जलवायु परिवर्तन व असंतुलित उर्वरक उपयोग से मृदा कार्बन में कमी

  • 10 Nov 2025

9 नवंबर, 2025 को भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) के वैज्ञानिकों द्वारा किए गए एक छह-वर्षीय अध्ययन में पाया गया कि जलवायु परिवर्तन एवं असंतुलित उर्वरक (विशेषकर यूरिया और फास्फेट की अत्यधिक मात्रा) के उपयोग से भारत की कृषि योग्य भूमि में मृदा कार्बनिक कार्बन तेजी से घट रहा है।

मुख्य तथ्य:

  • अध्ययन का दायरा: 2017–2023 के बीच, 29 राज्यों के 620 जिलों की 2,54,236 मृदा नमूनों की जांच कर विस्तृत डिजिटल ‘मृदा आर्गैनिक कार्बन मैप’तैयार किया गया।
  • प्राकृतिक निर्धारक: मृदा कार्बनिक कार्बन ऊँचाई (elevation) के साथ सकारात्मक और तापमान के साथ नकारात्मक रूप से सह-संबंधित मिला। यानी पहाड़ी क्षेत्रों में उच्च कार्बन, समभूमि या गरम क्षेत्रों (राजस्थान, तेलंगाना) में कम।
  • फसल प्रणाली और उर्वरक: चावल व दलहन आधारित फसल प्रणाली में मृदा कार्बनिक कार्बन की मात्रा अधिक पाई गई, जबकि गेहूं, मोटा अनाज, और परंपरागत फसल-क्रम में कम। हरियाणा, पंजाब और पश्चिमी यूपी में अधिक उर्वरक उपयोग से मृदा कार्बनिक कार्बन में गिरावट देखी गई।
  • जलवायु कारक: तापमान, वर्षा और ऊंचाई—ये मृदा कार्बनिक कार्बन के तीन प्रमुख प्राकृतिक निर्धारक पाये गये।
  • नीति सुझाव: जिन क्षेत्रों में मृदा कार्बनिक कार्बन 0.25% से कम है, वहां जैविक कार्बन संवर्धन के कदम, पोषक तत्व प्रबंधन और कवर फसलें अपनाने, और कार्बन क्रेडिट के लिए किसान प्रोत्साहन अभियान चलाने की सिफारिश की गई।