भारत में फ्लू गैस डीसल्फराइजेशन (FGD) नीति की समीक्षा
- 16 Jun 2025
16 जून 2025 को, प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार (PSA) अजय सूद की अध्यक्षता वाली समिति ने भारत सरकार को सभी कोयला आधारित ताप विद्युत संयंत्रों (TPPs) में फ्लू गैस डीसल्फराइजेशन (FGD) इकाइयों की अनिवार्यता समाप्त करने की सिफारिश की।
मुख्य तथ्य:
- 2015 की नीति: 2015 में पर्यावरण मंत्रालय ने सभी 537 कोयला आधारित ताप विद्युत संयंत्रों में FGD इकाइयों की स्थापना अनिवार्य की थी, जिसका उद्देश्य SO₂ उत्सर्जन में कमी लाना था।
- 2025 की सिफारिश: PSA कार्यालय द्वारा कराए गए अध्ययन में सुझाव दिया गया कि FGD केवल उन्हीं संयंत्रों में अनिवार्य हो जहां आयातित या उच्च-गंधक (0.5% से अधिक सल्फर) कोयला जलाया जाता है; 92% भारतीय कोयला कम गंधक (0.3-0.5%) वाला है, जिससे SO₂ उत्सर्जन अपेक्षाकृत कम होता है।
- लागत और पर्यावरणीय प्रभाव: FGD स्थापना की लागत लगभग ₹1.2 करोड़ प्रति मेगावाट है; इसके पूर्ण कार्यान्वयन से 2025-30 के दौरान 69 मिलियन टन अतिरिक्त CO₂ उत्सर्जन होगा, जबकि SO₂ उत्सर्जन में केवल 17 मिलियन टन की कमी आएगी।
- प्राकृतिक परिस्थितियां: भारत में ताप विद्युत संयंत्रों की चिमनियों की ऊंचाई (220 मीटर) और जलवायु स्थितियां SO₂ के फैलाव में सहायक हैं, जिससे स्थानीय वायु गुणवत्ता पर गंभीर खतरा नहीं बनता।
- अम्लीय वर्षा और अनुपालन: IIT दिल्ली के 2024 के अध्ययन के अनुसार, भारत में अम्लीय वर्षा कोई बड़ा पर्यावरणीय मुद्दा नहीं है। 2024-25 तक केवल 8% संयंत्रों में ही FGD स्थापित हुआ है; शेष संयंत्रों में अनुपालन की स्थिति खराब है।
- FGD तकनीक: FGD मुख्य रूप से तीन प्रकार की होती है—ड्राई सोर्बेंट इंजेक्शन, वेट लाइमस्टोन ट्रीटमेंट (जिससे जिप्सम बनता है), और समुद्री जल आधारित प्रणाली; भारत में वेट लाइमस्टोन तकनीक सबसे अधिक प्रचलित है।
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