सामयिक

राष्ट्रीय:

प्रधानमंत्री पीवीटीजी विकास मिशन

केन्द्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 1 फरवरी, 2023 को केंद्रीय बजट 2023-24 के तहत 'प्रधानमंत्री पीवीटीजी विकास मिशन' (Pradhan Mantri PVTG Development Mission) की घोषणा की।

मुख्य विशेषताएं

  • लक्ष्य: विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूहों (PVTGs) की सामाजिक-आर्थिक स्थितियों में सुधार करना।
  • उद्देश्य: पीवीटीजी के परिवारों और बस्तियों को सुरक्षित आवास, स्वच्छ पेयजल व स्वच्छता, शिक्षा, स्वास्थ्य व पोषण, सड़क व दूरसंचार कनेक्टिविटी तथा स्थायी आजीविका के अवसरों जैसी बुनियादी सुविधाएं प्रदान करना।
  • वित्तीय आवंटन: सरकार ने अगले तीन वर्षों में इस मिशन को लागू करने के लिए 'अनुसूचित जनजातियों हेतु विकास कार्य योजना' के तहत 15,000 करोड़ रुपये आवंटित किए हैं।

विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूह (PVTGs)

  • गृह मंत्रालय द्वारा 75 जनजातीय समूहों को विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूहों (पीवीटीजी) के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
  • पीवीटीजी 18 राज्यों तथा अण्डमान और निकोबार द्वीप समूह संघ राज्य-क्षेत्र में रहते हैं।
  • आदिवासी समूहों में पीवीटीजी सबसे अधिक कमजोर हैं। वर्ष 1975 में भारत सरकार ने सबसे कमजोर जनजातीय समूहों को PVTGs नामक एक अलग श्रेणी के रूप में पहचानने की पहल की थी।
  • प्रारंभ में 52 जनजातीय समूहों को पीवीटीजी के रूप में वर्गीकृत किया गया तथा वर्ष 1993 में इस श्रेणी में 23 अतिरिक्त जनजातीय समूहों को शामिल किया गया, जिससे पीवीटीजी के तहत वर्तमान में 75 जनजातीय समूह हो चुके हैं।
  • 75 सूचीबद्ध पीवीटीजी में से सबसे अधिक संख्या ओडिशा (13) में पाई जाती है, इसके बाद आंध्र प्रदेश (12) है।

PVTGs के निर्धारण के मानदंड

इसके निर्धारण के लिए निम्नलिखित मानदंड हैं-

  1. प्रारंभिक-कृषि स्तरीय प्रौद्योगिकी (Pre-Agriculture Level of Technology)।
  2. स्थिर या घटती आबादी (Stagnant or Declining Population)
  3. अत्यधिक निम्न साक्षरता (Extremely Low Literacy)
  4. निर्वाह स्तरीय अर्थव्यवस्था (Subsistence Level of Economy)

विधानसभा अध्यक्षों का अखिल भारतीय सम्मेलन

11-12 जनवरी, 2023 के मध्य राजस्थान के जयपुर में 83वां अखिल भारतीय पीठासीन अधिकारियों का सम्मेलन (83rd All India Presiding Officers Conference) आयोजित किया गया।

  • विधानसभा अध्यक्षों के इस सम्मेलन का उद्घाटन उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ द्वारा किया गया।

मुख्य बिंदु

  • 83वें अखिल भारतीय पीठासीन अधिकारियों के सम्मेलन (AIPOC) में 9-सूत्रीय प्रस्ताव पारित किया गया। इस प्रस्ताव के तहत राष्ट्र के विधायी निकायों के माध्यम से 'कानून बनाने में भारत के लोगों की अहम भूमिका' के सन्दर्भ में अपने पूर्ण विश्वास की पुष्टि की गई।
  • साथ ही राज्य विधानसभाओं के मामलों के प्रबंधन में वित्तीय स्वायत्तता (financial autonomy) की प्राप्ति पर जोर दिया गया।
  • AIPOC ने यह भी संकल्प लिया कि सभी विधायी निकाय, अधिक दक्षता, पारदर्शिता और परस्पर जुड़ाव को बढ़ावा देने के उद्देश्य से 'विधायी निकायों के राष्ट्रीय डिजिटल ग्रिड' (National Digital Grid for Legislative Bodies) में शामिल होने के लिए उचित कदम उठाएंगे।

83वें सम्मेलन में निम्नलिखित विषयों पर विचार विमर्श किया गया

  • जी-20 को नेतृत्व प्रदान करने में, लोकतंत्र के जनक के रूप में भारत की भूमिका।
  • संसद और विधान सभाओं को अधिक प्रभावी, जवाबदेह और सार्थक बनाने की आवश्यकता।
  • प्रदेश की विधान सभाओं को डिजिटल संसद (Digital Parliament) से जोड़ना।
  • संविधान में निहित भावना के अनुरूप विधायिका तथा न्यायपालिका के बीच सौहार्दपूर्ण संबंध बनाना।

सम्मेलन के बारे में

  • अखिल भारतीय पीठासीन अधिकारियों का सम्मेलन (AIPOC) भारत में विधानमंडलों का सर्वोच्च निकाय है, जिसने 2021 में अपने सौ वर्ष पूरे किए हैं।
  • प्रथम सम्मेलन 1921 में शिमला में आयोजित किया गया था। जयपुर में यह सम्मेलन चौथी बार आयोजित किया गया।

अखिल भारतीय उच्च शिक्षा सर्वेक्षण 2020-2021

29 जनवरी, 2023 को शिक्षा मंत्रालय द्वारा उच्च शिक्षा पर अखिल भारतीय सर्वेक्षण 2020-2021 [All India Survey on Higher Education (AISHE) 2020-2021] के निष्कर्ष जारी किये गए।

  • सर्वेक्षण के अनुसार वर्ष 2020-21 में देश भर में छात्र नामांकन में 2019-20 की तुलना में 7.5% की वृद्धि दर्ज की गई तथा कुल छात्र नामांकन (Total Student Enrolment) 4.13 करोड़ तक पहुंच गया।
  • सर्वेक्षण के बारे में: यह सर्वेक्षण विभिन्न मानकों पर विस्तृत सूचना जमा करता है, जैसे शिक्षार्थी नामांकन, शिक्षकों के आंकड़े, आधारभूत संरचना की सूचना, वित्तीय सूचना आदि।

सर्वेक्षण के प्रमुख निष्कर्ष

  • विद्यार्थी नामांकन: उच्च शिक्षा में नामांकन 2019-20 के 3.85 करोड़ से बढ़कर 2020-21 में 4.14 करोड़ हुआ। वर्ष 2014-15 से नामांकन में लगभग 72 लाख (21%) की बढ़ोतरी दर्ज की गई है। छात्राओं का नामांकन 2019-20 के 1.88 करोड़ से बढ़कर 2.01 करोड़ हो गया।
  • सकल नामांकन अनुपात: 18-23 आयु वर्ग के लिए सकल नामांकन अनुपात (GER) 2019-20 के 25.6 से बढ़कर 27.3 हो गया [2011 में हुए जनसंख्या आकलन के आधार पर]।
  • एससी वर्ग का नामांकन: 2019-20 में 56.57 लाख तथा 2014-15 में 46.06 लाख की तुलना में अनुसूचित जाति के छात्रों का नामांकन इस बार 58.95 लाख दर्ज किया गया है।
  • एसटी वर्ग का नामांकन: 2019-20 में 21.6 लाख और 2014-15 में 16.41 लाख की तुलना में अनुसूचित जनजाति (ST) छात्रों का नामांकन बढ़कर 24.1 लाख हो गया है।
  • नामांकन में शीर्ष राज्य: छात्र नामांकन संख्या के संदर्भ में उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, मध्य प्रदेश, कर्नाटक और राजस्थान क्रमशः 6 सर्वोच्च राज्य हैं।
  • संस्थानों की संख्या: पंजीकृत विश्वविद्यालयों एवं समकक्ष संस्थानों की कुल संख्या 1,113 तथा कॉलेजों की संख्या 43,796 दर्ज की गई है। सर्वाधिक विश्वविद्यालय राजस्थान (92), उत्तर प्रदेश (84) और गुजरात (83) में हैं।
  • अधिकतम कॉलेज सघनता वाले राज्य: कर्नाटक (62), तेलंगाना (53), केरल (50), हिमाचल प्रदेश (50), आंध्र प्रदेश (49), उत्तराखंड (40), राजस्थान (40), तमिलनाडु (40)।
  • कॉलेजों की अधिकतम संख्या वाले शीर्ष राज्य: इस मामले में उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक, राजस्थान, तमिलनाडु, मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश, गुजरात शीर्ष 8 राज्य हैं

शिकायत अपीलीय समितियों (GACs) का गठन

27 जनवरी, 2023 को केंद्र सरकार ने सोशल मीडिया एवं अन्य इंटरनेट-आधारित प्लेटफॉर्म्स के खिलाफ उपयोगकर्ताओं के शिकायतों के समाधान के लिए 3 शिकायत अपीलीय समितियों [Grievance Appellate Committees (GACs)] के गठन की अधिसूचना जारी की।

  • संशोधित आईटी नियम 2021 के तहत: इन शिकायत अपीलीय समितियों का गठन अक्टूबर 2022 में संशोधित सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यस्थ दिशानिर्देश एवं डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियमावली, 2021 [Amendments to IT Rules, 2021] के तहत किया गया है।
  • कार्य संचालन की शुरुआत: ये समितियां 1 मार्च, 2023 से काम करना शुरू कर देंगी।

गठन एवं संरचना

  • सदस्य संख्या: तीन शिकायत अपीलीय समितियों में से प्रत्येक में एक पदेन अध्यक्ष एवं 2 पूर्णकालिक सदस्य होंगे।
  • कार्यकाल: पदभार ग्रहण करने की तिथि से 3 वर्ष की अवधि के लिए, या अगले आदेश तक, जो भी पहले हो

पहली समिति

  • अध्यक्ष: राजेश कुमार (भारतीय साइबर अपराध समन्वय केंद्र के मुख्य कार्यकारी अधिकारी)।
  • सदस्य:1. आशुतोष शुक्ला (सेवानिवृत्त आईपीएस अधिकारी), 2. सुनील सोनी (पंजाब नेशनल बैंक के पूर्व मुख्य महाप्रबंधक एवं मुख्य सूचना अधिकारी)।

दूसरी समिति

  • अध्यक्ष: विक्रम सहाय (सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय में नीति एवं प्रशासन प्रभाग के प्रभारी संयुक्त सचिव)।
  • सदस्य:1. सुनील कुमार गुप्ता (भारतीय नौसेना के सेवानिवृत्त कमोडोर), 2. कवींद्र शर्मा [एल एंड टी इन्फोटेक लिमिटेड के पूर्व उपाध्यक्ष (परामर्श)]।

तीसरी समिति

  • अध्यक्ष: कविता भाटिया (इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय में कार्यरत वरिष्ठ वैज्ञानिक)।
  • सदस्य:1. संजय गोयल (भारतीय रेलवे के पूर्व यातायात सेवा अधिकारी), 2. कृष्णगिरि रागोथमाराव (आईडीबीआई इंटेक के पूर्व प्रबंध निदेशक)।

प्रमुख कार्य

  • शिकायत अपील समितियां फेसबुक, ट्विटर और इंस्टाग्राम जैसी बड़ी सोशल मीडिया कंपनियों के खिलाफ यूजर्स की शिकायतों पर गौर करेंगी।
  • इन समितियों के पास इंटरनेट-आधारित सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स द्वारा लिए गए कंटेंट मॉडरेशन-संबंधी निर्णयों की निगरानी करने और उन्हें रद्द करने का भी अधिकार होगा।

अखिल भारतीय पुलिस महानिदेशक/महानिरीक्षक सम्मेलन

22 जनवरी, 2023 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 57वें अखिल भारतीय पुलिस महानिदेशक/महानिरीक्षक सम्मेलन (All India Conference of DG's and IG's of Police) में हिस्सा लिया।

  • आयोजन: 57वें अखिल भारतीय पुलिस महानिदेशक/महानिरीक्षक सम्मेलन का आयोजन इंटेलिजेंस ब्यूरो (IB) द्वारा 20-21 जनवरी, 2023 के मध्य नई दिल्ली में किया गया।

मुख्य बिंदु

  • सम्मेलन में प्रधानमंत्री ने पुलिस बलों को अधिक संवेदनशील बनाने और उन्हें उभरती प्रौद्योगिकियों में प्रशिक्षित करने का सुझाव दिया।
  • प्रधानमंत्री ने पुलिस बलों के आधुनिकीकरण के साथ-साथ जेल सुधार (prison reforms) का भी सुझाव दिया तथा अप्रचलित आपराधिक कानूनों (obsolete criminal laws) को निरस्त करने की सिफारिश की।
  • उन्होंने एजेंसियों के बीच डेटा विनिमय को सुचारु बनाने के लिए राष्ट्रीय डेटा गवर्नेंस फ्रेमवर्क के महत्व पर बल दिया।
  • भारत में पुलिस सुधार से संबंधित मुद्दे
  • औपनिवेशिक कानून
  • मामलों का बोझ
  • मानव संसाधन की कमी
  • पुलिस इन्फ्रास्ट्रक्चर की कमी
  • खराब कार्य परिस्थितियां
  • राजनीतिक हस्तक्षेप
  • हिरासत में होने वाली मौतें (Custodial Deaths)
  • यातना के खिलाफ स्पष्ट कानून का अभाव

केन-बेतवा लिंक परियोजना

18 जनवरी, 2023 को नई दिल्ली स्थित विज्ञान भवन में ‘केन-बेतवा लिंक परियोजना की संचालन समिति’ [Steering Committee of Ken-Betwa Link Project (SC-KBLP)] की तीसरी बैठक आयोजित की गई।


  • जल शक्ति मंत्रालय के अधिकारियों, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश राज्य के प्रतिनिधियों और विभिन्न केंद्रीय मंत्रालयों तथा नीति आयोग के अधिकारियों ने हिस्सा लिया।
  • केन और बेतवा नदी के बारे में: यह यमुना की सहायक नदियां हैं तथा इन नदियों का उद्गम स्थल मध्य प्रदेश में है। केन नदी उत्तर प्रदेश के बांदा जिले में जबकि बेतवा नदी उत्तर प्रदेश के हमीरपुर जिले में यमुना नदी में मिलती है। केन नदी पन्ना बाघ अभयारण्य से होकर गुजरती है।

परियोजना के बारे में

  • मंजूरी: दिसंबर 2021 में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 44,605 करोड़ रुपये की कुल लागत से केन-बेतवा लिंक परियोजना (KBLP) को मंजूरी दी थी।
  • उद्देश्य: नदियों को आपस में जोड़कर उत्तर प्रदेश के सूखाग्रस्त बुंदेलखंड क्षेत्र में सिंचाई सुविधा उपलब्ध कराने हेतु मध्य प्रदेश की केन नदी के अधिशेष जल को बेतवा नदी में हस्तांतरित करना।
  • बांध एवं नहर: इस परियोजना में 77 मीटर लंबा और 2 किमी. चौड़ा दौधन बांध (Dhaudhan Dam) और 230 किलोमीटर लंबी नहर का निर्माण सम्मिलित है।
  • परियोजना हेतु जल-प्राप्ति: परियोजना के अंतर्गत दोनों नदियों को जोड़ने वाला नहर, पन्ना टाइगर रिजर्व के भीतर केन नदी पर बनने वाले दौधन बांध (Daudhan Dam) से जल प्राप्त करेगा।
  • कवरेज: यह नहर छतरपुर, टीकमगढ़ और झांसी जिलों से होकर गुजरेगा तथा इस परियोजना से हर साल 6.3 लाख हेक्टेयर भूमि की सिंचाई होने की उम्मीद है।
  • वृहद पन्ना भू-भाग परिषद: परियोजना के तहत भू-भाग प्रबंधन योजना [Landscape Management Plan (LMP)] तथा पर्यावरण प्रबंधन योजना [Environment Management Plan (EMP)] के क्रियान्वयन के लिये एक ‘वृहद पन्ना भू-भाग परिषद’ (Greater Panna Landscape Council) का भी गठन किया जा रहा है।

राष्ट्रीय नदी जोड़ो परियोजना

  • परिचय: राष्ट्रीय नदी जोड़ो परियोजना (NRLP) को राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य योजना (National Perspective Plan) के रूप में भी जाना जाता है, जिसका उद्देश्य भारतीय नदियों को जलाशयों और नहरों के नेटवर्क के माध्यम से आपस में जोड़ना है।
  • लक्ष्य: इसका मुख्य लक्ष्य जल अधिशेष बेसिन, जहां जल की मात्रा अधिक है, से जल की कमी वाले बेसिन में जल का हस्तांतरण करना है, ताकि बाढ़ और सूखे जैसी समस्याओं का समाधान किया जा सके।
  • निर्माणः यह योजना अगस्त 1980 में तत्कालीन सिंचाई मंत्रालय द्वारा तैयार की गयी थी।
  • प्रबंधनः राष्ट्रीय नदी जोड़ो परियोजना को जल शक्ति मंत्रालय के तहत राष्ट्रीय जल विकास एजेंसी (National Water Development Agency - NWDA) द्वारा प्रबंधित किया जाता है।
  • घटकः परियोजना के दो घटकों प्रायद्वीपीय क्षेत्र और हिमालयी क्षेत्र के तहत भारत की 30 नदियों को जोड़ने का प्रस्ताव है, जिसमें हिमालयी नदी विकास घटक के तहत 14 नदियों एवं प्रायद्वीपीय नदी विकास घटक या दक्षिणी जल ग्रिड के तहत 16 नदियों की पहचान की है। केन बेतवा लिंक परियोजना इनमें से एक है।

सर्वाइवल ऑफ द रिचेस्ट रिपोर्ट: द इंडिया स्टोरी

16 जनवरी, 2023 को ऑक्सफैम इंटरनेशनल (Oxfam International) द्वारा विश्व आर्थिक मंच की वार्षिक बैठक के प्रथम दिन भारत के संदर्भ में अपनी वार्षिक असमानता रिपोर्ट 'सर्वाइवल ऑफ द रिचेस्ट: द इंडिया स्टोरी' (Survival of the Richest Report: The India Story) जारी की गई।

महत्वपूर्ण बिंदु

  • आर्थिक असमानता: रिपोर्ट के अनुसार, भारत में सबसे अमीर 1% आबादी के पास देश की कुल संपत्ति का 40% से अधिक हिस्सा है।
    • रिपोर्ट के मुताबिक, भारत के 21 सबसे अमीर अरबपतियों के पास मौजूदा समय में देश के 70 करोड़ लोगों से ज्यादा दौलत है।
    • रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2020 में कोरोना महामारी शुरू होने के बाद से नवंबर 2021 तक जहां अधिकतर भारतीयों को नौकरी संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ा और सेविंग्स बचाने के लिए अधिक प्रयास करने पड़े, वहीं पिछले साल नवंबर तक भारतीय अरबपतियों की संपत्ति में 121% का इजाफा देखा गया।
    • रिपोर्ट के अनुसार, भारत के शीर्ष 10 सबसे धनी व्यक्तियों पर 5% अतिरिक्त कर लगाने से बच्चों को स्कूल में पुनः नामांकित (Re-enroll children in school) करने के लिये पर्याप्त धन प्राप्त हो सकता है।
  • लैंगिक असमानता: पुरुष श्रमिकों द्वारा अर्जित प्रति 1 रुपए की तुलना में महिला श्रमिकों को केवल 63 पैसे मिलते हैं।

असमानता कम करने के लिये सुझाए गए उपाय

  • अधिक से अधिक सरकारी योजनाओं को लागू करने के लिए विरासत, संपत्ति और भूमि करों के साथ-साथ शुद्ध संपत्ति पर भी करों को लागू किया जाना चाहिए।
  • सरकार को राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति में परिकल्पित वर्ष 2025 तक स्वास्थ्य क्षेत्र के बजटीय आवंटन को सकल घरेलू उत्पाद का 2.5% तक करना चाहिए।
  • शिक्षा के लिये बजटीय आवंटन में सकल घरेलू उत्पाद के 6% के वैश्विक बेंचमार्क तक वृद्धि करनी चाहिए।
  • रिपोर्ट में, अमीरों पर अतिरिक्त कर लगाने की व्यवस्था अपनाए जाने की वकालत की गई है। इसके लिए, एकमुश्त कर के कार्यान्वयन के साथ-साथ एक न्यूनतम कर दर का भी निर्धारण किया जाना चाहिए।

घरेलू प्रवासी मतदाताओं हेतु रिमोट वोटिंग प्रणाली

29 दिसंबर, 2022 को चुनाव आयोग ने यह घोषणा की कि उसने घरेलू प्रवासी मतदाताओं के लिए 'रिमोट इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन' (RVM) का एक प्रोटोटाइप विकसित किया है, ताकि इन प्रवासी मतदाताओं को मतदान करने के लिए अपने गृह राज्यों की यात्रा न करनी पड़े।

  • आयोग ने सभी मान्यताप्राप्त 8 राष्ट्रीय और 57 राज्यीय दलों को इस मल्टी-कंस्टीट्यूएंसी रिमोट इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (RVM) की कार्यप्रणाली का प्रदर्शन करने के लिए 16 जनवरी, 2023 को आमंत्रित किया है।
  • निर्वाचन आयोग के अनुसार यह कदम देश में मतदान प्रतिशत (Voter Turnout) बढ़ाने तथा भारत की लोकतांत्रिक प्रक्रिया को मजबूत करने में सक्षम होगा।

रिमोट इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (RVM) क्या है?

  • मल्टी-कंस्टीट्यूएंसी रिमोट इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (RVM) एक दूरस्थ स्थित (रिमोट) पोलिंग बूथ से ही 72 तक निर्वाचन क्षेत्रों का मतदान करा सकती है।
  • यह विभिन्न निर्वाचन क्षेत्रों में सूचीबद्ध मतदाताओं को एक ही मशीन से मतदान के अधिकार का प्रयोग करने में सक्षम करेगी।
  • रिमोट ईवीएम एक स्टैंडएलोन डिवाइस होगी, जिसे संचालित करने के लिए कनेक्टिविटी की आवश्यकता नहीं होगी।
  • आरवीएम को भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (BEL) और इलेक्ट्रॉनिक्स कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (ECIL) की सहायता से विकसित किया गया है।
  • यह वर्तमान में उपयोग किए जाने वाले ईवीएम सिस्टम पर आधारित है।

प्रवासियों के मताधिकार से वंचित होने का मुद्दा

  • यद्यपि पंजीकृत मतदाताओं के मतदान में हिस्सा न लेने के कई कारण हैं, परन्तु भारतीय सन्दर्भ में इसका सबसे प्रमुख कारण व्यापक पैमाने पर होने वाला घरेलू प्रवासन (Domestic Migration) है।
  • 2011 की जनगणना के अनुसार, भारत में लगभग 45.36 करोड़ प्रवासी (अंतर्राज्यीय और अंतरराज्यीय दोनों) हैं, जो देश की आबादी का लगभग 37 प्रतिशत है।
  • अपने निर्वाचन क्षेत्र से दूर रहने वाला प्रवासी समुदाय, मतदान का इच्छुक होने के बावजूद विभिन्न चुनौतियों के चलते अपने निर्वाचन क्षेत्र में मतदान करने के लिए यात्रा करने में असमर्थ होता है।
  • इसका अर्थ यह है कि देश में आबादी का एक बड़ा हिस्सा काम की अनिवार्यता या यात्रा के लिए संसाधनों की कमी के कारण अपने मताधिकार से वंचित रहता है। यह सीधे तौर पर चुनाव आयोग के "कोई मतदाता पीछे न छूटे" (No voter left behind) के लक्ष्य के खिलाफ है।

RVM के जरिये मतदान की प्रक्रिया

  • मतदाता की पहचान सत्यापित करने के बाद, निर्वाचन क्षेत्र के विवरण तथा उम्मीदवारों को दर्शाने वाले सार्वजनिक डिस्प्ले (Public Display) के माध्यम से उनके निर्वाचन क्षेत्र के कार्ड को पढ़ा जाएगा।
  • इसे RVM के रिमोट बैलेट यूनिट (RBU) में लगे बैलेट यूनिट ओवरले डिस्प्ले (BUOD) पर निजी रूप से भी प्रदर्शित किया जाएगा।
  • इसके बाद मतदाता वोट देगा तथा प्रत्येक वोट को निर्वाचन क्षेत्रवार वोटिंग मशीन की कंट्रोल यूनिट में स्टोर किया जाएगा।
  • सम्भावना है कि वर्तमान में ईवीएम के साथ प्रयुक्त होने वाली वीवीपीएटी प्रणाली, नई तकनीक के साथ भी इसी तरह कार्य करेगी।

इस नवीन प्रणाली को अपनाने तथा इसे लागू करने में चुनौतियां

कानूनी चुनौतियां

  • मौजूदा चुनावी प्रणाली में RVM को पूरी तरह से अपनाने के लिए कुछ प्रमुख कानूनों/नियमों में संशोधन करना होगा। ये निम्नलिखित हैं:
    • जन प्रतिनिधित्व अधिनियम 1950 एवं 1951
    • निर्वाचनों का संचालन नियम, 1961
    • निर्वाचक रजिस्ट्रीकरण नियम, 1960
  • इसके अतिरिक्त प्रवासी मतदाता को परिभाषित करना भी चुनौती है; यह भी देखना होगा कि ये मतदाता मतदान के दिन अनुपस्थिति हैं या स्थायी रूप से स्थानांतरित हो गए हैं।

प्रशासनिक चुनौतियां

  • रिमोट वोटरों की गणना करना;
  • रिमोट लोकेशनों पर मतदान की गोपनीयता सुनिश्चित करना;
  • रिमोट वोटिंग बूथों पर पोलिंग एजेंटों की व्यवस्था करना;
  • प्रतिरूपण से बचने के लिए मतदाताओं की पहचान सुनिश्चित करना;
  • रिमोट लोकेशनों (अन्य राज्य) में आदर्श आचार संहिता लागू करना।

प्रौद्योगिकीय चुनौतियां

  • रिमोट वोटिंग की पद्धति का निर्धारण;
  • मतदाताओं का परिवर्तित मतदान पद्धतियों तथा RVM की प्रौद्योगिकियों से परिचित होना;
  • रिमोट बूथों पर डाले गए मतों की गणना और उसे अन्य राज्यों में स्थित रिटर्निंग अधिकारी को प्रेषित करना।

गोंड जनजातीय समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा

24 दिसंबर, 2022 को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू द्वारा 'संविधान (अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति) आदेश (द्वितीय संशोधन) अधिनियम, 2022' हस्ताक्षरित किया गया।

  • विधेयक के रूप में इसे 1 अप्रैल, 2022 को लोक सभा द्वारा तथा 14 दिसंबर, 2022 को राज्य सभा द्वारा पारित किया गया था।

मुख्य बिंदु

  • यह विधेयक उत्तर प्रदेश के 4 जिलों में गोंड समुदाय को अनुसूचित जनजाति (ST) का दर्जा देने का प्रयास करता है।
  • विधेयक का उद्देश्य उत्तर प्रदेश के इन जिलों में गोंड समुदाय को अनुसूचित जाति की सूची (SC list) से अनुसूचित जनजाति की सूची (ST list) में स्थानांतरित करना है।
  • उत्तर प्रदेश के ये 4 जिले हैं- संत कबीर नगर, संत रविदास नगर, कुशीनगर एवं चंदौली।
  • यह विधेयक निम्नलिखित आदेशों में संशोधन करता है:
    1. संविधान (अनुसूचित जनजाति) (उत्तर प्रदेश) आदेश, 1967
    2. संविधान (अनुसूचित जातियां) आदेश, 1950।

उत्तर प्रदेश की गोंड जनजाति

  • गोंड एक द्रविड़ जातीय-भाषाई समूह हैं। वे भारत के सबसे बड़े जनजातीय समूहों में से एक हैं।
  • गोंड जनजाति मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, बिहार और ओडिशा राज्यों में पाई जाती हैं।
  • 2001 की जनगणना के अनुसार गोंडों की जनसंख्या लगभग 11 मिलियन (1.1 करोड़) थी, जिसमें उत्तर प्रदेश में गोंडों की आबादी करीब पांच लाख थी।

अनुसूचित जनजाति की सूची में संशोधन करने की प्रक्रिया

  • भारतीय संविधान के अनुच्छेद 342 (1) के तहत राष्ट्रपति के पास किसी जाति, नस्ल, जनजाति अथवा उसके समूह को चिन्हित करने की शक्ति है।
  • अनुच्छेद 342 (1) के अनुसार राष्ट्रपति, किसी भी राज्य या केंद्रशासित प्रदेश के राज्यपाल से सलाह के बाद एक अधिसूचना द्वारा, आदिवासी जाति या आदिवासी समुदायों या आदिवासी जातियों या आदिवासी समुदायों के भागों या समूहों को निर्दिष्ट कर सकते हैं, जो उस राज्य या केंद्रशासित प्रदेश के संबंध में अनुसूचित जनजातियाँ समझे जाएंगे।
  • अनुच्छेद 342 (2) के अनुसार संसद कानून के द्वारा धारा (1) में निर्दिष्ट अनुसूचित जनजातियों की सूची में किसी भी आदिवासी जाति या आदिवासी समुदाय के किसी भाग या समूह को शामिल कर या उसमें से निकाल सकती है।
  • इस प्रकार, किसी विशेष राज्य या केंद्रशासित प्रदेश के संबंध में अनुसूचित जनजातियों की सूची में किसी समुदाय के नाम को शामिल या हटाना संबंधित राज्य सरकारों की सलाह के बाद, राष्ट्रपति के अधिसूचित आदेश द्वारा किया जाता है। ये आदेश तदनुपरांत केवल संसद की कार्रवाई द्वारा ही संशोधित किए जा सकते हैं।

मैरीटाइम एंटी पायरेसी बिल, 2022

21 दिसंबर, 2022 को राज्य सभा की मंजूरी के साथ ‘समुद्री जल दस्युता रोधी विधेयक, 2022’ (Maritime Anti Piracy Bill 2022) को संसद के दोनों सदनों की मंजूरी प्राप्त हो गई।

  • यह विधेयक 19 दिसंबर, 2022 को लोक सभा द्वारा पारित किया गया था। राष्ट्रपति द्वारा हस्ताक्षरित किये जाने के पश्चात यह विधेयक अधिनियम का रूप ले लेगा।
  • उल्लेखनीय है कि वर्ष 2008 से 2011 के बीच समुद्री डकैती के 27 मामले देखे गए, जिनमें 288 भारतीय नागरिक प्रभावित हुए। वहीं 2014 से 2022 के बीच ऐसे 19 मामले प्रकाश में आए और इनमें 155 भारतीय चालक दल के सदस्य प्रभावित हुए।

मुख्य विशेषताएं

  • परिभाषा: किसी निजी जहाज या विमान के चालक दल अथवा यात्रियों द्वारा निजी उद्देश्यों के लिए किसी अन्य जहाज, विमान या व्यक्ति के खिलाफ हिंसा, हिरासत या विनाश का कोई भी गैरकानूनी कार्य पायरेसी कहा जा सकता है।
  • मैरीटाइम पायरेसी के विरुद्ध कार्रवाई: यह विधेयक भारतीय अधिकारियों को सुदूर समुद्र (high seas) में समुद्री डकैती के विरुद्ध कार्रवाई करने में सक्षम बनाता है।
  • प्रभाविता: यह भारत के समुद्र तट से 200 समुद्री मील के अंतर्गत आने वाले ‘अनन्य आर्थिक क्षेत्र’ (EEZ) के पार भी प्रभावी होता है।
  • UNCLOS के प्रावधानों को लागू करना: इस विधेयक के माध्यम से ‘समुद्री कानून पर संयुक्त राष्ट्र अभिसमय’ (United Nations Convention on the Law of the Sea- UNCLOS) के प्रावधानों को देश के कानून में शामिल किया जाएगा।
  • सख्त दंडात्मक प्रावधान: यदि समुद्री डकैती के दौरान किसी की मृत्यु होती है या यह किसी की मौत का कारण बनती है, तो ऐसे कृत्य के लिए दोषी को आजीवन कारावास या मृत्युदंड की सजा दी जाएगी।
    • समुद्री डकैती के कृत्यों में भाग लेने, इसे आयोजित करने, इसमें सहायता या समर्थन करने या दूसरों को इसमें भाग लेने के लिए निर्देशित करने के लिए 14 वर्ष तक की कैद और जुर्माना हो सकता है।

विधेयक का महत्व

  • भारतीय दंड संहिता या आपराधिक प्रक्रिया संहिता में समुद्री डकैती के संबंध में किसी विशिष्ट कानून या कानूनी प्रावधान का अभाव है, ऐसे में यह विधेयक समुद्री डकैती से निपटने के लिए एक प्रभावी कानूनी उपाय प्रदान करेगा, जिससे भारत की समुद्री सुरक्षा मजबूत होगी।
  • समुद्री डकैती रोधी इस क़ानून से अन्य साझेदार देशों के बीच भारत की वैश्विक साख बढ़ेगी तथा दुनिया के समुद्री मार्ग समुद्री डकैती से मुक्त हो सकेंगे।
  • यह विधेयक भारत को UNCLOS के तहत अपने दायित्वों का निर्वहन करने में भी सक्षम करेगा, जिस पर भारत ने 1982 में हस्ताक्षर किए थे और 1995 में इसकी पुष्टि की थी।
  • 'संपर्क के समुद्री मार्गों' (sea lanes of communication) की सुरक्षा महत्वपूर्ण है, क्योंकि भारत का 90 प्रतिशत से अधिक व्यापार समुद्री मार्गों से होता है और देश की हाइड्रोकार्बन आवश्यकताओं का 80 प्रतिशत से अधिक समुद्र से ही प्राप्त होता है। ऐसे में यह विधेयक समुद्री सुरक्षा सुनिश्चित करके भारत की सुरक्षा और आर्थिक भलाई दृष्टि से महत्वपूर्ण साबित होगा।
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