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सामयिक खबरें :
मंकीपॉक्स
दुनिया भर से सामने आ रहे मंकीपॉक्स (Monkeypox) के मामलों ने सभी के लिए चिंतायें बढ़ा दी हैं। वर्तमान में यूनाइटेड किंगडम, स्पेन और पुर्तगाल सहित 19 देशों से 200 से अधिक पुष्ट मामले सामने आए हैं।
(Image Source: https://www.who.int/)
महत्वपूर्ण तथ्य: यह 'मंकीपॉक्स वायरस' के कारण होता है जो 'पोक्सविरिडे' (Poxviridae) परिवार के ऑर्थोपॉक्सवायरस (orthopoxvirus) जीनस से संबंधित है।
- मंकीपॉक्स कोई नया वायरस नहीं है। पहली बार इस वायरस की पहचान 1958 में बंदरों में की गई थी। इसी कारण इसे 'मंकीपॉक्स' नाम दिया गया।
- 1970 में कांगो (Democratic Republic of the Congo) में एक बच्चे में पहले मानव मामले की पहचान की गई थी।
- मंकीपॉक्स में चेचक (smallpox) के समान लक्षण होते हैं, हालांकि यह कम गंभीर होते हैं।
- विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार, मंकीपॉक्स आमतौर पर बुखार, दाने और गांठ के जरिये उभरता है और इससे कई प्रकार की चिकित्सा जटिलताएं पैदा हो सकती हैं।
- विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार, मंकीपॉक्स के दो अलग-अलग क्लैड (समूह) की पहचान की गई- वेस्ट अफ्रीकन क्लैड और कांगो बेसिन क्लैड (जिसे सेंट्रल अफ्रीकन क्लैड के रूप में भी जाना जाता है)।
- मंकीपॉक्स जूनोसिस (zoonosis) है, यानी एक बीमारी जो संक्रमित जानवरों से मनुष्यों में फैलती है। हालांकि, मानव-से-मानव संक्रमण सीमित है।
- रोग के लक्षण आमतौर पर दो से चार सप्ताह तक दिखते हैं, जो अपने आप दूर होते चले जाते हैं। लेकिन कुछ मामलों में यह गंभीर भी हो सकता है।
- मंकीपॉक्स पर 'द लैंसेट' में प्रकाशित एक नए अध्ययन के अनुसार कुछ एंटीवायरल दवाओं में लक्षणों को कम करने की क्षमता हो सकती है।
चन्द्रमा की मिट्टी में पहली बार उगाये गए पौधे
फ्लोरिडा विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने पहली बार चंद्रमा की मिट्टी में पौधे उगाए हैं। ये मिट्टी के नमूने 1969 और 1972 में नासा के मिशन के दौरान पृथ्वी पर लाये गए थे।
(Image Source: https://www.thehindu.com/ & Photo Credit: Reuters/)
महत्वपूर्ण तथ्य: 12 मई को उन्होंने अरबिडोप्सिस थालियाना (Arabidopsis thaliana) नामक पौधे की प्रजाति चंद्र मिट्टी में उगाई गई। चंद्र मिट्टी में लगाए गए सभी बीज अंकुरित हो गए हैं।
- चंद्र मिट्टी को 'चंद्र रेगोलिथ' (lunar regolith) भी कहा जाता है। ‘रेगोलिथ’ को अपोलो 11, अपोलो 12 और अपोलो 17 मिशनों के दौरान एकत्र किया गया था।
- चंद्र रेगोलिथ, अपने तेज कणों (sharp particles) और कार्बनिक पदार्थों की कमी के साथ, पृथ्वी की मिट्टी से बहुत अलग है, इसलिए यह अज्ञात था कि क्या बीज अंकुरित होंगे।
- अरबिडोप्सिस थालियाना का पौधा यूरेशिया और अफ्रीका का मूल निवासी है। इसे 'थेल क्रेस' (thale cress) भी कहा जाता है और यह वैज्ञानिक अनुसंधान में व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है।
ई- कचरा प्रबंधन के लिए मसौदा अधिसूचना
केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने मई 2022 में जनता की प्रतिक्रिया के लिए इलेक्ट्रॉनिक कचरा प्रबंधन के लिए मसौदा अधिसूचना जारी की है।
महत्वपूर्ण तथ्य: भारत में इलेक्ट्रॉनिक कचरा प्रबंधन के लिए नियमों का एक औपचारिक समूह है, पहली बार 2016 में इन नियमों की घोषणा की गई थी और 2018 में इसमें संशोधन किया गया। नवीनतम नियम अगस्त 2021 तक लागू होने की संभावना है।
- उपभोक्ता वस्तुओं से संबंधित कंपनियों और इलेक्ट्रॉनिक्स वस्तुओं के विनिर्माताओं को यह सुनिश्चित करना होगा कि 2023 तक उनके इलेक्ट्रॉनिक कचरे का कम से कम 60% एकत्र और पुनर्नवीनीकरण किया जाए और उन्हें 2024 और 2025 में क्रमशः 70% और 80% तक बढ़ाने का लक्ष्य रखा जाए।
- नियम कार्बन क्रेडिट के समान प्रमाणपत्रों में व्यापार की एक प्रणाली का भी प्रावधान करते हैं, जो कंपनियों को अस्थायी रूप से कमी को दूर करने में मदद करेगा।
- ऐसी कंपनियां, जो अपने वार्षिक लक्ष्यों को पूरा नहीं करेंगी, उन्हें 'पर्यावरण मुआवजे' के तौर पर जुर्माना देना होगा।
- लक्ष्य निर्दिष्ट करने के साथ, ही नियमों में कंपनियों के लिए 'विस्तारित निर्माता उत्तरदायित्व' (ईपीआर) प्रमाणपत्र हासिल करने की एक व्यवस्था है। ये प्रमाणपत्र किसी कंपनी द्वारा किसी विशेष वर्ष में एकत्रित और पुनर्नवीनीकरण किए गए ई-कचरे की मात्रा को प्रमाणित करते हैं।
- केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) निगरानी करेगी कि कंपनियां अपने लक्ष्यों को पूरा कर रही हैं या नहीं।
- 'ग्लोबल ई-वेस्ट मॉनिटर 2017' (Global E-Waste Monitor 2017) के अनुसार, भारत सालाना लगभग 2 मिलियन टन (एमटी) ई-कचरा उत्पन्न करता है और अमेरिका, चीन, जापान और जर्मनी के बाद ई-कचरा उत्पादक देशों में पांचवें स्थान पर है।
बार्ब्स मछली प्रजातियों की कृत्रिम प्रजनन तकनीक
केरल यूनिवर्सिटी ऑफ फिशरीज एंड ओशन स्टडीज (KUFOS) के वैज्ञानिकों के एक दल ने ऑलिव बार्ब्स (कुरुवा परल) और फिलामेंट बार्ब (कलक्कोडियान) के कृत्रिम प्रजनन के लिए तकनीकों का मानकीकरण किया है, और हाईफिन बार्ब (कूरल) और कर्नाटक कार्प (पचिलावेट्टी) के लिए ब्रूड स्टॉक (brood stocks) विकसित किया है।
(Image Source: https://www.thehindu.com/)
महत्वपूर्ण तथ्य: मीठे पानी की ये मछली की प्रजातियां इदमालयार बांध, भूतथनकेट्टू और त्रिशूर जिले के ‘कोल’ (Kol) क्षेत्रों में व्यापक रूप से पाई जाती हैं।
- हालांकि, अंधाधुंध मत्स्यन और आवास परिस्थितियों में बदलाव से ये प्रजातियां, विशेष रूप से ‘कुरुवा परल’ विलुप्ति के कगार पर पहुँच चुकी हैं।
- केरल यूनिवर्सिटी ऑफ फिशरीज द्वारा इन मछली प्रजातियों के लिए किए जा रहे संरक्षण उपायों को 'संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) - इंडिया हाई रेंज लैंडस्केप परियोजना' के तहत सहयोग प्रदान किया जाता है। यह परियोजना जनवरी 2020 में शुरू की गई थी।
- इस परियोजना का उद्देश्य इन मीठे पानी की प्रजातियों की मत्स्य कृषि के लिए आदिवासियों के बीच प्रशिक्षित जल कृषकों (aquaculturists) की मदद करना भी है।
सांसद स्थानीय क्षेत्र विकास योजना
केंद्रीय वित्त मंत्रालय ने 'सांसद स्थानीय क्षेत्र विकास योजना' Members of Parliament Local Area Development Scheme: MPLADS के नियमों को संशोधित किया है, जिसके तहत इस निधि पर मिलने वाले ब्याज को अब 'भारत की संचित निधि' में जमा किया जाएगा।
महत्वपूर्ण तथ्य: इस योजना के तहत प्रत्येक सांसद को सालाना 5 करोड़ रुपए आवंटित किए जाते हैं।
- MPLADS निधि जिला प्राधिकरण को जारी की जाती है और सांसदों के पास केवल विकास कार्यों की सिफारिश करने की शक्ति होती है। कार्य पूरा होने पर नामित जिला प्राधिकारी द्वारा भुगतान भी जारी किया जाता है।
- अब तक इस निधि पर मिलने वाले ब्याज को MPLADS निधि खाते में जोड़ा जाता था और इसे विकास परियोजनाओं के लिए इस्तेमाल किया जा सकता था।
भारत की संचित निधि: आयकर, केंद्रीय उत्पाद शुल्क, सीमा शुल्क जैसे करों के माध्यम से सरकार द्वारा प्राप्त सभी राजस्व और और सरकार द्वारा दिये गए ऋणों की वसूली से प्राप्त धन भारत के संविधान के अनुच्छेद 266 (1) के तहत गठित संचित निधि में जमा किए जाते हैं।
- सरकार अपने सभी खर्चों का वहन इसी निधि से करती है। संसद की अनुमति के बिना इस निधि से कोई राशि नहीं निकाली जा सकती है।
खाद्य संकट पर वैश्विक रिपोर्ट 2022
विश्व खाद्य कार्यक्रम ने 4 मई, 2022 को 'खाद्य संकट पर वैश्विक रिपोर्ट 2022' (Global Report on Food Crises 2022) जारी की।
महत्वपूर्ण तथ्य: रिपोर्ट के अनुसार वैश्विक स्तर पर भूख का स्तर खतरनाक स्तर पर बना हुआ है।
- रिपोर्ट के अनुसार यूक्रेन युद्ध ने भोजन, ऊर्जा और वित्त का त्रि-आयामी संकट पैदा किया है, जिसने दुनिया के सबसे कमजोर लोगों, देशों और अर्थव्यवस्थाओं पर विनाशकारी प्रभाव डाला है।
- 53 देशों या क्षेत्रों में लगभग 193 मिलियन लोगों ने 2021 में 'वैश्विक तीव्र खाद्य असुरक्षा' (global acute food insecurity) का अनुभव किया।
- रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि 2022 में वैश्विक तीव्र खाद्य असुरक्षा के 2021 के सापेक्ष और बिगड़ने की उम्मीद है।
- 2021 में, खाद्य संकट का सामना कर रहे लोगों की कुल संख्या के लगभग 70% दस देशों / क्षेत्रों - कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य, अफगानिस्तान, इथियोपिया, यमन, उत्तरी नाइजीरिया, सीरियाई अरब गणराज्य, सूडान, दक्षिण सूडान, पाकिस्तान और हैती में पाए गए।
विश्व खाद्य कार्यक्रम: 1961 में स्थापित, संयुक्त राष्ट्र विश्व खाद्य कार्यक्रम दुनिया का सबसे बड़ा मानवीय संगठन है, जो खाद्य सुरक्षा को बढ़ावा देता है। इसका मुख्यालय रोम में है।
- विश्व खाद्य कार्यक्रम को संघर्ष के क्षेत्रों में खाद्य सहायता प्रदान करने के प्रयासों के लिए 2020 में नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
गगनयान मिशन के लिये एचएस 200 सॉलिड रॉकेट बूस्टर
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने 13 मई, 2022 को आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा में सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र (SDSC) में गगनयान मिशन के लिए मानव-अनुकूल सॉलिड रॉकेट बूस्टर 'एचएस200' (human-rated solid rocket booster HS200) का स्थैतिक परीक्षण सफलतापूर्वक पूरा किया।
(Image Source: https://www.isro.gov.in/)
महत्वपूर्ण तथ्य: एचएस200 बूस्टर का डिजाइन और विकास तिरुवनंतपुरम में विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र (VSSC) में पूरा किया गया।
- 'एचएस200' बूस्टर जीएसएलवी एमके-III (GSLV Mk-III) पर इस्तेमाल किए गए 'एस200' रॉकेट बूस्टर का 'मानव अनुकूलित' (human-rated) संस्करण है, जिसे LVM3 के नाम से जाना जाता है।
- गगनयान मिशन के लिये उपयोग किये जाने वाले जीएसएलवी एमके-III रॉकेट में दो 'एचएस200' बूस्टर होंगे, जो लिफ्ट-ऑफ के लिये इसे थ्रस्ट प्रदान करेंगे।
- एचएस200 3.2 मीटर के व्यास के साथ 20 मीटर लंबा बूस्टर है और ठोस प्रणोदक का उपयोग करने वाला दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा प्रचालनात्मक बूस्टर (operational booster) है।
- चूंकि गगनयान एक मानवयुक्त मिशन है, जीएसएलवी एमके-III में 'मानव अनुकूलन' की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए विश्वसनीयता और सुरक्षा बढ़ाने के लिए सुधार होंगे।
- जीएसएलवी एमके-III के तीन प्रणोदन चरणों में से, दूसरा चरण द्रव प्रणोदक का उपयोग करता है जबकि तीसरा क्रायोजेनिक चरण है।
एम्परर पेंगुइन को विलुप्त होने का खतरा
अर्जेंटीना अंटार्कटिक संस्थान के विशेषज्ञों के अनुसार अंटार्कटिका के बर्फीले टुंड्रा और ठंडे समुद्रों में पाये जाने वाले ‘एम्परर पेंगुइन’ (Emperor penguin) जलवायु परिवर्तन के परिणामस्वरूप अगले 30 से 40 वर्षों में विलुप्त हो सकते हैं।
(Image Source: https://timesofindia.indiatimes.com/)
महत्वपूर्ण तथ्य: अनुमानों के अनुसार 60 और 70 डिग्री अक्षांशों के बीच स्थित इनकी आबादी अगले कुछ दशकों में यानी अगले 30 से 40 वर्षों में विलुप्त हो सकती है।
- एम्परर पेंगुइन, दुनिया का सबसे बड़ा पेंगुइन है और यह अंटार्कटिका के लिए स्थानिक केवल दो पेंगुइन प्रजातियों में से एक है।
- यह अंटार्कटिक की सर्दियों के दौरान बच्चे को जन्म देता है और अप्रैल से दिसंबर तक नवेली चूजों के घोंसले के लिए ठोस समुद्री बर्फ की आवश्यकता होती है।
- यदि बाद में समुद्र जम जाता है या समय से पहले पिघल जाता है, तो एम्परर पेंगुइन अपना प्रजनन चक्र पूरा नहीं कर पाता है।
- पेंगुइन के बीच सबसे लंबा प्रजनन चक्र एम्परर पेंगुइन की अनूठी विशेषता है। एम्परर पेंगुइन अपने बच्चे के जन्म के बाद, गर्माहट के लिए उसे अपने पैरों के बीच तब तक रखते हैं, जब तक कि वह अपनी अंतिम पंख विकसित नहीं कर लेता।
नैनी कोयला खदान
केंद्रीय कोयला मंत्रालय ने ओडिशा के अंगुल जिले में प्रस्तावित ओपनकास्ट कोयला खनन के लिए वन व्यपर्वतन प्रक्रिया (forest diversion process) में तेजी लाने की मांग की है, जिसके लिए एक आरक्षित वन में एक लाख से अधिक पेड़ों की कटाई की आवश्यकता होगी और हाथियों की आबादी भी प्रभावित होगी।
महत्वपूर्ण तथ्य: भारत सरकार और तेलंगाना के बीच एक संयुक्त उद्यम कंपनी सिंगरेनी कोलियरीज कंपनी लिमिटेड (SCCL) ने अंगुल जिले के छेंदीपाड़ा तहसील में नैनी कोयला खदान में कोयला खदान का प्रस्ताव दिया है।
- परियोजना के लिए कुल 912.799 हेक्टेयर भूमि की आवश्यकता है, जिसमें 643.095 हेक्टेयर आरक्षित वन भूमि और 140.180 हेक्टेयर ग्राम वन भूमि है। शेष गैर वन भूमि है।
- SCCL इसके लिए 783.275 हेक्टेयर वन भूमि के व्यपर्वतन से पहले पर्यावरण और वन मंजूरी की प्रतीक्षा कर रहा है, जो महानदी घाटी के भीतर निचले गोंडवाना बेसिन के दक्षिण-पूर्वी कोने में है।
- साइट निरीक्षण रिपोर्ट के अनुसार छेंदीपाड़ा आरक्षित वन में 1,05,092 पेड़, राजस्व वन में 1,087 पेड़ और गैर वन भूमि में 327 पेड़ काटने होंगे।
वन्यजीवों के लिए खतरा: हालांकि कोयला खनन के लिए प्रस्तावित क्षेत्र किसी राष्ट्रीय उद्यान, वन्यजीव अभयारण्य या जीवमंडल का हिस्सा नहीं है। लेकिन इससे विशेष रूप से जंगली हाथियों की आवाजाही के लिए खतरा हो सकता है।
- राज्य हाथियों की आवाजाही पर अंगुल जिले में कोयला खनन के प्रभाव का आकलन करने के लिए बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी से अध्ययन कराएगा।
अन्य तथ्य: कोयला खनन ओडिशा में औद्योगिक क्षेत्र के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। राज्य में भारत के 24% कोयला भंडार हैं।
जैव विविधता (संशोधन) विधेयक 2021
राज्य सभा सांसद और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने जैव विविधता (संशोधन) विधेयक, 2021 के प्रावधानों की आलोचना की है, जिसकी वर्तमान में एक संयुक्त संसदीय समिति द्वारा समीक्षा की जा रही है।
(Image Source: https://www.thehansindia.com/)
जैव विविधता अधिनियम, 2002: इसे जैव विविधता पर संयुक्त राष्ट्र अभिसमय (Convention on Biological Diversity: CBD), 1992 को प्रभावी बनाने के लिए तैयार किया गया था, जो जैविक संसाधनों और संबद्ध पारंपरिक ज्ञान के उपयोग से उत्पन्न होने वाले लाभों के स्थायी, निष्पक्ष और समान बंटवारे का प्रयास करता है।
- भारत की जैव विविधता के संरक्षण के लिए यह अधिनियम राष्ट्रीय स्तर पर एक 'राष्ट्रीय जैव विविधता प्राधिकरण', राज्य स्तर पर 'राज्य जैव विविधता बोर्ड' और स्थानीय निकाय स्तरों पर 'जैव विविधता प्रबंधन समितियों' (बीएमसी) से मिलकर एक त्रि-स्तरीय संरचना का प्रावधान करता है।
- जैव विविधता प्रबंधन समितियों की प्राथमिक जिम्मेदारी स्थानीय जैव विविधता और संबंधित पारंपरिक ज्ञान को 'पीपल्स बायोडायवर्सिटी रजिस्टर' (People’s Biodiversity Register) के रूप में दस्तावेजीकरण करना है।
संशोधित विधेयक के प्रावधान: इसमें स्थानीय समुदायों के साथ जैविक संसाधनों की पहुंच और लाभ साझा करने के दायरे को बढ़ाने का प्रस्ताव है।
- विधेयक पंजीकृत आयुष चिकित्सकों और संहिताबद्ध पारंपरिक ज्ञान प्राप्त करने वाले लोगों को कुछ उद्देश्यों के लिए जैविक संसाधनों तक पहुँच के लिए राज्य जैव विविधता बोर्डों को पूर्व सूचना देने से छूट देने का प्रयास करता है।
- संशोधन आयुष विनिर्माण कंपनियों को राष्ट्रीय जैव विविधता प्राधिकरण से अनुमोदन की आवश्यकता से छूट देंगे और इस प्रकार 'जैव चोरी' (bio piracy) का मार्ग प्रशस्त करेंगे।