सामयिक

अवसंरचना:

राष्ट्रीय अवसंरचना पाइपलाइन

31 दिसंबर, 2019 को सरकार ने राष्ट्रीय अवसंरचना पाइपलाइन (NIP) के तहत 102 लाख करोड़ रुपये की आधारभूत परियोजनाओं का अनावरण किया, जो कि अगले पांच वर्षों में अवसंरचना क्षेत्र में सरकार के खर्च के हिस्से के रूप में लागू किया जाएगा।

पृष्ठभूमि

  • प्रधानमंत्री ने वर्ष 2019 के अपने स्‍वतंत्रता दिवस संबोधन में इस बात पर प्रकाश डाला था कि अगले पांच वर्षों में बुनियादी ढांचागत सुविधाओं के विकास पर 100 लाख करोड़ रुपये निवेश किए जाएंगे, जिसमें सामाजिक एवं आर्थिक अवसंरचना परियोजनाएं भी शामिल हैं।
  • इस उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए वित्त वर्ष 2019-20 से 2024-25 तक प्रत्येक वर्ष के लिए राष्ट्रीय अवसंरचना पाइपलाइन (NIP) को तैयार करने हेतु सितंबर 2019 में आर्थिक कार्य विभाग (DEA) में सचिव की अध्यक्षता में एक कार्य-बल (Task Force) का गठन किया गया था।
  • नीति आयोग के सीईओ, व्‍यय विभाग के सचिव, प्रशासनिक मंत्रालयों के सचिव और आर्थिक मामले विभाग में अपर सचिव (निवेश) इसके सदस्य जबकि आर्थिक कार्य विभाग में संयुक्‍त  सचिव (अवसंरचना नीति और वित्त प्रभाग) इसके सदस्य सचिव थे।

कार्यबल के विचारार्थ विषय

  • 2020 से 2025 के बीच शुरू की जा सकने वाली तकनीकी और वित्तीय/आर्थिक रूप से व्यवहार्य बुनियादी ढांचा परियोजनाओं की पहचान करना।
  • वार्षिक अवसंरचना निवेश/पूंजी लागत का अनुमान लगाना।
  • वित्त-पोषण के उपयुक्त स्रोतों की पहचान करने में मंत्रालयों का मार्गदर्शन करना।
  • परियोजनाओं की निगरानी के लिए उपाय सुझाना ताकि लागत और समय की अधिकता कम से कम हो।

राष्ट्रीय अवसंरचना पाइपलाइन (NIP)

  • यह अनुमान है कि भारत को अपनी विकास दर को बनाए रखने के लिए 2030 तक बुनियादी ढांचे पर 5 ट्रिलियन डॉलर खर्च करने की आवश्यकता होगी। NIP का प्रयास इस लक्ष्य को कुशल तरीके से प्राप्त करना है।
  • NIP में 100 करोड़ रुपये से अधिक की लागत वाली ग्रीनफील्ड और ब्राउनफील्ड परियोजनाएं शामिल होंगी।
  • चालू वर्ष के लिए पाइपलाइन में शामिल करने के लिए अन्य योग्यताओं में विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (DPR) की उपलब्धता, कार्यान्वयन की व्यवहार्यता, वित्त पोषण योजना में समावेश और प्रशासनिक स्वीकृति की तत्परता/उपलब्धता शामिल होगी।
  • परियोजनाओं के समयबद्ध और लागत के अनुसार कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने हेतु प्रत्येक मंत्रालय/विभाग परियोजनाओं की निगरानी के लिए जिम्मेदार होंगे।

उद्देश्य

  • नई अवसंरचना परियोजना और मौजूदा बुनियादी ढांचे को अद्यतन कर बदलती जनसांख्यिकीय प्रोफाइल की आकांक्षाओं को पूरा करना तथा भारत में जीवन शैली की गुणवत्ता और सुगमता को वैश्विक स्तर पर लाना।

अवसंरचना दृष्टिकोण 2025

आकांक्षाओं को पूरा करना, विकास को बढ़ावा देना, जीवन सुगमता प्रदान करना

सस्ती और स्वच्छ ऊर्जा

  • 24x7 बिजली की उपलब्धता: परिवहन के लिए हरित और स्वच्छ नवीकरणीय ऊर्जा एवं पर्यावरण-अनुकूल ईंधन के माध्यम से प्रदूषण को कम करना।

डिजिटल सेवाएं: सभी के लिए पहुंच

  • प्रत्येक नागरिक के सामाजिक-आर्थिक सशक्तिकरण हेतु दूरसंचार और उच्च गुणवत्ता वाले ब्रॉडबैंड सेवाओं के लिए 100% जनसंख्या कवरेज; सरकारी सेवाओं का ऑनलाइन वितरण।

गुणवत्तापूर्ण शिक्षा

  • विश्व स्तर के शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान, प्रौद्योगिकी-संचालित शिक्षा।

सुविधाजनक और कुशल परिवहन

  • सुदूर क्षेत्रों के लिए सड़क संपर्क मे सुधार और एक्सप्रेसवे, प्रमुख आर्थिक गलियारों, रणनीतिक क्षेत्रों और पर्यटन स्थलों के माध्यम से कनेक्टिविटी।
  • विश्व स्तरीय स्टेशनों और दूरदराज के क्षेत्रों के लिए अंतर-मोडल कनेक्टिविटी और शून्य दुर्घटनाओं के साथ पूरी तरह से एकीकृत रेल नेटवर्क
  • सभी टियर II और अधिकांश टियर III शहरों के लिए हवाई संपर्क
  • नए रोजगार सृजन हेतु बंदरगाह-आधारित विकास, त्वरित प्रतिवर्तन काल (Turnaround Time) के साथ लॉजिस्टिक लागत में कमी।
  • कम से कम 25 शहरों में मेट्रो कनेक्टिविटी प्रदान कर नागरिकों के लिए उच्च जीवन स्तर।

सभी के लिए आवास और पानी की आपूर्ति

  • PMAY की मदद से झुग्घियों को समाप्त करना।
  • सभी घरों में 24X7 पाइप जल आपूर्ति।
  • अधिकांश अपशिष्ट जल का पुनर्चक्रीकरण और उपचार।

आपदा-लचीला मानक अनुपालन वाली सार्वजनिक अवसंरचना

  • आपदा प्रतिरोधी अवसंरचना गठबंधन CDRI

किसान की आय दोगुनी करना

  • भंडारण, प्रसंस्करण और विपणन बुनियादी ढांचे के साथ सिंचाई (83%) की वृद्धि

अच्छी सेहत और आरोग्य

  • बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं, इलेक्ट्रॉनिक स्वास्थ्य रिकॉर्ड अवसंरचना

अन्य प्रमुख क्षेत्र

  • इसके अंतर्गत अन्य प्रमुख फोकस क्षेत्र सड़कें (19%) , रेलवे (13%), शहरी अवसंरचना (16%), ग्रामीण अवसंरचना (8%) और सिंचाई (8%) हैं।
  • स्वास्थ्य और शिक्षा सहित सामाजिक अवसंरचना पर पूंजीगत व्यय का 3% खर्च किया जाएगा, साथ ही डिजिटल संचार और औद्योगिक व्यय हेतु प्रत्येक को समान राशि मिलेगी।
  • कृषि और खाद्य प्रसंस्करण बुनियादी ढांचे पर नियोजित पूंजीगत व्यय का 1% खर्च किया जाएगा।

NIP का क्षेत्रवार विवरण (लाख करोड़ रुपए में मूल्य)

खाद्य प्रसंस्करण

0.01

खेल

0.08

स्टील

0.08

पर्यटन

0.24

स्कूली शिक्षा

0.38

कृषि

0.54

बंदरगाह

1.01

उच्च शिक्षा

1.18

हवाई अड्डों

1.43

परमाणु ऊर्जा

1.54

स्वास्थ्य

1.69

पेट्रोलियम प्राकृतिक गैस

1.95

औद्योगिक गलियारे

2.99

डिजिटल अवसंरचना

3.20

पेयजल

3.62

ग्रामीण अवसंरचना

4.11

सिंचाई

7.73

अक्षय ऊर्जा

9.30

परंपरागत ऊर्जा

11.76

रेलवे

13.69

शहरी और आवास

16.29

सड़क

19.64

·         सड़क, शहरी और आवास, रेलवे, बिजली (नवीकरणीय और पारंपरिक) और सिंचाई में NIP का 80% शामिल है।

परियोजना का प्रभाव

अर्थव्यवस्था

  • सुनियोजित राष्ट्रीय अवसंरचना पाइपलाइन अवसंरचना परियोजनाओं को अधिक सक्षम बनाकर ,व्यवसायों में वृद्धि, रोजगार सृजन , जीवनयापन में सुगमता और बुनियादी ढांचे तक सभी की समान पहुंच प्रदान कर, विकास को और अधिक समावेशी बनाएगी।

सरकार

  • सुविकसित बुनियादी ढांचा आर्थिक गतिविधि के स्तर को बढ़ाने, सरकार के राजस्व आधार में सुधार करके अतिरिक्त वित्तीय संसाधन प्रदान करने और उत्पादक क्षेत्रों में केंद्रित व्यय की गुणवत्ता को मजबूत करने में मदद करता है।

डेवलपर्स

  • परियोजनाओं को पूरा करने के संबंध में बेहतर दृष्टिकोण, परियोजना में बोली लगाने के लिये तैयारी हेतु पर्याप्त समय के साथ ही परियोजना के असफल होने जैसी आशंका को कम करता है तथा निवेशकों के आत्मविश्वास में वृद्धि द्वारा वित्तीय स्रोतों तक बेहतर पहुंच सुनिश्चित करता है।

बैंक/वित्तीय संस्थान (FI)/ निवेशक

  • यह कार्यक्रम परियोजनाओं की बेहतर तरीके से तैयारी के माध्यम से निवेशकों के विश्वास को बढ़ाता है तथा सक्रिय परियोजना निगरानी के माध्यम से दबाव को कम करता है, जिससे गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों (Non-Performing Assets – NPAs) की संभावना कम होती है।

आगे की राह

  • 2025 तक 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था के लक्ष्य को पूरा करने हेतु तेजी से विकास के लिए अधिक आपूर्ति-पक्ष सुधारों की आवश्यकता है। नई अवसंरचना और मौजूदा बुनियादी ढांचे मे सुधार भारत की प्रतिस्पर्धात्मकता को बढ़ाने और इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए महत्वपूर्ण होगा।
  • यह ‘मेक इन इंडिया’ कार्यक्रम की सफलता के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण होगा, क्योंकि विनिर्माण प्रतिस्पर्धात्मकता बुनियादी ढांचे पर निर्भर करती है। बुनियादी ढांचे का विकास अल्पकालिक वृद्धि दर के साथ ही जीडीपी वृद्धि की संभावित दर को बढ़ाएगा।
  • अवसंरचना परियोजनाओं में श्रम-बल की आवश्यकता होगी, जो अर्थव्यवस्था में रोजगार और आय सृजन के साथ ही घरेलू मांग को बढ़ाएगा। बेहतर लॉजिस्टिक और नेटवर्क के माध्यम से बेहतर बुनियादी ढांचे की क्षमता से अर्थव्यवस्था की प्रतिस्पर्धात्मकता में सुधार होगा, जिससे अर्थव्यवस्था में अधिक निवेश विकास और रोजगार सृजन के चक्र में मदद मिल सकती है।

राष्ट्रीय औद्योगिक गलियारा विकास और कार्यान्वयन ट्रस्ट

  • हाल ही में, सरकार ने पांच औद्योगिक गलियारे परियोजनाओं के विकास को मंजूरी दीजो राष्ट्रीय औद्योगिक गलियारा विकास और कार्यान्वयन ट्रस्ट (National Industrial Corridor Development and Implementation Trust - NICDIT) के माध्यम से कार्यान्वित किये जायेंगे।
  • सरकार ने दिल्ली मुंबई औद्योगिक गलियारा परियोजना कार्यान्वयन ट्रस्ट फंड (DMIC-PITF) के विस्तार को मंजूरी दे दी और इसे राष्ट्रीय औद्योगिक गलियारा विकास और कार्यान्वयन ट्रस्ट (NICDIT) के रूप में नामित किया।

राष्ट्रीय औद्योगिक गलियारा विकास और कार्यान्वयन ट्रस्ट (NICDIT)

  • NICDIT की स्थापना 2017 में की गयी थी | यह औद्योगिक नीति और संवर्धन विभाग (DIPP) के प्रशासनिक नियंत्रण के तहतदेश के सभी पांच औद्योगिक गलियारों के समन्वित और एकीकृत विकास के लिए सर्वोच्च निकाय है।

कार्य

  • यह विकास परियोजनओं से सम्बंधित गतिविधियों का मूल्यांकन, अनुमोदन तथामंजूरी प्रदान करने से सम्बंधित है।
  • यह विकास परियोजनाओं को भारत सरकार के कोषों के साथ-साथ संस्थागत कोषोंकी उपलब्धता सुनिश्चित करता है जिससे किव्यापक राष्ट्रीय हित में विभिन्न औद्योगिक गलियारों और शहर के विकास से सम्बंधित परियोजनाओं का विकास एवं कार्यान्वयन हो सके।

लाभ

  • औद्योगिक गलियारों के विकास से अनुभव को साझा करने का मंच उपलब्ध करता है ।
  • समग्र योजना और विकास दृष्टिकोण सुनिश्चित करता है |
  • ऐसी परियोजनाओं के योजना बनाने, प्रारूपके विकास और वित्त पोषण जैसे क्षेत्रों में नवाचार को बढ़ावा देता है |
  • देश में विनिर्माण की हिस्सेदारी बढ़ाने, विनिर्माण और सेवा उद्योग क्षेत्रों में निवेश को आकर्षित करने में सहायक है ।

पांच औद्योगिक गलियारे

  • भारत सरकार द्वारा पांच औद्योगिक गलियारा परियोजनाओं को प्रारंभ किया गया है। ये गलियारे औद्योगिकीकरण और नियोजित शहरीकरण को गति प्रदान करने है एवं समावेशी विकास को ध्यान में रखते हुए पूरे भारत में फैले हुए हैं।

उद्देश्य                                

  • जीडीपी में विनिर्माण की कुल हिस्सेदारी में वृद्धि, अच्छा प्रदर्शन करने वाले क्षेत्रों की मजबूती का लाभ उठाना।
  • समग्र आर्थिक समृद्धि को बढ़ाने के लिए उच्च तकनीक और उच्च मूल्य संवर्धित क्षेत्रों को बढ़ावा देना।
  • वैश्विक उत्पादन नेटवर्क और वैश्विक मूल्य श्रृंखला (GVC) में व्यापार प्रतिस्पर्धा को बढ़ाना।
  • लैंगिक समानता और एमएसएमई क्षमताओंके माध्यम से समावेशन को विकसित करना।

क्र.सं.

औद्योगिक गलियारा

राज्यों

1

दिल्ली मुंबई औद्योगिक गलियारा (DMIC)

उत्तर प्रदेश, हरियाणा,राजस्थान, मध्य प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र

2

अमृतसर कोलकाता औद्योगिक गलियारा (AKIC)

पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल

3

चेन्नई बेंगलुरु इंडस्ट्रियल कॉरिडोर (CBIC)

आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु, केरल

4

विजाग चेन्नई इंडस्ट्रियल कॉरिडोर (VCIC) के साथ ईस्ट कोस्ट इकोनॉमिक कॉरिडोर (ECEC) चरण -1

पश्चिम बंगाल, ओडिशा, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु

5

बेंगलुरु मुंबई औद्योगिक गलियारा (BMIC)

कर्नाटक, महाराष्ट्र

 

औद्योगिक गलियारों की वर्तमान स्थिति

दिल्ली मुंबई औद्योगिक गलियारा (DMIC)

  • सभी चिन्हित नोड्स/शहरों के लिए विशेष प्रयोजन वाहन (एसपीवी)का गठनकर लिया गया हैं, भूमि निपटान नीतियों को अंतिम रूप दे कर निम्नलिखित स्थानों पर निवेशकों को भूमि आवंटन की प्रक्रिया शुरू की गई है:
    • धोलेरा गुजरात में विशेष निवेश क्षेत्र
    • महाराष्ट्र में शेंद्रा-बिडकिन औद्योगिक क्षेत्र
    • उत्तर प्रदेश के ग्रेटर नोएडा में एकीकृत औद्योगिक टाउनशिप परियोजना
    • मध्य प्रदेश में उज्जैन के पास एकीकृत औद्योगिक टाउनशिप परियोजना ‘विक्रमउद्योगपुरी’

अमृतसर कोलकाता औद्योगिक गलियारा (AKIC)

  • AKIC कॉरिडोर का समग्र ख़ाका तैयार किया जा चुका है और निम्नलिखित राज्यों में एकीकृत विनिर्माण क्लस्टर (IMC) विकास के लिए साइट की पहचान की जा चुकी है:
    • पंजाब (राजपुरा-पटियाला)
    • उत्तराखंड (प्राग-खुर्पिया फार्म)
    • उत्तर प्रदेश (भाऊपुर)
    • बिहार (गम्हरिया)
    • झारखंड (बरही)
    • पश्चिम बंगाल (रघुनाथपुर)
    • हरियाणा (साहा)

चेन्नई बेंगलुरु इंडस्ट्रियल कॉरिडोर (CBIC)

  • गलियारे के लिए समग्रपरिप्रेक्ष्य योजना पूरी हो चुकी है और विकास के लिए तीन नोड्स की पहचान की गई है:
    • कृष्णापटनम (आंध्र प्रदेश)
    • तुमकुरु (कर्नाटक)
    • पोंनेरी (तमिलनाडु)
  • आंध्र प्रदेश में कृष्णापटनम नोड में परियोजना के निष्पादन के लिए एक एसपीवी को निगमित किया जा चुका है। विस्तृत मास्टर प्लानिंग और प्रारंभिक इंजीनियरिंग गतिविधियों का अंतिम प्रारूप तैयार कर किया गया जिसे NICDIT ने 30 अगस्त, 2019 को हुई बैठक में परियोजना प्रस्ताव पर विचार कर और आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति (सीसीईए) से अंतिम अनुमोदन के लिए भेज दी।

विजाग चेन्नई औद्योगिक गलियारा (VCIC)

  • आंध्र प्रदेश सरकार (GoAP) 631 मिलियन अमेरिकी डॉलर के ADB ऋण के साथ VCIC परियोजना को लागू कर रही है। एशियाई विकास बैंक (ADB) ने VCIC के लिए प्रारंभिक परियोजना विकास गतिविधियों को अंजाम दिया है।
  • ADB ने विकास के लिए विशाखापत्तनम, चित्तूर, दोनाकोंडा और मछलीपट्टनम नामक चार नोड्स की पहचान की है। इनमें से विशाखापत्तनम और चित्तूर को आंध्र प्रदेश सरकार द्वारा प्राथमिकता दी गई है।

बेंगलुरु मुंबई इंडस्ट्रियल कॉरिडोर (BMIC)

  • कर्नाटक में समग्र BMEC परियोजना और धारवाड़ नोड के लिए परिप्रेक्ष्य योजना पूरी कर ली गई है और इसके कार्यान्वयन के लिए धारवाड़ नोड (कर्नाटक) को प्राथमिकता नोड के रूप में पहचाना की गयी है।
  • महाराष्ट्र सरकार भूमि और पानी की समस्याओं के कारण नोड्स के गठन को अंतिम रूप नहीं दे पाई है।

औद्योगिक गलियारों की महत्ता

  • प्रगति के पहिये: औद्योगिक गलियारे अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों की अन्योन्याश्रयता को मान्यता देते हैं और उद्योग और बुनियादी ढांचे का प्रभावी एकीकरण करते हैं जिससे समग्र सामाजिक-आर्थिक विकास होता है। औद्योगिक गलियारे अत्याधुनिक बुनियादी ढांचे बने होते है; जैसे उच्च गति परिवहन (रेल/सड़क) नेटवर्क, उन्नत कार्गो हैंडलिंग उपकरण के साथ बंदरगाह, आधुनिक हवाई अड्डों, विशेष आर्थिक क्षेत्रों/औद्योगिक क्षेत्रों, लॉजिस्टिक पार्क आदि | ये उद्योग की आवश्यकताओं को पूरा करने के उद्देश्य से बनाये गए होते है।
  • विनिर्माण क्षेत्र को बढ़ावा: इन गलियारों में से प्रत्येक में विनिर्माण एक महत्वपूर्ण आर्थिक गतिविधि होगा और इन परियोजनाओं कासमग्र जीडीपी में, विनिर्माण का हिस्से को बढ़ाने में महत्वपूर्ण माना जा रहा है। कॉरिडोर के किनारे स्मार्ट औद्योगिक शहर विकसित किए जा रहे हैंजो विनिर्माण और नियोजित शहरीकरण को बढ़ावा देगा।
  • बड़े पैमाने पर रोजगार: औद्योगिक गलियारा औद्योगिक विकास को प्रोत्साहित करने के इरादे से बनाये जा रहे है | यह विशिष्ट भौगोलिक क्षेत्र में बड़े पैमाने पर रोजगार सृजन (प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष दोनों प्रकार की नौकरियों) करने में सक्षम है।
  • राज्यों की आर्थिक वृद्धि: यह परियोजना रिवर्स माइग्रेशन को बढ़ावा देगा |राज्य के बाहर कार्य कर रहे युवा श्रम शक्ति (कुशल एवं अकुशल) को अपने राज्य में कार्य करने के लिए आकर्षित करेगा| इस परियोजना से राज्यों की समग्र आर्थिक वृद्धि और इसकी रोजगार सृजन को स्थायी मोड पर लाया जा सकता है।
  • लॉजिस्टिक लागत को कम करना: औद्योगिक गलियारा मल्टी-मोडल परिवहन सेवा उपलब्ध कराता है जो मुख्य धमनी के रूप में राज्यों से होकर गुजरेगी। इस मुख्य धमनी के दोनों किनारों पर स्थित औद्योगिक और राष्ट्रीय विनिर्माण और निवेश क्षेत्र (NMIZ) से माल को रेल और सड़क फीडर लिंक के माध्यम से औद्योगिक गलियारे में लाया जाएगा जो लास्ट मील कनेक्टिविटी प्रदान करेगा। इससे लॉजिस्टिक्स की लागत कम होगी और कंपनियां ‘कोर कम्पटीशन’ पर ध्यान केंद्रित कर सकेंगी।
  • मेक इन इंडिया का प्रोत्साहन: मेक इन इंडिया जैसे कार्यक्रमों को देश के आगामी औद्योगिक गलियारों को प्रोत्साहन मिलेगा, जिससे बड़े पैमाने पर विदेशी निवेश आकर्षित होंगे और देश की आर्थिक वृद्धि होगी।
  • सामाजिक एकता में वृद्धि: गलियारे लोगों को घरों के करीब रोजगार के अवसर प्रदान करते हैं और उन्हें दूर-दूर के स्थानों पर नहीं जाना पड़ता है, जिससे एक संस्था के रूप में परिवार का संरक्षण होता है। अंततः इससेदेश में सामाजिक एकीकरण भी बढ़ेगा।

 

औद्योगिक गलियारों के विकास को चुनौती

भूमि अधिग्रहण

  • भूमि अधिग्रहण राज्य का विषय है, और गलियारे में भूमि अधिग्रहण एक प्रमुख मुद्दा रहा हैं, जिससे परियोजना कार्यान्वयन में देरी हुई है। चूंकि औद्योगिक गलियारा राज्य के बीच से होकर गुजरेगी, इसलिए कानूनी बाधाओं और मुआवजे की राशि के विवाद के कारण भूमि का अधिग्रहण धीमा हो गया है।
  • औद्योगिक गलियारे में बड़े पैमाने पर निवेश, मानव विस्थापन और उपजाऊ कृषि भूमि के औधोगिक कार्य में विपथन जैसे समस्याओं को जन्म देगा |इससे देश में खाद्य सुरक्षा और अन्य विभिन्न सामाजिक समस्याओं के लिए गंभीर खतरा पैदा हो जाएगा।

परियोजना अनुमोदन में देरी

  • भारत में किसी भी औद्योगिक गतिविधि के लिए अवधारणा से लेकर आयोग तक कई मंजूरी की आवश्यकता होती है और औद्योगिक गलियारा इसके अपवाद नहीं है।

नीतिगत अड़चनें

  • कंबोडिया, थाईलैंड और वियतनाम जैसे पड़ोसी देशों की तुलना में भारत में बहुत अधिक कॉर्पोरेट कर की दर है। यह प्रतिस्पर्धी देशों की तुलना में भारत को एक अनाकर्षक निवेश गंतव्य बनाता है।
  • इसके अलावा, भारत में आयात शुल्क की दर अधिकहै, जो वैश्विक मूल्य श्रृंखलाओं को स्थापित करने के लिए चुनौतीपूर्ण स्थिति बनती है।

आगे की राह

  • औद्योगिक गलियारों की रणनीति एक स्वस्थ औद्योगिक आधार विकसित करने के लिए जरुरी है, जिससे उत्कृष्ट बुनियादी ढांचे का विकास और विनिर्माण की स्वाभाविक वृद्धि होगी। हालाँकि, यह सब केवल आलंकारिक ही रहेगा अगर औद्योगिक गलियारे की परियोजनाओं के मुद्दों का समाधान नहीं किया जाता है।
  • इसके लिए सभी सरकारी विभागों और हितधारकों को समग्र दृष्टिको के साथ भागीदारी की आवश्यकता है जो जमीन अधिगृहित किये गए किसानों ,उत्पादनके लिए इकाइयां स्थापित करने वाले निर्माता,परिवहन ऑपरेटरों आदि को शामिल करता हो ।
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