सामयिक

सरकार की नीतियां और हस्तक्षेप:

फेम इंडिया योजना- द्वितीय चरण (Fame India SchemePhase- II)

  • 26 सितंबर, 2020 को भारतसरकार ने फेमइंडिया योजना के चरण- II के तहत देश में विद्युत गतिशीलता (Electric Mobility) को बढ़ावा देने के लिए 670 इलेक्ट्रिक बसों और 241 चार्जिंग स्टेशनों को मंजूरी दी है।

फेम इंडिया योजना के बारे में

  • वर्ष 2015 में बड़े उद्योग एवं सार्वजनिक उपक्रम मंत्रालय ने इलेक्ट्रिक वाहनों और हाइब्रिड(संकर) वाहनों सहित पर्यावरण के अनुकूल वाहनों के उत्पादन और संवर्धन को प्रोत्साहित करने के लिए फेम (FAME- Faster Adoption and Manufacture of Hybrid and Electric Vehicles) इंडिया योजना की शुरुआत की थी।
  • यह राष्ट्रीय विद्युत गतिशीलता मिशन योजना का एक अंग है।
  • इस योजना के तहत दो पहिया, तीन पहिया, इलेक्ट्रिक और हाइब्रिड कार तथा इलेक्ट्रिक बस जैसे वाहनों की ख़रीद पर सब्सिडी का प्रावधान है।
  • इसमें इलेक्ट्रिक और हाइब्रिड (संकर) तकनीकी जैसे- हल्के हाइब्रिड (Mild Hybrid), मजबूत हाइब्रिड (Strong Hybrid), प्लग इन हाइब्रिड (Plug in Hybrid) और बैटरी इलेक्ट्रिक वाहन भी शामिल है।

फेम-इंडिया (FAME-India)के दो चरण

  • प्रथम चरण: वर्ष 2015 में शुरू हुआऔर 31 मार्च2019 को पूरा हुआ।
  • द्वितीय चरण:1 अप्रैल, 2019 से शुरू हुआ और 31 मार्च,2022 तक पूरा होगा।

केंद्रित क्षेत्र

  • तकनीकी (प्रौद्योगिकी) विकास
  • मांग का सृजन
  • अग्रगामी परियोजना (Pilot project)
  • चार्जिंग के लिए बुनियादी ढाँचा तैयार करना

फेम इंडिया योजना चरण- II

  • फेम इंडिया योजना चरण- II का उद्देश्यइलेक्ट्रिक वाहनों (EV- Electric Vehicles) की ख़रीद पर अग्रिम प्रोत्साहन (Upfront Incentive)तथाइलेक्ट्रिक वाहनों के चार्जिंग के लिए आवश्यक बुनियादी ढांचों के निर्माण के माध्यम सेइलेक्ट्रिक और हाइब्रिड (संकर) वाहनों को तेजी से अपनाने के लिए प्रोत्साहित करना है।
  • यह निर्माताओं को प्रोत्साहन (Incentives) प्रदान करता है, जो इलेक्ट्रिक वाहनों और इसके घटकों (Components) को विकसित करने में निवेश करते हैं, जिसमें लिथियम-आयन बैटरी और इलेक्ट्रिक मोटर्स शामिल हैं।

प्रभाव

  • प्रदूषण पर नियंत्रण: देश में इलेक्ट्रिक वाहनों को अपनाने से जीवाश्म ईंधन के अंधाधुंध उपयोग के कारण वायु प्रदूषण की भया वह समस्या को दूर करने में मदद मिलेगी।
  • जीवाश्म ईंधन का सतत उपयोग: यह ईंधन सुरक्षा प्रदान करता है क्योंकि यह जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता को कम करने में मदद करता है जिससे जीवाश्म ईंधन के टिकाऊ और कुशल उपयोग का मार्ग प्रशस्त होता है।

राष्ट्रीय विद्युत गतिशीलता मिशन योजना (NEMMP- National Electric Mobility Mission Plan)

  • यह योजना भारत सरकार द्वारा 2013 में देश में इलेक्ट्रिक और हाइब्रिड(संकर) वाहनों को बढ़ावा देकर राष्ट्रीय ईंधन सुरक्षा प्राप्त करने के उद्देश्य से शुरू की गई थी।
  • वर्ष 2020 से साल दर साल 60-70 लाख हाइब्रिड और इलेक्ट्रिक वाहनों की बिक्री हासिल करने का महत्वाकांक्षी लक्ष्य है।
  • यह विभिन्न नीति-प्रभाविता का उपयोग करके तैयार की गयी एक समग्र योजना है, जैसे-
    • हाइब्रिड / इलेक्ट्रिक वाहनों के अधिग्रहण की सुविधा के लिए मांग करने वाले को प्रोत्साहन (Demand side incentives)।
    • बैटरी तकनीकी, पावर इलेक्ट्रॉनिक्स, मोटर्स, सिस्टम एकीकरण सहित तकनीकी में अनुसंधान और विकास (R&D) को बढ़ावा देना।
    • चार्जिंग के बुनियादी ढांचे को बढ़ावा देना।
    • आपूर्ति पक्ष के लिए प्रोत्साहन (incentives)।
    • ऑन-रोड वाहनों को रेट्रो-फिटमेंट के लिए प्रोत्साहित करना, यह एक हाइब्रिड किट है।

कीटनाशक प्रबंधन विधेयक- 2020

  • विशेषज्ञों के अनुसार, यदि कीटनाशक प्रबंधन विधेयक (PMB)-2020 मौजूदा रूप में पारित हो जाता है तो इसका भारतीय कृषि और लोगों की आजीविका पर दूरगामी प्रभाव पड़ेगा।
  • इसलिए, विशेषज्ञों ने विधेयक पर व्यापक विचार-विमर्श का आह्वान किया है और इसे एक चयन समिति के समक्ष रखने को कहा है।
  • वर्तमान में,कीटनाशक अधिनियम, 1968 के तहत भारत में कीटनाशकों का पंजीकरण, विनिर्माण, निर्यात, बिक्री और उपयोग का नियंत्रण होता है।

कीटनाशक प्रबंधन विधेयक- 2020 के बारे में

  • यह विधेयक सुरक्षित कीटनाशकों की उपलब्धता सुनिश्चित करने तथा मनुष्यों, जानवरों और पर्यावरण के लिए जोखिम को कम करने के लिए कीटनाशकों के विनिर्माण, आयात, बिक्री, भंडारण, वितरण, उपयोग और निपटान (Disposal) को विनियमित करने का प्रयास करता है।
  • यह विधेयक,कीटनाशक अधिनियम, 1968 की जगह लेगा।

प्रमुख प्रावधान

  • कीटनाशक प्रबंधन विधेयक- 2020, कीटनाशकों की ताकत और कमजोरी, जोखिम और विकल्पों के बारे में सभी जानकारियां प्रदान करेगा जिससे किसानों में कीटनाशकों के प्रति जागरूकता बढ़ेगी।सभी जानकारियां डिजिटल प्रारूप में और सभी भाषाओं में डेटा के रूप में खुले तौर पर उपलब्ध होगी।
  • प्रत्येक व्यक्ति जो कीटनाशक का आयात, निर्माणया निर्यात करना चाहता है, उसे नए विधेयक के तहत पंजीकरण कराना होगा और उस कीटनाशक को स्टॉक करने के लिए उपलब्ध किसी भी दावे, अपेक्षित प्रदर्शन, प्रभावकारिता, सुरक्षा, उपयोग के निर्देशों और बुनियादी ढांचे के बारे में सभी प्रकार के विवरण प्रदान करने होंगे।
  • उन्हीं जानकारियों में पर्यावरण पर कीटनाशक के संभावित प्रभावों का विवरण भी शामिल होगा।
  • इस विधेयकमें कीटनाशकों के संयमी या निम्न गुणवत्ता के उपयोग के कारण नुकसान होने की स्थिति में किसानों को क्षतिपूर्ति करने का प्रावधान भी शामिल है।
  • यह विधेयक केंद्र सरकार को मुआवजे की ख्याल रखने के लिए एक केंद्रीय कोष बनाने के लिए बाध्य करता है।
  • इस विधेयक में कीटनाशक उद्योगों और निर्माताओं द्वारा भ्रामक दावों की जाँच करने और कीटनाशकों से संबंधित विज्ञापनों को विनियमित करने की योजना है।
  • यह विधेयक जैविक कीटनाशकों को बढ़ावा देने का भी इरादा रखता है।

महत्व

  • यह कीटनाशक प्रबंधन विधेयक, कीटनाशकों के उपयोग को कम करने तथा सुरक्षित पंजीकृत कीटनाशक और जैविक कीटनाशकों के उपयोग को बढ़ाने के प्रयासों को मजबूत करेगा।
  • इसके अलावा, यह हमारे देश की खाद्य और खेती प्रणाली को बेहतर करने का अवसर है, लेकिन कीटनाशक निर्माताओं के लिए पंजीकरण प्रक्रिया को और अधिक कठोर बनाने की आवश्यकता है।

कीटनाशक प्रबंधन विधेयक- 2020 के साथ मुख्य मुद्दे

  • यह विधेयक भारत में कीटनाशक उपयोग हेतु पंजीकरण के बिना कीटनाशकों के निर्माण और निर्यात की अनुमति नहीं देगा, भले ही ये अन्य देशों में अनुमोदित हों।
  • वर्तमान कीटनाशक प्रबंधन विधेयक निर्मित कीटनाशकों के आयात को बढ़ाएगा और कृषि-रसायनों के निर्यात को नुकसान पहुंचाएगा। यह सीधे तौर पर भारत से घरेलू और स्वदेशी उद्योगों और कृषि निर्यात को बढ़ावा देने के लिए 2018 में गठित अशोक दलवई समिति द्वारा प्रस्तुत मांगों के ख़िलाफ़ है, जो कीटनाशक प्रबंधन विधेयक- 2020 से गायब है।समिति ने आयात और आयात पर निर्भरता में कमी की सिफारिश की थी।
  • यह विधेयक पंजीकरण समिति (RC) को एक कीटनाशक के पंजीकरण की समीक्षा करने, फिर इसके उपयोग को निलंबित करने, रद्द करने और यहां तक कि प्रतिबंध लगाने की शक्तियां देता है। यह बिना किसी वैज्ञानिक मूल्यांकन के किया जाएगा। कुछ परिदृश्य भारतीय किसानों के कामकाज और उत्पादकता को बाधित कर सकते हैं।
  • इसके अलावा, यह 1968 अधिनियम के तहत पहले से पंजीकृत कीटनाशकों को पुन: पंजीकरण प्रदान करता है। यह देश भर में कीटनाशकों के उद्योग में अस्थिरता लाएगा।
  • इस विधेयक में किसी भी कीट-संक्रमण आपातकाल के दौरान कीटनाशकों के आपातकालीन उपयोग की मंजूरी का प्रावधान नहीं है।

आगे का रास्ता

  • कीटनाशक प्रबंधन विधेयक के वर्तमान रूप में काफ़ी अंतर हैं जो केंद्र सरकार के लक्ष्य, “2022 तक किसानों की आय को दोगुना करना”, को प्रभावित कर सकता है।
  • किसानों को सस्ते और प्रभावोत्पादक उत्पाद (affordable and efficacious products) प्रदान करने वाली घरेलू फसल संरक्षण उद्योग की क्षमताओं को हाशिए पर रखकर (जिनमें से अधिकांश में छोटे किसान हैं), कीटनाशक प्रबंधन विधेयक- 2020 किसानों की आजीविका को खतरे में डाल सकता है और खाद्य सुरक्षा के बारे में चिंता पैदा कर सकता है।
  • कीटनाशक प्रबंधन विधेयक किसानों को पेश आ रही समस्याओं के विज्ञान आधारित समाधानों को प्रोत्साहित करके और कृषि को अधिक लाभदायक और टिकाऊ बनाने के लिए कृषि क्षेत्र में सुधार का एक महत्वपूर्ण अवसर प्रदान करता है।
  • मजबूत प्रशासन सुनिश्चित करने और पंजीकरण समिति (Registration Committee) के फैसलों की देखरेख और समीक्षा करने के लिए एक सक्षम निकाय की आवश्यकता है।यह धारा 23 और 24 में संशोधन करके और कीटनाशक प्रबंधन बिल में संबंधित अनुभाग,जहाँ पंजीकरण समिति को अपने निर्णयों की समीक्षा करती है, द्वारा आसानी से हासिल किया जा सकता है।
  • यह भारतीय किसानों और कीटनाशक उद्योगों के हित में है कि उनका प्रशासन पारदर्शी, स्थिर और जवाबदेह हो।
  • किसान समुदाय केसाथ ही साथ समाज और उद्योग के सर्वोत्तम हित में,संसद के भीतरइस विधेयक की व्यापक चर्चा की आवश्यकता है।
  • आदर्श रूप से, इस विधेयक कोकिसानों, भारतीय कृषि और कीटनाशकों उद्योग की जरूरतों को संबोधित करते हुएमहत्वपूर्ण समीक्षा और आवश्यक परिवर्तन के लिए सांसदों की एक चयन समिति के समक्ष रखा जाना चाहिए।
  • यह अत्यावश्यक है यदि भारत आत्मनिर्भर (Self-Reliant) होना चाहता है तोखाद्य सुरक्षा उद्देश्यों को बढ़ावा देना होगा और अपने लोगों के लिए रोजगार के अवसर पैदा करते हुए दुनिया के लिए एक विश्वसनीय निर्माता और कीटनाशकों के आपूर्तिकर्ता के रूप में उभरना पड़ेगा।

भारत में कीटनाशकों का उपयोग

  • बाजार विभाजन के साथ मुख्य रूप से कीटनाशकों की ओर झुकाव हुआ और वर्तमान में भारत दुनिया में कीटनाशकों का चौथा सबसे बड़ा उत्पादक है।
  • घरेलू बाजार में, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, पंजाब और हरियाणा सबसे अधिक खपत वाले राज्यों में शामिल हैं।
  • महाराष्ट्र ने 2014-15 और 2018-19 के बीच अपने कीटनाशक की खपत में 35.6% की वृद्धि हुई, जबकि यूपी ने 14.17% की वृद्धि दर्ज की गयी।
  • 2014-15 और 2017-18 के बीच देश भर में कीटनाशक की खपत 13.07% बढ़ी है।
  • जैव कीटनाशकों की खपत औसतनकुल कीटनाशकों की केवल 10% के लिए होती है।
  • देश में 292 कीटनाशक पंजीकृत हैं और यह अनुमानित है कि भारत में लगभग 104 कीटनाशकों का उत्पादन / उपयोग ज़ारी है जो दुनिया में दो या अधिक देशों में प्रतिबंधित हैं।

राष्ट्रीय हथकरघा दिवस

  • हथकरघा समुदाय को सम्मानित करने और भारत के सामाजिक-आर्थिक विकास के लिए उनके योगदान को स्वीकृति प्रदान करने के लिए, 7 अगस्त, 2020 को 6वां राष्ट्रीय हथकरघा दिवस मनाया गया।

उद्देश्य

  • इसका उद्देश्य इस धरोहर की रक्षा करना और इस क्षेत्र में श्रमिकों को सशक्त बनाना है।
  • पहला राष्ट्रीय हथकरघा दिवस 2015 में चेन्नई में सरकार द्वारा आयोजित किया गया था।

महत्व

  • हथकरघा क्षेत्र भारत की सांस्कृतिक विरासत के प्रमुख प्रतीकों में से एक है।
  • राष्ट्रीय हथकरघा दिवस देश के सामाजिक आर्थिक विकास, बुनकरों की आय में वृद्धि तथा हथकरघा के योगदान को उजागर करने के लिए घोषितकिया गया है।
  • यह आजीविका का एक महत्वपूर्ण स्रोत है, ख़ासकर महिलाओं के लिए, क्योंकि महिलाएं हथकरघा क्षेत्र में बुनकरों या इससे संबद्ध श्रमिकों का लगभग 70% हैं।

7 अगस्त का दिन चुनने का कारण

  • केंद्र सरकार ने जुलाई 2015 में हथकरघा उद्योग के महत्व के बारे में जागरूकता पैदा करने के उद्देश्य से 7 अगस्त को राष्ट्रीय हथकरघा दिवस घोषित किया था।
  • चूंकि 7 अगस्त को ब्रिटिश सरकार द्वारा बंगाल विभाजन के विरोध में 1905 में कलकत्ता टाउन हॉल में स्वदेशी आंदोलन शुरू किया गया था, अतः राष्ट्रीय हथकरघा दिवस के रूप में इस दिन को चुना गया।
  • इस आंदोलन का उद्देश्य घरेलू उत्पादों और उत्पादन प्रक्रियाओं को पुनर्जीवित करना था।

हथकरघा क्षेत्र के साथ मुद्दे

असंगठित क्षेत्र होने का कलंक

  • मुख्य रूप से बुनकर, घरेलू उद्योगअसंगठित हैं और इनके उत्पादन स्वरूप ज्यादातर बिखरे हुए और विकेंद्रीकृत हैं तथा सहकारी क्षेत्र के विपरीत, विपणन की कोई रणनीति नहीं है।

कच्चे माल की गैर-उपलब्धता

  • चौथा अखिल भारतीय हथकरघा जनगणना (2019-2020) के अनुसार लगभग 59.5 प्रतिशत बुनकर परिवारों द्वारा आवश्यक कच्चे माल उपलब्ध हो पाते है। कपास, रेशम, और ऊनी धागों से लेकर रंगों तक की लागत में वृद्धि हुई है और इसका अभाव भी है।
  • वर्ष 2015 में आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और महाराष्ट्र में बुनकरों के लिए कपास की कमी के बारे में चिंता व्यक्त की गई थी। बुनकरों को अपनी परिवहन लागतों में कपास जोड़ने के लिए भारी मसक्कत का सामना करना पड़ा। इसके अलावा, छोटे बुनकर थोक में कम मात्रा में सामग्री खरीदने में असमर्थ हैं।

घटती ऋण सहायता

  • टेक्सटाइल एसोसिएशन ऑफ इंडिया ने रिकॉर्ड किया है कि टेक्सटाइल सेक्टर के लिए बजट आवंटन पिछले वित्त वर्ष में 6,943 रुपये से घटकर 4,831 करोड़ रुपये (2019-2020) हो गया।
  • इसका मतलब यह भी है कि आवास, सब्सिडी, स्वास्थ्य बीमासे जुडी विभिन्न योजनाएंबुनकरों को प्रभावित करेंगी।
  • इसी के चलते अक्सर छोटे बुनकर मनी लेंडर्स पर निर्भर होते हैं। बुनकरों की आत्महत्याओं ने हाल के वर्षों में काफ़ी सुर्खियां बटोरी हैं।

अन्य क्षेत्रों में प्रवासन

  • कई पारंपरिक रूप से करघा क्षेत्र से जुड़े परिवार अपना पुस्तैनी काम छोड़कर शहरों में मज़दूरी के लिए चले गए, जिसके चलते इस क्षेत्र में गिरावट आई
  • हालांकि हाल ही में हथकरघा की जनगणना (2019-2020) बताती है कि लगभग 31.44 लाख हथकरघा परिवार हैंऔर पिछली जनगणना में 27.83 लाख से वृद्धि देखी गई है। हालांकि संख्या अभी भी निराशाजनक है।

पुरानी आधारभूत सुविधाएँ

  • चूंकि हथकरघा निर्माण एक विशाल भौगोलिक क्षेत्र में फैले बुनकरों के घरों में किया जाता है, इसलिए इसमें आवश्यक अवसंरचना का अभाव होता है जो औद्योगिक संपदा में उपलब्ध है।अलग-अलग शेड, पानी और बिजली की आपूर्ति, प्रौद्योगिकी समर्थित अपशिष्ट उपचार संयंत्रों और अपशिष्ट प्रबंधन की व्यवस्था नहीं है। ख़राब बुनियादी ढांचा उत्पादकता, गुणवत्ता और लागत को प्रभावित करती है।

अविकसिततकनीकी

  • हथकरघा उद्योग पुराने करघेऔर तकनीकियों का उपयोग कर रहा है। जिसका परिणाम कम उत्पादकता और उच्च लागत है।

जागरुकता की कमी

  • बाजार के रुझान के बारे में बुनकरों की अनभिज्ञता भी उनके सामग्री की कम मांग का कारण है। सरकार द्वारा बुनकरों को बाजार की जानकारी का अभाव और बुनकरों की अशिक्षा इस समस्या के लिए जिम्मेदार कारक हैं।
  • जबकि बुनकरों के लिए वर्तमान में लगभग 13 सरकारी योजनाएं हैं, मूल रूप से तीन प्रतिशत हैं जो बुनकर स्वास्थ्य बीमा योजना के बारे में जानते हैं और केवल 10.5 प्रतिशत ऋणों के लिए ऋण माफ़ी के बारे में जानते हैं जो वे लाभ उठा सकते हैं(हथकरघा जनगणना 2019-2020)।

विद्युत से चलने वाला करघे से प्रतिस्पर्धा

  • पावर लूम से प्रतिस्पर्धा हथकरघा उत्पादों के विपणन में प्रमुख समस्या है।
  • पावर लूम (विद्युत से चलने वाला करघे) के मशरूमिंग (अल्प अवधि में तेजी से वृद्धि) के बाद के वर्षों में यह प्रतिस्पर्धा बढ़ी हैऔर पावर लूम सेक्टर ने सूत की खपत, आरक्षित वस्तुओं के उत्पादन के संबंध में हथकरघा उद्योग के नाम पर कई लाभ उठाए हैं।

हथकरघा क्षेत्र के लिए कल्याणकारी योजनाएँ

हथकरघा बुनकर व्यापक कल्याण योजना

  • प्रधान मंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना (PMJJBY), प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना (PMSBY) और महात्मा गांधी बुनकर योजना (MGBBY) के तहत हथकरघा बुनकरों / श्रमिकों को जीवन, दुर्घटना और विकलांगता बीमा कवरेज प्रदान किया जा रहा है।

राष्ट्रीय हथकरघा विकास कार्यक्रम (NHDP)
एनएचडीपी के घटक

  • हथकरघा बुनकरों और उनके बच्चों की शिक्षा: कपड़ा मंत्रालय ने बुनकरों और उनके परिवारों के लिए शैक्षिक सुविधाओं को सुरक्षित करने के लिए इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय (IGNOU) और राष्ट्रीय मुक्त विद्यालयी शिक्षा संस्थान (NIOS) के साथ समझौता ज्ञापनों पर हस्ताक्षर किए हैं।
  • बुनकर मुद्रा योजना: बुनकर मुद्रा योजना के तहत हथकरघा बुनकरों को 6% की रियायती ब्याज दर पर ऋण प्रदान किया जाता है।
  • ब्लॉक स्तर पर एक क्लस्टर (BLC) का निर्माण: इसे एनएचडीपी के घटकों में से एक के रूप में 2015-16 में प्रस्तुत किया गया। विभिन्न हस्तक्षेपों जैसे कौशल उन्नयन, उत्पाद विकास, आदि के लिए प्रति ब्लॉक स्तर क्लस्टर 2.00 करोड़ रूपये तक की वित्तीय सहायता प्रदान की जाति है।
  • हथकरघा संवर्धन सहायता (HSS): 2016 में बुनकरों को करघे / सामान उपलब्ध कराने के लिए शुरू की गई। विद्युत से चलने वाला करघे / सामान की लागत का 90% भारत सरकार द्वारा वहन किया जाता है जबकि शेष 10% लाभार्थी द्वारा वहन किया जाता है।
  • हथकरघा विपणन सहायता: उपभोक्ताओं को सीधे अपने उत्पाद बेचने के लिए हथकरघा एजेंसियों / बुनकरों को विपणन मंच प्रदान किया गया।
  • इंडिया हैंडलूम ब्रांड: राष्ट्रीय हथकरघा दिवस के रूप में 7 अगस्त 2015 के जश्न के दौरान,इंडिया हैंडलूम ब्रांड को उच्च गुणवत्ता वाले हैंडलूम उत्पादों की ब्रांडिंग के लिए लॉन्च किया गया।

व्यापक हथकरघा क्लस्टर विकास योजना

  • इसे कम से कम 15000 से 25,000 हथकरघों को कवर करने वाले मेगा हैंडलूम क्लस्टर्स के विकास के लिए लागू किया गया है।

सूत आपूर्ति योजना

  • मिल गेट मूल्य पर सभी प्रकार के सूत उपलब्ध कराने के लिए यह योजना पूरे देश में लागू की जा रही है।

आगे का रास्ता

  • इस उद्योग को बढ़ावा देने के लिए, ग्राहकों के विश्वास और भरोसे को जीतने के लिए नए डिजाइन के साथ गुणवत्ता वाले कपड़े का उत्पादन करना आवश्यक माना जाता है।
  • समाज में सक्रिय सदस्यों की संख्या बढ़ाने के लिए सरकार बुनकरों के वेतन में वृद्धि कर सकते है ताकि उन्हें लगातार काम करने के लिए प्रेरित किया जा सके।
  • सरकार बुनकरों को बेहतर डिजाइन के कपड़े पहनने के संबंध में प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित कर सकती है, ताकि प्रशिक्षण के माध्यम से वे अधिक मजदूरी अर्जित करने में सक्षम होंगे और उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार होगा।
  • बुनकरों को नरम शर्तों पर ऋण मिलना चाहिए क्योंकि उनका जुड़ाव बैंक खातों को खोलने, सब्सिडी और डिजिटल गवर्नेंस की सीधी पहुँच जैसी नई पहलों के साथ हो रहा है।
  • मशीनीकृत क्षेत्र से प्रतिस्पर्धा से बचने के लिए सरकार को हथकरघा बुनकर सहकारी समितियों द्वारा उत्पादित सभी उत्पादों के लिए हथकरघा चिह्न के अनिवार्य उपयोग पर जोर देना चाहिए।
  • एनएचडीसी के कामकाज को सुधारने की आवश्यकता है,जो वर्तमान में प्रकृति में सीमित है क्योंकि सब्सिडी वाली कीमतों पर सूत की आपूर्ति का समर्थन करने वाली यह एकमात्र एजेंसी है।
  • प्राथमिक बुनकर सहकारी समितियों (पीडब्लूसीएस) द्वारा अग्रिम भुगतान और सामग्री की खरीद की प्रक्रिया को समाप्त करने की आवश्यकता है और इसके बजायसूत की खरीद के लिए बुनकरों के लिए बाजार खोला जा सकता है।
  • जागरूकता, बाजारों तक पहुँच और अनुसंधान एवं विकास, कच्चे माल की आसान पहुँच और बेहतर ऋण सहायता की आवश्यकता देश के विभिन्न कोनों में बुनकरों को अलग बना सकती है। और फिर हम वास्तव में राष्ट्रीय हथकरघा दिवस मना सकते हैं।

प्रत्यक्ष कर विवाद से विश्वास विधेयक-2020

  • देश भर में विवादित कर मामलों को निपटाने के लिए वित्त मंत्री ने 5 फरवरी 2020 को एक तंत्र प्रदान करने के लिए प्रत्यक्ष कर विवाद से विश्वास (from dispute to trust) विधेयक-2020 पेश किया.
  • हालांकिबजट के बाद, उद्योग परामर्श के दौरान प्राप्त सुझावों के आधार परकेंद्रीय मंत्रिमंडल ने संशोधनों के साथ प्रस्ताव लाने का फैसला किया. यह संसोधन विभिन्न ऋण वसूली न्यायाधिकरणों ( DRTs)में लंबित मुकदमों की सुनवाई करने और इसका दायरा बढानेकी दृष्टि से किया गया. इसके साथ इस योजना में अब खोज और जब्ती के मामलों के क्षेत्र शामिल है. जिसकी सीमा 5 करोड़ रुपये तक है.
  • सबका विश्वास योजना 2019 में अप्रत्यक्ष करों में मुकदमेबाजी को कम करने के लिए लाई गई. जिसके परिणामस्वरूप 1,89,000 से अधिक मामलों का निपटारा किया गया.

उद्देश्य

  • प्रत्यक्ष कर संबंधी विवादों को तीव्रता से हल करना.

ज़रूरत

  • वित्त मंत्रालय के अनुसार, वर्तमान में 4,83,000 प्रत्यक्ष कर मामले हैं.जिनमें लगभग 9 लाख करोड़ रुपये की सामूहिक राशि है,जो विभिन्न अपीलीय मंचों यानी आयुक्त (याचना), आयकर अपीलीय न्यायाधिकरण (ITAT), उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय में लंबित हैं. प्रत्यक्ष कर क्षेत्र में मुकदमेबाजी को कम करना योजना के पीछे का विचार है.


मुख्य विशेषताएं

व्यापक क्षेत्र

  • इसमें आयुक्त (याचना), आयकर अपीलीय न्यायाधिकरणों (ITAT),उच्च न्यायालयों और उच्चतम न्यायालय के स्तर पर लंबित कर विवादों की सुनवाई करने के प्रावधान है.

संकल्प तंत्र

  • प्रस्तावित योजना के तहतविवादों को निपटाने के इच्छुक करदाताओं को इस वर्ष 31 मार्च तक विवाद में कर की पूरी राशि का भुगतान करने पर ब्याज और जुर्माने की पूरी छूट दी जाएगी, जिसके बाद 10 प्रतिशत अतिरिक्त विवादित कर देना होगा। कर देयता के ऊपर और ऊपर भुगतान किया गया.
  • यदि कर विवाद जुर्माना, ब्याज अथवा शुल्क से अधिक हैतो मार्च 2020 के अंत से पहले भुगतान की जाने वाली निपटान राशि देय राशि का 25% है.जिसके आगे उसे 30% तक बढ़ाया जाएगा.

अपीलकर्ता को छुटकारा

  • एक बार विवाद हल हो जाने के बाद, नामित प्राधिकारी उस विवाद के संबंध में ब्याज या जुर्माना नहीं लगा सकता है. इसके अलावा, कोई भी अपीलीय फोरम विवाद का हल होने के बाद उसके संबंध में कोई निर्णय नहीं कर सकता. इस तरह के मामलों में किसी भी कानून के तहत किसी भी कार्यवाही के लिए दोबारा सुनवाई नहीं हो सकती है. इसमें आईटी कानून भी शामिल है. 

विवादों का पुनरुद्धार

  • एक अपीलकर्ता द्वारा दायर की गई घोषणा अवैध हो जाएगी यदि:
  1. इसके विवरण झूठे पाए जाते हैं.
  2. वह आईटी अधिनियम में उल्लिखित शर्तों में से किसी का उल्लंघन करता है.
  3. वह कोई उपाय या दावा चाहता है उस विवाद के संबंध में.नतीजतन, घोषणा के आधार पर वापस ली गई सभी कार्यवाही और दावों को पुनर्जीवित किया गया माना जाएगा. 

विवादों को पर पर्दा नहीं डाला जाना

  • प्रस्तावित तंत्र कुछ विवादों को नहीं ढकेंगे. इनमें निम्न विवाद शामिल हैं:

(i) जहां घोषणा दायर करने से पहले अभियोजन (prosecution) शुरू किया गया है.

(ii) जिसमें ऐसे व्यक्ति शामिल हैं जिन्हें दोषी ठहराया गया है या कुछ कानूनों (जैसे कि भारतीय दंड संहिता) के तहत अपराधों के लिए मुकदमा चलाया जा रहा है अथवा
नागरिक देनदारियों के प्रवर्तन के लिए प्रवर्तन के लिए.

(iii) अघोषित विदेशी आय या संपत्ति शामिल है.

सबका विश्वास (विरासत विवाद समाधान) योजना-2019

  • 2019में शुरू की गई, इस योजना का उद्देश्य पूर्ववर्ती सेवा कर और केंद्रीय उत्पाद शुल्क अधिनियम से संबंधित सभी विवादों26 अन्य अप्रत्यक्ष कर अधिनियमों के विवादों (अब वस्तु एवं सेवा कर में सम्मिलित कर दिया गया) को हल करना है. इसी लिए इसे 'विरासत' शब्द सेपरिभाषित किया गया.

अवयव

  • विवाद समाधान घटक: इसका उद्देश्य केन्द्रीय उत्पाद शुल्क और सेवा कर के पुराने मामलों को समाप्त करना है. जो जीएसटी में शामिल हैं और विभिन्न मंचों पर मुकदमेबाजी में लंबित हैं.
  • क्षमाकाल घटक: यह कर दाताओं को बकाया कर भुगतान करने और कानून के तहत अन्य नतीज़ों से मुक्त होने का अवसर प्रदान कराती है.

लाभ

  • करदाता बकाया कर राशि का भुगतान कर सकते हैं और कानून के तहत किसी अन्य परिणाम से मुक्त हो सकते हैं.
  • करदाताओं को ब्याज, दंड और जुर्माना की पूरी छूट के रूप में पर्याप्त राहत मिलेगी.
  • अभियोजन कार्यवाही से पूरी तरह से माफी मिल जाएगी.

प्रभाव

  • राजस्व सृजन: यह योजना सरकार के लिए मुकदमेबाजी के खर्च को कम करेगी और साथ हीराजस्व उत्पन्न करने में मदद कर सकती है.

आलोचना

विधेयक की आलोचना दो आधारों पर की गई है:

  • योजना के नाम में हिंदी शब्दों का उपयोग करना: इसके नाम में हिंदी शब्दों का उपयोग करने को लेकर यह तर्क दिया जा रहा है कि यह गैर-हिंदी बोलने वालों पर हिंदी को लागू करने का सरकार का तरीका है. कुछ राजनीतिक दलों ने इसके नाम पर आपत्ति जताते हुए कहा कि देश में आबादी द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली भाषाओं की विविधता को देखते हुए बिल का नाम अंग्रेजी में होना चाहिए.
  • मौलिक अधिकार का उल्लंघन: बिल की आलोचना ईमानदार और बेईमान दोनों लोगों के साथ समान रूप से व्यवहार करने के लिए की जाती है. यह बिल मूल करदाताओं को उनके जुर्माने और ब्याज की कुल राशि पर छूट देने का समर्थन करता है और इससे अकेले विवादित कर के भुगतान से दूर होने का विचार भी समर्थित होता है. मनमाना होने के कारण यह समानता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन करता है. यह समान रूप से असमान व्यवहार करता है जिससे अनुचित वर्गीकरण होता है.

आगे का रास्ता

  • नई योजना के जरिए सरकार को उम्मीद है कि प्रत्यक्ष कर मुकदमेबाजी में शामिल एक बड़ी रक़म को तेजी और सरल तरीके से वसूल करेगी.जबकि करदाताओं को इस मामले से अंतहीन रूप से लड़ने के लिए राहत देने की भी पेशकशकी गई है. ऐसी सरकार जो राजस्व में कमी पर नज़र गड़ाए है (विशेष रूप से कर राजस्व), के लिए यहयोजना बहुत मायने रखती है.

चिकित्सा उपकरण अबदवाओं की तरह अधिसूचित

  • 11 फरवरी-2020 को स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने चिकित्सा उपकरण नियम- 2017 में किए गए परिवर्तन को अधिसूचित किया. जिसके अनुसार औषध एवं प्रसाधन सामग्री अधिनियम-1940 (Drugs and Cosmetics Act,1940) के तहत मानव या जानवरों की चिकित्सा के उपयोग में लाये जाने वाले प्रत्येक वस्तुओं एक सूची में लाया जाएगा. जिसमें उपकरणों से लेकर प्रत्यारोपण तक सभी यंत्र शामिल हैं. यहाँ तक कि चिकित्सा के दौरान इस्तेमाल में आने वाले सोफ्ट्वेयर्स को भी इस सूची में सम्मिलित किया गया है.
  • मंत्रालय द्वारा एक गजट अधिसूचना के जरिए चिकित्सा उपकरण संशोधन नियम-2020 (Medical Devices Amendment Rules,2020)भी जारी किया गया. जिसके अनुसार चिकित्सा के उपयोग में आने वाले सभी उपकरणों के पंजीकरण अनिवार्य है.ये बदलाव 1 अप्रैल 2020 से लागू होंगे.

लक्ष्य

  • चिकित्सा के दौरान उपयोग में आने वाले भारतीय बाजार के सभी उपकरणों की सुरक्षा व उसके गुणवत्ता के मानक को तय करना.

पृष्ठभूमि

  • स्वास्थ्य और दवा के क्षेत्र में सर्वोच्च संस्था दवा तकनीकी सलाहकार बोर्ड (Drugs Technical Advisory Board) अप्रैल 2019 में निर्देश दिया कि चिकित्सा के क्षेत्र में उपयोग किये जाने वाले सभी उपकरणों को औषध एवं प्रसाधन सामग्री अधिनियम के तहत ‘दवाओं की तरह’ अधिसूचित किया जाना चाहिए.

ऐसे कदम की ज़रूरत

  • कई खुलासों के बाद पिछले कुछ वर्षों में स्वास्थ्य क्षेत्र ध्यान के केंद्र में रहा है. जिसमें फार्मा प्रमुख जॉनसन एंड जॉनसन द्वारा बेचे गए नितंब के दोषपूर्ण प्रत्यारोपण (faulty hip implants), सबसे महत्वपूर्ण खुलासा था. इससे सरकार की बड़ी शर्मिंदगी हुई. इन्हीं खुलासों की वजह से चिकित्सा में उपयोग किये जाने वाले उपकरणों की कमियां उजागर हुई थीं.
  • वर्तमान में इस अधिनियम के अंतर्गत केवल 23 तरह के चिकित्सा उपकरणों को विनियमित किया जाता है.

मुख्य परिवर्तन
व्यापक क्षेत्र

  • यह उन सभी उपकरणों की विस्तृत सूचना देगा जिनका उपयोग विशेष रूप से मानव या जानवरों  की चिकित्सा में किया जाता है.जिसमें विभिन्न प्रकार के उपकरण (Instruments), औजार (apparatus), सामग्री अथवा आर्टिकल्स (अकेले या साथ-साथ उपयोग में लाये जाने वाले), प्रत्यारोपण, सॉफ्टवेयर और सहायक वस्तुएं शामिल हैं.

उपकरणों का समूह

  • सीरिंज, सुई, गलाबंद (stents), मूत्र नलिका (catheters), अंतः गर्भाशायीदर्पण (Intraocular lenses), अंतःशिरा प्रवेशनी(intravenous cannulae), कृत्रिम अंग (Prosthetic replacements), पट्टी (ligatures),तांतव संधि (sutures),स्टैपलर,कंडोम, खून की थैली, नेबुलाइज़र, रक्त चाप मापने की मशीन और डिजिटल थर्मामीटर सहित 37 उपकरणों की सूची तैयार की गई है. 

ऑनलाइन दस्तावेज़ीकरण और पहचान

  • निर्माता या आयातक को केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन(CDSCO)के ऑनलाइन पोर्टल पर जेनेरिक नाम, मॉडल नंबर, इच्छित उपयोग, चिकित्सा उपकरण की श्रेणी, निर्माण की सामग्री, आकार-प्रकार, जीवनावधिऔर ब्रांड नाम डालना होगा.

 

चिकित्सा उपकरणों के विभिन्न वर्गों के लिए समयरेखा

  • 1 अप्रैल से अधिनियम के तहत अधिसूचित किए गए चिकित्सा उपकरणों के लिए समयसीमा भी निर्धारित की गयी है.जिसमें ‘कम और मध्यम खतरनाक उपकरणों’(श्रेणी A और B) के लिए 30 महीने और ‘उच्च जोखिम उपकरणों’ (श्रेणी C और D) के लिए 42 महीने तय की गयी है. इस समयावधि के उपरांतसंबंधित उपकरणों पर चिकित्सा उपकरण नियम 2017 के सभी प्रावधान लागू होंगे.

केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (CDSCO)

  • केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन(CDSCO)स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के स्वास्थ्य सेवा महानिदेशालय के अधीन आता है. यही भारत का राष्ट्रीय नियामक प्राधिकरण (National Regulatory Authority) है.
  • केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन, राज्य नियामकों के साथ मिलकर संयुक्त रूप से रक्त और रक्त उत्पादों,अंतःशिरा द्रव,वैक्सीन और सेरा जैसे कुछ विशिष्ट श्रेणियों के महत्वपूर्ण दवाओं केलाइसेंस के अनुदानज़ारी करते हैं.
  • कार्य:केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन,औषध एवं प्रसाधन सामग्री अधिनियमके तहत कार्य करता है. जो देश में नई औषधियों की मंजूरी, क्लिनिकल परिक्षण का संचालन, दवाओं के लिए मानक तय करना, देश में आयातित दवाओं की गुणवत्ता पर नियंत्रण रखने का कार्य करता है. साथ ही साथराज्य औषधि नियंत्रण संगठनों(State Drug Control Organizations) की गतिविधियों के समन्वय के लिए भी जिम्मेदार है. 

चिकित्सा उपकरणों का जोखिम के आधार पर वर्गीकरण केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठनने चिकित्सा उपकरणों को उसके जोखिमों के अनुसार वर्गीकृत किया है.

  • श्रेणी A (कम जोखिम) - रूई,सर्जिकल ड्रेसिंग,मद्यफाहा (alcohol swabs).
  • श्रेणी B (कम-मध्यम जोखिम) - थर्मामीटर, रक्तचाप निगरानी उपकरण कीटाणुनाशक
  • श्रेणी C (मध्यम-उच्च जोखिम) - प्रत्यारोपण, हेमोडायलिसिस कैथेटर
  • श्रेणी D (उच्च जोखिम) -वाहिका चित्रण से संबंधित तार(Angiographic guide wire),  हृदय में रक्त वाहक वाल्व (heart valve)

अपेक्षित प्रभाव 

  • जवाबदेही और पारदर्शिता सुनिश्चित करना: यह देश भर में चिकित्सा उपकरण कंपनियों द्वारा उपलब्ध कराये जा रहे उत्पादों की गुणवत्ता और सुरक्षा के लिए जवाबदेह बनाएगा. इससे पारदर्शिता सुनिश्चित होगी. वर्तमान में अनियमित उपकरणों के लिए अस्थायी पंजीकरण आवेदन अब नियमित हो जायेंगे. यह चिकित्सा उपकरण उद्योग के बेहतर विकास के लिए अग्रणी होगा.

आलोचना

  • भारतीय चिकित्सा उपकरण उद्योग संघ (AIMED) के अनुसारयह कदम छोटे निर्माताओं को प्रभावित करने वाला है. क्योंकि गुणवत्ता की जांच के लिए बायोमेडिकल इंजीनियरिंग वाले किसी एक योग्य गुणवत्ता प्रबंधन प्रणाली (QMS) प्रबंधक को किराए पर रखना उनके लिए संपोषीय (Sustainable) नहीं होगा.
  • कम जोखिम वाले वर्ग अर्थात A श्रेणी के लगभग सभी उत्पाद जैसे आर्थोपेडिक कॉलर और तकिए, चश्मा और व्हील-चेयर और स्ट्रेचर आदि सूक्ष्म, लघु और मझौले उद्यम मंत्रालय (MSME) के द्वारा बनाए जाते हैं. अधिकांश छोटे निर्माता योग्य विनियामक कर्मचारियों (regulatory staff) को रखने के लिए मेडिकल डिवाइस और डायग्नोस्टिक नियम (MDR) की अनुसूची-5 का पालन नहीं कर सकते हैं.
  • हालांकि उच्च तकनीक नैदानिक ​​इमेजिंग क्षेत्र (hi-tech diagnostic imaging sector) में बड़े उद्द्योग पतियों का दबदबा है अतः यह बहुत कम प्रभावित होगा.
  • इसके अलावादवा अधिनियम (Drugs Act) के तहत किसी ड्रग इंस्पेक्टर के द्वारा दिशानिर्देशों के किसी भी गैर-अनुरूपता को आपराधिकमाना जा सकता है और उसे अदलत में पेश किया जा सकता है.हालांकि इसमें कोई जोखिम आनुपातिक (RiskProportionate) दंड नहीं है.
  • सर्जिकल मैन्युफैक्चरर्स एंड ट्रेडर्स एसोसिएशन, थोक व्यापारियों और सूक्ष्म, लघु और मझौले उद्यम मंत्रालय के उपकरण निर्माताओं का प्रतिनिधित्व करता है. उसने भी सरकार के कदम की आलोचना की है. उसका कहना है कि इससे हजारों छोटी और सूक्ष्म इकाइयां बंद हो सकती हैं. इसके अतिरिक्त आयातित वस्तुओं की कीमत घरेलू उपकरणों से कई गुना महँगी होंगी. अतः उपकरणों की कीमतें बढ़ने से उपभोक्ता प्रभावित हो सकते हैं.

आगे का रास्ता 

  • कुल मिलाकर यह एक सकारात्मक कदम है. हालांकि उपभोक्ता समूह व्यापक दायरे में उपकरणों की विनियमित करने के लिए केंद्रीय औषध मानक नियंत्रण संगठन (Central Drugs Standard Control Organization) की क्षमता को लेकर संदेह में हैं.
  • मरीजों की सुरक्षा के संबंध मेंविनियामक तंत्र को मजबूत करने के लिए व्यापक सुधारों की आवश्यकता है.जिसमें उपकरणों के अनुमोदन के लिए दिशानिर्देश शामिल हैं. जैसे रोग-विषयक जाँच की जरूरत, मार्केटिंग और प्रचार की जिम्मेदारी, जनता के लिए सुलभ और अनुकूल रिपोर्टिंग की एक मजबूत और कामकाज प्रणाली को लागू करना,स्वैच्छिक व वैधानिक नियम (rules for voluntary and statutory) का फिर से कार्यान्वयन और रोगी मुआवजा योजना इत्यादि.

फेम योजना - II

  • 3 जनवरी, 2020 को देश में इलेक्ट्रिक वाहन (ईवी) को अपनाने पर जोर देने हेतु सरकार ने फेम इंडिया (FAME India - Faster Adoption and Manufacturing of Electric Vehicles in India) योजना चरण II के तहत 24 राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों में 2636 चार्जिंग स्टेशनों की स्थापना को मंजूरी दी।
  • इन 2636 चार्जिंग स्टेशनों में से 1633 चार्जिंग स्टेशन तीव्र चार्जिंग स्टेशन होंगे और 1003 धीमे चार्जिंग स्टेशन होंगे। इसके साथ चयनित शहरों में लगभग 14000 चार्जिंग स्टेशन स्थापित किए जाएंगे।

फेम योजना – II : एक नजर

  • मार्च, 2019 में राष्ट्रीय विद्युत गतिशीलता मिशन (NEMM) के तहत शुरू फेम-II का उद्देश्य इलेक्ट्रिक मोबिलिटी को बढ़ावा देना और एक अप्रैल, 2019 से शुरू होकर 3 वर्षों की अवधि के लिए 10,000 करोड़ रुपये के लागत के साथ वाणिज्यिक बेड़े में इलेक्ट्रिक वाहनों की संख्या में वृद्धि करना है।
  • योजना निम्नलिखित कार्यक्षेत्रों के माध्यम से कार्यान्वित की जा रही है:
  • मांग प्रोत्साहन (Demand Incentive)
  • चार्जिंग स्टेशनों के नेटवर्क की स्थापना
  • प्रचार, IEC (सूचना, शिक्षा और संचार) गतिविधियों सहित योजना का प्रशासन।
  • यह चरण मुख्य रूप से सार्वजनिक और साझा परिवहन के विद्युतीकरण सहयोग पर केंद्रित है, और इसका उद्देश्य लगभग 7000 ई-बसों, 500,000 इलेक्ट्रिक थ्री-व्हीलर (e-3W), 55,000 इलेक्ट्रिक चार-पहिया (e-4W) यात्री कारों और एक मिलियन इलेक्ट्रिक दोपहिया (e-2W) का प्रोत्साहन करना है।
  • कुल बजटीय सहायता में से लगभग 86 प्रतिशत फंड मांग प्रोत्साहन के लिए आवंटित किया गया है, ताकि देश में इलेक्ट्रिक वाहनों की मांग का सृजन हो सके।

उद्देश्य

  • इलेक्ट्रिक वाहनों (ईवी) की खरीद पर अग्रिम सहायता और ईवी के लिए आवश्यक चार्जिंग अवसंरचना की स्थापना के माध्यम से इलेक्ट्रिक और हाइब्रिड वाहनों को तेजी से अपनाने के लिए प्रोत्साहित करना।

मुख्य विशेषताएं

  • सार्वजनिक परिवहन का विद्युतीकरण: सार्वजनिक परिवहन के विद्युतीकरण पर जोर दिया जाएगा, जिसमें 3-पहिया और बस जैसे परिवहन शामिल हैं और इलेक्ट्रिक बसों के लिए परिचालन व्यय मोड पर मांग प्रोत्साहन राज्य/शहर परिवहन निगमों (एसटीयू) के माध्यम से वितरित किए जाएंगे।
  • सार्वजनिक और निजी वाहनों को प्रोत्साहन: तिपहिया और चार पहिया वाहनों के क्षेत्रों में, प्रोत्साहन मुख्य रूप से सार्वजनिक परिवहन या पंजीकृत वाणिज्यिक वाहनों पर लागू होगा। दोपहिया वाहनों में निजी वाहनों पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा।
  • लिथियम-आयन बैटरियों का विकास: उन्नत प्रौद्योगिकियों को प्रोत्साहित करने के लिए, प्रोत्साहन (incentive) का लाभ केवल उन्हीं वाहनों को दिया जाएगा, जो उन्नत बैटरी जैसे लिथियम-आयन बैटरी और अन्य नई प्रौद्योगिकी वाली बैटरी से सुसज्जित हैं।

राष्ट्रीय विद्युत गतिशीलता मिशन योजना (NEMMP)

  • 2013 में शुरू किया गया NEMMP-2020 एक राष्ट्रीय मिशन दस्तावेज है, जो देश में ईवी को तेजी से अपनाने और उनके निर्माण के लिए दूरदर्शिता और रोडमैप प्रदान करता है।
  • यह योजना राष्ट्रीय ईंधन सुरक्षा को बढ़ाने, सस्ते और पर्यावरण के अनुकूल परिवहन प्रदान करने और वैश्विक विनिर्माण नेतृत्व के लिए भारतीय मोटर वाहन उद्योग को सक्षम बनाने के लिए डिजाइन की गई है।
  • NEMMP के तहत, वर्ष 2020 तक हाइब्रिड और इलेक्ट्रिक वाहनों की 6-7 मिलियन बिक्री हासिल करने का एक महत्वाकांक्षी लक्ष्य रखा गया है।

प्रभाव

  • प्रदूषण नियंत्रण: जीवाश्म ईंधन के अंधाधुंध उपयोग के कारण देश में ईवी को अपनाने से वायु प्रदूषण को दूर करने में मदद मिलेगी।
  • जीवाश्म ईंधन का सतत उपयोग: यह योजना ईंधन सुरक्षा प्रदान करेगी क्योंकि यह जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता को कम करने में मदद करती है, जिससे जीवाश्म ईंधन के सतत और कुशल उपयोग का मार्ग प्रशस्त होता है।
  • समग्र दृष्टिकोण: यह एक अधिक समग्र दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है, क्योंकि यह न केवल महत्वपूर्ण तकनीकी मुद्दों जैसे कि बैटरी की लागत और दक्षता, चार्जिंग अवसंरचना आदि का समाधान करता है, बल्कि संपूर्ण ईवी मूल्य श्रृंखला के स्वदेशीकरण पर भी जोर देता है।

भारत की विद्युत गतिशीलता पहल की चुनौतियां

बढ़ता कच्चा तेल आयात - एक ऊर्जा सुरक्षा चुनौती

  • भारत की तेल आयात निर्भरता 2017-18 में 82.9 प्रतिशत से बढ़कर 2018-19 में 83.7 प्रतिशत हो गई है।
  • देश के तेल की खपत 2015-16 में 184.7 मिलियन टन से बढ़कर अगले वर्ष में 194.6 मिलियन टन और उसके बाद के वर्ष में 206.2 मिलियन टन हो गई। 2018-19 में मांग 2.6 प्रतिशत बढ़कर 211.6 मिलियन टन हो गई।

बढ़ता प्रदूषण स्तर - एक पर्यावरणीय चुनौती

  • भारत ईंधन के दहन से वैश्विक कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन के 6% की हिस्सेदारी के साथ तीसरा सबसे बड़ा कार्बन उत्सर्जक देश है।
  • डब्ल्यूएचओ वैश्विक वायु प्रदूषण डेटाबेस के अनुसार, विश्व के 20 सबसे प्रदूषित शहरों में से 14 भारत में हैं।

बढ़ती जनसंख्या - एक सतत गतिशीलता चुनौती

  • भारत की वर्तमान जनसंख्या 1.2 अरब से बढ़कर 2030 तक 1.5 अरब तक पहुंचने की उम्मीद है। 1.5 अरब लोगों में से, 2018 के जनसंख्या अनुमान के 34% की तुलना में 40% आबादी के शहरी क्षेत्रों में रहने की उम्मीद है।
  • अतिरिक्त 6% जनसंख्या वृद्धि से देश में जूझ रहे शहरी बुनियादी ढाँचे पर और दबाव बढ़ने की संभावना है, जिसमें सतत गतिशीलता समाधानों की मांग में वृद्धि भी शामिल है।

विद्युत गतिशीलता को बढ़ावा देने हेतु सरकार के प्रयास

  • पूरी तरह से इलेक्ट्रिक वाहनों को बढ़ावा देने के लिए कर पहल:
  • ईंधन बैटरी वाहनों पर जीएसटी में कमी: 28% से 18%
  • लिथियम-आयन बैटरी पर जीएसटी में कमी: 28% से 12%
  • हाइब्रिड वाहनों को लक्जरी कारों की ही श्रेणी में रखा गया है और इस पर 28% का कर और 15% का उपकर (cess) लगाया जाएगा।
  • विद्युत मंत्रालय ने इलेक्ट्रिक वाहनों की चार्जिंग के लिए 'सेवा' के रूप में बिजली की बिक्री की अनुमति दी है। यह चार्जिंग बुनियादी ढांचे में निवेश को आकर्षित करने के लिए प्रोत्साहन प्रदान करेगा।
  • सड़क परिवहन राजमार्ग मंत्रालय ने बैटरी चालित वाहनों के मामले में परमिट में छूट के संबंध में अधिसूचना जारी की।
  • मार्च, 2019 में सरकार ने स्वच्छ, साझा, सतत और समग्र गतिशीलता पहल को बढ़ावा देने के लिए ‘नेशनल मिशन फॉर ट्रांसफॉर्मेटिव मोबिलिटी और बैटरी स्टोरेज ’ शुरू किया।

आंध्र प्रदेश दिशा विधेयक - 2019

  • हाल ही में, आंध्र प्रदेश विधानसभा ने आंध्र प्रदेश आपराधिक कानून (संशोधन) अधिनियम, 2019 पारित किया।
  • तेलांगना में एक पशु चिकित्सक का बलात्कार कर हत्या कर दी गई थी, जिसके श्रद्धांजलि के तौर पर प्रस्तावित नए आपराधिक कानून (एपी संशोधन) अधिनियम, 2019 को दिशा अधिनियम नाम दिया गया है।

दिशा विधेयक की मुख्य विशेषताएं

महिला और बाल अपराधियों की रजिस्ट्री

  • विधेयक में “महिला और बाल अपराधियों की रजिस्ट्री” इलेक्ट्रॉनिक रूप में स्थापित करने, संचालित करने और बनाए रखने की परिकल्पना की गई है | यह रजिस्ट्री सार्वजनिक होगी और कानून प्रवर्तन एजेंसियों के लिए उपलब्ध होगी।

बलात्कार अपराध के लिए मौत की सजा

  • इसमें बलात्कार के पर्याप्त निर्णायक सबूत होने पर मौत की सजा निर्धारित की गयी है । भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 376 में संशोधन करके यह प्रावधान किया गया है।

निर्णय अवधि को कम करना

  • विधेयक के अनुसार, बलात्कार अपराधों के मामलों में अपराध की तारीख से 21 कार्य दिवसों में फैसला सुनाया जाएगा।
  • जाँच सात कार्य दिवसों में और सुनवाई 14 कार्य दिवसों में पूरा किया जाएगा।

बच्चों के खिलाफ यौन अपराधों के लिए सजा

  • यह बच्चों के खिलाफ यौन अपराधों के लिए आजीवन कारावास का प्रावधान करता है।
  • भारतीय दंड संहिता, 1860 में नई धारा 354F और धारा 354G ‘बच्चों पर यौन उत्पीड़न’ जोड़ा जा रहा है।

सोशल मीडिया के माध्यम से उत्पीड़न के लिए सजा

  • भारतीय दंड संहिता, 1860 में एक नई धारा 354E ‘महिलाओं का उत्पीड़न’ जोड़ा जा रहा है।
  • ई-मेल, सोशल मीडिया, डिजिटल मोड या किसी अन्य रूप से महिलाओं के उत्पीड़न के मामलों में, दोषी को पहले जुर्म पर दो साल कारावास की सजा एवं दूसरे और बाद के मामलों में दोषी पाए जाने पर चार साल तक सजा हो सकती है।

विशिष्ट विशेष न्यायालयों की स्थापना

  • यह सरकार को राज्य के प्रत्येक जिले में विशेष न्यायालयों की स्थापना करने का निर्देश देता है ताकि शीघ्र सुनवाई सुनिश्चित किया जा सके। ये अदालतें विशेष रूप से महिलाओं और बच्चों के खिलाफ बलात्कार, एसिड हमले, सोशल मीडिया के माध्यम से उत्पीड़न, यौन उत्पीड़न और POCSO अधिनियम के तहत दर्ज अन्य सभी अपराधों के मामलों से निपटेंगी।

निपटान की अवधि कम

  • अपील के मामलों के निपटान की अवधि को घटाकर तीन महीने कर दिया गया है। दंड प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 374 और 377 में संशोधन किए जा रहे हैं।

विशेष पुलिस टीमों का गठन

  • यह सरकार को जिला स्तर पर विशेष पुलिस टीमों का गठन करने का आदेश देता है, जिसे महिलाओं और बच्चों से संबंधित अपराधों की जांच के लिए डीएसपी के नेतृत्व में जिला विशेष पुलिस दल कहा जाता है।
  • इसके अलावा, सरकार प्रत्येक विशेष अदालत के लिए एक विशेष सरकारी वकील भी नियुक्त करेगी।

 

नया कानून, एक गेम चेंजर ?

1.   बलात्कार के लिए मौत की सजा

  • वर्तमान कानूनों के तहत, बलात्कार के चरम मामलों में अपराधी को आजीवन कारावास या मौत की सजा दी जाती है |

एपी दिशा अधिनियम, 2019

  • पर्याप्त सबूत होने पर एपी सरकार ने बलात्कार के अपराधों के लिए मौत निर्धारित किया है। कोई अन्य विकल्प नहीं दिए गए हैं।
  • यह भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 376 में संशोधन करके किया गया प्रावधान है |

 2.  निर्णय अवधि को घटाकर 21 दिन करना

  • निर्भया अधिनियम, 2013 और आपराधिक संशोधन अधिनियम, 2018 के अनुसार, यह 4 महीने का है।

एपी दिशा अधिनियम, 2019

  • निर्णय अवधि 21 कार्य दिवसों तक कम हो गई,
  • जांच 7 कार्य दिवसों में खत्म हो जाएगी, परीक्षण 14 कार्य दिवसों में पूरा होगा |

3.   बच्चों के खिलाफ यौन अपराध

  • POCSOअधिनियम, 2012 के तहत बच्चों पर छेड़छाड़/यौन उत्पीड़न के मामले में 3 से 7 साल तक जेल की सज़ा |

एपी दिशा अधिनियम, 2019

  • नया कानून बच्चों के खिलाफ अन्य यौन अपराधों के लिए उम्रकैद की सजा देता है |
  • भारतीय दंड संहिता, 1860 में नई धारा 354F और धारा 354G "बच्चों पर यौन शोषण" जोड़ा जा रहा है।

4.   बच्चों पर यौन हमला

  • मौजूदा कानूनों में, बच्चों पर यौन शोषण के मामलों में मुकदमे को पूरा करने की अवधि 12 महीने है |

एपी दिशा अधिनियम, 2019

  • बच्चों पर यौन हमले के मामले में निर्णय की अवधि को 21 कार्यदिवसों में कम कर दिया गया है |
  • जांच 7 कार्य दिवसों में और परीक्षण 14 कार्यदिवसों में पूरा किया जाएगा |

5.   महिलाओं के खिलाफ सोशल मीडिया का दुरुपयोग

  • IPC में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है |

एपी दिशा अधिनियम, 2019

  • ई-मेल, सोशल मीडिया, डिजिटल मोड या किसी अन्य रूप से उत्पीड़न के मामलों में दोषी को जेल मिलेगी |
  • जेल अवधि: पहली सजा पर दो साल, बाद में सजा पर चार साल |

6.   हर जिले में विशेष अदालतें

  • कुछ राज्यों में विशेष अदालतें हैं लेकिन हर जिले में नहीं। ये निर्दिष्ट न्यायालय हैं, प्रकृति में अनन्य नहीं हैं |

एपी दिशा अधिनियम, 2019

  • ये अदालतें महिलाओं के खिलाफ अपराधों, बलात्कार, एसिड हमलों, पीछा करने, दर्शनरति, सोशल मीडिया उत्पीड़न, यौन उत्पीड़न और POCSO अधिनियम के तहत सभी अपराधों से निपटेंगी |
  • इसके लिए ‘महिलाओं और बच्चों के खिलाफ निर्दिष्ट अपराधों के लिए आंध्र प्रदेश के विशेष न्यायालय अधिनियम, 2019’ का प्रस्ताव है |

स्रोत:TOI

दिशा विधेयक वर्तमान विधानों से किस प्रकार भिन्न है?

  • भारत सरकार ने यौन अपराधियों की एक राष्ट्रीय रजिस्ट्री शुरू की है, लेकिन डेटाबेसडिजिटल नहीं है और जनता के लिए सुलभ नहीं है।
  • वर्तमान में, बलात्कार के मामले में एक अपराधी को दंडित करने का प्रावधान एक निश्चितकारावास है ।
  • निर्भया अधिनियम, 2013 और आपराधिक संशोधन अधिनियम, 2018 के अनुसार मौजूदानिर्णय अवधि 4 महीने (जांच अवधि के दो महीने और परीक्षण अवधि के दो महीने) है।
  • POCSO अधिनियम, 2012 के तहत बच्चों के साथ छेड़छाड़/यौन उत्पीड़न के मामलों में, न्यूनतम सजा तीन साल से लेकर अधिकतम सात साल के कारावास तक है।
  • सोशल मीडिया के माध्यम से महिलाओं के उत्पीड़न की सजा के लिए भारतीय दंड संहिता मेंकोई प्रावधान मौजूद नहीं है।
  • वर्तमान में, महिलाओं और बच्चों के खिलाफ बलात्कार के मामलों से संबंधित अपील मामलोंके निपटान की अवधि छह महीने है।

महत्ता

  • अपराधनिवारक: नया कानून राज्य भर में महिलाओं और बच्चों के खिलाफ अपराधों के निवारक के रूप में कार्य करेगा।
  • मजबूत न्याय प्रणाली: इसके अलावा, यह महिलाओं और बच्चों के खिलाफ यौन अपराध करने वाले अपराधी पर आपराधिक न्याय प्रणाली को सख्त बना देगा।
  • स्पीडी ट्रायल: यह महिलाओं और बच्चों के खिलाफ अपराधों की परीक्षण प्रक्रिया को तेज करने में मदद करेगा।

विधेयक पर संशय

विधेयक ने मानव अधिकार कार्यकर्ताओं और कानून विशेषज्ञों में संसय पैदा की है, जिन्होंने महिलाओं के खिलाफ अपराधों को रोकने और इसकी व्यावहारिकता की दक्षता पर संदेह जताया है।

अपर्याप्त कार्यबल

  • बिल के सीमित जांच और परीक्षण अवधि पर सवाल उठाए गए हैं। अधीनस्थ न्यायपालिका में 58 प्रतिशत रिक्तियों और पुलिस अधिकारियों में 25 प्रतिशत रिक्तियों के साथ है; क्या आंध्र प्रदेश सरकार 21 दिनों में कोई सुनवाई पूरी कर सकती है?
  • इसी तरह, इसने पुलिस के विशेष दल का गठन किया है, जिसके लिए अभी तक किसी पुलिस भर्ती की प्रक्रिया शुरू नहीं की गयी है। एक-चौथाई रिक्तियों के साथ, पुलिस कोई भी कुशल या त्वरित जांच नहीं कर सकती है।

लंबित मामलों का बोझ

  • एपी सरकार ने धन आवंटन या एक भी नया पद सृजित किए बिना, प्रत्येक जिले में विशेष अदालतों का गठन किया है।
  • इसके अलावा, पहले से ही मौजूद अदालतों और न्यायाधीशों पर कई सैकड़ों लंबित मामले का बोझ परा हैं। नया अधिनियम केवल न्यायपालिका प्रणाली पर बोझ डाल देगा, जो इसे अक्षम बना देगा।

आगे की राह

  • आंध्र प्रदेश देश का पहला राज्य है जिसने महिलाओं के प्रति अपराध कम करने एवं बदमाशों को दंडित करने के लिए कानूनों को कड़ा बनाया है |यह महिलाओं के साथ-साथ बच्चों की सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए देश के अन्य राज्यों को भी इसी तरह कदम उठाने को प्रेरित करेगा, जो स्वागत योग्य कदम है।

चिट फंड (संशोधन) विधेयक, 2019

  • 28 नवंबर, 2019 को राज्यसभा ने चिट फंड्स (संशोधन) विधेयक, 2019 को पारित किया, जिसका उद्देश्य चिट फंड पर अनुपालन भार को कम करना और ग्राहकों की रक्षा करना है जिसमें मुख्य रूप से समाज के आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग शामिल हैं।
  • लोक सभा द्वारा 20 नवंबर, 2019 को विधेयक पारित किया गयाथा।
  • यह चिट फंड अधिनियम, 1982 में संशोधन करता है, जो चिट फंड को राज्य सरकार की पूर्व मंजूरी के बिना बनाए जानेसे रोकता है।

उद्देश्य

  • चिट फंड क्षेत्र की क्रमिक वृद्धि और सामूहिक निवेश योजनाओं या चिट फंडों के संचालन को सुगम बनाना,
  • चिट फंड उद्योग द्वारा सामना की जा रही अड़चनों को दूर करना,
  • लोगों तक अधिक वित्तीय पहुंच को सक्षम करना |

विधेयक की जरूरत

  • निवेशक के हितों की रक्षा करना: भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था में चिट फंड महत्वपूर्ण भूमिका निभाने है, यह लोगों को धन और निवेश के अवसरों तक पहुंच प्रदान करती है, खासकर उन क्षेत्रों में जहां बैंकों और वित्तीय संस्थानों की उपस्थिति नहीं है। अतः ऐसेनिवेशक के हितों की रक्षा करने की आवश्यकता थी |

विधेयक की मुख्य विशेषताएं

शब्दों का प्रतिस्थापन

  • विधेयक क्रमशः चिट राशि, लाभांश और पुरस्कार राशि को सकल चिट राशि, छूट का हिस्सा और शुद्ध चिट राशि के साथ स्थानापन्न करता है।
  • इस विधेयक में चिट फंड के लिए अनेक वैकल्पिक नामों के सुझाव दिये गए हैं जिससे इसके प्रति लोगों में एक नया भाव तथा विश्वास पैदा हो सके।
  • इसके अलावा, यह कुरी, बंधुत्व निधि, आवृति बचत, क्रेडिट संस्था सहित विभिन्न नामों के तहत चिट फंड को मान्यता देता है।

चिट की कुल मात्रा में वृद्धि

  • विधेयक में चिट फंड की अधिकतम राशि को बढ़ाने का प्रस्ताव है जो इसके द्वारा एकत्र किया जा सकता है:
  • व्यक्ति:1 लाख रुपए से 3 लाख रुपए
  • फर्म: 6 लाख रुपए से 18 लाख रुपए तक।

वीडियो-कॉन्फ्रेंसिंग के जरिये ग्राहकों की उपस्थिति

  • विधेयक यह बताता है कि जब कोई चिट निकाली जाती है तो कम से कम दो ग्राहकों को शारीरिक रूप से या वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए उपस्थित होना चाहिए।

फोरमैन का कमीशन

  • इसमें एक फोरमैन के अधिकतम कमीशन को चिट राशि के 5% से बढ़ाकर 7% करने का प्रस्ताव है। फोरमैन चिट फंड का केवल प्रबंधक होता है।

प्रयोज्यता

  • मुख्य अधिनियम लागू होने से पहले प्रारंभ की गयी किसी भी चिट फण्ड पर जहां राशि 100 रुपये से कम हो, लागू नहीं होता है।
  • विधेयक 100 रुपये की सीमा को हटाने का प्रयास करता है, और राज्य सरकारों को उस आधार राशि को निर्दिष्ट करने की अनुमति देता है जिस पर अधिनियम के प्रावधान लागू होंगे।

प्रभाव

  • जवाबदेही और पारदर्शिता सुनिश्चित करना: वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से ग्राहकों को पेश करने की अनुमति देने के विधेयक में प्रावधान से चिट फंड के प्रबंधन में पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ेगी।
  • निवेशक फ्रेंडली चिट फंड बनाना: चिट फंड ऑपरेटर को स्कीम के आकार के अनुसार सुरक्षित डिपॉजिट देने का प्रावधान करती है जिससे इसमें निवेश करने वाले लोगों के हितों की सुरक्षा करने में मदद मिलेगी | इस कदम से चिट फंड को निवेशक के अनुकूल बनाया जा सकेगा।

चिटफंड

  • चिट फंड भारत में प्रचलित एक पारंपरिक वित्तपोषण प्रणाली है जिसमें कुछ लोग (सदस्यों या ग्राहकों के रूप में जाने जाते हैं) एक साथ आते हैं और एक निश्चित अवधि के लिए हर महीने एक निश्चित राशि का निवेश करते हैं।
  • यह उन लोगों को सहायता प्रदान करता है जो धन उधार पाने के वैकल्पिक श्रोत की तलाश कर रहे होते है |
  • संग्रह की प्रक्रिया के दौरान, कोई भी सदस्य लकी ड्रॉ, नीलामी या अन्य माध्यम से एकमुश्त राशि निकाल सकता है एवं इसकी एक भुगतान तिथि तय होती है।
  • हालांकि यह प्रणाली घूर्णन बचत और क्रेडिट एसोसिएशन (ROSCA) नाम से विश्व के अन्य हिस्सों में मौजूद है, भारत एकमात्र देश है जहां इसका संचालन विधानों द्वारा शासित हैं।

चिट फंड के प्रकार

भारत में तीन प्रकार के चिट फंड हैं, अर्थात्:

  1. राज्य सरकारों द्वारा चलाया जाता है;
  2. निजी पंजीकृत चिट फंड; तथा
  3. अपंजीकृत चिट फंड।

चिट फंड के प्रकार

राज्य सरकार द्वारा संचालित चिट फंड

कुछ चिट फंड राज्य सरकार द्वारा चलाए जाते हैं। उदाहरण के लिए, केरल राज्य वित्तीय उद्यम (KSFE) और मैसूर सेल्स इंटरनेशनल लिमिटेड (MSIL) सार्वजनिक उपक्रम हैं जो चिट फंड के कारोबार को साफ और पारदर्शी तरीके से चलाते हैं।

निजी पंजीकृत

कई पंजीकृत चिट फंड हैं, कुछ प्रमुख व्यापारिक घरानों द्वारा संचालित हैं, जैसे कि हैदराबाद आधारित मारगार्डी चिट फंड, रामोजी राव ग्रुप का हिस्सा, या श्रीराम समूह। कुछ सहकारी समितियां भी चिट चलाती हैं।

अपंजीकृत

कई अपंजीकृत चिट फंड हैं परन्तु इनसे सम्बंधित कानूनी नहीं है। इनसे बचा जाना चाहिए क्योंकि विवाद की स्थिति में सदस्य के लिए कोई सहारा नहीं होता है। ऐसे चिट फंड में आमतौर पर करीबी दोस्त, सहकर्मी या पड़ोसी शामिल होते हैं।

 

चिट फंड और पोंजी स्कीम्स के बीच अंतर

  • चिट फंड एक तरह की बचत जमा है जो लोगों के समूह द्वारा की जाती है। यह अवधारणा बहुत कुछ किट्टी पार्टियों के समान है जो किसी विशेष परियोजना के लिए कुछ पैसे बचाने के लिए महिलाओं द्वारा गठित की जाती हैं। ये चिट फंड पंजीकृत कंपनियों द्वारा प्रबंधित किए जा सकते हैं या परिवार और दोस्तों जैसे लोगों के समूह द्वारा भी प्रबंधित किया जा सकता है। सभी चिट फंड गतिविधियों को चिट फंड अधिनियम, 1982 द्वारा विनियमित किया जाता है।
  • पोंजी योजनाएं एक तरह की पिरामिड स्कीम हैं, जो निवेशकों को कम जोखिम के साथ वापसी की उच्च दर का वादा करता है |जो वास्तव में, एक प्रकार का धोखाधड़ी या निवेश घोटाला है।
  • पोंजी स्कीम्स को मूल रूप से इस तरह से बनाया गया है कि निवेशकों से लिया गया पैसा सर्किलचलता है। मूल रूप से इसका मतलब है कि, निवेशकों से एकत्रित धन का उपयोग पुराने निवेशकों को भुगतान करने के लिए किया जाता है।
  • ये योजनाएं मूल रूप से तब तक कार्य करती हैं जब तक कि नए निवेश से आने वाली धनराशि पुराने निवेशकों को भुगतान करने के लिए धन से अधिक हो। जिस दिन श्रृंखला उलट जाती है उस दिन यह ठप्प हो जाता है। उदहारण के तौर पर पश्चिम बंगाल का सारदा घोटाला पोंजी स्कीम घोटाला था, न कि चिट फंड घोटाला जिसे मीडिया ने लोकप्रिय बनाया।

लाभ

  • उधार लेने और बचाने के लिए लचीलापन साधन प्रदान करता है। किसी को केवल पहली मासिक किस्त अदा करके धन उधार लेने का मौका मिलता है।
  • किसी भी दस्तावेज जैसे आईटी रिटर्न, पैन कार्ड आदि के बिना जरूरतमंद लोगों के लिए वित्त का सबसे अच्छा विकल्प है।
  • चिट फंड एक अच्छा बचत साधन है और यह आपात स्थिति में धन का एक विश्वसनीय स्रोत हो सकता है।
  • अन्य साधनों की तुलना में मध्यस्थता लागत सबसे कम है।

नुकसान

  • चिट-फंड किसी भी पूर्व-निर्धारित या निश्चित रिटर्न की पेशकश नहीं करते हैं।
  • फोरमैन के समग्र धनराशि के साथ भागने जैसे धोखाधड़ी की संभावना उच्च होती है।
  • पहली बोली जीतने के बाद विजेता ग्राहक गायब हो सकता है।
  • ग्राहक अगली किश्तों का भुगतान करने के लिए तैयार नहीं हो सकता है।
  • बहुत कम सुरक्षा के साथ जोखिम का उच्च स्तर।

आगे की राह

  • चिट फंड कम आय वर्ग के लोगों में लोकप्रिय हैं क्योंकि यह उन्हें बचत करने और निवेश करने का अवसर प्रदान करता है। अगर इसे सही तरीके से उपयोग किया जाए तो यह वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देने का एक उत्कृष्ट साधन है।
  • हालांकि, चिट फंड अधिनियम की धारा 16 के अनुसार "भौतिक उपस्थिति" की आवशकता ने चिट फंड उद्योग कोई-नीलामी एवं ई-भुगतान जैसी नवीनतम प्रौद्योगिकी को अपनाना असंभव बना दिया है।
  • चिट फंड उद्योग के लिएयह महत्वपूर्ण समय है जब नीति निर्माताइस क्षेत्र की समस्याओं की समीक्षा करे और इससे सम्बंधित कानूनों को आधुनिक समय के साथ सांगत बनाये जो इस व्यापक वित्तीय अभ्यास को प्रभावी रूप से नियंत्रित कर सके है।
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