मॉनसून में बदलाव से बंगाल की खाड़ी में समुद्री उत्पादकता पर प्रभाव:अध्ययन
- 30 Apr 2025
30 अप्रैल, 2025 को एक बहुराष्ट्रीय अध्ययन नेचर जियोसाइंस में प्रकाशित हुआ, जिसका शीर्षक है "अत्यधिक भारतीय ग्रीष्म मानसून राज्यों ने अंतिम विघटन के दौरान बंगाल की खाड़ी की उत्पादकता में कमी " ('Extreme Indian summer monsoon states stifled Bay of Bengal productivity across the last deglaciation') जिसमें पाया गया कि भारतीय ग्रीष्मकालीन मानसून की भारी वृद्धि- ने बंगाल की खाड़ी की समुद्री संरचनाओं में भारी गिरावट आई है।
मुख्य तथ्य:
- अध्ययन निष्कर्ष: पिछले 22,000 वर्षों के रिकॉर्ड के आधार पर, शोधकर्ताओं ने पाया कि अत्यधिक मजबूत या कमजोर मॉनसून के दौरान सतही जल में पोषक तत्वों की उपलब्धता में 50% तक की गिरावट आई, जिससे प्लवक (plankton) और मछलियों की संख्या में भारी कमी आई।
- वैज्ञानिक कारण: मॉनसून वर्षा से नदियों का मीठा पानी खाड़ी में आता है। जब वर्षा अत्यधिक होती है, तो सतह पर मीठे पानी की परत बन जाती है, जिससे गहरे पानी के पोषक तत्व ऊपर नहीं आ पाते। कमजोर मॉनसून के दौरान भी समुद्री जल का मिश्रण और पोषक तत्वों की आपूर्ति कम हो जाती है।
- ऐतिहासिक उदाहरण: हेनरिक स्टेडियल 1 (17,500-15,500 वर्ष पूर्व, ठंडा काल) और प्रारंभिक होलोसीन (10,500-9,500 वर्ष पूर्व, गर्म काल) में दोनों ही अवस्थाओं में समुद्री उत्पादकता में भारी गिरावट दर्ज की गई।
- भविष्य का जोखिम: जलवायु परिवर्तन के कारण मॉनसून की अनिश्चितता और तीव्रता बढ़ने की संभावना है, जिससे बंगाल की खाड़ी में समुद्री उत्पादकता और मत्स्य संसाधनों पर गंभीर खतरा मंडरा रहा है।
- सामाजिक प्रभाव: बंगाल की खाड़ी, जो वैश्विक महासागर क्षेत्र का केवल 1% है, विश्व के कुल मत्स्य उत्पादन का लगभग 8% प्रदान करती है और इसके तटीय क्षेत्र करोड़ों लोगों के लिए प्रोटीन और आजीविका का प्रमुख स्रोत हैं।
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