगानिस्तान से प्रारंभिक रूप से सेना को वापस लेने के निर्णय से भारत के लिए दूरगामी परिणाम बुरे होने की संभावना है। जैसे अफगानिस्तान में तालिबान के प्रभाव में वृद्धि से कश्मीर घाटी में सुरक्षा स्थिति पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
  • इसके अलावा यह समझौता अन्य आतंकवादी समूहों पर चुप्पी साधे है।जैसे लश्कर-ए-तैयबा या जैश-ए-मोहम्मद जैसे भारत विरोधी समूह। भारत, अमेरिका का सहयोगी नहीं है अन्तोगत्वाइस संधि के अंतर्गत नहीं आता है।
  • यह सौदा पाकिस्तान के साथ तनावपूर्ण संबंधों के संदर्भ में भी महत्व रखता है जिसके क्षेत्र में हित हैं।
  • अफगानिस्तान से अमेरिका की वापसी के साथ, पाकिस्तान वास्तव में एक महत्वपूर्ण देश बन जाएगा। इससे भारत की सुरक्षा आज की तुलना में कहीं अधिक असुरक्षित होगी।

आगे का रास्ता

  • अमेरिकी बलों की वापसी से क्षेत्र में निर्वात के निर्माण की संभावना है और आतंकवादियों और चरमपंथियों द्वारा उस निर्वात को भरे जाने की संभावना है।
  • भारत, रूस और चीन जैसे क्षेत्र में अन्य हित धारकों के साथ अमेरिका को अफगानिस्तान के साथ दीर्घकालिक राजनयिक जुड़ाव के लिए तैयार रहना चाहिए।जिसमें एक साथ देश की राजनीतिक मुख्यधारा को मजबूत करना और उसके भीतर एकीकृत तालिबान को करना शामिल होगा।
  • आगे की चुनौतियाँ विकट हैं। आशा है, लेकिन संदेह गहरा है।

लखनऊ घोषणा

  • पहला भारत-अफ्रीका रक्षा मंत्री कॉन्क्लेव 6 फरवरी, 2020 को संपन्न हुआ. जो लखनऊ में चल रहे डिफेंस एक्सपो इंडिया 2020 (5 से 9 फरवरी) के संयोजन मेंआयोजित किया गया.
  • सम्मेलन के दौरान, भारत,14 अफ्रीकी देशों के रक्षा मंत्रियों सहित 38 अन्य अफ्रीकी देशों के प्रमुख प्रतिनिधिमंडल शामिल थें.जिन्होंने इस संयुक्त घोषणा पत्र, अर्थात “ लखनऊ घोषणा ”  को स्वीकार किया.

 पृष्ठभूमि

  • इससे पूर्व भारत और अफ्रीकी देशों ने सबसे पहले नई दिल्ली में भारत-अफ्रीका मंच शिखर सम्मेलन अप्रैल 2008,अदीस अबाबा में भारत-अफ्रीका मंच शिखर सम्मेलन- II मई 2011 और दिल्ली में आयोजित तीसरे भारत-अफ्रीका मंच शिखर सम्मेलन अक्टूबर 2015 के दौरांन विभिन्न घोषणाओं का एलान कर चुके हैं. इसके साथ सामरिक सहयोग के लिए भारत-अफ्रीका रूपरेखा को भी तैयार किया गया है.
  • इन सभी घोषणाओं ने भारत और अफ्रीका के बीच बहुआयामी साझेदारी को मजबूत करने का काम किया.

घोषणा की प्रमुख झलकियाँ 

शांति और सुरक्षा

  • भारत और अफ्रीकी देश दोनों अपने-अपने क्षेत्रों में शांति और सुरक्षा की आवश्यकता पर बल देते हुएआपसी संघर्षों के रोकथाम, समाधान,प्रबंधन और शांति निर्माण के क्षेत्र में अपना सहयोग जारी रखने के लिए प्रतिबद्ध हैं. जिसके लिए निम्नलिखित चीजें महत्वपूर्ण हैं:
    • विशेषज्ञता और प्रशिक्षण का आदान-प्रदान
    •  क्षेत्रीय और महाद्वीपीय प्रारंभिक चेतावनी की क्षमता और तंत्र को मजबूत करना
    •  शांति को बनाए रखने और शांति की संस्कृति का प्रचार करने में महिलाओं की भूमिका बढ़ाना.
  • इस संबंध में,अफ्रीका के काहिरा में शांति और सुरक्षा को लेकर अफ्रीकन यूनियंस इंटरनेशनल सेंटर फॉर कॉन्फ्लिक्ट रिजोल्यूशन,पीस कीपिंग एंड पीस बिल्डिंग की स्थापना की गयी. जिसकी विभिन्न देशों द्वारा सराहना की गई है. 

आतंक

  • घोषणा पत्र में शामिल सभी हस्ताक्षरकर्ता देश, आतंकवाद को एक बड़ाखतरा बताते हुए इसके सभी रूपों व अभिव्यक्तियों की जड़ों से उखाड़ फेंकने के लिए संकल्पित हैं. इसके साथ समस्त देशों ने आतंकवादियों के सुरक्षित ठिकानों और उनके बुनियादी ढांचे को नष्ट करने,  आतंकियों के नेटवर्क को बाधित करने वइनकावित्त पोषण करने वाले माध्यमों को समाप्त करने के लिए कठोर कार्रवाई करने का आग्रह किया.
  • यह कार्य अफ्रीका और भारत के आपसी सहयोग और समन्वय को बढ़ाने के साथ-साथ किया जाना चाहिए. ताकि आतंकवाद के विभिन्न रूपों और अभिव्यक्तियों के साथ मुकाबला करते हुए इस संक्रमणकालीन अपराध का निपटारा किया जा सके.
  • संयुक्त राष्ट्र के आतंकवाद-रोधी तंत्र को मजबूत करने और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद द्वारा आतंकवाद पर प्रतिबंधों का कड़ाई से अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए आग्रह किया गया कि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय, संयुक्त राष्ट्र महासभा में अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद पर व्यापक सम्मेलन का विचार करे.

समुद्री सुरक्षा

  • नीली अर्थव्यवस्था और महासागरीय अर्थव्यवस्था के विकास के लिए दोनों क्षेत्रों में समुद्री सुरक्षा को मजबूत करना एक महत्वपूर्ण शर्त है.
  • सूचना के आदान-प्रदान और निगरानी के जरिए समुद्री अपराध, आपदा,डकैती, अवैध कार्य, अनियमितता से बचाव और बिना लाइसेंस के मछली पकड़ने वालों को रोका जा सकता है. इसके लिए आपसी सहयोग बढ़ाने का निर्णय लिया गया. 

हिंद-प्रशांत क्षेत्र

  • भारत और अफ्रीकी देशों ने हिंद-प्रशांत रणनीति के महत्वता को ध्यान में में रखते हुए घोषणा पत्र में कहा गया कि सभी सदस्य इंडो-पैसिफिक की विकसित अवधारणा को लेकर भारत और अफ्रीका के बीच सहयोग को बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित करें.
  • यह अफ्रीका में शांति और सुरक्षा के लिए अफ्रीकी संघ (AU) के लक्ष्य का समर्थन करता है जो भारत के दृष्टिकोण अर्थात सेक्युरिटी एंड ग्रोथ इन ऑल द रीजन (SAGAR) के साथ मेल खाता है. 

रक्षा सहयोग

  • सभी देशों ने रक्षा उद्योग के क्षेत्र में गहन सहयोग का आह्वान किया है. जिसमें निवेश, रक्षा उपकरण सॉफ्टवेयर में संयुक्त उद्यम, डिजिटल सुरक्षा, अनुसंधान और विकास, रक्षा उपकरणों की शर्तें,कल-पुर्जों व उनके रखरखाव के पारस्परिक शर्तें शामिल हैं.
  • विभिन्न देशों के नेताओं ने अफ्रीका-इंडिया फील्ड प्रशिक्षण अभ्यास (AFINDEX) के प्रारंभ कीसराहना की. साथ ही साथ रक्षा तैयारियों व सुरक्षा में सहयोग को और भी मजबूत करने पर सहमति व्यक्त की. 

अफ्रीका-भारत संयुक्त क्षेत्र प्रशिक्षण अभ्यास (AFINDEX)

  • भारतीय सेना और 17 अफ्रीकी देशों के बीच पहली बार AFINDEX का आयोजन 18 मार्च से 27 मार्च 2019 तक महाराष्ट्र के पुणे में किया गया.
  • प्रतिभागी: मराठा लाइट इन्फैंट्री (जंगी पल्टन) के एक दल के साथ 17 अफ्रीकी राष्ट्रों जैसे बेनिन, बोत्सवाना, मिस्र, घाना, केन्या, मॉरीशस, मोजाम्बिक, नामीबिया, नाइजर, सेनेगल, दक्षिण अफ्रीका, सूडान, तंजानिया, युगांडा, जाम्बिया और जिम्बाब्वे शामिल थे, ने प्रशिक्षण अभ्यास किया. 

अफ्रीकी संघ (AU)

  • अफ़्रीकी संघ, एक महाद्वीपीय निकाय है जिसमें 55 देश शामिल हैं. ये एक साथ मिलकर अफ्रीकी महाद्वीप बनाते हैं. इसे 2002 में आधिकारिक रूप से अफ्रीकी एकता संगठन (1963-1999) के वारिस के रूप में प्रारंभ किया गया.
  • दृष्टिकोण: एक एकीकृत,समृद्ध और शांतिपूर्ण अफ्रीका. अपने स्वयं के नागरिकों द्वारा संचालित और वैश्विक क्षेत्र में एक गतिशील बल का प्रतिनिधित्व करता हुआ अफ्रीका.

एजेंडा 2063

  • एजेंडा 2063, अफ्रीका का एक खा का है. जिसमें अफ्रीका को भविष्य के वैश्विक शक्ति के रूप में बदलने की मुख्य योजना दर्ज है.
  • अफ्रीकी संघ (AU) ने 2015 मेंअपने पूर्ववर्ती अफ़्रीकी एकता संगठन (OAU) की स्थापना के 100 साल बादएक मजबूत, शांतिपूर्ण, एकीकृत और समृद्ध अफ्रीका बनाने के उद्देश्य से इस एजेंडे को अपनाया. यह इस महाद्वीप की कूटनीतिक रूपरेखा है जो इसके लक्ष्य,सतत एवं समावेशी विकास को ओर ले जाता है. यही पैन-अफ्रीकीवाद और अफ्रीकी पुनर्जागरण के तहत किये गए संकल्प,“एकता, आत्म, स्वतंत्रता, प्रगति और सामूहिक समृद्धि” का ठोस प्रत्यक्षीकरण है.

प्रभाव 

  • लखनऊ घोषणा भारत-अफ्रीका संबंध को एक प्रमुख प्रेरणा प्रदान करेगा. जो आतंकवाद और अतिवाद, समुद्री डकैती, मानव तस्करी, मादक पदार्थों की तस्करी, हथियार तस्करी आदि जैसी महत्वपूर्ण चुनौतियोंसे प्रभावी ढंग से निपटने व दोनों क्षेत्रों में शांति व्यवस्था बनाये रखने में मदद करेगा। 

अफ्रीका का महत्व

  •  अफ्रीका आज‘आर्थिक विकास में तेजी,शैक्षिक और स्वास्थ्य मानकों में बढ़त, लिंगानुपात में बढ़त, बुनियादी ढांचे और संबंध (infrastructure Connectivity) के विस्तार’ के आधार पर एक विशिष्ट महाद्वीप है.
  • हाल के वर्षों में अफ्रीकी महाद्वीप को भारतीय विदेश और आर्थिक नीति में सर्वोच्च प्राथमिकता दी गई तथा राजनीतिक जुड़ाव में अभूतपूर्व तीव्रता आयी है.
  • फिर उठ खड़ा होने वाला वाला अफ्रीका और उभरता भारत,दक्षिणी सहयोग को एक मजबूती दे सकता है. खासकर जब बात स्वच्छ तकनीकी, जलवायु के अनुसार कृषि, समुद्री सुरक्षा, संबंध और नीली अर्थव्यवस्था जैसे क्षेत्रों में चुनौतियों की आये.
  • अर्थव्यवस्था की बात करें तो अफ्रीकी उपमहाद्वीप विभिन्न क्षेत्रों की भारतीय कंपनियों के लिए एक अच्छा बाजार प्रदान करता है. जैसे ऑटोमोबाइल, आईटी या रक्षा क्षेत्र.
  • अफ्रीका और भारत के बीच व्यापार 2001 में 7.2 बिलियन अमरीकी डालर से आठ गुना बढ़कर 2017 में 59.9 बिलियन अमरीकी डॉलर हो गया है.जो भारत के कुल व्यापार का 8 फीसदी है.
  • ऊर्जा की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिएभारत के पास अपने कच्चे तेल का लगभग 18% स्रोत है और द्रवित प्राकृतिक गैस (LNG) की आवश्यकता ज्यादातर पश्चिम अफ्रीकी क्षेत्रों से है.
  • भारत से अफ्रीका के कुल निर्यात का लगभग 75 प्रतिशत हिस्साप्राथमिक वस्तुओं और प्राकृतिक संसाधनों का है.
  • भू-राजनीति के परिप्रेक्ष्य में,इन 54 अफ्रीकी देशों का संयुक्त राष्ट्र के सहयोगी देशों के रूप में होना भारत के लिए अनुकूल है क्योंकि ये राष्ट्र किसी भी प्रस्ताव को पारित करने में समर्थन कर सकते हैं.

कैबिनेट की जहाज पुनर्चक्रण विधेयक-2019 को मंजूरी

  • 20 नवंबर, 2019 कोकेंद्र ने जहाज पुनर्चक्रण विधेयक, 2019 (Recycling of Ships Bill, 2019)के साथ-साथ हांगकांग इंटरनेशनल कन्वेंशन फॉर सेफ एंड एनवायरनमेंटली साउंड रीसाइक्लिंग शिप्स, 2009 के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी।
  • 13 दिसंबर, 2019 को भारत के राष्ट्रपति की स्वीकृति मिलने के बाद यह अधिनियम बन गयाहै |
  • हांगकांग अंतर्राष्ट्रीय कन्वेंशन को जहाज पुनर्चक्रण विधेयक, 2019 के विभिन्न प्रावधानों द्वारा लागू किया जाएगा |

लक्ष्य

  • भारत में जहाजपुनर्चक्रण उद्योग को बढ़ावा देना |

विधेयक की जरूरत

  • भारत वैश्विक जहाज पुनर्चक्रण उद्योग में25% से अधिक की हिस्सेदारी रखताहै जोविश्व में सर्वाधिक है। लेकिन यह उद्योग श्रमिकों की सुरक्षा के साथ-साथ पर्यावरण की चिंता जैसे मुद्दों से ग्रस्त है।

मुख्य विशेषताएं

रीसाइक्लिंग सुविधाओं का प्राधिकरण

  • विधेयक के तहत, जहाज पुनर्चक्रण सुविधाओं को प्रदान करने वाले संस्थानों को अधिकृत(Authorized)होना होगा और जहाजों को केवल ऐसे अधिकृत जहाज पुनर्चक्रण सुविधाओं(facilities) में हीजहाजों कापुनर्नवीनीकरण किया जाएगा।

जहाज-विशिष्ट पुनर्चक्रण योजना

  • विधेयक यह भी प्रावधान करता है कि जहाजों को एक जहाज-विशिष्ट पुनर्चक्रण योजना के अनुसार पुनर्नवीनीकरण किया जाएगा। भारत में पुनर्नवीनीकरण किए जाने वाले जहाजों को हांगकांग कन्वेंशन (एचकेसी) के अनुसार ‘तैयार पुनर्चक्रण प्रमाण पत्र’ (Ready to Recycling Certificate) प्राप्त करने की आवश्यकता होगी।

खतरनाक सामग्री पर प्रतिबंध

  • यह खतरनाक सामग्री के उपयोग या स्थापना को प्रतिबंधित करता है, जो इस बात पर ध्यान दिए बिना लागू होता है कि कोई जहाज रीसाइक्लिंग के लिए है या नहीं। जहाजों में प्रयुक्त खतरनाक सामग्री की सूची पर जहाजों का सर्वेक्षण और प्रमाणित किया जाएगा।

मौजूदा जहाजों के लिए ग्रेस पीरियड

  • नए जहाजों के लिए, खतरनाक सामग्री के उपयोग पर इस तरह का प्रतिबंध तत्काल होगा, अर्थात, जिस दिन से यह कानून लागू होता है, जबकि मौजूदा जहाजों के अनुपालन के लिए पांच साल की अवधि होगी।
  • हालांकि, खतरनाक सामग्री के उपयोग पर प्रतिबंध सरकार द्वारा संचालित युद्धपोतों और गैर-वाणिज्यिक जहाजों पर लागू नहीं होगा।

प्रभाव

  • जहाज पुनर्चक्रण उद्योग को नियमित करना: विधेयक अंतरराष्ट्रीय मानकों को निर्धारित करता है और ऐसे मानकों के प्रवर्तन के लिए वैधानिक तंत्र को स्थापित करता है | जिससे की जहाज पुनर्चक्रण उद्योग का विनियमन के माध्यम से विकास हो सके।

 

हांगकांग इंटरनेशनल कन्वेंशन फॉर सेफ एंड एनवायरनमेंटली साउंड रीसाइक्लिंग शिप्स

  • इसे हांगकांग कन्वेंशन (HKC) के रूप में भी जाना जाता है, जिसे मई 2009 में हांगकांग में आयोजित एक राजनयिक सम्मेलन में अपनाया गया था।
  • यह अंतर्राष्ट्रीय समुद्री संगठन (IMO) के सदस्य देशों और गैर-सरकारी संगठनों के इनपुट के साथ और अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन एवं बेसेल कन्वेंशन ऑन द कण्ट्रोल ऑफ ट्रांसबाउंड्री मूवमेंट्स ऑफ हजार्ड वेस्ट्स एंड देयर डिस्पोजल के सहयोग के साथ विकसित किया गया था।
  • कन्वेंशन अभी लागूहोना है क्योंकि यह 15 देशों द्वारा पुष्टि नहीं की गई है, जो सकल टन भार (क्षमता) द्वारा विश्व व्यापारी शिपिंग के 40 प्रतिशत का प्रतिनिधित्व करते है और वार्षिक जहाज रीसाइक्लिंग मात्रा के अनुसारदेशों के संयुक्त टन भार के 3 प्रतिशत से कम न हो।
  • अब तक, नॉर्वे, कांगो, फ्रांस, बेल्जियम, पनामा, डेनमार्क, तुर्की, नीदरलैंड, सर्बिया, जापान, एस्टोनिया, माल्टा, जर्मनी और भारत ने सम्मेलन में भाग लिया है।

लक्ष्य

  • वर्तमान जहाज तोड़ने के व्यवसायों के स्वास्थ्य और सुरक्षा में सुधार करना,
  • मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण की सुरक्षा सुनिश्चित करना |

महत्ता

  • एक बार प्रभाव में आने के बाद, यह जहाज रीसाइक्लिंग स्थानों में काम करने वाले लोगों के स्वस्थ्य और पर्यावरण के स्थिति की चिंताओं को दूर करने में मदद करेगा।
  • यह खतरनाक पदार्थों जैसे एस्बेस्टस, भारी धातु, हाइड्रोकार्बन, ओजोन क्षरण वाले पदार्थ और अन्यप्रमुख मुद्दों को पता लगाने में मदद करेगा, जो पर्यावरण के लिए गंभीर खतरा पैदा करते हैं।

भारत के लिए लाभ

  • जहाज पुनर्चक्रण उद्योग कोप्रोत्साहन: HKC में शामिल होनेसे पुनर्चक्रण उद्योग को बढ़ावा मिलेगा क्योंकि जापान, कोरिया जैसे देशों से अधिक जहाजों को पुनर्नवीनीकरण करने के व्यवसाय प्राप्त हो सकेंगे। वर्तमान में, बहुत से देश भारतीय जहाज-निर्माण उद्योग पर पर्यावरण और सुरक्षा संबंधित मुद्दों को उठाते हैं।
  • निवेश के अवसर: जहाज पुनर्चक्रण में वैश्विक खिलाड़ी होने के नाते, इस कदम से वैश्विक धनराशि भारत के जहाज-पुनर्चक्रण केंद्रों में आ सकेगी।
  • जहाजों की हरित पुनर्चक्रण: यह भारत को पुनर्चक्रण उद्योगों में अपनाई जाने वाली सर्वोत्तम प्रथाओं को लाने में मदद करेगा, यह सुनिश्चित करेगा कि जहाजों को पर्यावरण के अनुकूल और जिम्मेदार तरीके से पुनर्चक्रित किया जाए।

 

भारत में जहाज पुनर्चक्रण उद्योग में मुद्दे

सुरक्षा के मुद्दे

  • ऐसे किन्द्रों में आमतौर पर व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरणों की कमी होती है औरयदि होती भी है तो उनको उपयोग करने काप्रयाप्त प्रशिक्षणनहींदिया गया होता है। अपर्याप्त सुरक्षा नियंत्रण औरनिगरानी एवं विस्फोटों का उच्च जोखिम खतरनाक काम की स्थिति पैदा करता है।
  • मानक के बारे में मानदंडों के अभाव के कारण जोखिम को कम करने या खत्म करने के उपायों को अक्सर नजरअंदाज कर दिया जाता है और अंततः दुर्घटनाएं होती हैं।
  • कार्य प्रक्रियाओं के समन्वय का अभाव, सुविधाओं की अनुपस्थिति और सुरक्षा नियंत्रण की अनुपस्थिति जोखिम का कारण है जो शारीरिक चोटों का कारण बनती है।
  • श्रमिक की मृत्यु के लिए किसी भी यार्ड के मालिक को कभी भी जिम्मेदार नहीं ठहराया जाता है जो इस मुद्दे के निराकरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते है |

स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं

  • जहाज तोड़ने वाले समुद्र तटों पर, एस्बेस्टस और फाइबर खुली हवा में चारों ओर उड़ते हैं, और श्रमिक अपने नंगे हाथों से एस्बेस्टस इन्सुलेशन सामग्री निकालते हैं। जहाजों के कई हिस्सों में पाए जाने वाले अन्य भारी धातुओं (जैसे पेंट, कोटिंग्स, एनोड और बिजली के उपकरण से) के संपर्क में आने से कैंसर हो सकता है और रक्त वाहिकाओं को भी नुकसान हो सकता है।
  • श्रमिक दूषित कीचड़ में धंसे हुए भारी धातुओं और जहरीले पेंट कणों में अपना पूरा दिन बिताते हैं ।
  • श्रमिकों की स्वास्थ्य सेवाओं और आवास तक बहुत सीमित पहुंच होती है, कल्याण और सैनिटरी सुविधाओं के कमी श्रमिकों की दुर्दशा को और बढ़ा देती हैं। एक जहाज को तोड़ने वाली जगह पर तैनात हजारों कर्मचारियों के बावजूद, शायद ही किसी भी स्थल पर डॉक्टरों की उपस्थिति या क्लीनिककी व्यवस्था होती है।

अपशिष्ट प्रबंधन के मुद्दे

  • जहाज पुनर्चक्रण उद्योग द्वारा उत्पन्न कचरे को मोटे तौर पर खतरनाक और गैर-खतरनाक कचरे में वर्गीकृत किया जा सकता है। खतरनाक कचरे की प्रवाह में एस्बेस्टस, पॉलीक्लोराइनेटेड बिपेनिल (पीसीबी), पॉलीसाइक्लिक एरोमैटिक हाइड्रोकार्बन (पीएएच), टेंजाइलेटिन टीबीटी, भारी धातुएं आदि शामिल हैं।
  • ठोस कचरे के अलावा, एयर कंडीशनिंग सिस्टम से अमोनिया, क्लोरोफ्लोरोकार्बन (सीएफसी) जैसी गैसें और तेल टैंकरों की पाइपलाइनों में ज्वलनशील गैसें मौजूद हो सकती हैं। हालांकि ये अपशिष्ट जहाज के कुल डेड वेट कालगभग 1% होते हैं, परन्तुइनसे स्वास्थ्य और पर्यावरण दोनों के लिए एक बड़ा जोखिम होता है।

पर्यावरण के मुद्दें

जल प्रदूषण

  • जल निकाय, मुख्य रूप से समुद्री वातावरण, निलंबित ठोस पदार्थों, नाइट्रेट्स, फॉस्फेट, भारी धातुओं, तेल और जहाज के तल में एकत्र गन्दा पानी से प्रदूषित हो जाता है।
  • तेल फैल जाता है, भारी धातुएँ जैसे सीसाऔरपारा जैसे टेंजेनिल्टिन (टीबीटी) समुद्री पारिस्थितिक तंत्र के लिए खतरा बनते हैं जिसमें पक्षी और स्तनधारी, ज़ूप्लांकटन, फाइटोप्लांकटन, आदि शामिल हैं।

मृदा प्रदूषण

  • पेंट चिप्स, एस्बेस्टस फाइबर और पॉलीक्लोराइनेटेड बाइफिनाइल्स (पीसीबी) में पाए जाने वाले भारी धातु (सीसा, कैडमियम) जहाज पुनर्चक्रण स्थल के आसपास फैल जाते है जिससे मिट्टी के दूषित होने के संभावना बनीरहती हैं।

वायु प्रदूषण

  • जहाज पर पेंट और अन्य प्रकार की कोटिंग आमतौर पर ज्वलनशील होते हैं और इसमें पीसीबी, भारी धातु (जैसे सीसा, कैडमियम, क्रोमियम, जस्ता और तांबा) जैसे जहरीले यौगिक और टीबीटी जैसे कीटनाशक होते हैं।
  • जब रबर पाइप और अन्यगैर-पुनर्नवीनीकरण पदार्थों को खुली हवा में जला दी जाती हैतबइनसे जहरीले धुएं उत्पन्न होते है | इनसे संभवतः डाइऑक्सिन, फुरेंस और पॉलीसाइक्लिक एरोमैटिक हाइड्रोकार्बन (पीएएच) उत्पन्न होते हैं ।
  • जहाज की स्ट्रिपिंग के दौरान उत्पन्न सूक्ष्म कण,प्रशीतन प्रणाली से उन्मुक्त सीएफसी या अन्य रसायनों के रिसावके कारण वायु प्रदूषण बढ़ता है।

आगे की राह

  • भारत में जहाज पुनर्चक्रण उद्योग वैश्विक जहाज पुनर्चक्रण व्यवसाय का एक हिस्सा है।अन्य उद्योगों की तरह इस उद्योग मेंकई चुनौतियां और अवसर हैं। जहाज पुनर्चक्रणएक हरी प्रक्रिया (green process) है जिसमें पुराने एवं उपयोग में ना आने वाले जहाज से पुन: उपयोग किये जा सकने वाले भाग प्राप्त किया जाता है |लेकिन इस जटिल प्रक्रिया में श्रम सुरक्षा, स्वास्थ्यऔरपर्यावरण जैसे मुद्दे एवं चुनौतियां हैं जो आलोचना का विषय है।
  • इसके कमियों के बावजूद, सैद्धांतिक रूप से, शिपब्रेकिंग के कई लाभ हैं - यह प्राकृतिक संसाधनों के खनन की आवश्यकता को कम करके स्थायी विकास (sustainable development) को बढ़ावा देता है | यह स्टील के उत्पादन में योगदान देता है जो रोजगार सृजन में मदद करता है। इस उद्योग के भारत में प्रमुख आर्थिक गतिविधि होने की भरपूर संभावना है।
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