सामयिक
आर्थिकी:
नगरपालिका बांड पर सूचना डेटाबेस
20-21 जनवरी, 2023 को बाजार नियामक 'भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड' (SEBI) द्वारा नगरपालिका बांड और नगरपालिका वित्त पर एक आउटरीच कार्यक्रम (An Outreach Program On Municipal Bonds And Municipal Finance) आयोजित किया गया।
- इस कार्यक्रम में SEBI ने म्यूनिसिपल बॉन्ड्स पर एक सूचना डेटाबेस (Information Database on Municipal Bonds) लॉन्च किया।
महत्वपूर्ण बिंदु
- उपर्युक्त कार्यक्रम को बॉन्ड बाजारों (bond markets) को विकसित करने के प्रयासों के तहत आयोजित किया गया था।
- सूचना डेटाबेस: सूचना डेटाबेस में निम्नलिखित सूचनाओं की एक विस्तृत श्रृंखला होती है:
- सांख्यिकी और नियम (Statistics and regulations),
- परिपत्र (Circulars),
- मार्गदर्शन नोट (Guidance note) और
- नगरपालिका ऋण प्रतिभूतियों के संबंध में सेबी द्वारा जारी अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)।
म्यूनिसिपल बांड के संदर्भ में
- परिचय: म्यूनिसिपल बॉन्ड या मुनि बॉन्ड (Municipal bond or muni bond) भारत में नगर निगमों या संबद्ध निकायों द्वारा जारी किया गया एक ऋण साधन (Debt instrument) है।
- उपयोग: ये स्थानीय सरकारी निकाय इन बांडों के माध्यम से जुटाई गई धनराशि का उपयोग पुलों, स्कूलों, अस्पतालों के निर्माण, घरों को उचित सुविधाएं प्रदान करने आदि जैसी सामाजिक-आर्थिक विकास परियोजनाओं के वित्तपोषण (Finance Projects For Socio-Economic Development) हेतु करते हैं।
- परिपक्वता अवधि और रिटर्न: इस तरह के बांड तीन साल की परिपक्वता अवधि (Maturity Period) के साथ जारी किए जाते हैं। नगर निगम इन बांडों पर प्राप्त राजस्व से रिटर्न प्रदान करते हैं।
म्यूनिसिपल बांड जारी करने से संबंधित सेबी के दिशानिर्देश
- SEBI द्वारा स्थानीय सरकारी निकायों (Local Government Bodies) को ऐसे स्रोतों से वित्त जुटाने में सक्षम बनाने के लिए वर्ष 2015 में नगरपालिका बांड जारी करने से संबंधित दिशानिर्देशों को संशोधित किया गया है।
- इस संशोधन के पश्चात, विभिन्न शहरों को 'कायाकल्प और शहरी परिवर्तन के लिए अटल मिशन' (Atal Mission for Rejuvenation and Urban Transformation-AMRUT) तथा 'स्मार्ट सिटीज़ मिशन' (Smart Cities Mission) जैसी पहलों के तहत लाभ प्राप्त हुए हैं।
ऑनलाइन गेमिंग से संबंधित ड्राफ्ट नियम
2 जनवरी, 2023 को इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (MeitY) ने ऑनलाइन गेमिंग के लिये नियमों का मसौदा जारी किया।
- प्रस्तावित नियमों को सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यवर्ती दिशा-निर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियम-2021 [Information Technology (Intermediary Guidelines and Digital Media Ethics Code) Rules-2021] में संशोधन के रूप में पेश किया गया है।
नियमों के महत्वपूर्ण प्रावधान
- स्व-नियामक निकाय के तहत पंजीकरण: सभी ऑनलाइन खेलों (Games) को एक स्व-नियामक निकाय के साथ पंजीकृत करना अनिवार्य होगा। साथ ही, केवल निकाय द्वारा स्वीकृत गेम्स को ही भारत में कानूनी रूप से संचालित करने की अनुमति प्राप्त होगी।
- स्व-नियामक निकाय की संख्या एक अथवा उससे अधिक हो सकती है। निकाय का संचालन विविध क्षेत्रों के 5 सदस्यों (ऑनलाइन गेमिंग, सार्वजनिक नीति, सूचना प्रौद्योगिकी, मनोविज्ञान और चिकित्सा से संबंधित) वाले एक निदेशक मंडल द्वारा किया जाएगा।
- फर्मों को निर्देश: ऑनलाइन गेमिंग फर्मों को अतिरिक्त सावधानी बरतते हुए उपयोगकर्त्ताओं के KYC की जानकारी रखनी होगी। उन्हें पैसों की निकासी (Transparent Withdrawal) तथा वितरण को पारदर्शी बनाना होगा। नियमों के अनुसार, KYC के लिये उन्हें भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) द्वारा निर्धारित मानदंडों का पालन करना होगा।
- सट्टेबाज़ी पर प्रतिबंध: ऑनलाइन गेमिंग कंपनियों को विभिन्न खेलों के परिणामों पर सट्टेबाज़ी की अनुमति नहीं दी जाएगी।
- विवाद समाधान तंत्र: ऑनलाइन स्ट्रीमिंग सेवाओं के लिए 'सूचना प्रौद्योगिकी नियम-2021' (IT Rule-2021) के तहत निर्धारित एक त्रि-स्तरीय विवाद समाधान तंत्र (Dispute resolution mechanism) का निर्माण किया जाएगा। इसके अंतर्गत शामिल होंगे:
- गेमिंग प्लेटफॉर्म के स्तर पर एक शिकायत निवारण प्रणाली,
- उद्योगों के स्व-नियामक निकाय, तथा
- सरकारी नेतृत्व में एक निरीक्षण समिति।
भारत में ऑनलाइन गेमिंग
- वैश्विक भागीदारी: वैश्विक स्तर पर फैंटेसी स्पोर्ट्स (Fantasy sports) का सबसे बड़ा बाजार भारत में निर्मित हुआ है, यहां 200 से अधिक प्लेटफॉर्म पर 13 करोड़ से अधिक ऑनलाइन गेमिंग के उपयोगकर्ता हैं। महत्वपूर्ण बात यह है कि भारत में लगभग 40 से 45% गेमर्स महिलाएं हैं।
- वृद्धि दर: देश में इस उद्योग में वर्ष 2017-2020 के मध्य 38% की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर (Compound Annual Growth Rate-CAGR) दर्ज की गई, जबकि समान अवधि में चीन एवं अमेरिका में यह वृद्धि दर क्रमशः 8% तथा 10% थी।
- सरकारी अनुमानों के अनुसार भारतीय मोबाइल गेमिंग उद्योग का राजस्व वर्ष 2025 में 5 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँचने की उम्मीद है।
- वर्गीकरण: ऑनलाइन गेमिंग को सामान्य रूप से दो श्रेणियों में वर्गीकृत किया जाता है:
- गेम ऑफ चांस अथवा जुआ (Game of chance or Gambling): इस प्रकार के खेल संयोग पर आधारित होते हैं तथा बिना किसी रणनीति के इन्हें खेला जा सकता है। इनके परिणाम अप्रत्याशित रहते हैं तथा एक व्यक्ति इन खेलों को पूर्व ज्ञान या समझ के बिना भी खेल सकता है। डाइस गेम, नंबर चुनना (Picking a number) आदि इसके प्रमुख उदाहरण है। इस प्रकार के खेल भारत में अवैध माने जाते हैं।
- गेम ऑफ स्किल अथवा गेमिंग (Game of skill or Gaming): इसके अंतर्गत उन सभी खेलों को शामिल किया जाता है जो किसी व्यक्ति द्वारा पूर्व ज्ञान अथवा खेल के अनुभव के आधार पर खेले जाते हैं। इसके लिए व्यक्ति में विश्लेषणात्मक निर्णय लेने, तार्किक सोचएवं क्षमता आदि जैसे कौशलों की आवश्यकता होती है। इस तरह के खेलों को अधिकांश भारतीय राज्यों में कानूनी मान्यता प्राप्त है।
अमृत भारत स्टेशन योजना.
27 दिसंबर, 2022 को रेल मंत्रालय ने स्टेशनों के आधुनिकीकरण के लिए एक नई नीति की घोषणा की, इसे ‘अमृत भारत स्टेशन योजना’ (Amrit Bharat Station Scheme) का नाम दिया गया है।
- विजन: अमृत भारत स्टेशन योजना में दीर्घकालिक दृष्टिकोण के साथ निरंतर आधार पर स्टेशनों के विकास की परिकल्पना की गई है।
- क्रियान्वयन का आधार: यह स्टेशन की आवश्यकताओं और संरक्षण के अनुसार दीर्घकालिक मास्टर प्लान तैयार करने और मास्टर प्लान के तत्वों के कार्यान्वयन पर आधारित है।
प्रमुख उद्देश्य
- रेलवे स्टेशनों के लिए मास्टर प्लान तैयार करना तथा न्यूनतम आवश्यक सुविधाओं [Minimum Essential Amenities (MEA)] सहित अन्य सुविधाओं को बढ़ाने के लिए विभिन्न चरणों में मास्टर प्लान का कार्यान्वयन करना;
- लंबी अवधि के समय में स्टेशन पर रूफ प्लाजा (Roof Plazas) और शहर केंद्रों (City Centres) का निर्माण करना;
- निधियों की उपलब्धता और परस्पर प्राथमिकता के आधार पर जहां तक संभव हो, हितधारकों की आवश्यकताओं को पूरा करना;
- नई सुविधाओं की शुरुआत के साथ-साथ मौजूदा सुविधाओं का उन्नयन और प्रतिस्थापन करना।
योजना के तहत चयनित स्टेशनों हेतु प्रमुख कार्य
- स्टेशनों तक सुगम पहुंच: मौजूदा भवन उपयोग की समीक्षा की जाएगी और स्टेशन के प्रवेश द्वारों के पास यात्रियों के लिए जगह छोड़ी जाएगी तथा रेलवे कार्यालयों को उपयुक्त रूप से स्थानांतरित किया जाएगा।
- सड़कों को चौड़ा करने, अवांछित संरचनाओं को हटाने, उचित रूप से डिज़ाइन किए गए साइनेज, समर्पित पैदल मार्ग, बेहतर प्रकाश व्यवस्था आदि के माध्यम से स्टेशनों तक सुगमता से पहुंच सुनिश्चित करने का प्रयास किया जाएगा।
- एक स्टेशन एक उत्पाद: इस पहल (One Station One Product) के लिए न्यूनतम दो स्टालों का प्रावधान किया जाएगा।
- उच्च स्तरीय प्लेटफॉर्म: सभी श्रेणियों के स्टेशनों पर उच्च स्तरीय प्लेटफॉर्म (760-840 मिलीमीटर) प्रदान किए जाएंगे। प्लेटफार्मों की लंबाई आम तौर पर 600 मीटर की होगी।
- मुफ्त वाई-फाई: ऐसे प्रावधान किए जा सकते हैं कि जहां तक संभव हो स्टेशन अपने उपयोगकर्ताओं को मुफ्त वाई-फाई की सुविधा प्रदान करे। मास्टर प्लान में 5-जी टावरों के लिए उपयुक्त स्थान होना चाहिए।
- दिव्यांगजन व महिलाओं के अनुकूल: सभी श्रेणियों के स्टेशनों पर महिलाओं और दिव्यांगजनों के लिए अलग-अलग प्रावधानों के साथ पर्याप्त संख्या में शौचालय उपलब्ध कराए जाएंगे।
- स्टेशनों पर दिव्यांगजनों के लिए सुविधाएं रेलवे बोर्ड द्वारा समय-समय पर जारी दिशा-निर्देशों के अनुसार होंगी।
- प्रतीक्षालयों को क्लब करना: विभिन्न प्रकार के प्रतीक्षालयों को क्लब करने का प्रयास किया जाएगा और जहां तक संभव हो अच्छा कैफेटेरिया/खुदरा सुविधाएं प्रदान करने का प्रयास किया जाएगा।
ऊर्जा संरक्षण (संशोधन) अधिनियम, 2022
19 दिसंबर, 2022 को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू द्वारा ऊर्जा संरक्षण (संशोधन) अधिनियम, 2022 [Energy Conservation (Amendment) Act, 2022] हस्ताक्षरित किया गया। विधेयक के रूप में इसे 12 दिसंबर, 2022 को राज्य सभा द्वारा तथा 8 अगस्त, 2022 को लोक सभा द्वारा पारित किया गया था।
- संदर्भ: यह संशोधन अधिनियम, ऊर्जा संरक्षण अधिनियम-2001 में संशोधन करता है, जिसे अंतिम बार वर्ष 2010 में संशोधित किया गया था।
- उद्देश्य: भारत को जलवायु परिवर्तन पर अपनी अंतरराष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं को पूरा करने में सहायता करना।
संशोधन के प्रमुख प्रावधान
- गैर-जीवाश्म ऊर्जा स्रोतों के उपयोग की बाध्यता: सरकार किसी निर्दिष्ट उपभोक्ता (विशेषकर कंपनी) से ऊर्जा खपत का एक न्यूनतम हिस्सा गैर-जीवाश्म स्रोतों से प्राप्त करने के संदर्भ में दिशानिर्देश जारी कर सकती है।
- जुर्माना: गैर-जीवाश्म स्रोतों से ऊर्जा उपभोग की बाध्यता पूरी न करने की स्थिति में 10 लाख रुपए तक के जुर्माने का प्रावधान है।
- कार्बन ट्रेडिंग: यह अधिनियम केंद्र सरकार को कार्बन क्रेडिट ट्रेडिंग योजना (Carbon credit trading scheme) को लागू करने का अधिकार प्रदान करता है।
- केंद्र सरकार अथवा उसके द्वारा अधिकृत एजेंसी पंजीकृत एवं अनुपालन संस्थाओं को कार्बन क्रेडिट प्रमाण-पत्र (Carbon credit certificate) जारी कर सकती है। अधिनियम में प्रावधान है कि संस्थाओं के अतिरिक्त कोई अन्य व्यक्ति भी स्वेच्छा से कार्बन क्रेडिट प्रमाण-पत्र खरीद सकता है।
- भवनों के लिये ऊर्जा संरक्षण संहिता: यह अधिनियम 'ऊर्जा संरक्षण एवं सतत भवन संहिता' (Energy Conservation and Sustainable Building Code) को निर्दिष्ट करने तथा इसे आवासीय भवनों तक विस्तारित करने का अधिकार केंद्र सरकार को प्रदान करता है।
- वाहनों एवं जलयानों के लिये मानदंड: ईंधन की खपत तथा ऊर्जा उपभोग संबंधी मानदंडों को वाहनों एवं जलयानों (Vehicles and Vessels) तक विस्तारित किया गया है।
- अधिनियम के अनुसार ईंधन खपत के नियमों का उल्लंघन करने वाले वाहन निर्माताओं को बिक्री किए गए प्रत्येक वाहन पर 50,000 रुपए तक का जुर्माना लगाया जा सकता है।
- ऊर्जा दक्षता ब्यूरो (BEE) की शासी परिषद का पुनर्गठन: अधिनियम के अंतर्गत BEE की शासी परिषद का पुनर्गठन करके इसके सदस्यों की संख्या में (20 से 26 के स्थान पर 31 से 37 के मध्य) वृद्धि करने का प्रावधान किया गया है।
- ऊर्जा दक्षता ब्यूरो को ऊर्जा संरक्षण अधिनियम, 2001 के तहत 1 मार्च, 2002 को स्थापित किया गया था।
बहु-राज्य सहकारी समितियां (संशोधन) विधेयक, 2022
7 दिसंबर, 2022 को बहु-राज्य सहकारी समितियां (संशोधन) विधेयक, 2022 (Multi-State Co-operative Societies Act, 2022) लोक सभा में पेश किया गया। विधेयक में 2011 के 97वें संवैधानिक संशोधन अधिनियम के आलोक में 'बहु-राज्य सहकारी समितियां अधिनियम, 2002' (Multi-State Co-operative Societies Act, 2002) को संशोधित करने का प्रस्ताव किया गया है।
- वर्ष 2021 में केंद्र सरकार द्वारा पृथक रूप से एक केंद्रीय सहकारिता मंत्रालय का गठन किया गया, पूर्व में इसके शासनादेशों की देख-रेख कृषि मंत्रालय द्वारा की जाती थी।
सहकारी समितियों के संदर्भ में
- परिभाषा: अंतर्राष्ट्रीय सहकारी गठबंधन (The International Cooperative Alliance-ICA) द्वारा एक सहकारी समिति को 'सामूहिक स्वामित्त्व वाले तथा लोकतांत्रिक रूप से नियंत्रित उद्यम के माध्यम से अपनी आर्थिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक आवश्यकताओं एवं आकांक्षाओं की पूर्ति हेतु स्वैच्छिक रूप से एकजुट व्यक्तियों के स्वायत्त संघ' के रूप में परिभाषित किया गया है।
- उद्देश्य: पारस्परिक एवं स्व-सहायता सिद्धांत (Mutualism and Self-help theory) के माध्यम से समाज के गरीब वर्गों की सेवा करना तथा उनके हितों की रक्षा करना।
- बहु-राज्य सहकारी समितियाँ: संवैधानिक प्रावधानों के अनुसार सहकारी समितियाँ एक राज्य का विषय मानी जाती हैं। किंतु, अनेक ऐसी सहकारी समितियां हैं जिनके सदस्य एवं संचालन का क्षेत्र एक से अधिक राज्यों में विस्तृत है (उदाहरण: चीनी संघ, दूध संघ तथा दूध बैंक आदि)।
- कानूनी प्रावधान: इस प्रकार की बहु-राज्य सहकारी समितियों का संचालन करने के लिए MSCS अधिनियम, 2002 पारित किया गया था। वर्तमान विधेयक इसी अधिनियम में संशोधन हेतु लाया गया है।
संवैधानिक प्रावधान
- संवैधानिक संशोधन: 97वें संवैधानिक संशोधन अधिनियम के माध्यम से संविधान में भाग IXB को शामिल किया गया था, जिसमें सहकारी समितियों से संबंधित प्रावधान हैं।
- मूल अधिकार का दर्जा: इसी संशोधन के माध्यम से संविधान के भाग III के अंतर्गत अनुच्छेद 19(1)(c) में 'संघ और संगठन' के पश्चात 'सहकारिता' शब्द को शामिल किया गया था। यह प्रावधान भारतीय नागरिकों को सहकारी समितियाँ बनाने के अधिकार को मौलिक अधिकार (Fundamental Right) का दर्जा प्रदान करता है।
- राज्य पर उत्तरदायित्व: इसी प्रकार, 97वें संवैधानिक संशोधन अधिनियम द्वारा ही राज्य के नीति निदेशक तत्त्वों (भाग IV) में 'सहकारी समितियों के प्रचार' के संबंध में एक नए अनुच्छेद 43B को भी शामिल किया गया था।
बहुराज्य सहकारी समितियां (संशोधन) विधेयक-2022 के महत्वपूर्ण प्रावधान
- सहकारी चुनाव प्राधिकरण: विधेयक के अंतर्गत सहकारी क्षेत्र में 'चुनावी सुधार' (Election reform) लाने के लिए एक 'सहकारी चुनाव प्राधिकरण' (Co-operative election authority) स्थापित करने का प्रस्ताव किया गया है। प्राधिकरण में एक अध्यक्ष, एक उपाध्यक्ष और केंद्र द्वारा नियुक्त किए जाने वाले अधिकतम तीन सदस्य होंगे।
- एक कोष की स्थापना और समवर्ती लेखापरीक्षा: विधेयक 'बीमार बहु-राज्य सहकारी समितियों' (Sick multi-state co-operative societies) के पुनरुद्धार हेतु 'सहकारी पुनर्वास, पुनर्निर्माण और विकास निधि' (Cooperative Rehabilitation, Reconstruction and Development Fund) की स्थापना से संबंधित एक नई धारा (New Section) को शामिल करने का प्रस्ताव करता है। ऐसी बहुराज्य सहकारी समितियों, जिनका वार्षिक कारोबार केंद्र द्वारा निर्धारित राशि से अधिक होता है, के लिए 'समवर्ती लेखापरीक्षा' (Concurrent audit) के प्रावधान शामिल किए गए हैं।
- शिकायत निवारण: विधायक में एक अध्याय 'शिकायत निवारण' से संबंधित है। इसमें सदस्यों की शिकायतों की जांच करने के लिए एक निश्चित क्षेत्राधिकार के साथ एक या अधिक 'सहकारी लोकपाल' (Co-operative ombudsman) नियुक्त करने का प्रस्ताव है।
- लोकपाल की भूमिका: यह प्रस्ताव है कि, लोकपाल शिकायत प्राप्त होने की तारीख से तीन महीने की अवधि के भीतर जांच और अधिनिर्णय की प्रक्रिया को पूरा करेगा, साथ ही लोकपाल द्वारा जांच के दौरान समिति को आवश्यक निर्देश जारी किए जा सकते हैं।
- मौद्रिक दंड और कारावास: विधेयक में कानून के प्रावधानों का उल्लंघन करने के लिए बहु-राज्य सहकारी समितियों पर मौद्रिक दंड को अधिकतम 1 लाख रुपये तक बढ़ाने का भी प्रस्ताव किया गया है। इसी प्रकार, प्रस्तावित संशोधनों में कारावास की अवधि को वर्तमान में अधिकतम छह माह से बढ़ाकर एक वर्ष तक करने का प्रस्ताव है।
- सहकारी सूचना अधिकारी: विधेयक के अंतर्गतत बहु-राज्य सहकारी समितियों के सदस्यों एवं मामलों के प्रबंधन की जानकारी प्रदान करने के लिए 'सहकारी सूचना अधिकारी' (Co-operative information officer) की नियुक्ति करने का भी प्रस्ताव है।
कैक्टस रोपण और इसके आर्थिक उपयोग
8 दिसंबर, 2022 को केंद्रीय ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज मंत्री गिरिराज सिंह ने नई दिल्ली में 'कैक्टस रोपण और इसके आर्थिक उपयोग' (Cactus Plantation and it’s Economic Usage) विषय पर एक परामर्श बैठक आयोजित की।
- बैठक में चिली के राजदूत जुआन अंगुलो एम; मोरक्को दूतावास के मिशन उप प्रमुख एराचिद अलौई मरानी; ब्राजील दूतावास के ऊर्जा प्रभाग की प्रमुख श्रीमती कैरोलिना सैटो तथा ब्राजील दूतावास के कृषि सहायक एंजेलो मौरिसियो भी शामिल हुए।
महत्वपूर्ण बिंदु
- बैठक में भूमि संसाधन विभाग (Department of Land Resources-DoLR) को प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना के वाटरशेड विकास घटक (WDC-PMKSY) के माध्यम से कम उर्वर भूमि में सुधार करने के लिए अधिकृत किया गया है।
- ध्यान रहे कि, भारत के भौगोलिक क्षेत्र का लगभग 30 प्रतिशत हिस्सा निम्न स्तर के भूमि की श्रेणी में है। विभिन्न प्रकार के वृक्षारोपण उन गतिविधियों में से एक है जो कम उर्वर भूमि को सुधार करने में सहायता करते हैं। कैक्टस की कृषि को बढ़ावा देने का उद्देश्य भी उपर्युक्त लक्ष्यों के साथ अधिदेशित है।
- भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (Indian Council of Agricultural Research-ICAR) और शुष्क भूमि क्षेत्रों में कृषि अनुसंधान के लिए अंतर्राष्ट्रीय केंद्र (International Center for Agricultural Research in Dryland Areas-ICARDA) को मध्य प्रदेश में ICARDA के अमलाहा फार्म में भूमि संरक्षण हेतु एक पायलट परियोजना स्थापित करने के कार्य में शामिल किया जा रहा है। इसके अंतर्गत कैक्टस की कृषि को भी बढ़ावा देने का प्रयास किया जाएगा।
कैक्टस क्या है?
- कैक्टस एक जेरोफाइटिक पौधा (Xerophytic plant) है जो अपेक्षाकृत धीमी गति से बढ़ता है।
- वैश्विक स्तर पर इसका वितरण असमान हैं। इसकी अधिकांश सघनता भूमध्य रेखा के 30 डिग्री उत्तरी एवं 30 डिग्री दक्षिणी अक्षांशों के मध्य पाई जाती है।
- इस पौधे की प्रजातियों की सर्वाधिक संख्या तथा सघनता (Highest species density) दक्षिण अफ्रीका तथा उपोष्णकटिबंधीय उत्तरी एवं दक्षिणी अमेरिका में है।
कैक्टस के प्रमुख उपयोग क्या हैं?
- जल संरक्षी: कैक्टस पारंपरिक फसलों की तुलना में जल का 80% कम उपयोग करता है, फिर भी इसके द्वारा व्यापक संख्या में फलों की पैदावार की जाती है।
- खाद्य उपयोग: उच्च चीनी सामग्री के कारण इसके फलों का उपयोग जैम और जेली बनाने के लिए किया जाता है और शेष फसल का उपयोग मानव उपभोग और पशुओं के चारे के रूप में किया जाता है।
- ताप सहनशील: इसके अतिरिक्त, यह फसल उच्च ताप सहनशीलता की विशेषताओं से युक्त है, अपनी इस विशिष्ट विशेषता के कारण यह पौधा उच्च तापमान वाली विषम परिस्थितियों के लिए भी अनुकूल माना जाता है।
- oवर्तमान समय में जब संपूर्ण विश्व जलवायु परिवर्तन के कारण तापमान में होने वाली वृद्धि से निपटने के उपायों की खोज कर रहा है, तो ऐसी स्थिति में यह पौधा व्यापक संभावनाएं प्रकट करता है।
- कृषक हितैषी: कैक्टस का व्यापक उपयोग जैव ईंधन, भोजन, चारा और जैव उर्वरक उत्पादन में भी किया जा रहा है। उत्पादन की सीमित लागत के कारण इस पौधे को गरीब किसानों के लिए अतिरिक्त रोजगार के साधन तथा उनकी आय में वृद्धि का एक महत्वपूर्ण विकल्प माना जा रहा है।
बागवानी क्लस्टर विकास कार्यक्रम
30 नवंबर, 2022 को ‘बागवानी क्लस्टर विकास कार्यक्रम’ (Horticulture Cluster Development Programme) के समुचित क्रियान्वयन के लिए कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर की अध्यक्षता में बैठक का आयोजन किया गया।
- देश में बागवानी के समग्र विकास को सुनिश्चित करने के लिए ‘बागवानी क्लस्टर विकास कार्यक्रम’ का शुभारंभ केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय द्वारा 31 मई, 2021 को किया गया था।
योजना के उद्देश्य
- लक्षित फसलों के निर्यातों में लगभग 20% का सुधार करना;
- क्लस्टर फसलों की प्रतिस्पर्धात्मकता को बढ़ाने के लिए क्लस्टर-विशिष्ट ब्रांड (Cluster-Specific Brand) का निर्माण करना; एवं
- देश में कृषि क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए और किसानों को उनकी उपज का उचित मूल्य देकर उनकी आय में वृद्धि करना।
मुख्य विशेषताएं
- नोडल एजेंसी: राष्ट्रीय बागवानी बोर्ड (National Horticulture Board) को इस केंद्रीय क्षेत्र योजना के कार्यान्वयन के लिए नोडल एजेंसी के रूप में नामित किया गया है।
- पायलट प्रोजेक्ट: कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय ने इस योजना के तहत 55 बागवानी समूहों की पहचान की है, जिनमें से 12 बागवानी समूहों को पायलट प्रोजेक्ट के लिए चुना गया है। पायलट प्रोजेक्ट से मिली सीख के आधार पर कार्यक्रम को सभी 55 क्लस्टरों में बढ़ाया जाएगा।
- कार्यान्वयन ढांचा: इस कार्यक्रम के लिए राष्ट्रीय बागवानी बोर्ड वित्तीय सहायता प्रदान करेगा।
- क्लस्टर विकास कार्यक्रम के कार्यान्वयन के लिए प्रत्येक पहचाने गए क्लस्टर में राज्य/केंद्र सरकार द्वारा अनुशंसित एक सरकारी/सार्वजनिक क्षेत्र की इकाई को क्लस्टर डेवलपमेंट एजेंसी (Cluster Development Agency) के रूप में नियुक्त किया जाएगा।
- क्लस्टर डेवलपमेंट एजेंसी, कार्यक्रम के सुचारु कार्यान्वयन के लिए अपने अधीक्षण में अधिकारियों की एक समर्पित टीम के साथ एक क्लस्टर डेवलपमेंट सेल (Cluster Development Cell) की स्थापना करेगी।
- जियो टैगिंग: कार्यक्रम के तहत छोटे व सीमांत किसानों को लाभ पहुंचाने, खेतों में लागू की जाने वाली गतिविधियों का पता लगाने, निगरानी उद्देश्य के लिए बुनियादी ढांचे की जियो टैगिंग (Geo Tagging) आदि की आवश्यकता है।
- योजना की आवश्यकता: क्लस्टर विकास कार्यक्रम को बागवानी समूहों की भौगोलिक विशेषज्ञता का लाभ उठाने एवं प्रीप्रोडक्शन (Preproduction), प्रोडक्शन, लॉजिस्टिक्स, कटाई के बाद प्रबंधन ब्रांडिंग और मार्केटिंग गतिविधियों के एकीकृत एवं बाजार-आधारित विकास (Integrated and Market-Led Development) को बढ़ावा देने के लिए डिज़ाइन किया गया है।
योजना का महत्व
- क्लस्टर विकास कार्यक्रम से किसानों को अधिक पारिश्रमिक मिल सकता है।
- इस कार्यक्रम से लगभग 10 लाख किसानों और मूल्य श्रृंखला (Value Chain )के संबंधित हितधारकों को लाभ हो सकता है।
- क्लस्टर विकास कार्यक्रम में बागवानी उत्पादों की कुशल एवं समय पर निकासी तथा परिवहन के लिए मल्टीमॉडल परिवहन के उपयोग के साथ अंतिम-मील संपर्कता (Last-Mile Connectivity) का निर्माण करके समग्र बागवानी पारिस्थितिकी तंत्र को बदलने की क्षमता है।
- इसके माध्यम से बागवानी क्षेत्र में सरकारी एवं निजी निवेश को भी बढाया जा सकता है।
भारत में बागवानी क्षेत्र का विकास
- उत्पादन: वर्ष 2019-20 के दौरान देश में 25.66 मिलियन हेक्टेयर भूमि पर बागवानी क्षेत्र का अब तक का सर्वाधिक 320.77 मिलियन टन उत्पादन हुआ।
- वर्ष 2020-21 के पहले अग्रिम अनुमान के अनुसार देश में 27.17 लाख हेक्टेयर भूमि पर बागवानी क्षेत्र का कुल उत्पादन 326.58 लाख मीट्रिक टन रहने का अनुमान है।
- कृषि जीडीपी में योगदान: बागवानी का देश के कई राज्यों के आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण योगदान है और कृषि जीडीपी में इसका योगदान 30 प्रतिशत से अधिक है।
एकीकृत बागवानी विकास मिशन
- शुरुआत: देश में बागवानी क्षेत्र में मौजूद संभावनाओं को साकार करने के लिए कृषि मंत्रालय ‘एकीकृत बागवानी विकास मिशन’ (Mission for Integrated Development of Horticulture- MIDH) नामक केंद्र प्रायोजित योजना को वर्ष 2014-15 से लगातार कार्यान्वित कर रहा है।
- उत्पादन में वृद्धि: इस मिशन ने खेतों में इस्तेमाल की जाने वाली सर्वोत्तम प्रणालियों को बढ़ावा दिया है, जिसने खेत की उत्पादकता और उत्पादन की गुणवत्ता में काफी सुधार किया है।
- योगदान: एमआईडीएच के लागू होने से न केवल बागवानी क्षेत्र में भारत की आत्मनिर्भरता बढ़ी है, बल्कि इसने भूख, अच्छा स्वास्थ्य व देखभाल, ग़रीबी से मुक्ति, लैंगिक समानता जैसे सतत् विकास लक्ष्यों को हासिल करने में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
राष्ट्रीय बागवानी बोर्ड
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बागवानी क्षेत्र के विकास के लिए क्या किये जाने की आवश्यकता है?
- बुनियादी ढांचे को बढ़ावा: भारत में बागवानी क्षेत्र, फसल कटाई के बाद होने वाले नुकसान और फसल कटाई के बाद के प्रबन्धन एवं सप्लाई चेन के बुनियादी ढांचे के बीच मौजूद अंतर की वजह से अभी भी काफी चुनौतियों का सामना कर रहा है।
- सघन बागवानी को बढ़ावा: बागवानी कृषि को अधिक लाभप्रद बनाने के लिये किसानों को परंपरागत खेती की बजाय सघन बागवानी को अपनाना चाहिये। इसके लिये वे वैज्ञानिकों द्वारा विकसित विभिन्न फलों की बौनी किस्मों का इस्तेमाल कर सकते हैं, जैसे- आम की आम्रपाली, अर्का व अरुणा, नींबू की कागज़ी कला, सेब की रेड चीफ, रेड स्पर आदि।
ई-कॉमर्स उपभोक्ताओं के हितों की सुरक्षा हेतु रूपरेखा
हाल ही में उपभोक्ता मामले, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण मंत्रालय के उपभोक्ता मामलों के विभाग ने ई-कॉमर्स (E-commerce) में फर्जी एवं भ्रामक समीक्षाओं (fake and deceptive reviews) से उपभोक्ता हितों की सुरक्षा एवं संरक्षण के लिए एक रूपरेखा का शुभारंभ किया।
प्रमुख दिशानिर्देश
- स्वैच्छिक कार्रवाई: अमेजॉन और फ्लिपकार्ट जैसी ई-कॉमर्स कंपनियों को अपने प्लेटफॉर्म पर पेश किए जाने वाले उत्पादों एवं सेवाओं से संबंधित सभी सशुल्क उपभोक्ता समीक्षाओं का स्वेच्छा से खुलासा करना होगा।
- पहचान: समीक्षाओं (Reviews) को भ्रामक(misleading) नहीं होना चाहिए और समीक्षकों की अनुमति के बिना उनकी पहचान का खुलासा नहीं किया जाना चाहिए।
- खरीदी गई समीक्षा: अगर कोई समीक्षा खरीदी जाती है या समीक्षा लिखने के लिए व्यक्ति को पुरस्कृत किया जाता है, तो उसे स्पष्ट रूप से खरीदी गई समीक्षा (Purchased Review) के रूप में चिह्नित करना होगा।
- आवेदन पत्र: मानक IS 19000 : 2022, उन सभी संगठनों पर लागू होगा, जो उपभोक्ता समीक्षाओं को ऑनलाइन प्रकाशित करते हैं। इनमें उत्पादों एवं सेवाओं के आपूर्तिकर्ता शामिल होंगे जो अपने ग्राहकों, आपूर्तिकर्ताओं द्वारा अनुबंधित तृतीय पक्षों या स्वतंत्र तृतीय पक्षों से समीक्षा एकत्र करते हैं।
- परिभाषा: भारतीय मानक ब्यूरो (BIS) द्वारा समीक्षाओं को अनुरोधित और अवांछित के रूप में परिभाषित किया गया है। किसी भी संगठन में समीक्षा को संभालने के लिए जिम्मेदार व्यक्ति को समीक्षा प्रशासक कहा जाएगा।
- समय-सीमा: यदि किसी उत्पाद को 4-5 स्टार रेटिंग मिलती है, तो संगठन को डेटा एकत्र करने वाली अवधि की सूचना देनी होगी।
भारतीय ई-कॉमर्स क्षेत्र
- वर्ष 2020 में 50 बिलियन डॉलर के कारोबार के साथ, भारत ई-कॉमर्स के लिए 8वां सबसे बड़ा बाजार बन गया है।
- भारतीय ई-कॉमर्स क्षेत्र वर्ष 2027 में 26.93 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुंचने का अनुमान है, जो वित्त वर्ष 2021 में 3.95 बिलियन अमेरिकी डॉलर था।
- भारत की उपभोक्ता डिजिटल अर्थव्यवस्था (consumer digital economy) के 2030 तक 1 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर का बाजार बनने की उम्मीद है, जो 2020 में 537.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर थी।
- व्यावसायिक सेवा कंपनी ग्रांट थॉर्नटन के अनुसार, वर्ष 2025 तक भारत में ई-कॉमर्स का मूल्य 188 बिलियन अमेरिकी डॉलर होने की उम्मीद है।
ई-कॉमर्स से जुड़ी चुनौतियां
- ठोस विनियामक प्रणाली का अभाव: भारत में वर्तमान में भी ई-कॉमर्स फर्मों के लिए किसी ठोस विनियामक प्रणाली का अभाव है, इन्हें कई मंत्रालयों द्वारा विनियमित किया जाता है।
- डेटा की सुरक्षा: ई-कॉमर्स कंपनियों के संबंध में डेटा की निजता (Data Privacy) को लेकर भी सवाल उठाए जाते हैं, कुछ लोगों मानना है कि ये कंपनियां उनका व्यक्तिगत डेटा कलेक्ट कर रही हैं, जो कि चिंता की बात है।
- असमान प्रतिस्पर्धा: ठोस विनियामक प्रणाली के अभाव की वज़ह से छोटे और मझोले उद्योगों को इन ई-कॉमर्स कंपनियों के साथ असमान प्रतिस्पर्धा की समस्या का सामना भी करना पड़ता है|
- फेक रिव्यू: ई-कॉमर्स कंपनियों की वेबसाइट पर फेक रिव्यू के बढ़ते मामले भी देखे जाते हैं। यह उपभोक्ताओं के किसी वस्तु को खरीदने के निर्णय को प्रभावित करता है।
भारतीय मानक ब्यूरो (BIS)
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4500 मेगावाट बिजली की खरीद हेतु योजना
28 नवंबर, 2022 को ऊर्जा मंत्रालय ने शक्ति (SHAKTI- Scheme for Harnessing and Allocating Koyala Transparently in India) नीति के तहत 5 साल के लिए प्रतिस्पर्धी आधार पर ‘4500 मेगावाट की कुल बिजली की खरीद’ (Procurement of Aggregate Power of 4500 MW) नामक योजना का शुभारंभ किया।
महत्वपूर्ण बिंदु
- नोडल एजेंसी: पावर फाइनेंस कॉरपोरेशन (Power Finance Corporation) की पूर्ण स्वामित्व वाली सहायक कंपनी 'पावर फाइनेंस कॉरपोरेशन कंसल्टिंग (Consulting)' को ऊर्जा मंत्रालय द्वारा नोडल एजेंसी के रूप में नामित किया गया है।
- विद्युत की आपूर्ति: इस योजना के तहत, पावर फाइनेंस कॉरपोरेशन कंसल्टिंग ने 4500 मेगावाट की आपूर्ति के लिए बोलियां आमंत्रित की हैं और अप्रैल 2023 से विद्युत की आपूर्ति शुरू हो जाएगी।
- संशोधित बिजली खरीद समझौता: यह पहली बार है कि शक्ति योजना के तहत बोली लगाई जा रही है। साथ ही, इस बोली में मध्यम अवधि के लिए संशोधित बिजली खरीद समझौता (Power Purchase Agreement) का इस्तेमाल किया जा रहा है।
- महत्व: इस योजना से उन राज्यों को मदद मिल सकती है, जो ऊर्जा की कमी का सामना कर रहे हैं और उत्पादन संयंत्रों को अपनी क्षमता बढ़ाने में भी मदद मिलेगी।
शक्ति नीति
- शुभारंभ: शक्ति (स्कीम फॉर हार्नेसिंग एंड अलॉटिंग कोयला ट्रांसपेरेंटली इन इंडिया) नीति की शुरुआत 2017 में वर्तमान और भविष्य के ऊर्जा संयंत्रों को कोयले के बेहतर आवंटन की पूर्ति करने हेतु की गई थी।
उद्देश्य:
- भारत में सभी थर्मल पावर प्लांटों को कोयले की उपलब्धता सुनिश्चित करना है;
- कोयले के लाभ अंतिम उपभोक्ताओं तक पहुंचाना;
- आयातित कोयले पर निर्भरता कम करना और घरेलू उद्योगों को बढ़ावा देना;
- बिजली उत्पादकों को समन्वित तरीके से ईंधन की आपूर्ति सुनिश्चित करने में मदद करना।
अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों का क्रेडिट-डिपॉजिट अनुपात
28 नवंबर, 2022 को भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने देश के विभिन्न क्षेत्रों के लिए अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों के क्रेडिट-डिपॉजिट अनुपात के संबंध में नवीनतम आंकड़े जारी किये गए।
अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों के ऋण-जमा अनुपात संबंधी तिमाही आंकड़े (Quarterly Statistics on Credit-Deposit Ratios of Scheduled Commercial Banks)
- इन आंकड़ों के अनुसार भारत के उत्तरी एवं पश्चिमी क्षेत्रों के क्रेडिट-डिपॉजिट अनुपात में वर्ष 2022 में गिरावट आई है, जबकि उत्तर-पूर्वी, पूर्वी, मध्य और दक्षिणी क्षेत्रों में सुधार हुआ है।
महत्वपूर्ण बिंदु
- 2022 में हरियाणा, हिमाचल प्रदेश और राजस्थान जैसे राज्यों में सुधार देखा गया है, जबकि पंजाब, चंडीगढ़ और दिल्ली जैसे केंद्रशासित प्रदेश एवं राज्यों में गिरावट देखी गई है।
- जम्मू एवं कश्मीर तथा लद्दाख केंद्रशासित प्रदेशों ने वर्ष 2022 में क्रेडिट-डिपॉजिट अनुपात में 52.2 प्रतिशत (2021 में 48.9 प्रतिशत) और 36.9 प्रतिशत (2021 में 35.4 प्रतिशत) के साथ बेहतर सुधार किया है।
क्षेत्रवार क्रेडिट-डिपॉजिट अनुपात
क्षेत्र | 2021 | 2022 |
उत्तरी | 78.2 प्रतिशत | 77.7 प्रतिशत |
उत्तर-पूर्वी | 46.1 प्रतिशत | 46.4 प्रतिशत |
पूर्वी | 43.9 प्रतिशत | 44.7 प्रतिशत |
मध्य | 51.3 प्रतिशत | 53.1 प्रतिशत |
पश्चिमी | 78.1 प्रतिशत | 77.5 प्रतिशत |
दक्षिणी | 86.3 प्रतिशत | 87.6 प्रतिशत |
क्रेडिट-डिपॉजिट अनुपात
- तात्पर्य: क्रेडिट-डिपॉजिट अनुपात का तात्पर्य बैंकों की संपत्ति और देनदारियों के अनुपात से है। यह अनुपात दर्शाता है कि एक बैंक ने अपने द्वारा जुटाई गई जमाराशियों में से कितना उधार दिया है।
- उपयोग: इसका उपयोग बैंक के कुल ऋण को प्राप्त कुल जमा राशि से विभाजित करके बैंक की तरलता को मापने के लिए किया जाता है।
- महत्व: क्रेडिट-डिपॉजिट अनुपात बैंक के वित्तीय स्वास्थ्य का आकलन करने में मदद करता है।
- इसका उपयोग बैंकिंग विकास में अंतर-राज्यीय असमानताओं और आर्थिक गतिविधियों में बैंकिंग की भूमिका को मापने के लिए एक व्यापक संकेतक के रूप में किया जाता है।
- इसका निम्न अनुपात दर्शाता है कि बैंक अपने संसाधनों (अर्थात् जमा) का पूर्ण उपयोग नहीं कर रहे हैं। अर्थात यह खराब ऋण वृद्धि को दर्शाता है।
- ऋणों की गुणवत्ता: क्रेडिट-डिपॉजिट अनुपात बैंक द्वारा जारी किए गए ऋणों की गुणवत्ता को नहीं मापता है। यह उन ऋणों की संख्या को भी नहीं दर्शाता है जो डिफ़ॉल्ट रूप में हैं या उनके भुगतान में चूक हो सकती है।