सामयिक
रैंकिंग, रिपोर्ट, सर्वेक्षण और सूचकांक:
स्टार्टअप परितंत्र के समर्थन पर राज्यों की रैंकिंग
- 11 सितंबर, 2020 को वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय ने स्टार्टअप परितंत्र-2019 के समर्थन में राज्यों की रैंकिंग का दूसरा संस्करण ज़ारी किया। इसका संचालन उद्योग और आंतरिक व्यापार संवर्धन विभाग (DPIIT) द्वारा किया गया।
- उत्तर पूर्व भारत के चार राज्यों सहित कुल 22 राज्यों और 3 केंद्र शासित प्रदेशों ने इसमें हिस्सा लिया।
उद्देश्य
- स्टार्टअप परितंत्र के समर्थन पर राज्यों की रैंकिंग का उद्देश्य स्टार्टअप परितंत्र को बढ़ावा देने के लिए राज्यों / संघ राज्य क्षेत्रों द्वारा की गई प्रगति को सामने लाने में मदद करना है।
- इसके साथ राज्यों / केंद्र शासित प्रदेशों को लगातार इस क्षेत्र में कार्य करने के लिए प्रेरित करना और उनके बीच प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देना है।
- साथ ही साथ राज्यों / केंद्रशासित प्रदेशों को अच्छी प्रथाओं की पहचान करने, सीखने और दोहराने की सुविधा प्रदान करना है।
राज्य स्टार्टअप रैंकिंग 2019 के बारे में
सुधार के लिए हस्तक्षेपित क्षेत्र
- इस वर्ष राज्यों की रैंकिंग की रूपरेखा, 7 क्षेत्रों में सुधार के साथ कुल 30 क्रिया बिंदुओं में विस्तार हुआ है जबकिपिछले वर्षों की रैंकिंग रूपरेखा में कुल38 क्रिया बिंदु थें।
राज्यों की 7 स्तंभ वार भागीदारी
- यह संस्थागत समर्थन,सरलीकृत विनियमन, सार्वजनिक खरीद मानदंडों में छूट, उद्भवन समर्थन(Incubation Support), बीज अनुदान सहायता (Seed Funding support), उद्यम अनुदान सहायता तथा जागरूकता और पहुँचजैसे मापदंडों को कवर करता है।
वर्गीकरण
- रैंकिंगप्रक्रिया में एकरूपता स्थापित करने और मानकीकरण सुनिश्चित करने के लिए, राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को दो समूहों में विभाजित किया गया है।
- श्रेणी X:शेष अन्य राज्यों एवं केंद्रशासित क्षेत्र दिल्ली को ‘श्रेणी X’ में रखा गया है।
- श्रेणी Y:दिल्ली को छोड़कर सभी केंद्रशासित क्षेत्र एवं असम को छोड़कर पूर्वोत्तर के सभी राज्य ‘श्रेणी Y’ में रखे गए हैं।
- रैंकिंग के उद्देश्य से राज्यों को 5 श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया है:
- सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने वाले राज्य
- उत्तम प्रदर्शन करने वाले राज्य
- अग्रणी राज्य
- आकांक्षी अग्रणी राज्य
- उभरते हुए स्टार्टअप परितंत्र वाले राज्य
परिणाम
श्रेणी X
- सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने वाले राज्य:गुजरात (राज्य), अंडमान और निकोबार द्वीप समूह (केंद्रशासित)
- उत्तम प्रदर्शन करने वाले राज्य:कर्नाटक और केरल
- अग्रणी राज्य:बिहार, महाराष्ट्र, ओडिशा, राजस्थान, चंडीगढ़
- आकांक्षी अग्रणी राज्य:हरियाणा, झारखंड, पंजाब, तेलंगाना, उत्तराखंड
- उभरते हुए स्टार्टअप परितंत्र वाले राज्य:आंध्र प्रदेश, असम, छत्तीसगढ़, दिल्ली, हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश, सिक्किम, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश
श्रेणी Y
- सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने वाले राज्य:अंडमान और निकोबार द्वीप समूह
- अग्रणी राज्य:चंडीगढ़
- आकांक्षी अग्रणी राज्य:नागालैंड
- उभरते हुए स्टार्टअप परितंत्र वाले राज्य:मिज़ोरम, सिक्किम
महत्त्व
- रैंकिंग न सिर्फ़ राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को, बल्कि उद्यमियों को भी मदद करेगी और इससे स्टार्टअप के विस्तार और नए उपक्रमों को शुरू करने में मदद मिलेगी।
- रैंकिंग, क्षमता विकास अभ्यास पर आधारित है, यह सभी राज्यों के बीच आपसी सीख को प्रोत्साहित करने तथा नीतियों के निर्माण और उनके क्रियान्वयन में सहायता प्रदान करेगी।
स्टार्टअप
- एक स्टार्टअप को एक नए व्यवसाय के रूप में परिभाषित किया जा सकता है, जिसकी कार्यप्रणाली शुरुआती चरणों में है, और जो अभी विकसित हो रहा है। यह आमतौर पर एक व्यक्ति या व्यक्तियों के छोटे समूह द्वारा वित्तपोषित होता है।
- एक इकाई को एक स्टार्टअप माना जाएगा यदि वह नीचे उल्लिखित शर्तों को पूरा करती है:
इकाई का प्रकार
- एक निजी लिमिटेड कंपनी के रूप में निगमित (जैसा कि कंपनी अधिनियम, 2013 में परिभाषित है) या
- एक साझेदारी फर्म (कंपनी) के रूप में पंजीकृत (भागीदारी अधिनियम, 1932 की धारा 59 के तहत) या
- भारत में सीमित देयता भागीदारी (सीमित देयता भागीदारी अधिनियम, 2008 के तहत) के रूप में पंजीकृत।
आयु (स्टार्टअप कहलाने हेतु समयसीमा)
- किसी फर्म (कंपनी) की निगमन की तारीख़ से 10 साल तक उस फर्म (कंपनी) को स्टार्टअप कहा जा सकता है।
व्यापार की मात्रा (टर्नओवर)
- किसी भी वित्तीय वर्ष में उस फर्म (कंपनी) का टर्न ओवर एक सौ करोड़ रुपये से अधिक नहीं होना चाहिए।
गतिविधि की प्रकृति
इकाई निम्न क्षेत्रों में काम कर रही है-
- नवाचार (Innovation)
- उत्पादों या प्रक्रियाओं या सेवाओं का विकास या सुधार
- मापनीयता (Scalability)
- रोज़गार निर्माण
- धन सृजन
स्टार्टअप्स के लिए अवसर
भारतीय बाजार स्टार्टअप के लिए कई अवसर प्रदान करते हैं।
- भारत की बड़ी जनसंख्या:भारत की जनसंख्या देश के लिए एक बड़ी संपत्ति है। 2020 तक, यह उम्मीद की जाती है कि कामकाजी उम्र की आबादी ग़ैर-कामकाजी आबादी को पार कर जाएगी। यह अद्वितीय जनसांख्यिकीय लाभ किसी भी स्टार्टअप को एक शानदार अवसर प्रदान करेगा। विभिन्न बुनियादी ढांचोंकी ज़रूरतें और बाज़ार कामूल आधार स्टार्टअप्स के लिए बड़े अवसर प्रदान करेंगे।
- श्रमिक वर्ग कीमानसिकता बदलना:पारंपरिक कामकाज भारतीय स्टार्टअप के लिए नई राह बनेंगे। चुनौतीपूर्ण कार्य, अच्छे मुआवजों का पैकेज प्रतिभाशाली लोगों को स्टार्टअप के लिए आकर्षित करेंगे। इसके अलावा, यह देखा गया है कि कई हाई-प्रोफाइल अधिकारी स्टार्टअप शुरू करने या काम करने के लिए अपनी नौकरी छोड़ रहे हैं।
- स्टार्टअप्स में भारी निवेश:स्टार्टअप परितंत्र को विदेशी और भारतीय निवेशकों से पर्याप्त समर्थन मिल रहा है, जिन्होंने उद्योग में अधिक विश्वास दिखाया है और इन कंपनियों को आगे बढ़नेतथाइनकी क्षमता और सीमा बढ़ाने में मदद करने के लिए धन प्रदान किया है।
- सरकारी पहल:सरकारी और अर्ध-सरकारी पहलें वर्तमान में बुनियादी ढांचे, वित्तीय और तकनीकी सहायता और आसान अनुपालन मानदंडों के माध्यम से स्टार्टअप्स का समर्थन कर रही हैं।
भारत में स्टार्टअप परिदृश्य
- 31 मार्च 2020 को भारत की स्टार्टअप वृद्धि की कहानी के कुछ प्रमुख परिणाम इस प्रकार हैं -
स्टार्टअप्स के मुद्दे और चुनौतियां
- वित्तीय संसाधनों की कमी:स्टार्टअप के लिए वित्त की उपलब्धता महत्वपूर्ण है और हमेशा पर्याप्त मात्रा में वित्तकी उपलब्धता एक बड़ी समस्या है। स्टार्टअप की सफलता के लिए नकद प्रबंधन महत्वपूर्ण है। हालिया रिपोर्ट में 85% नई कंपनियोंने विफलता के संकेत के साथ एक उदास तस्वीर पेश की है।
- खराब राजस्व सृजन:व्यापार बढ़ने के साथ-साथ खराब राजस्व के कारण कई स्टार्टअप विफल हो जाते हैं। जैसे-जैसे संचालन बढ़ता है, व्यय राजस्व में कमी के साथ बढ़ते हैं, जिससे स्टार्टअपनिधीकरण (Funding) के पहलू पर ध्यान केंद्रित करना शुरू कर देते है। इसलिए, चुनौती पर्याप्त पूंजी उत्पन्न करना नहीं है, बल्कि विकास का विस्तार करना और उसे बनाए रखना है।
- सहायक मूलभूत ढांचें:विभिन्न समर्थन तंत्र जो स्टार्टअप्स के जीवन चक्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं जिसमें इनक्यूबेटर, विज्ञान और प्रौद्योगिकी पार्क, व्यवसाय विकास केंद्र आदि शामिल हैं। इस तरह के समर्थन तंत्रों के अभाव में विफलता का खतरा बढ़ जाता है।
- बाजारों में जागरूकता की कमी:बाजारों में सीमाओं पर ध्यान न देने के कारण स्टार्टअप विफल हो जाते हैं। उत्पाद की विशिष्टता के कारण किसी स्थापित कंपनी की तुलना में स्टार्टअप के लिए वातावरण आमतौर पर अधिक कठिन होता है।
- जटिल नियामक पर्यावरण:व्यवसाय शुरू करने के लिए सरकारी एजेंसियों से कई अनुमतियों की आवश्यकता होती है। हाल के वर्षों में अवधारणात्मक परिवर्तन के बावजूद, कंपनी को पंजीकृत करना अभी भी एक चुनौती है। इसके अलावा, श्रम कानूनों, बौद्धिक संपदा अधिकारों, विवाद समाधान आदि से संबंधित विनियम भारत में कठोर हैं।
- संरक्षण का अभाव:उचित मार्गदर्शन और संरक्षक का अभाव भारतीय स्टार्टअप परितंत्र में मौजूद सबसे बड़ी समस्याओं में से एक है। अधिकांश स्टार्टअप के पास शानदार विचार और / या उत्पाद हैं, लेकिन उत्पादों को बाजार में लाने के लिए कोई उद्योग या व्यवसाय और बाजार का अनुभव नहीं है।
- एक प्रभावी ब्रांडिंग रणनीति का अभाव:एक प्रभावी ब्रांडिंग रणनीति की अनुपस्थिति एक और मुद्दा है जो स्टार्टअप को फलने-फूलने से रोकता है। ब्रांडिंग स्टार्टअप्स के लिए सबसे महत्वपूर्ण है क्योंकि यह एक पहचान देता है और उपभोक्ताओं के दिमाग में जगह बनाता है।
स्टार्टअप्स के प्रति हाल ही में किये गए विनियामक सुधार
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सरकारी की तरफ से किये गए पहल
आत्मानिर्भर भारत- अटल न्यू इंडिया चैलेंज (ANIC) की शुरुआत
- 9 सितंबर, 2020 को सरकार द्वारा आत्मानिर्भर भारत- अटल न्यू इंडिया चैलेंज (ANIC) कार्यक्रम की शुरुआत की गयी, जो अनुसंधान और नवाचार को बढ़ावा देने तथा भारतीय स्टार्टअप्स और सूक्ष्म, लघु व मध्यम उद्यमों (MSMEs) की प्रतिस्पर्धात्मकता को बढ़ाने के लिए एक राष्ट्रीय पहल है।
एआईएम-आईसीआरईएसटी (AIM-iCREST) कार्यक्रम
- जुलाई, 2020 में अटल इनोवेशन मिशन (AIM) द्वारा आईसीआरईएसटी (iCREST) को लॉन्च किया गया, यह एक उच्च प्रदर्शन स्टार्टअप बनाने पर केंद्रित एक मजबूत परितंत्र के लिए एक इनक्यूबेटर क्षमता संवर्धन कार्यक्रम है।
- इसे समूचे देश में एआईएम (AIM)और इनक्यूबेटरों के विकास में समर्थन करने के लिए तैयार किया गया है।
राष्ट्रीय स्टार्टअप सलाहकार परिषद
- जनवरी, 2020 में सरकार ने नवाचार और स्टार्टअप के विकास हेतु एक मजबूत परितंत्र के गठन के लिए आवश्यक उपायों पर सरकार को सलाह देने के लिए राष्ट्रीय स्टार्टअप सलाहकार परिषद बनाई, जो देश में सतत आर्थिक विकास को बढ़ावा देने और बड़े पैमाने पर रोजगार के अवसर पैदा करेगा।
स्टार्टअप इंडिया
- 15 अगस्त 2015 को केंद्र सरकार द्वारा घोषित इस पहल का उद्देश्य देश में नवाचार और स्टार्टअप को विकसित करने के लिए एक मजबूत परितंत्र का निर्माण करना है जो स्थायी आर्थिक विकास को बढ़ावा देगाऔर बड़े पैमाने पर रोजगार के अवसर पैदा करेगा।
- स्टार्टअप इंडिया पहल के उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए, 16 जनवरी 2016 को स्टार्टअप इंडिया के लिए एक एक्शन प्लान लाया गया। एक्शन प्लान में क्षेत्रों में फैले हुए कुल 19 एक्शन आइटम शामिल हैं जैसे- "सरलीकरण और प्रारंभिक सहायता (Simplification and handholding)", "समर्थन और प्रोत्साहन अनुदान (Funding support and incentives)" तथा "उद्योग-एकेडेमिया भागीदारी और उद्भवन Industry academia partnership and incubation)”।
मेक इन इंडिया
- इसे 2014 में लॉन्च किया गया था, इसका अंतिम उद्देश्य भारत को एकमहत्वपूर्ण निवेश एवं निर्माण, संरचना तथा अभिनव प्रयोगों के वैश्विक केंद्र के रुप में तब्दील करना है। यह पहल निवेश, कौशल विकास को बढ़ावा देती है, नवाचार को प्रोत्साहित करती है, इस उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए बौद्धिक संपदा अधिकारों की रक्षा करती है।
मुद्रा योजना
- इस योजना के माध्यम से, स्टार्टअप्स को अपने व्यवसायों को स्थापित करने, विकसित करने और मजबूत करने के लिए बैंकों से ऋण मिलता है।
स्व-रोजगार और प्रतिभा उपयोग कोष (SETUFund)
- सरकार ने स्वरोजगार और मुख्य रूप से प्रौद्योगिकी संचालित डोमेन में नई नौकरियों के अवसर पैदा करने के लिए 1,000 करोड़ रुपये आवंटित किए हैं।
ई-बिज़ पोर्टल (E-Biz Portal)
सरकार ने ई-बिज़ पोर्टल शुरू किया जो एक स्रोत पर 14 विनियामक अनुमतियों और लाइसेंसों को एकीकृत करता है इससे लाइसेंसों को मंजूरी देने में तेजी आएगी तथा भरता में ईज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस में सुधार होगा।
आगे का रास्ता
- स्टार्टअप वर्तमान में एक महत्वपूर्ण संपत्ति है जिसे तेजी से विकसित बुनियादी ढांचे के विकास के माध्यम से समर्थित होने की आवश्यकता है। इसके अतिरिक्त, सरकार को नवीन स्टार्टअप्स को कम ब्याज वाले ऋण देने के लिए बैंकों और अन्य वित्तीय संस्थानों पर ज़ोर देना चाहिए। इन स्टार्टअप को नि:शुल्क प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए ताकि वे प्रतिस्पर्धी बाजार से बच सकें।
- भारत का एक बड़ा जनसांख्यिकीय आधार है। आवश्यक कौशल और शिक्षा की कमी भारत को मानव पूंजी की क्षमता को महसूस करने से रोक रही है। इन पहलुओं में सुधार, समय की ज़रुरत है।
- सामूहिक पहल के रूप में,केंद्र और राज्यों को एक साथ काम करने और सभी आयु समूहों के लिए आवश्यक बुनियादी ढांचों, समर्पित प्रणालियों, बुद्धि और वित्तीय संसाधनों के समुच्चय निर्मित करने की ज़रुरत है।
- वर्तमान प्रतिबंधात्मक विधायी संरचना और विनियामक मानदंडों में सुधार इस तरह से किया जाना चाहिए जिससे स्टार्टअप पूरे देश में पनप सकें और विकसित हो सकें।
भारत वन स्थिति रिपोर्ट 2019
- हाल ही में, पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने देश के वन संसाधनों का आकलन प्रदान करते हुए द्विवार्षिक “भारत वन स्थिति रिपोर्ट (ISFR) -2019” जारी की।
- रिपोर्ट में वन आवरण, वृक्ष आवरण, मैंग्रोव आवरण, वन क्षेत्रों के अंदर और बाहर बढ़ते स्टॉक, भारत के वनों में कार्बन स्टॉक, वन प्रकार और जैव-विविधता, वनाग्नि निगरानी और विभिन्न ढलानों और तुंगता (Slopes and Altitude) पर वन आवरण के बारे में जानकारी दी गई है।
उद्देश्य
- राष्ट्रीय, राज्य और जिला स्तर पर वन आवरण और उसमें बदलाव की निगरानी करना।
- विभिन्न घनत्व वर्गों में वन आवरण और उसमें परिवर्तन के बारे में जानकारी हासिल करना।
- पूरे देश के लिए वन आवरण और उससे प्राप्त अन्य विषयगत मानचित्र तैयार करना।
- बढ़ते स्टॉक, वन कार्बन सहित विभिन्न मापदंडों के आकलन के लिए प्राथमिक आधार प्रदान करना।
- अंतर्राष्ट्रीय रिपोर्टिंग के लिए शीर्ष स्तर की जानकारी करना।
भारत की वन स्थिति रिपोर्ट (India State of Forest Report - ISFR)
- रिपोर्ट को भारतीय वन सर्वेक्षण (FSI) द्वारा प्रकाशित किया जाता है, जो द्विवार्षिक चक्र में वन आवरण मानचित्रण के साथ देश के वन और वृक्ष संपदा का आकलन करती है।
- 1987 से शुरू वन मूल्यांकन की अब तक 15 रिपोर्ट जारी की चुकी हैं। ISFR 2019 श्रृंखला की 16वीं रिपोर्ट है।
प्रमुख निष्कर्ष
कुल वन आवरण
- देश का कुल वन आवरण 7,12,249 वर्ग किमी. है, जो देश के भौगोलिक क्षेत्र का 67% है। देश का वृक्ष आवरण 95,027 वर्ग किमी. है, जो भौगोलिक क्षेत्र का 2.89% है।
- देश का कुल वन और वृक्ष आवरण 8,07,276 वर्ग किमी. है, जो देश के भौगोलिक क्षेत्र का 56% है।
- यह ISFR 2017 की तुलना में राष्ट्रीय स्तर पर 3,976 वर्ग किमी. (56%) वन आवरण, 1,212 वर्ग किमी. (1.29%) वृक्ष आवरण और 5,188 वर्ग किमी. (0.65%) वन और वृक्षों के आवरण की वृद्धि को दर्शाता है।
राज्यों में वन आवरण
- क्षेत्रफल के अनुसार, मध्य प्रदेश में देश का सबसे बड़ा वन क्षेत्र है, इसके बाद अरुणाचल प्रदेश, छत्तीसगढ़, ओडिशा और महाराष्ट्र हैं।
- वन आवरण में वृद्धि के मामले में शीर्ष पांच राज्य कर्नाटक (1,025 वर्ग किमी.), आंध्र प्रदेश (990 वर्ग किमी.), केरल (823 वर्ग किमी.), जम्मू और कश्मीर (371 वर्ग किमी.) और हिमाचल प्रदेश (334 वर्ग किमी.) हैं।
- प्रतिशत के लिहाज से कुल भौगोलिक क्षेत्र के वन आवरण के मामले में, शीर्ष पांच राज्य मिजोरम (41%), अरुणाचल प्रदेश (79.63%), मेघालय (76.33%), मणिपुर (75.46%) और नागालैंड (75.31%) हैं।
पूर्वोत्तर क्षेत्र में वन आवरण
- पूर्वोत्तर क्षेत्र में कुल वन क्षेत्र 1,70,541 वर्ग किमी. है, जो इसके भौगोलिक क्षेत्र का 05% है। वर्तमान मूल्यांकन में क्षेत्र में 765 वर्ग किमी. (0.45%) की सीमा तक वन आच्छादन में कमी देखी गई है। असम और त्रिपुरा को छोड़कर, क्षेत्र के सभी राज्य वन आवरण में कमी दर्शाते हैं।
पहाड़ी और जनजातीय जिलों में वन आवरण
- यह देश के 140 पहाड़ी जिलों में 544 वर्ग किमी. (19%) की वृद्धि दर्शाता है।
- वर्तमान मूल्यांकन में आदिवासी जिलों में RFA/GW के भीतर 741 वर्ग किमी. वन आवरण की कमी और बाहर 1,922 वर्ग किमी. की वृद्धि दर्शाती है।
मैन्ग्रोव
- देश में मैंग्रोव आवरण पिछले आकलन की तुलना में 54 वर्ग किमी. (10%) बढ़ा है।
- मैंग्रोव आवरण में वृद्धि दिखाने वाले शीर्ष तीन राज्य गुजरात (37 वर्ग किमी.), महाराष्ट्र (16 वर्ग किमी.) और ओडिशा (8 वर्ग किमी.) हैं।
कुल कार्बन स्टॉक
- देश के वनों में कुल कार्बन स्टॉक 7,124.6 मिलियन टन अनुमानित है और 2017 के आकलन की तुलना में देश के कार्बन स्टॉक में 6 मिलियन टन की वृद्धि हुई है। कार्बन स्टॉक में वार्षिक वृद्धि 21.3 मिलियन टन है, जो कि 78.2 मिलियन टन कार्बन डाइऑक्साइड के बराबर है।
2019 में भारत के वन एवं वृक्ष आवरण |
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वर्ग |
वन आवरण क्षेत्रफल (वर्ग किमी.) |
भौगोलिक क्षेत्रफल का प्रतिशत |
अत्यधिक घने वन |
99,278 |
3.02 |
मध्यम घने वन |
3,08,472 |
9.38 |
खुले वन (Open Forest |
3,04,499 |
9.26 |
कुल वन आवरण* |
7,12,249 |
21.67 |
वृक्ष आवरण |
95,027 |
2.89 |
कुल वन एवं वृक्ष आवरण |
8,07,276 |
24.56 |
छोटी झाड़ी |
46,297 |
1.41 |
गैर-वन# |
25,28,923 |
76.92 |
कुल भौगोलिक क्षेत्रफल |
32,87,469 |
100.00 |
*मैन्ग्रोव के तहत 4,975 वर्ग किमी. सहित #वृक्ष आवरण सहित गैर-वन (प्रतिशत) |
आर्द्रभूमि
- 62,466 आर्द्रभूमि हैं, जो देश के रिकॉर्डेड फॉरेस्ट एरिया/ग्रीन वॉश (RFA/GW) के दायरे में 83% है।
- RFA/GW के भीतर स्थित आर्द्रभूमि की कुल संख्या 13% है। राज्यों में गुजरात का सर्वाधिक और दूसरे स्थान पर पश्चिम बंगाल का आर्द्रभूमि क्षेत्र RFA के अंतर्गत आता है।
आग प्रभावित क्षेत्र
- वनाग्नि की आवृत्ति के आधार पर 5 किमी. x 5 किमी. के ग्रिड में विभिन्न गंभीरता वर्गों के आग प्रभावित वन क्षेत्रों का मानचित्रण किया गया है। विश्लेषण से पता चलता है कि देश का 40% वन आवरण अत्यधिक अग्नि प्रवण (Fire Prone) है।
भारत में हरित आवरण वर्ष 2019
वन क्षेत्र में वृद्धि दर्ज करने वाले शीर्ष तीन राज्य
क्षेत्रफल के अनुसार देश में सर्वाधिक वन आवरण वाले राज्य
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वन आवरण
रिकार्डेड फारेस्ट एरिया
ग्रीन वॉश
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रिपोर्ट की महत्ता
- यह प्रत्येक राज्य से संबंधित जैव विविधता मूल्यांकन, ढलान और तुंगता वाले वन आवरण आदि प्रासंगिक जानकारी प्रदान करता है, जो उनके वन और वृक्ष संसाधनों के संरक्षण, प्रबंधन और वृद्धि के लिए नीतियां और रणनीति तैयार करने में बहुत उपयोगी होंगे।
- रिपोर्ट में बांस संसाधन, वनाग्नि, कार्बन स्टॉक, लोग और वन एवं उनके प्रकार तथा जैव-विविधता पर समर्पित अध्याय शामिल हैं। यह देश के नागरिकों से लेकर नीति निर्माताओं, शिक्षाविदों, प्रशासकों, वन प्रबंधकों, और समुदाय आधारित संगठनों जैसे हितधारकों के लिए बहुत प्रासंगिक होगी।
- भारत सरकार के डिजिटल इंडिया के दृष्टिकोण के अनुरूप, FSI का आकलन काफी हद तक डिजिटल डेटा पर आधारित है चाहे वह उपग्रह डेटा, जिलों की वेक्टर सीमाएं या क्षेत्र माप के डेटा प्रसंस्करण हो।
भारतीय वन सर्वेक्षण (FSI) मुख्यालय: देहरादून, उत्तराखंड
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नीति आयोग का सतत विकास लक्ष्य सूचकांक
30 दिसंबर, 2019 को नीति आयोग ने सतत विकास लक्ष्य (Sustainable Development Goal - SDG) भारत सूचकांक का दूसरा संस्करण लॉन्च किया, जो 2030 SDG लक्ष्यों को की प्राप्ति की दिशा में भारत के राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों द्वारा की गई प्रगति का व्यापक दस्तावेज है।
उद्देश्य
- सहकारी संघवाद के ढांचे के अंतर्गत राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के बीच स्वस्थ प्रतिस्पर्धा और अनुसरण (emulation) को बढ़ावा देना।
SDG सूचकांक
- 2018 में पहली बार विकसित SDG भारत सूचकांक सतत विकास लक्ष्यों पर उप-राष्ट्रीय स्तर पर उपलब्धियों को प्रस्तुत करने का एक प्रयास था।
- इस सूचकांक को सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (MoSPI), संयुक्त राष्ट्र (भारत) और ग्लोबल ग्रीन ग्रोथ इंस्टीट्यूट के सहयोग से विकसित किया गया है।
- SDG सूचकांक-2018 13 लक्ष्यों पर आधारित था, जबकि SDG सूचकांक-2019 राष्ट्रीय चिन्हित संकेतकों के आधार पर 100 संकेतकों के बीच फैले 54 लक्ष्यों में से 16 लक्ष्यों पर आधारित है और एसडीजी राष्ट्रीय संकेतक फ्रेमवर्क के साथ भी बेहतर रूप से संरेखित है।
- 16 सतत विकास लक्ष्यों के समग्र प्रदर्शन के आधार पर प्रत्येक राज्य/केंद्रशासित प्रदेशों के लिए 0-100 की श्रेणी में एक समग्र स्कोर की गणना की गई, जो 16 SDG और उनके संबंधित लक्ष्यों को प्राप्त करने की दिशा में प्रत्येक राज्य/केन्द्रशासित प्रदेश के औसत प्रदर्शन को दर्शाता है। यदि कोई राज्य/केंद्रशासित प्रदेश 100 का स्कोर प्राप्त करता है,तो यह दर्शाता है कि उसने 2030 तक के राष्ट्रीय लक्ष्य हासिल किए हैं। राज्य/केंद्रशासित प्रदेश का स्कोर जितना अधिक होगा, वह लक्ष्य प्राप्ति के उतने ही निकट होगा।
- SDG भारत सूचकांक स्कोर के आधार पर वर्गीकरण मानदंड इस प्रकार है:
- आकांक्षी (Aspirant): 0–49
- परफॉर्मर (Performer): 50-64
- फ्रंट रनर (Front Runner): 65–99
- अचीवर (Achiever): 100
प्रमुख बिंदु
SDG में भारत का समग्र प्रदर्शन
- जल एवं स्वच्छता, बिजली और उद्योग में बड़ी सफलता के साथ भारत के समग्र स्कोर में 2018 में 57 से 2019-20 में 60 तक सुधार हुआ।
- गरीबी के मामले में भारत की रैंकिंग 2018 में 54 अंक से गिरकर 2019 में 50 अंक हो गई है।
- लक्ष्य 6 (स्वच्छ जल और स्वच्छता), 9 (उद्योग, नवाचार, और बुनियादी ढांचे) और 7 (वहनीय और स्वच्छ ऊर्जा) में अधिकतम लाभ हुआ है।
- विशेष रूप से दो लक्ष्यों - लैंगिक समानता और शून्य भूख – पर कहीं अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है क्योंकि दोनों लक्ष्यो में देश का स्कोर 50 से कम है।
- इसके अलावा, आर्थिक विकास के मामले में भारत का स्कोर 65 से 64 तक एक स्थान नीचे खिसक गया है।
राज्य एवं केंद्र-शासित प्रदेशों का प्रदर्शन
- केरल (70), हिमाचल प्रदेश, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और तेलंगाना बेहतर प्रदर्शन करने वाले राज्य हैं।
- बिहार (50), झारखंड, अरुणाचल प्रदेश ,मेघालय और उत्तर प्रदेश सबसे नीचे के राज्य हैं।
- केंद्र-शासित प्रदेशों में चंडीगढ़ ने 70 के स्कोर के साथ अपना शीर्ष स्थान बनाए रखा है।
- उत्तर प्रदेश, ओडिशा और सिक्किम ने अधिकतम सुधार दिखाया है, लेकिन गुजरात जैसे राज्यों ने 2018 की रैंकिंग की तुलना में कोई प्रगति नहीं दिखाई है।
- 2019 सूचकांक में, पांच और राज्यों को फ्रंट रनर श्रेणी में शामिल किया गया- आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक,सिक्किम और गोवा।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
शीर्ष 12 राज्य
राज्य स्कोर
केरल 70
हिमाचल प्रदेश 69
आंध्र प्रदेश 67
तमिलनाडु 67
तेलंगाना 67
कर्नाटक 66
गोवा 65
सिक्किम 65
गुजरात 64
महाराष्ट्र 64
उत्तराखंड 64
पंजाब 62
नीचे से शीर्ष 5 राज्य
बिहार 50
झारखंड 53
अरुणाचल प्रदेश 53
मेघालय 54
उत्तर प्रदेश, असम 55
शीर्ष 5 केंद्र-शासित प्रदेश
चंडीगढ़ 70
पुडुचेरी 66
दादरा व नागर हवेली 63
लक्षद्वीप 63
दिल्ली, अंडमान व निकोबार द्वीप समूह, दमन व दीव 61
लक्ष्य-वार शीर्ष राज्य/केंद्र- शासित प्रदेश |
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लक्ष्य 1 |
गरीबी हटाना |
तमिलनाडु, जम्मू-कश्मीर और लद्दाख |
लक्ष्य 2 |
शून्य भूखमरी |
गोवा और चंडीगढ़ |
लक्ष्य 3 |
अच्छा स्वास्थ्य और आरोग्य |
केरल और पुडुचेरी |
लक्ष्य 4 |
गुणवत्तापरक शिक्षा |
हिमाचल प्रदेश और चंडीगढ़ |
लक्ष्य 5 |
लैंगिक समानता |
हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर और लद्दाख |
लक्ष्य 6 |
स्वच्छ जल एवं सफाई |
आंध्र-प्रदेश और चंडीगढ़ |
लक्ष्य 7 |
वहनीय एवं स्वच्छ ऊर्जा |
सिक्किम और पुडुचेरी |
लक्ष्य 8 |
उचित कार्य एवं आर्थिक विकास |
तेलंगाना और चंडीगढ़ |
लक्ष्य 9 |
उद्योग, नवाचार एवं अवसंरचना |
केरल, गुजरात, दमन व दीव, दिल्ली और दादरा व नागर हवेली |
लक्ष्य 10 |
असमानता में कमी |
तेलंगाना और अंडमान व निकोबार द्वीप समूह |
लक्ष्य 11 |
सतत शहर एवं समुदाय |
हिमाचल प्रदेश, गोवा और चंडीगढ़ |
लक्ष्य 12 |
सतत उपभोग एवं उत्पादन |
नागालैंड और चंडीगढ़ |
लक्ष्य 13 |
जलवायु कार्यवाही |
कर्नाटक और लक्षद्वीप |
लक्ष्य 14 |
पानी के अन्दर जीवन |
कर्नाटक |
लक्ष्य 15 |
भूमि पर जीवन |
सिक्किम, मणिपुर, दादरा व नागर हवेली और लक्षद्वीप |
लक्ष्य 16 |
शांति, न्याय एवं मजबूत संस्थान |
गुजरात, आंध्रप्रदेश और पुडुचेरी |
स्रोत: नीति आयोग
सूचकांक की महत्ता
- मूल्यांकन का साधन: सूचकांक SDG एजेंडा को अपनाने और लागू करने में राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों की प्रगति को जांचने के लिए एक उपयोगी साधन के रूप में कार्य करता है, जहां प्रत्येक राज्य और केंद्र शासित प्रदेश सतत विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने का प्रयास करते हैं।
- प्राथमिकता वाले क्षेत्रों की पहचान में मदद: यह उप-राष्ट्रीय स्तर पर SDG प्रगति को मापने के लिए एक मजबूत फ्रेमवर्क प्रस्तुत करता है और ऐसे प्राथमिकता वाले क्षेत्रों की पहचान करने के लिए राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को प्रोत्साहित करता है, जिसमें उन्हें निवेश और सुधार करने की आवश्यकता होती है।
- बेहतर रणनीति तैयार करना: यह राज्यों को प्रदर्शन में भिन्नता के कारणों को सुलझाने और 2030 तक SDG प्राप्त करने के लिए बेहतर रणनीति तैयार करने में मदद करेगा।
- सरकार के मिशन के साथ जुड़ाव: सूचकांक SDG को सरकार के ‘सबका साथ, सबका विकास,सबका विश्वास’ के आह्वान के साथ जोड़ने हेतु एक सेतु के रूप में कार्य करता है, जोकि वैश्विक SDG आंदोलन के पांच P’s लोग, ग्रह , समृद्धि , साझेदारी और शांति का प्रतीक है।
सूचकांक की सीमाएं
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आगे की राह
- भारत, विश्व की 17 प्रतिशत आबादी के साथ, विकास के कई क्षेत्रों में कई चुनौतियों का सामना करता है, चाहे वह स्वास्थ्य, पोषण, शिक्षा, स्वच्छता और बुनियादी ढांचा हो। हालांकि, ये चुनौतियां भारत को इनके अभिनव समाधान विकसित करने के लिए भी अनुकूल बनाती हैं और विश्व के अन्य हिस्सों में भी इसी तरह की समस्याओं को हल करने के लिए एक उपयोगी दृष्टिकोण प्रदान करती हैं।
- भारत निर्धारित समयसीमा के भीतर वैश्विक लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए पूरी तरह से प्रतिबद्ध है। देश इस बात से पूरी तरह वाकिफ है कि यदि भारत SDG को पूरा नहीं करता है, तो विश्व उन्हें हासिल करने से दूर होगा।
- इस दिशा में, SDG सूचकांक एक शक्तिशाली साधन है, जो राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों को ऐसे प्राथमिकता वाले क्षेत्रों की पहचान करने की उत्कृष्ट संभावनाएं प्रदान करते हैं, जो कार्रवाई की मांग करते हैं ,सीखने की सुविधा देते हैं, आंकड़ों के अंतर को उजागर करते हैं।
ग्लोबल जेंडर गैप इंडेक्स - 2020
- 14 दिसंबर, 2019 को वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम (WEF) ने ग्लोबल जेंडर गैप इंडेक्स-2020 प्रकाशित किया, जो वैश्विक लैंगिक असमानता की वर्तमान स्थिति और इसे ख़त्म करने के प्रयासों के सम्बन्ध में अंतर्दृष्टि प्रदान करता है।
लक्ष्य
- इसका उद्देश्य स्वास्थ्य, शिक्षा, अर्थव्यवस्था और राजनीति में महिलाओं और पुरुषों के बीच सापेक्ष अंतराल पर प्रगति को ट्रैक करना |
सूचकांक के बारे में
- ग्लोबल जेंडर गैप इंडेक्स को पहली बार 2006 में WEF द्वारा लिंग-आधारित असमानताओं के परिमाण को जानने और समय के साथ उनकी प्रगति पर नज़र रखने के उद्देश्य से पेश किया गया था।
- सूचकांक में शामिल होने के लिए, किसी देश के पास सूचकांक के 14 संकेतकों में से न्यूनतम 12 संकेतकों से सम्बंधित डेटा उपलब्ध होना चाहिए।
- सूचकांक चार प्रमुख आयामों के आधार पर अंतराल को मापता है-
- आर्थिक भागीदारी और अवसर: इसमें तीन अवधारणाएँ शामिल हैं: भागीदारी अंतर, पारिश्रमिक अंतर और उन्नति अंतर।
- शैक्षिक प्राप्ति: यह प्राथमिक और माध्यमिक स्तर की शिक्षा में महिलाओं के अनुपात की गणना करता है जिसके माध्यम से शिक्षा तक महिलाओं एवं पुरुषों की वर्तमान पहुंच के बीच की खाई को मापा जाता है।
- स्वास्थ्य और जीवन रक्षा: इन दो संकेतकों के उपयोग के माध्यम से महिलाओं और पुरुषों के स्वास्थ्य के बीच अंतर को मापा जाता है।
- राजनीतिक सशक्तीकरण: यह राजनीतिक निर्णय लेने के उच्चतम स्तर पर पुरुषों और महिलाओं के बीच के अंतर को मापता है,जो मंत्री पदों और संसदीय पदों पर महिलाओं और पुरुषों के अनुपात के माध्यम से व्यक्त होता है।
मुख्य निष्कर्ष
ग्लोबल स्पेसिफिक फाइंडिंग
- आइसलैंड लगातार 11वीं बार दुनिया का सबसे लिंग-समान देश है।
- आइसलैंड के बाद नॉर्वे (2रा), फिनलैंड (3रा) और स्वीडन (4था) है। शीर्ष 10 अन्य अर्थव्यवस्थाओं में निकारागुआ (5वें), न्यूजीलैंड (6ठे), आयरलैंड (7वें), स्पेन (8वें), रवांडा (9वें) और जर्मनी (10वें) शामिल हैं।
- यमन सबसे अंतिम (153 वां) स्थान पर है।
- रिपोर्ट द्वारा मूल्यांकन किए गए आठ क्षेत्रों ने औसतन 60.5% (मध्य पूर्व और उत्तरी अफ्रीका में औसत स्कोर) और 76.7% (पश्चिमी यूरोप में औसत स्कोर) अंक प्राप्त किये।
- उत्तरी अमेरिका, पश्चिमी यूरोप (9%) और लैटिन अमेरिका और कैरेबियाईदशों (72.2%) से कुछ प्रतिशत नीचे है मगरपूर्वी यूरोप और मध्य एशिया (71.3%) के साथ लगभग समान है। उसके बाद पूर्वी एशिया और प्रशांत (68.5%), उप-सहारा अफ्रीका (68.2%) और दक्षिण एशिया (66.1%) हैं।
- विश्व स्तर पर, समता के लिए प्राप्त की गई औसत (जनसंख्या-भारित) 6% है, जो कि पिछले संस्करण से सुधार को दर्शाता है।
- राजनीतिक सशक्तीकरण असमानता को सबसे बड़ी लैंगिक असमानता बताई गई है।2020 में वैश्विक राजनीतिक सशक्तीकरण असमानता केवल 7% ही ख़त्म हो पायी है।
- दूसरा सबसे बड़ा अंतर आर्थिक भागीदारी और अवसर में है; इस अंतर का 8% अब तक ख़त्म किया गया है, जो पिछले साल के अपेक्षा मामूली सुधार है।
स्रोत:IE
भारत विनिर्दिष्ट विशेषताएं
- लैंगिक असमानता के मामले में भारत को चीन (106वां), श्रीलंका (102वां), नेपाल (101वां), ब्राजील (92वां), इंडोनेशिया (85वां) और बांग्लादेश (50वां) जैसे देशों से नीचे112वें स्थान पर रखा गया है। इसके जिम्मेदार कारकस्वास्थ्य,उत्तरजीविता और आर्थिक भागीदारी में व्यापत असमानता है।
- भारत ने राजनीतिक सुधार में18स्थान का सुधरा किया है; यह स्वास्थ्य भागीदारी और अवसर पर 150वें स्थान पर पहुंच गया है, आर्थिक भागीदारी और अवसर के मामले में 149वें और शैक्षिक प्राप्ति के लिए 112वें स्थान पर है।
स्रोत:WEF
महत्ता
- प्रगति ट्रैक करने का साधन: यह वैश्विक लैंगिक असमानता की वर्तमान स्थिति को दर्शाने के साथ इसे ख़त्म करने के प्रयासों के सम्बन्ध में व्यापक अंतर्दृष्टि प्रदान करता है। सूचकांक प्रगति को ट्रैक करने और सर्वोत्तम प्रथाओं को प्रकट करने के लिए एक बेंचमार्किंग टूल प्रदान करता है। इस वार्षिक रिपोर्ट के माध्यम से, प्रत्येक देश के हितधारक अपनी विशिष्ट आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक संदर्भ में प्राथमिकताओं को निर्धारित करने में सक्षम होंगे।
- देश के कानूनी और सामाजिक ढांचे की तस्वीर प्रदान करना: यह देशों के मध्य व्याप्त प्रदर्शन भिन्नता को उजागर करता है | यह अच्छे प्रदर्शन करने वाले देशों के सर्वोत्तम प्रथाओं, कानूनी और सामाजिक ढांचे का एक स्नैपशॉट भी प्रदान करता है जिसके कारण अच्छे परिणाम प्राप्त होते हैं।
- लैंगिक समानता पर नवीनतम शोध प्रदान करना: यह किसी देश के लैंगिक असमानता और उसके आर्थिक प्रदर्शन के बीच मजबूत संबंध को उजागर करता है और लैंगिक समानता के मामले पर नवीनतम शोधों में से कुछ को सारांशित करता है।
- नीति-निर्माताओं को संदेश: रिपोर्ट नीति-निर्माताओं को संदेश प्रधान करती है कि अगर वो अपने देश जो प्रतिस्पर्धी और समावेशी बनाना चाहते हैं, उन्हें लैंगिक समानता को मानव पूंजी विकास का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बनाना होगा।
विश्व आर्थिक मंच
WEF द्वारा प्रकाशित महत्वपूर्ण रिपोर्ट
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उपभोक्ता व्यय सर्वेक्षण
- हाल ही में, सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (MoSPI) ने अखिल भारतीय घरेलू उपभोक्ता व्यय सर्वेक्षण के परिणाम को जारी नहीं करने का फैसला किया जो 2017-2018 के दौरान राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO) द्वारा किये गए ।
- मीडिया रिपोर्टों में यह दावा किया गया कि डेटा के आँकड़ों को गुणवत्ता की वजह से इसे जारी नहीं करने का निर्णय लिया है।
आंकड़े को दबाने के कारण
- मीडिया लीक से पता चला है कि 2017-18 के उपभोक्ता व्यय सर्वेक्षण के नतीजे के प्रतिकूल निष्कर्षों के कारण रोक दिए गए थे, जिससे पता चलता है कि उपभोक्ता खर्च गिर रहा था।
- वस्तु एवं सेवाओं के वास्तविक उत्पादन को दर्शाने वाले प्रशासनिक आँकड़ों से ज्ञात होता है कि विगत वर्षों में लोगों के उपभोग व्यय में न केवल वृद्धि हुई है बल्कि उनके उपभोग के पैटर्न में भी विविधता आई है।
- परिवारों द्वारा सामाजिक सेवाओं, विशेषकर स्वास्थ्य एवं शिक्षा, के खपतपर सर्वेक्षण की क्षमता का अभाव है।
- 2017-18 के सर्वेक्षण के लीक हुए संस्करण के अनुसार, मासिक प्रति व्यक्ति व्यय (एमपीएसई -MPCE) में गिरावट आयी है |इस तरह की यह पहली गिरावट 1972-73 के दौरान आयी थी |वास्तविक कीमतों पर वर्ष 2011-12 में MPCE 1,501 रुपए (मुद्रास्फीति के अनुसार समायोजित) था जो वर्ष 2017-18 में घटकर 1,446 रुपए रह गया।
सरकार का जवाब
- सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालयने कहा कि आंकड़े और रिपोर्टों के पुनरीक्षण करने की एक कठोर प्रक्रिया है, जो सर्वेक्षण के माध्यम से निर्मित होती है। मंत्रालय में आनेवाली ऐसी सभी प्रस्तुतियां, प्रकृति में मसौदे हैं और अंतिम रिपोर्ट नहीं मानी जा सकती।
- सरकार ने विशेषज्ञों की एक समिति को मामले की समीक्षा के लिए भेजा, जिसने सर्वेक्षण पद्धति में शोधन और समवर्ती आधार पर डेटा गुणवत्ता पहलुओं में सुधार सहित कई सिफारिशें की | भविष्य के सर्वेक्षणों में कार्यान्वयन के लिए समिति की सिफारिशों की जांच की जा रही है।
उपभोक्ता व्यय सर्वेक्षण (सीईएस)
- सीईएस, राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय (एनएसएसओ) द्वारा किया गया एक पंचवर्षीय (हर पांच साल बाद होने वाला) सर्वेक्षण है, जो पूरे देश के शहरी एवं ग्रामीण क्षेत्रों के परिवारों के उपभोग खर्च पैटर्न पर जानकारी एकत्र करने के लिए बनाया गया है।
- उपभोक्ता व्यय पर अंतिम सर्वेक्षण का आयोजन जुलाई 2011 से जून 2012 के दौरान किया गया था जो 68वें चरण का सर्वेक्षण था।
व्यय पर सभी जानकारियां
- उपभोग व्यय सर्वेक्षण में राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर उपभोग के पैटर्न, जीवन स्तर और परिवारों के कल्याण को दर्शाते हैं, जिनका उपयोग विभिन्न सरकारी संगठनों द्वारा योजना और नीति निर्माण के लिए किए जाते हैं।
खाद्य और गैर-खाद्य व्यय
- चार्ट जुलाई 2011-जून 2012 के दौरान प्रति व्यक्ति खाद्य, गैर-खाद्य पदार्थों पर उपभोक्ता व्यय (एमपीसीई) को दर्शाता है। जो ग्रामीण एवं शहरी दोनों जगहों से लिए जाते है |
खाद्य पदार्थों में शामिल
- अनाज एवं अनाज के विकल्प,दालें व उनके उत्पाद ,दुग्धव दुग्ध उत्पाद,खाद्य तेल,अंडा, मछली और मांस,सब्जियां,फल,चीनी, नमक और मसाले,पेय पदार्थ, जलपान, प्रसंस्कृत आहार |
गैर-खाद्य पदार्थों में शामिल
- पान, तम्बाकू व नशायुक्त पदार्थ, ईंधन व प्रकाश ,वस्त्र एवं जूते, शिक्षा, चिकित्सा, परिवहन, परिवहन को छोड़कर उपभोक्ता सेवाएं, विविध वस्तुएं, मनोरंजन, किराया, कर एवं उपकर, टिकाऊ वस्तुएं |
एमपीसीई (2011-2012) के अखिल भारतीय ग्रामीण व शहरी वितरण
- ग्रामीण भारत में 5% सबसे गरीब एक महीने में 816 रुपये खर्च करते हैं जबकि 5% सबसे धनी लगभग 3000 रुपये खर्च करते हैं। यह अंतर शहरी क्षेत्रों में (5 प्रतिशत परिवारों के लिए) 827 रुपये प्रति माह और शेष 95 प्रतिशत परिवारों के लिए 6000 रुपये से अधिक घोषित किया गया था।
सीईएस का महत्व
- मासिक प्रति व्यक्ति व्यय का अनुमान: इस सर्वेक्षण में इकट्ठा किए गए आंकड़ों से वस्तुओं (खाद्य और गैर-खाद्य) और सेवाओं पर प्रति व्यक्ति उपभोक्ता व्यय का पता चलता है और इस के साथ-साथ एमपीसीई वर्ग में शामिल अवयवों पर परिवारों एवं व्यक्तियों के खर्च वितरण की प्रकृति का भी पता चलता है।
- जीवन स्तर और वृद्धि का आकलन: प्रति व्यक्ति खपत खर्च के अनुमान अर्थव्यवस्था की मांग गतिशीलता को समझने में महत्वपूर्ण हैं।इसके साथ ही वस्तुओं और सेवाओं के स्थानांतरण प्राथमिकताओं को समझने और जीवन स्तर और विकास के रुझानों का आकलन करने में सहायक होगा |
- महत्वपूर्ण विश्लेषणात्मक और पूर्वानुमान साधन: यह एक अमूल्य विश्लेषणात्मक साधन उपलब्ध कराता है जो नीति निर्माताओं को संभावित संरचनात्मक विसंगतियों के पूर्वानुमानएवं पहचान करने में सहायक है | वास्तव में, इसका इस्तेमाल सरकार द्वारा जीडीपी और अन्य वृहद-आर्थिक संकेतकों को पुनर्निर्धारण करने में किया जाता है।
राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ)
- यह अखिल भारतीय स्तर पर, विभिन्न क्षेत्रों से सम्बंधित नमूना सर्वेक्षण का संचालन करता है। देशव्यापी घरेलू सर्वेक्षणों के माध्यम से विभिन्न सामाजिक-आर्थिक विषयों, उद्योगों के वार्षिक सर्वेक्षण (एएसआई) आदि पर आंकड़े एकत्र किये जाते हैं।
- यह ग्रामीण और शहरी कीमतों पर आंकड़े भी एकत्र करता है | शहरी क्षेत्र में नमूना सर्वेक्षण के लिए इसका अपना संगठनात्मक ढांचा है।
अंतिम शब्द
- यदि आंकड़े के गुणवत्ता के मुद्दे थे, तो रिपोर्ट का मसौदा तैयार करने से बहुत पहले ही इसे खोज लिया जाना चाहिए था। यहां तक कि एकत्र किए गए आंकड़ों में गंभीर विसंगतियों को मानते हुए, सही निष्कर्षों और कथित सीमाओं के साथ एक रिपोर्ट प्रकाशित करना चाहिए, जो शोधकर्ताओं के लिए उपयोगी हो सकता है।
- मसौदा रिपोर्ट प्रकाशित होनी चाहिए क्योंकि सरकार ने आंकड़े इकट्ठा करने में लाखों रुपये खर्च किए हैं| नागरिकों करों के रूप में सरकार को भुगतान करते है जिसका उपयोग ऐसे रिपोर्ट तैयार करने में किया जाता है।
- सर्वेक्षण के निष्कर्षों को वापस लेना समकालीन खपत आंकड़े से नीति निर्माताओं को वंचित करता है |अगले सर्वेक्षण केआंकड़े 9 या 10 वर्षों के अंतरालके बाद 2020-21 या 2021-22 में आएगा। यह समय पर एवं प्रभावी हस्तक्षेप रणनीतियों के निर्माण को हतोत्साहित करेगा।
- अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के विशेष डेटा प्रसार मानक (एसडीडीएस) का भागीदार होने के नाते भारत चार क्षेत्रों में वृहत स्तर के आर्थिक आंकड़े प्रसारित करने के लिए बाध्य है- 1) आंकड़ों का समयानुसार, निश्चित समय के अंतराल पर कवरेज, 2) आंकड़ों की जनता तक पहुंच, 3) आंकड़ों की अखंडता, 4) आंकड़ों की गुणवत्ता।
- अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष की एनुअल आब्ज़रवेंस रिपोर्ट 2018 के अनुसार, भारत अपने आर्थिक आँकड़ों के प्रकाशन में प्रायः देरी करता है जो एसडीडीएस के प्रावधानों के अनुरूप नहीं है।
- आवश्यक आंकड़े का दमन पारदर्शी एवं जवाब देह सरकार के सिद्धांत के विरूद्ध है | एक स्वतंत्र सांख्यिकीय प्रणाली की निष्पक्षता और विश्वसनीयता को कम करना बुनियादी रूप से राष्ट्रीय हित के खिलाफ है।
भारत में सड़क दुर्घटनाओं पर वार्षिक रिपोर्ट - 2018
- 19 नवंबर, 2019 कोसड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय ने भारत में सड़क दुर्घटनाओंपर वार्षिक रिपोर्ट-2018 को जारी किया।
- यह सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय के परिवहन अनुसंधान विंग द्वारा प्रकाशित एक वार्षिक प्रकाशन है जो राज्यों और संघ शासित प्रदेशों के पुलिस विभागों द्वारा प्रदान की गई जानकारी के आधार पर दुर्घटनाओं, संबंधित मौतों और घायलों काकैलेंडर-वार रिपोर्ट है।
प्रमुख निष्कर्ष
सड़क दुर्घटनाओं में वृद्धि
- 2018 के दौरान देश में सड़क दुर्घटनाओं में 46% की वृद्धि हुई है।
- देश में 2018 में सड़क दुर्घटनाओं में मरने वाले लोगों की संख्या एक साल पहले के मुकाबले 4% बढ़कर 1.5 लाख से अधिक पहुंच गई जो पूर्व वर्ष में1.47 लाख थी ।
दुर्घटनाओं की वार्षिक वृद्धि दर घटाना
- 2010-2018 की अवधि में सड़क दुर्घटनाओं और उनमें मरने वालों की संख्या की मिश्रित सालाना वृद्धि दर में काफी गिरावट आई जो ऑटोमोबाइल के विकास की बहुत उच्च दर के बावजूद, पिछले दशकों की तुलना में कम है।
राष्ट्रीय और राज्य राजमार्ग दुर्घटनाएं
- कुल सड़क दुर्घटनाओं का 2 प्रतिशत और 2018 में 35.7 प्रतिशत मौतों का कारण राष्ट्रीय राजमार्गहै।
- 2 प्रतिशत और 26.8 प्रतिशत क्रमशः दुर्घटनाओं और मौतों का कारणराज्य राजमार्ग है।
सड़क उपयोगकर्ता दुर्घटना का प्रकार
- सड़क उपयोगकर्ता के प्रकार से दुर्घटनाओं के शिकार के संदर्भ में, पैदल चलने वालों की संख्या 15% थी, जबकि साइकिल चालकों और दोपहिया वाहन चालकों की हिस्सेदारी क्रमशः 4% और 36.5% थी।
- इसश्रेणी क साथ दुर्घटनाओं में शिकार लोगों का 9% है और वैश्विक रुझानों के अनुरूप सबसे असुरक्षित श्रेणी हैं।
आयु-समूह संबंधी दुर्घटनाएं
- 2018 के दौरान, 18 से 45 वर्ष के युवा वयस्क लगभग 69.6 प्रतिशत सड़क दुर्घटनाओंसेपीड़ित थे।
- कुल सड़क दुर्घटना में होने वाली मौतों में 18-60 के कामकाजी आयु समूह की हिस्सेदारी 84.7 प्रतिशत थी।
पुरुष अधिक दुर्घटना के लिए प्रवण
- कुल दुर्घटना मौतों की संख्या में पुरुषों की हिस्सेदारी 86% थी जबकि 2018 में महिलाओं की हिस्सेदारी लगभग 14% थी।
राज्य का परिदृश्य
- तमिलनाडु राज्य ने 2018 में सबसे अधिक सड़क दुर्घटनाओं को दर्ज किया, जबकि 2018 में मारे गए सबसे अधिक संख्या उत्तर प्रदेश राज्य में थे।
स्रोत: द हिंदू
सड़क दुर्घटनाओं के प्रमुख कारणतेज गति
शराब पी कर गाड़ी चलाना
सुरक्षा उपकरणोंके उपयोग नहीं
ट्रैफिक कानूनों का खराब प्रवर्तन
ख़राब सड़क का बुनियादी ढांचा
अधिक लदान
मौसम
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सड़क सुरक्षा के प्रति सरकार की पहल
मोटर वाहन संशोधन अधिनियम- 2019
- मोटर वाहन (संशोधन) अधिनियम -2019, जो मोटर वाहन अधिनियम, 1988 में संशोधन करता है, 1 सितंबर, 2019 से लागू हुआ।
- अधिनियम का उद्देश्य सड़क सुरक्षा के क्षेत्र में सुधार लाना, नागरिक सुविधाओं को बढ़ाना, सूचना प्रौद्योगिकी की मदद से भ्रष्टाचार को कम करना,पारदर्शिता लानातथा बिचौलियों को दूर करना है।
- यह अधिनियम सार्वजनिक परिवहन को मजबूत करने, रक्षा करने और बीमा एवं क्षतिपूर्ति व्यवस्था में सुधार लाने में मदद करेगा।
राष्ट्रीय सड़क सुरक्षा नीति -2017
- यह विभिन्न नीतिगत उपायों को रेखांकित करता है, जैसे- जागरूकता को बढ़ावा देना, सुरक्षित परिवहन के लिए बुनियादी ढांचे को प्रोत्साहित करना, जिसमें बुद्धिमतापूर्ण परिवहन का उपयोग, सुरक्षा कानूनों का का अनुपालन आदि शामिल हैं।
शमन के उपाय
शिक्षा और जागरूकता के उपाय
- यह मीडिया और गैर-सरकारी संगठनों (एनजीओ) के माध्यम से सड़क सुरक्षा जागरूकता और विनियमन के प्रसार पर निर्भर करता है।
- सड़क सुरक्षा को एक सामाजिक आंदोलन बनाने के लिए मंत्रालय कई प्रयास कर रहा है। सरकार ने टीवी, रेडियो, सिनेमा पर प्रसारण करने, सड़क सुरक्षा संदेशों के साथ कैलेंडर प्रिंट करने के साथ-साथ सड़क उपयोगकर्ताओं (पैदल यात्री, साइकिल चालक, स्कूली बच्चे, भारी वाहन चालक आदि) के लिए संदेश के साथ सड़क सुरक्षा पर सेमिनार और प्रदर्शनियों का आयोजन एवं प्रचार कर रही हैं।
इंजीनियरिंग (सड़क और वाहन दोनों) उपाय
- राजमार्गों पर दुर्घटनाप्रवण स्थानोंकी पहचान और सुधार को उच्च प्राथमिकता दी गई है। राष्ट्रीय राजमार्गों पर इंजीनियरिंग उपायों के माध्यम से सड़क सुरक्षा में सुधार के लिए ठोस प्रयास किए गए हैं।
सड़क सुरक्षा ऑडिट
- राष्ट्रीय राजमार्गों पर सड़क सुरक्षा ऑडिट करने के लिए विस्तृत दिशानिर्देश अधिसूचित किए गए हैं। विभिन्न चरणों में सड़क सुरक्षा ऑडिट को इंजीनियरिंग, प्रोक्योरमेंट एंड कंस्ट्रक्शन (ईपीसी) और बिल्ड, ऑपरेट, ट्रांसफर (बीओटी) मोड पर सभी सड़क विकास परियोजनाओं का हिस्सा बनाया गया है।
सड़क सुरक्षा कानूनों का उचित प्रवर्तन
- मोटर वाहन संशोधन अधिनियम, 2019 के माध्यम सेसरकार यातायात नियमों का बेहतर कार्यान्वयन एवं लागू करने को सुनिश्चित करना चाहती है, जो सड़क सुरक्षा और दुर्घटना शमन उपायों के अत्यंत महत्वपूर्ण घटक हैं।
आगे की राह
- देश में सड़क नेटवर्क, मोटर गाड़ियों के सज्जीकरणऔर शहरीकरण में विस्तार के साथ सड़क दुर्घटनाओं में वृद्धि हुई है, जो सड़क पर होने वाली चोटों और घातकताओं के लिए एक प्रमुख मुद्दा है और भारत में एक सार्वजनिक स्वास्थ्य के चिंता का विषय है।
- जबकि भारत के पास विश्व के 3 प्रतिशत से कम वाहन हैं, यह विश्व की सड़क दुर्घटनाओं में मृत्यु के लगभग 12 प्रतिशत के लिए जिम्मेदार है।
- सड़क दुर्घटनाओं से युक्त एक बहु-क्षेत्रीय प्रयास की आवश्यकता है जिसमें कानून प्रवर्तन, प्रशासन, (ड्राइविंग लाइसेंस और वाहन पंजीकरण का मुद्दा), इंजीनियरिंग (उपयुक्त सड़क डिजाइन) जागरूकता बढ़ाने और दुर्घटना के बाद के पीड़ित के देखभाल और प्रबंधन शामिल हैं।